ग्वालियर: एक पैरा खिलाड़ी के लिये जीत की राह आसान नहीं होती, प्रतिस्पर्धा में खुद को साबित करना उस खेल से भी बड़ी चुनौती होती है. जिसमें दूसरे खिलाड़ियों से आगे निकलना है. खासकर अगर खेल पानी से जुड़ा हो तो अच्छे अच्छों को पसीने आ जाते हैं, तो सोचिए कैनो जैसे खेल में पैरों से दिव्यांग खिलाड़ी बोट चलाकर रेस करते हैं, तो उनके हौसले कितने मजबूत होते हैं. इन्हीं हौसलों ने चंबल की दो बेटियों को दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण प्रतिस्पर्धा पेरिस में आयोजित पैरालंपिक खेलों तक पहुंचा दिया. मध्य प्रदेश के चंबल-अंचल की पूजा ओझा और प्राची यादव पैरालंपिक के कैनो खेल में भारत का प्रतिनिधित्व कर रही हैं.
चंबल की दो बेटियों पर देश की निगाहें
इन दोनों का ही सफर अपने आप में दूसरों के लिए प्रेरणादायी है. दोनों ही खिलाड़ी पैरों से दिव्यांग हैं, लेकिन जहां प्राची यादव अन्तराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं में भारत को 10 मेडल दिला चुकी हैं. जिनमे ज्यादातर गोल्ड है. तो वहीं पूजा ओझा 6 इंटरनेशनल गोल्ड जीत चुकी हैं. इसके अलावा दो एशियन गेम्स में सिल्वर मेडल और दो बार पैरा कैनो वर्ल्ड चैम्पियनशिप में सिल्वर मेडल ला चुकी हैं. अब दोनों की ही निगाहें पैरिस पैरालंपिक के गोल्ड मेडल पर टिकी हुई है. दोनों ही खिलाड़ी अलग-अलग वर्ग में भारत की और से खेलेंगी. जिनका पहला मुकाबला आने वाले 6 सितंबर को होने जा रहा है.
ग्वालियर की रहने वाली हैं प्राची यादव
मूल रूप से ग्वालियर की रहने वाली प्राची यादव बहापन से ही पैरों से दिव्यांग हैं. इस खेल में आने से पहले प्राची यादव ने ग्वालियर में शारीरिक खेल प्रशिक्षण संस्थान LNIPE में वाटर थेरेपी ली. जिससे पैरों की मसल्स में आराम मिला, तो पैरा स्विमिंग शुरू की. 2018 में उन्होंने स्विमिंग से हटकर पैरा कैनो की और रुख किया. जहां उन्होंने भिंड में गौरी तालाब पर बने पैरा केनो एंड कायाकिंग सेंटर में कुछ समय ट्रेनिंग ली. इसके बाद प्रशिक्षण का स्तर बढ़ाने के लिए भोपाल का रुख किया. इसके बाद मेहनत कर कई नेशनल और इंटरनेशनल इवेंट्स खेले.
प्राची ने कई मेडल जीतकर किया नाम रोशन
प्राची यादव का बतौर पैरा कैनोईस्ट करियर शानदार रहा है. उन्होंने अब तक डोमेस्टिक टूर्नामेंट्स में 8 गोल्ड मेडल और 4 सिल्वर मेडल जीते हैं. वहीं इंटरनेशनल टूर्नामेंट में भी अपना दम दिखाते हुए 7 गोल्ड मेडल, 2 सिल्वर और एक ब्रॉन्ज मेडल हासिल किया है. प्राची यादव 2020 में हुए टोक्यो पैरालिंपकि गेम्स में भी भाग ले चुकी हैं. उनकी इन उपलब्धियों को देखते हुए 2023 में भारत सरकार द्वारा उन्हें अर्जुन अवार्ड और उससे पहले 2020 में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा विक्रम पुरस्कार दिया जा चुका है. 2024 में आयोजित हो रहे पेरिस पेरोलिम्पिक्स में प्राची यादव VL2 वर्ग में रेस करेंगी. पिछले रिकॉर्ड्स को देखते हुए इस बार उनके जीतने की उम्मीद भी काफी ज्यादा है.
