कोलकाता: इंडियन क्रिकेट टीम के युवा बल्लेबाज यशस्वी जयवाल इन दिनों भारत के लिए शानदार प्रदर्शन कर रहे हैं. उन्होंने हाल ही में इंग्लैंड के खिलाफ लगातार 2 टेस्ट मैचों में 2 दोहरे शतक लगाए हैं. इसमें ईटीवी भारत ने जायसवाल के पूर्व कोच ज्वाला सिंह से फोन पर खास बातचीत की है. इस दौरान उन्होंने कई सवालों के जवाब दिए. उन्होंने कहा कि मुझे उनसे काफी उम्मीदें थीं कि वह अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में अच्छा प्रदर्शन करेंगे. लेकिन वो जैसा कर रहे हैं वो सपने के पूरा होने जैसा है.
ज्वाला सिंह ने पूछा गया कि क्या आपको यशस्वी जायसवाल से करियर की शुरुआत में इस प्रदर्शन की उम्मीद थी. इस का जबाव देते हुए उन्होंने कहा कि, 'जब वह छोटा था, तब से उसे जहां भी अवसर मिले, उसने अच्छा खेला है. वह जिस भी टीम के लिए खेले, उन्होंने बड़े रन बनाए. इसलिए उनसे देश के लिए खेलने और बड़े रन बनाने की उम्मीद थी. लेकिन लगातार दो दोहरे शतक लगाने का मतलब है कि उन्होंने कुछ अलग किया है. रिकॉर्ड बनाना एक बात है और अच्छा खेलना अलग बात है. लेकिन उनके इस कारनामे से मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ'.
भारत और इंग्लैंड के बीच खेली जा रही बैजबॉल क्रिकेट यशबॉल क्रिकेट में बदल गई है. तो इस पर आपने उनसे क्या कहा, 'नहीं.. मैंने उससे बात नहीं की है. मैं खेल के दौरान कुछ नहीं कहता. सीरीज खत्म होने के बाद मैं बाद में बोलूंगा. अब भारतीय टीम में कई बेहतरीन कोच हैं और उन्हें उनकी सलाह मिल रही है. बैटिंग कोच, बॉलिंग कोच, कप्तान हैं. वे उसे सलाह दे रहे हैं. इसीलिए वह इतना अच्छा खेल रहा है'.
आपने यशस्वी को वो बनाया जो आज वो हैं. तो आपकी सलाह हमेशा मूल्यवान है या नहीं. इस सवाल पर बात करते हुए ज्वाला सिंह ने कहा, 'जब वह असफल होता है तो मैं उसे सलाह देता हूं. मुझे नहीं लगता कि जब वह प्रदर्शन कर रहा होता है तो उसे सलाह की जरूरत होती है. जब यशस्वी मानसिक रूप से कमजोर होता है, दौड़ने में असमर्थ होता है, तो मैं प्रेरित करने के लिए उससे बात करता हूं. मैं उनके साथ अतीत पर चर्चा करता हूं. हालाँकि, अब इसकी कोई जरूरत नहीं है. जब चीजें ठीक नहीं होतीं तो मैं खेल में आ जाता हूं. अब वहां कई लोग हैं जो उनकी मदद कर रहे हैं'.
जब ज्वाला सिंह ने पूछा गया कि क्या आपने यशस्वी की बल्लेबाजी में कोई तकनीकी कमी देखी है. तो इस पर उन्होंने जबाव देते हुए कहा,' जब यशस्वी अंडर-19 टीम में थे तो मैंने उनके साथ तकनीक पर काम किया. वह अंडर-19 विश्व कप टीम में भी थे. फिर कोविड-19 शुरू हो गया. लॉकडाउन के दौरान हम निराश थे. फिर आईपीएल आया जहां वह रन नहीं बना सके. उस वक्त वह हताशा में रोते थे और कहते थे कि उनका क्रिकेट जीवन खत्म हो गया है. उस वक्त मैंने उन्हें भरोसा दिलाया. मैंने उसे सिखाया कि टी20 क्रिकेट कैसे खेलना है, गेंद को कहां मारना है, तेज गेंदबाजों से कैसे निपटना है'.
इस बारे में उन्होंने आगे बात करते हुए कहा कि, 'आईपीएल में पहली बार खेलते हुए वो ट्रेंट बोल्ट की गति के सामने अस्थायी थे. फिर हमने इस पर काम किया. वहीं से बदलाव की शुरुआत हुई. हमने उस समय बल्लेबाजी तकनीक पर काफी काम किया. मैंने मानसिकता सुधारने के लिए काम किया. मेहनत का नतीजा अब आपको देखने को मिल सकता है.
