नई दिल्ली: क्रिकेट एक ऐसा खेल है जिसका जन्मदाता अंग्रेजों को माना जाता है. इंग्लैंड के बाद भारत, श्रीलंका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने इस खेल को पूरे तरीके से अपना बना लिया और इतिहास रचते हुए कई कीर्तिमान स्थापित किए. लेकिन यूरोप में इसे ज्यादा लोकप्रियता नहीं मिल पाई. इसके पीछे वहां का इतिहास, संस्कृति और खेल की प्रकृति है.
यूरोपीय देशों में क्यों नहीं फला-फूला क्रिकेट ?
क्रिकेट उन देशों में फला-फूला जहां अंग्रेजों ने लंबे समय तक शासन किया. ब्रिटिश प्रशासक अपना खाली समय क्रिकेट खेलने में बिताते थे और स्थानीय लोगों ने न केवल इस खेल को पसंद किया बल्कि इसे अपनाया भी. लेकिन यूरोपीय देशों में ऐसा नहीं था. यहां पर क्रिकेट कभी फला-फूला नहीं और फुटबॉल जैसी लोकप्रियता नहीं पा सका.
महंगा खेल होने के चलते क्रिकेट को नहीं किया गया पसंद ?
क्रिकेट को यूरोप में एक श्रेष्ठ खेल के रूप में मान्यता दी गई थी क्योंकि इसे सबसे महंगे खेलों में से एक माना जाता था. हालांकि यह 19वीं सदी में इटली और जर्मनी जैसे देशों में खेला जाता था, लेकिन यह आम लोगों का ध्यान खींचने में विफल रहा था. विश्व युद्धों के बाद क्रिकेट को अमीरों के मनोरंजन के रूप में देखा जाने लगा और अंततः यह मध्यम वर्ग से अलग हो गया. फुटबॉल अपनी सरलता के साथ महाद्वीप में पसंदीदा खेल बन गया क्योंकि लोगों को इसे खेलने के लिए सिर्फ एक गेंद की जरूरत थी जबकि क्रिकेट के लिए बल्ला, गेंद और स्टंप की जरूरत पड़ती थी.
फुटबॉल ने छीनी क्रिकेट की लोकप्रियता
जब क्रिकेट अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शुरू हुआ तो केवल एक ही प्रारूप था और वो था टेस्ट क्रिकेट. इस फॉर्मेट में क्रिकेट की धीमी गति भी इसके खिलाफ काम करती रही. जैसे-जैसे यूरोप में महत्वपूर्ण सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन हुए, लोगों ने तेज, ज्यादा रोमांचक खेलों को प्राथमिकता दी. क्रिकेट अपने लंबे मैचों के साथ, फुटबॉल द्वारा पेश किए जाने वाले तेज रोमांच का मुकाबला नहीं कर सका और यूरोप में पीछे रह गया.
क्या मौसम भी बना क्रिकेट का दुश्मन ?
आखिरकार, यूरोप का मौसम भी मदद नहीं कर पाया. यूरोप के कई हिस्सों में ठंडी, गीली जलवायु क्रिकेट के लिए आदर्श नहीं है. क्रिकेट एक ऐसा खेल है, जो गर्म, शुष्क परिस्थितियों में पनपता है. इससे क्रिकेट के लिए इन देशों में अपनी मजबूत उपस्थिति स्थापित करना मुश्किल हो गया.
हालांकि हाल के दिनों में स्कॉटलैंड, नीदरलैंड और आयरलैंड सहित कुछ देश हैं, जो लगातार अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (ICC) के दरवाजे खटखटा रहे हैं और विश्व कप जैसे टूर्नामेंट में भाग ले रहे हैं. ऐसे में आने वाले समय में यूरोपीय देशों में क्रिकेट का भविष्य बेहतर होने की उम्मीद है.