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नवनियुक्त प्रार्चायों को रास नहीं आ रहे यूपी के डिग्री कॉलेज, साल भर में 100 ने दिया इस्तीफा

उत्तर प्रदेश के डिग्री कॉलेज (degree college) नवनियुक्त प्रार्चार्यों को रास नहीं आ रहा है. इसलिए एक साल में ही 100 से अधिक प्राचार्य (100 out of 290 resigned in a year) ने नौकरी छोड़ दी है. आइए जानते हैं, ऐसा क्या है कारण?

सौ प्राचार्य ने छोड़ी नौकरी
सौ प्राचार्य ने छोड़ी नौकरी
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 24, 2024, 8:03 PM IST

सौ प्राचार्य ने छोड़ी नौकरी

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में सरकार की सहायता से चलने वाले डिग्री कॉलेज में नव नियुक्त प्राचार्यों को नई नौकरी भा नहीं रही है. तभी तो एक साल के अंदर 296 में करीब 100 ने अभी तक अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. जबकी इन डिग्री कॉलेज में करीब दो दशक से स्थाई प्राचार्यों की नियुक्ति की प्रक्रिया साल 2021 में पूरी की गई थी. दरअसल, प्रदेश सरकार ने उच्च शिक्षा आयोग को राज्य में सहायता प्राप्त डिग्री कॉलेज में अस्थाई प्रधानाचार्य के स्थान पर स्थाई प्रधानाचार्य की नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी करने को कहा था. सरकार के आदेश के बाद आयोग ने साल 2015 और 2017 में निकल गए अपने विज्ञापन को समायोजित कर साल 2021 में प्रदेश के सभी डिग्री कॉलेज में खाली प्राचार्यों के पदों को भरने की प्रक्रिया को पूरा किया था. आयोग ने प्रदेश के सभी डिग्री कॉलेज में 296 स्थाई प्राचार्यों की नियुक्ति भी कर दी. लेकिन सरकार के प्रयासों का नतीजा यह रहा कि बीते 1 सालों में प्रदेश के सहायता प्राप्त डिग्री कॉलेज में तैनात किए गए नियमित प्राचार्य में से करीब 100 ने अभी तक अपने पद से इस्तीफा दे दिया है.

5 साल के लिए दी गई थी नियुक्ति: लखनऊ विश्वविद्यालय से मान्यता प्राप्त डिग्री कॉलेज शिक्षक संघ (लुआक्टा) के अध्यक्ष डॉ. मनोज पांडे ने बताया कि प्रदेश सरकार ने 2021 में आयोग के जरिए प्रदेश के सभी 331 सहायता प्राप्त डिग्री कॉलेज में खाली पड़े प्राचार्यों के पदों को भारती की प्रक्रिया पूरी की थी. इस प्रक्रिया के तहत आयोग ने प्रदेश में 296 डिग्री कॉलेज में प्राचार्य की नियुक्ति स्थाई रूप से कर दिया था. डॉ मनोज पांडे ने बताया कि यह सभी नियुक्ति प्रक्रिया 2019 में सरकार की ओर से जारी नए नियम के अनुसार हुआ था. जिसके तहत सभी प्राचार्य को 5 साल के लिए एक कॉलेज में नियुक्ति दी जाएगी. उसके बाद वह ट्रांसफर ले सकते हैं. अगर किसी प्राचार्य को मैनेजमेंट चाहे तो अगले 5 साल के लिए भी रोक सकता है. उन्होंने बताया कि इसके अलावा प्रदेश सरकार ने सभी सहायता प्राप्त डिग्री कॉलेज के प्रबंध तंत्र को कहा था कि अगर वह स्थाई प्राचार्य की नियुक्ति अपने यहां करने में आनाकानी करते हैं तो सरकार उस डिग्री कॉलेज के प्रबंध तंत्र को भंग कर वहां नया मैनेजमेंट नियुक्त कर प्राचार्य की तैनाती करवाई जाएगी. सरकार के इस दबाव के बाद सभी डिग्री कॉलेज ने अपने आप पर भेजे गए प्राचार्य को जॉइनिंग कर दी. लेकिन बीते एक से डेढ़ साल में स्थिति काफी विकट हो गई है. इन 296 प्राचार्यों में से करीब 100 से अधिक प्राचार्यों ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है.

मैनेजमेंट का दबाव,नौकरी से इस्तीफा देने का एक बड़ा कारण: लखनऊ में बप्पा श्री नारायण वोकेशनल डिग्री कॉलेज के प्राचार्य रमेश धर त्रिपाठी, डीएवी डिग्री कॉलेज के प्राचार्य हिमांशु सिंह और सीतापुर के हिंदू गर्ल्स डिग्री कॉलेज की प्राचार्य सीमा सिंह अब तक इस्तीफा दे चुकी हैं. इसके अलावा आगरा डिग्री कॉलेज और मेरठ डिग्री कॉलेज जैसे बड़े डिग्री कॉलेज के प्राचार्य ने भी बीते 1 साल में ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. लुआक्टा के अध्यक्ष डॉ. मनोज पांडे ने बताया कि मैनेजमेंट से मनमुटाव होने के कारण यह स्थिति से हो रहा है. जहां पर मैनेजमेंट से कुछ बात बिगड़ती है तो मैनेजमेंट वित्तीय अनीमियतिता का आरोप लगाकर जांच बैठा देता है. या फिर प्राचार्यों पर इतना दबाव डालता है कि वह खुद ही नौकरी छोड़कर जा रहे हैं.