संघर्षों से भरा पूजा का जीवन
पूजा ओझा का जीवन किसी संघर्ष से कम नहीं रहा. चंबल जैसा क्षेत्र जहां एक जमाने में लड़कियों को घर के अंदर रहने को कहा जाता था. उस क्षेत्र के ग्रामीण परिवेश में ढले भिंड जिले से निकलकर दोनों पैरों से दिव्यांग पूजा ने अपनी पहचान बनायी. बतौर पैराकानोईस्ट अपना करियर शुरू करने वाली पूजा का जीवन बेहद गरीबी से जूझा है. आज घर के आर्थिक हालत ठीक नहीं है फिर भी ये खिलाड़ी देश का मान बढ़ाने के लिए दिन रात मेहनत कर रही है. पूजा दोनों ही पैरों से दिव्यांग हैं, लेकिन उनकी जीत की राह में कभी दिव्यांगता को उन्होंने रोड़ा नहीं बनने दिया.
भिंड में शुरू की थी प्रैक्टिस
पूजा ने 2017 में भिंड के गौरी सरोवर पर ट्रेनिंग शुरू की. इसके बाद यहीं प्रैक्टिस करते हुए कई नेशनल कंपीटिशन में हिस्सा लिया और जीत भी दर्ज की, लेकिन 2018 में पहली बार थाईलैंड में आयोजित हुई एशियन पैरा चैंपियनशिप में भारत के लिए सिल्वर मेडल जीता. इसके बाद अब तक 2017 से 2024 तक कुल एशियन चैंपियनशिप 6 गोल्ड और एक सिल्वर मेडल जीत चुकी हैं. 2022, 2023 और 2024 में लगातार 3 बार वर्ल्ड चैम्पियनशिप में भी सिल्वर जीत चुकी हैं. अब तक पूजा ने इंटरनेशनल इवेंट्स में 6 गोल्ड मेडल, 4 सिल्वर और एक ब्रॉन्ज मेडल जीत चुकी हैं
उनकी मेहनत और लगन के बूते खेल में योगदान के लिए 2022 में राष्ट्रपति अवार्ड से सम्मानित किया गया था. अब पूजा ओझा पैरिस में हैं. जहां आयोजित पैरालंपिक में कैनोइंग में हिस्सा ले रही हैं. 6 सितंबर को वे पहला मुकाबला 12 देशों के खिलाड़ियों के साथ KL1 वर्ग में करेंगी.
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चंबल की बेटियों पर गर्व है
पूजा ओझा और प्राची यादव दोनों ही खिलाड़ियों को भिंड सेंटर पर प्रशिक्षण दे चुके कोच राधे गोपाल यादव का कहना है कि, 'दोनों ही खिलाड़ियों में खेल के प्रति जुनून है. दोनों ने पहले भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी मेहनत का नमूना मेडल जीत कर दिखाया है और इस बार सभी को उम्मीद है कि पैरालंपिक में दोनों कैनो खिलाड़ी इतिहास रच कर आयेंगी और भारत में गोल्ड आएगा. हम सब अपने चंबल की बेटियों पर गर्व महसूस कर रहे हैं.'
पूजा और प्राची मुकाबले की तैयारी में जुटी हैं. लक्ष्य हर हाल में जीतना है. देश को उनसे और उनको खुद से उम्मीदें हैं, क्योंकि अगर दोनों खिलाड़ियों ने पानी पर अपनी रफ्तार का कमाल दिखा दिया और जीत का परचम लहराया तो पैरा ओलंपिक खेलों में मध्य प्रदेश के तीनों खिलाड़ी मेडल लेकर लौटेंगे. जिनमें जबलपुर की रुबीना फ्रांसिस निशानेबाजी में पहले ही सिल्वर मेडल के साथ बाजी मार चुकी हैं. अब देश की निगाहें अपनी ओलम्पियन पूजा और प्राची पर टिकी हुई हैं.