यशस्वी के पूर्व कोच ज्वाला सिंह से जब पूछा गया कि दो दिन पहले सौरव गांगुली ने कहा था कि यशस्वी भारतीय क्रिकेट का भविष्य हैं. आप इस बारे में क्या कहते हैं. इस पर उन्होंने कहा कि, 'दादा ने कहा तो मानना ही पड़ेगा. वो देश के सर्वश्रेष्ठ क्रिकेटरों में से एक और अब तक के सर्वश्रेष्ठ कप्तानों में से एक. उन्हें क्रिकेट का काफी ज्ञान है. उन्होंने यशस्वी में कुछ तो देखा होगा. लेकिन अगर उसे आगे बढ़ना है, दादा जैसा बनना है, सचिन तेंदुलकर जैसा बनना है तो उसे लगातार कड़ी मेहनत करनी होगी. तभी यशस्वी उस मुकाम तक पहुंच पायेगा'.
ज्वाला सिंह ने आगे पूछा गया कि क्या एक खिलाड़ी के रूप में यशस्वी के विकास में उनकी मानसिक दृढ़ता छिपी है. तो उन्होंने जबाव दिया, 'यशस्वी जब मुंबई आए तो वो छोटे थे. उस समय उनका समर्थन करने वाला या उनके साथ खड़ा होने वाला कोई नहीं था. उनके जीवन में संघर्ष था. लेकिन 2013 में मेरे पास आने के बाद उन्हें ज्यादा तकलीफ नहीं उठानी पड़ी. मैंने यशस्वी को अपने बच्चे की तरह पाला. 1995 में मैं क्रिकेटर बनने का सपना लेकर उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से मुंबई आया और कई कठिन परिस्थितियों से गुज़रा. मैं उन्हें अपने मुश्किल वक्त के बारे में बताता था. मैं यशस्वी से कहता था कि वह देख ले कि मैंने क्या सहा है ताकि उसे ऐसा न करना पड़े. मैंने कहा मैं कड़ी मेहनत करूंगा तुम बस वही करो जो मैं कहता हूं.
उन्होंने आगे कहा कि, 'ऐसे कई क्रिकेटर हैं जो प्रतिभाशाली तो थे लेकिन कुछ खास हासिल नहीं कर सके. कई अन्य लोग शानदार शुरुआत के बाद हार गए. मैं वो कहानियां सुनाता था. जब वह खेलता था तो मैं हमेशा उसका परीक्षण करता था. मुंबई के लिए खेलना हमेशा कठिन होता है क्योंकि अच्छा प्रदर्शन किए बिना कोई भी मुंबई टीम में टिक नहीं सकता है. भारतीय टीम में जगह बनाना जरूरी है. भारतीय टीम में खेले बिना मुंबई की टीम में टिके रहना मुश्किल है.
यशस्वी बचपन से ही महान क्रिकेटरों को देखकर बड़े हुए हैं. यशस्वी की गरीबी के बारे में कई लोग बात करते हैं लेकिन 2013 के बाद वह ठीक हो गए. यशस्वी को मेरी अकादमी में विश्व स्तरीय क्रिकेटिंग बुनियादी सुविधाएं मिलीं. वसीम जाफ़र मेरे बहुत अच्छे दोस्त हैं. मैं उसे वसीम के साथ अभ्यास कराता था और उसे जाफर की तरह बल्लेबाजी करने के लिए कहता था'.
वह गरीबी में बड़े नहीं हुए. उनकी पीड़ा बहुत पहले की थी. जब माता-पिता समेत किसी ने उसकी देखभाल नहीं की. मैंने उन्हें सर्वोत्तम सुविधाएँ प्रदान कीं. उन्हें वसीम जाफर, दिलीप वेंगसरकर के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने का मौका मिला. उन्होंने मुंबई रणजी टीम के लिए खेलने वालों के साथ अभ्यास किया. यशस्वी मुंबई लीग में सबसे जूनियर क्रिकेटर थे. जब उन्हें कांगा लीग में नहीं खिलाया गया तो काफी दिक्कतें हुईं. मैंने संबंधित कप्तानों से चर्चा की है और उसकी पुष्टि की है.
अंत में जब ज्वाला सिंह से पूछा गया कि क्या आपकी लड़ाई यशस्वी के लिए प्रेरणा है. तो उन्होंने कहा कि,'मैं 1995 में मुंबई आया था और अचेरकर सर की अकादमी में था. मैं शारदाश्रम स्कूल टीम में था, लेकिन मांसपेशियों में चोट के कारण बाहर हो गया. तब से मैं पलटने की कोशिश कर रहा हूं. मैं हमेशा अपने कठिन समय के बारे में बात करता था. मैं तो बस खेलने की बात कर रहा था बाकी सब देखने वाला था. मुझे बहुत खुशी है कि वह अब भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं'.