कॉलेज प्रबंधन को प्राचार्य के साथ बनाना होगा तालमेल: डॉ. मनोज पांडे ने बताया कि इन प्राचार्यों के इस्तीफा के पीछे बड़े कारण हैं. एक तो सबसे बड़ा कारण है कॉलेज में शिक्षकों को प्रोफेसर का पद मिल गया है. जिस कारण सभी साथी करीब-करीब बराबर हो गए. इसके अलावा जो प्राचार्य बने, उनकी तैनाती अपने घर से दूर हुई. वहां गए तो उनको लगा कि वहां हमारा खर्चा भी बढ़ रहा है और ऐसी कोई नई चीज नहीं मिल रही है. दूसरा बहुत शिक्षकों को प्राचार्य बने जो महानगरों में थे और उनका वेतन अधिक मिल रहा था. लेकिन छोटी जगह पर गए तो उनका वेतन कम हो गया. तीसरा जो सबसे बड़ा कारण है, प्रबंधतंत्र है. मैनेजमेंट का तालमेल प्राचार्यों के साथ नहीं बैठ पाया. इस तालमेल ने कहीं न कहीं उनको मजबूर किया कि वह इस्तीफा देकर आ जाए. डॉ. मनोज पांडे ने बताया कि जिन शिक्षकों ने प्राचार्य पद की नौकरी से इस्तीफा दिया है. वह अपने मूल स्थान पर वापस चले गए हैं और दोबारा से अपने डिग्री कॉलेज में शिक्षक बन गए हैं.

शिक्षक संघ ने 5 की जगह 3 साल में ट्रांसफर करने के दिए सुझाव: डॉ. मनोज पांडे ने बताया कि सरकार ने जो प्राचार्यों की नियुक्ति की नियमावली बनाई है. उसमें 5 साल के ट्रांसफर की जो प्रक्रिया निर्धारित की है. उसमें बदलाव करना होगा. सरकार को संघ की तरफ से प्रस्ताव दिया गया है कि वह नियमित प्राचार्य की नियुक्ति करने के स्थान पर कॉलेज के शिक्षकों को ही विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष और डीन की नियुक्ति प्रक्रिया की तरह तीन-तीन साल के लिए प्राचार्य बनाया जाए. इससे कॉलेज के व्यवस्था को संचालित करने में आसानी भी होगी और हर कॉलेज को नियमित अंतराल पर स्थाई प्राचार्य मिलता रहेगा.


सौ प्राचार्य ने छोड़ी नौकरी

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में सरकार की सहायता से चलने वाले डिग्री कॉलेज में नव नियुक्त प्राचार्यों को नई नौकरी भा नहीं रही है. तभी तो एक साल के अंदर 296 में करीब 100 ने अभी तक अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. जबकी इन डिग्री कॉलेज में करीब दो दशक से स्थाई प्राचार्यों की नियुक्ति की प्रक्रिया साल 2021 में पूरी की गई थी. दरअसल, प्रदेश सरकार ने उच्च शिक्षा आयोग को राज्य में सहायता प्राप्त डिग्री कॉलेज में अस्थाई प्रधानाचार्य के स्थान पर स्थाई प्रधानाचार्य की नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी करने को कहा था. सरकार के आदेश के बाद आयोग ने साल 2015 और 2017 में निकल गए अपने विज्ञापन को समायोजित कर साल 2021 में प्रदेश के सभी डिग्री कॉलेज में खाली प्राचार्यों के पदों को भरने की प्रक्रिया को पूरा किया था. आयोग ने प्रदेश के सभी डिग्री कॉलेज में 296 स्थाई प्राचार्यों की नियुक्ति भी कर दी. लेकिन सरकार के प्रयासों का नतीजा यह रहा कि बीते 1 सालों में प्रदेश के सहायता प्राप्त डिग्री कॉलेज में तैनात किए गए नियमित प्राचार्य में से करीब 100 ने अभी तक अपने पद से इस्तीफा दे दिया है.

