अजमेर. शीतला अष्टमी का पर्व चैत्र माह की अष्ठमी को आता है. हिन्दू धर्म में शीतला अष्ठमी का धार्मिक और पौराणिक महत्व है. अजमेर में भी शीतला अष्ठमी का पर्व श्रद्धा के साथ मनाया जाता है. देर रात से ही प्राचीन शीतला माता के मंदिर में भक्तों का तांता लग जाता है. अजमेर में सुभाष उद्यान के सामने गुलाब बाग में 101 वर्षों पुराना शीतला माता का मंदिर है. बताया जाता है कि यह जिले का पहला शीतला माता का मंदिर है, जो जनआस्था का बड़ा केंद्र बन चुका है.
स्वप्न में दर्शन देकर मंदिर बनाने का दिया था आदेश: रणजीत मल लोढ़ा ने बताया कि उन दिनों कई बीमारियां लोगों में फैल रही थी. खासकर बच्चों में होली के बाद बोदरी (चिकनपाक्स) की बीमारी फैल रही थी. सेठ कानमल लोढ़ा को शीतला माता ने स्वप्न में दर्शन देकर मंदिर निर्माण का आदेश दिया था. तब सेठ कानमल लोढ़ा ने अजमेर के सुभाष उद्यान के सामने मंदिर निर्माण के लिए जमीन खरीदी थी. उन्होंने इस जगह को अपनी माता के नाम से गुलाब बाग नाम रखा. लोढ़ा बताते है कि मंदिर में विराजमान शीतला माता की प्रतिमा उस वक्त नागौर से लाई गई थी. विधि-विधान से शीतला माता की प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा मंदिर में की गई.
मंदिर में पहले सेठ कानमल लोढ़ा के वंशज करते हैं पूजा: रणजीत मल लोढ़ा बताते है कि जिस दिन घरों में ठंडा भोजन बनाया जाता है, उसी रात को 12 बजे बाद उनका परिवार मंदिर में पहले पूजा करता है. इसके बाद मंदिर में श्रद्धालुओं का पूजा-अर्चना करने का सिलसिला जारी रहता है. शीतला माता को अर्पित करने के लिए श्रद्धालु अपने साथ शीतल जल, घर के बने शीतल पकवान के अलावा दूध, दही साथ लाते हैं. उन्होंने यह भी बताया कि पौराणिक मान्यता के अनुसार मंदिर में पुजारी माली और कुम्हार समाज का व्यक्ति ही होता है.
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प्रतिमा पर अर्पित किया शीतल जल पीने से होते हैं रोग दूर: सेठ कानमल लोढ़ा के वंशज रणजीत मल लोढ़ा बताते हैं कि शारारिक रोग से मुक्ति के लिए श्रद्धालु शीतला माता की प्रतिमा पर चढ़ाया गया शीतल जल भरकर अपने साथ ले जाते हैं. लोगों की आस्था और विश्वास है कि इस जल के सेवन से रोग से मुक्ति मिलती है. गायों में एक वर्ष पहले आई लंपी बीमारी के वक्त भी कई श्रद्धालु मंदिर से जल लेकर गए थे और उस जल को गायों को पिलाने से लंपी से राहत मिली थी.
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महिलाएं सुनती हैं कहानियां: शीतला अष्ठमी से जुड़ी कई रोचक किंवदंतियां हैं. इनमें शीतला माता की कथा और कहानियां भी शामिल हैं. शीतलाष्टमी पर महिलाएं एक जगह बैठ सामूहिक रूप से कहानी सुनती हैं. इनमें से बुजुर्ग महिला अन्य महिलाओं को शीतला माता की कहानी सुनाती है. माना जाता है कि शीतला माता की कथा सुनने से उनकी कृपा मिलती है और परिवार को रोग, दोष से मुक्ति मिलती है. परिवार में प्रेम, सुख और शांति का वास होता है.
रात से ही मंदिर श्रद्धालुओं की लगेंगी कतार: लोढ़ा बताते हैं कि शीतला माता मंदिर में शीतला अष्टमी 1 अप्रैल को मनाई जाएगी. 31 मार्च की रात्रि 12 बजे से ही मंदिर में पूजा-अर्चना का दौर शुरू होगा. मंदिर परिसर के बाहर 1 और 2 अप्रैल को मेले का आयोजन होगा. बड़े वाहनों को मेला क्षेत्र में आने की अनुमति प्रशासन ने नहीं दी है. मेले को लेकर फुटकर व्यापारियों में उत्साह है. मंदिर आने वाले श्रद्धालु मंदिर में दर्शन करने के बाद मेले में खरीदारी भी करते हैं. इससे स्थानीय फुटकर व्यापारियों को रोजगार मिलता है. यानी धार्मिक आस्था के साथ यह मेला रोजगार भी लोगों को देता है. मंदिर में सभी धर्म समाज के लोग आते हैं. खासकर अजमेर में रहने वाले मद्रासी समाज की भी मंदिर में गहरी आस्था है.