नई दिल्ली: पेरिस ओलंपिक 2024 खेलों की शुरुआत में अब सिर्फ 3 दिनों का समय बाकी रह गया है. 26 जुलाई को ओलंपिक खेलों की शुरुआत होगी, उस दिन जलती हुई मशाल के साथ कड़ाही को जलाया जाएगा और खेलों का आगाज किया जाएगा. उससे पहले आज हम आपको ओलंपिक खेलों में मशाल और कड़ाही जालाने की पूरी प्रकिया के साथ-साथ आग जलाने वाले एथलीटों के बारे में बताने वाले हैं.
क्या होती है मशाल रिले
ओलंपिक खेलों के उद्घाटन से कुछ महीने पहले एक मशाल जलाई जाती है. ये मशाल जहां जलाई जाती है, उस जगह से वहां लाई जाती है जहां पर ओलंपिक खेलों का आयोजन होने वाला हैं. मेजबान शहर तक मशाल लाने के लिए धावकों द्वारा पैदल यात्रा की जाती है, इसके अलावा परिवहन के अन्य साधनों का उपयोग भी किया जाता है. इस मशाल को ओलंपिक खेलों के उद्घाटन तक लाने और जलती हई मशाल से कड़ाही जाने को मशाल रिले कहते हैं और इस मशाल से कड़ाही को जलाने वाले व्यक्ति को मशाल वाहक कहते हैं.
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— Olympic Khel (@OlympicKhel) July 20, 2024
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ओलंपिक मशाल का पूरा इतिहास
इतिहासकारों की मानें तो मशाल प्राचीन यूनानियों द्वारा पौराणिक देवताओं की शक्तिशाली रानी हेरा के सम्मान में बनाए गए मंदिर में पैदा हुई थी. उनका मंदिर प्राचीन ओलंपिक खेलों के घर में स्थित है, जो ओलंपिया में एक सरू-छायादार पुरातात्विक स्थल है, जहां 776 ईसा पूर्व में पहले दर्ज किए गए खेल आयोजित किए गए थे. प्राचीन यूनानियों ने स्काफिया (एक प्रकार का क्रूसिबल) का उपयोग करके मशाल जलाई थी, जिसे सूर्य की ओर मुंह करके रखा गया था. सूर्य की किरणों को वहां केंद्रित किया गया और सूखी घास में आग लगा दी गई. इसके बाद मशाल को सार्वजनिक समारोह स्थल पर ले जाया जाता है और पहले धावक को सौंप दिया जाता है.
यह पहला धावक सबसे पहले मशाल को स्मारक तक ले जाता है, जिसे आधुनिक ओलंपिक आंदोलन के संस्थापक बैरन डी कुबर्टिन का दिल माना जाता है. ओलंपिया से मशाल को ग्रीस से होते हुए एथेंस ले जाया जाता है और पैनाथेनियन स्टेडियम में एक समारोह में मशाल को खेलों के लिए मेजबान समिति को सौंप दिया जाता है, जिससे नया ओलंपियाड शुरू होता है.
ओलंपिक मशाल की बदलती परंपरा
ओलंपिक के प्रत्येक संस्करण में मशाल को हजारों लोगों द्वारा शहरों और देशों में ले जाया जाता है. यह पैदल और हवाई जहाजों और जहाजों पर यात्रा करता है. आजकल, आम लोग आयोजन समिति से संपर्क करके भाग लेना चुन सकते हैं. उद्घाटन समारोह में मशाल ले जाने वाले अंतिम व्यक्ति की पहचान गुप्त रखी जाती है. वे आम तौर पर खेल जगत की हस्तियां या युवा नेता होते हैं, जो स्टेडियम में रखी बड़ी कड़ाही जैसी संरचना को जलाते हैं. खेलों के समापन समारोह में ही मशाल बुझाई जाती है. कई सालों तक मशाल उठाने वाले युवा, पुरुष एथलीट ही होते थे.
1972 में म्यूनिख खेलों में महिलाओं और विकलांग लोगों को मशाल उठाने वालों में शामिल किया गया था. 20 जुलाई 1936 को एक युवा ग्रीक, कॉन्स्टेंटिन कोंडिलिस, आधुनिक ओलंपिक मशाल रिले के इतिहास में पहले धावक बने. उन्होंने मशाल हाथ में लेकर ओलंपिया छोड़ एक ऐसी परंपरा की शुरुआत की जो प्रत्येक ओलंपिक खेलों का अभिन्न अंग बन गई है.
ओलंपिक मशाल वाहक की लिस्ट
- 1896 -1932 कोई मशाल वाहक नहीं था
- 1936 - फ्रिट्ज़ शिलगेन (बर्लिन) - ट्रैक एंड फील्ड
- 1948 - जॉन मार्क (लंदन) - ट्रैक एंड फील्ड
- 1952 - हेंस कोलेहमैनन (हेलसिंकी) - ट्रैक एंड फील्ड
- 1956 - स्टॉकहोम हंस (विकने) - घुड़सवारी
- 1956 - रॉन क्लार्क (मेलबर्न) - ट्रैक एंड फील्ड
- 1960 - जियानकार्लो (पेरिस रोम) - ट्रैक एंड फील्ड
- 1964 - योशिनोरी साकाई (टोक्यो) - ट्रैक एंड फील्ड
- 1968 - एनरिकेटा बेसिलियो (मेक्सिको सिटी) - ट्रैक एंड फील्ड (पहली महिला)
- 1972 - गुएंटर ज़हान (म्यूनिख) - ट्रैक एंड फील्ड
- 1976 - सैंड्रा हेंडरसन और स्टीफ़न प्रीफ़ॉनटेन (मॉन्ट्रियल) - जिमनास्टिक/एथलीट
- 1980 - सर्गेई बेलोव (मॉस्को) - बास्केटबॉल
- 1984 - रैफ़र जॉनसन (लॉस एंजिल्स) - ट्रैक एंड फील्ड
- 1988 - किम वोन-तक, मि-चुंग, इम चुन-ए ,चुंग सन-मैन, (सियोल) - एथलीट
- 1992 - एंटोनियो रेबेलो (बार्सिलोना) - तीरंदाजी (पैरालिंपिक)
- 1996 - मुहम्मद अली (अटलांटा) - बॉक्सिंग
- 2000 - कैथी फ्रीमैन (सिडनी) - ट्रैक एंड फील्ड
- 2004 - निकलाओस काकलामानाकिस (एथेंस) - सेलिंग
- 2008 - ली निंग (बीजिंग) - जिमनास्टिक
- 2012 - कैलम एयरली जॉर्डन डकिट, डेसिरी हेनरी, केटी किर्क, कैमरून मैक्रिची, ऐडन रेनॉल्ड्स, एडेल ट्रेसी (लंदन) - एथलीट
- 2016 - वेंडरलेई कॉर्डेइरो डे लीमा (रियो) - ट्रैक एंड फील्ड
- 2020 - नाओमी ओसाका, तादाहिरो नोमुरा, साओरी योशिदा, सदाहरू ओह, हिदेकी मात्सुई, इरोकी ओहाशी, जुन्को कितागावा, वाकाको त्सुचिदा (टोक्यो) - एथलीट
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