5 साल के लिए दी गई थी नियुक्ति: लखनऊ विश्वविद्यालय से मान्यता प्राप्त डिग्री कॉलेज शिक्षक संघ (लुआक्टा) के अध्यक्ष डॉ. मनोज पांडे ने बताया कि प्रदेश सरकार ने 2021 में आयोग के जरिए प्रदेश के सभी 331 सहायता प्राप्त डिग्री कॉलेज में खाली पड़े प्राचार्यों के पदों को भारती की प्रक्रिया पूरी की थी. इस प्रक्रिया के तहत आयोग ने प्रदेश में 296 डिग्री कॉलेज में प्राचार्य की नियुक्ति स्थाई रूप से कर दिया था. डॉ मनोज पांडे ने बताया कि यह सभी नियुक्ति प्रक्रिया 2019 में सरकार की ओर से जारी नए नियम के अनुसार हुआ था. जिसके तहत सभी प्राचार्य को 5 साल के लिए एक कॉलेज में नियुक्ति दी जाएगी. उसके बाद वह ट्रांसफर ले सकते हैं. अगर किसी प्राचार्य को मैनेजमेंट चाहे तो अगले 5 साल के लिए भी रोक सकता है. उन्होंने बताया कि इसके अलावा प्रदेश सरकार ने सभी सहायता प्राप्त डिग्री कॉलेज के प्रबंध तंत्र को कहा था कि अगर वह स्थाई प्राचार्य की नियुक्ति अपने यहां करने में आनाकानी करते हैं तो सरकार उस डिग्री कॉलेज के प्रबंध तंत्र को भंग कर वहां नया मैनेजमेंट नियुक्त कर प्राचार्य की तैनाती करवाई जाएगी. सरकार के इस दबाव के बाद सभी डिग्री कॉलेज ने अपने आप पर भेजे गए प्राचार्य को जॉइनिंग कर दी. लेकिन बीते एक से डेढ़ साल में स्थिति काफी विकट हो गई है. इन 296 प्राचार्यों में से करीब 100 से अधिक प्राचार्यों ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है.

मैनेजमेंट का दबाव,नौकरी से इस्तीफा देने का एक बड़ा कारण: लखनऊ में बप्पा श्री नारायण वोकेशनल डिग्री कॉलेज के प्राचार्य रमेश धर त्रिपाठी, डीएवी डिग्री कॉलेज के प्राचार्य हिमांशु सिंह और सीतापुर के हिंदू गर्ल्स डिग्री कॉलेज की प्राचार्य सीमा सिंह अब तक इस्तीफा दे चुकी हैं. इसके अलावा आगरा डिग्री कॉलेज और मेरठ डिग्री कॉलेज जैसे बड़े डिग्री कॉलेज के प्राचार्य ने भी बीते 1 साल में ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. लुआक्टा के अध्यक्ष डॉ. मनोज पांडे ने बताया कि मैनेजमेंट से मनमुटाव होने के कारण यह स्थिति से हो रहा है. जहां पर मैनेजमेंट से कुछ बात बिगड़ती है तो मैनेजमेंट वित्तीय अनीमियतिता का आरोप लगाकर जांच बैठा देता है. या फिर प्राचार्यों पर इतना दबाव डालता है कि वह खुद ही नौकरी छोड़कर जा रहे हैं.


कॉलेज प्रबंधन को प्राचार्य के साथ बनाना होगा तालमेल: डॉ. मनोज पांडे ने बताया कि इन प्राचार्यों के इस्तीफा के पीछे बड़े कारण हैं. एक तो सबसे बड़ा कारण है कॉलेज में शिक्षकों को प्रोफेसर का पद मिल गया है. जिस कारण सभी साथी करीब-करीब बराबर हो गए. इसके अलावा जो प्राचार्य बने, उनकी तैनाती अपने घर से दूर हुई. वहां गए तो उनको लगा कि वहां हमारा खर्चा भी बढ़ रहा है और ऐसी कोई नई चीज नहीं मिल रही है. दूसरा बहुत शिक्षकों को प्राचार्य बने जो महानगरों में थे और उनका वेतन अधिक मिल रहा था. लेकिन छोटी जगह पर गए तो उनका वेतन कम हो गया. तीसरा जो सबसे बड़ा कारण है, प्रबंधतंत्र है. मैनेजमेंट का तालमेल प्राचार्यों के साथ नहीं बैठ पाया. इस तालमेल ने कहीं न कहीं उनको मजबूर किया कि वह इस्तीफा देकर आ जाए. डॉ. मनोज पांडे ने बताया कि जिन शिक्षकों ने प्राचार्य पद की नौकरी से इस्तीफा दिया है. वह अपने मूल स्थान पर वापस चले गए हैं और दोबारा से अपने डिग्री कॉलेज में शिक्षक बन गए हैं.

शिक्षक संघ ने 5 की जगह 3 साल में ट्रांसफर करने के दिए सुझाव: डॉ. मनोज पांडे ने बताया कि सरकार ने जो प्राचार्यों की नियुक्ति की नियमावली बनाई है. उसमें 5 साल के ट्रांसफर की जो प्रक्रिया निर्धारित की है. उसमें बदलाव करना होगा. सरकार को संघ की तरफ से प्रस्ताव दिया गया है कि वह नियमित प्राचार्य की नियुक्ति करने के स्थान पर कॉलेज के शिक्षकों को ही विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष और डीन की नियुक्ति प्रक्रिया की तरह तीन-तीन साल के लिए प्राचार्य बनाया जाए. इससे कॉलेज के व्यवस्था को संचालित करने में आसानी भी होगी और हर कॉलेज को नियमित अंतराल पर स्थाई प्राचार्य मिलता रहेगा.


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