नई दिल्ली: भारत समेत पूरे विश्व में 8 मार्च को महिला दिवस के तौर पर मनाया जाता है. इस दिन महिला के द्वारा हासिल की गईं उपलब्धियों और उनके अधिकारों की बात की जाती है. ये दिन महिलाओं के लिए खास होता है. 8 मार्च 1975 से नियमित रूप से महिला दिवस मनाया जा रहा है. आज हम महिला दिवस 2024 के अवसर पर खेल जगत में काफी संघर्ष के बाद कड़ी मेहनत के दम पर देश का सिर ऊंचा करने वाली 10 महिला खिलाड़ियों के बारे में बताने वाले हैं.
1 - शेफाली वर्मा: भारतीय महिला क्रिकेट टीम की सलामी बल्लेबाज शेफाली वर्मा हरियाणा से आती हैं. वहीं, हरियाणा जो अपनी रूढ़ीवादी सोच के लिए भी जाना जाता है, ऐसे में शेफाली का इस मुकाम तक पहुंचना महिला सशक्तिकरण की एक जीती जागती मिशाल है. उन्होंने बचपन में लड़का बनकर लड़कों के बीच में क्रिकेट खेला और अपने पिता व परिवार के सपोर्ट के चलते 15 साल की उम्र में भारत के लिए इंटरनेशल डेब्यू किया. शेफाली भारत के लिए 4 टेस्ट, 23 वनडे और 68 टी20 मैच खेल चुकी हैं.
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2 - गीता और बबीता फोगाट: गीता और बबीता का जन्म हरियाणा के भिवानी जिले के बलाली में हुआ था. हरियाणा के लोगों की रूढ़ीवादी सोच के बीच महावीर फोगाट ने अपनी बेटियों को पहलवानी के अखाड़े में उतार दिया. फोगाट बहनों ने अपने पिता और परिवार के समर्थन से बहुत सारी कठिनाईंया उठाते हुए भारत के पदकों की झड़ी लगा दी. इनके जीवन पर दंगल नाम की मूवी भी बनी हुई है. इस समय बबीता बीजेपी के साथ जुड़ी हुई हैं. ये दोनों ही बहनें नारी शक्ति का बहुत बड़ा उदाहरण हैं.
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3 - मैरी कॉम: भारत की महिला बॉक्सर मैरी कॉम मणिपुर इम्फाल की रहने वाली है. उन्हें शुरुआत से ही काफी दिकक्तों का सामना करना पड़ा. उनके पिता एक किसान थे और बचपन से ही वो आर्थिक तंगी से जूझती रही हैं लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और भारत के लिए खेलते हुए कई सारे मेडल्स जीते. उनकी इस सफलता में उनके पति करुंग ओंखोलर ने बहुत बड़ा योगदान दिया है. मैरीकॉम भारतीय महिलाओं के लिए प्रेरणा है. उनके जीवन पर मैरीकॉम नाम की मूवी भी बन चुकी है.
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4 - दुती चंद: भारतीय धावक दुती चंद ओडिशा के जाजपुर जिले के चाका गोपालपुर गांव की रहने वाली हैं. उनके पिता कपड़ा बुनने का काम करते थे. उनकी परिवार की स्थिति बहुत दयनीय थी और उन्हें बचपन में बहुत संघर्ष करना पड़ा था. उनके पास पड़ने के लिए पैसे नहीं थे ऐसे में उनकी बहन उनको दौड़ने के लिए और खेल में करियर बनाने के लिए हमेशा प्रेरित करती थी. उनके पास दौड़ने के लिए जुते भी नहीं थे ना ही कोचिंग के लिए कोई शाधन थे. इसके बाद उन्होंने कड़ी मेहनत से सफलता हासिल की और भारत के मेडल्स की झड़ी लगा दी. वो भारत की पहली समलैंगिक महिला धावक हैं.
5 - सलीमा टेटे: भारतीय महिला हॉकी क्रिकेट टीम की खिलाड़ी सलीमा टेटे का जीवन काफी मुश्किलों से भरा रहा है. उन्होंने कठिन परिश्रम करते हुए सफलता का परचम लहराया है. सलीमा झारखंड के सिमडेगा जिला के एक छोड़े गांव में रहने वाली हैं. उनका बचपन गरीब में गुजरा है लेकिन उनके पिता उनकी प्रेरणा बने और हमेशा उन्हें हॉकी खेलने के लिए प्रेरित करते रहे. उनके पिता भी एक हॉकी खिलाड़ी थे. एक समय ऐसा था जब वो खपरेल के बने टूटे-फूटे घर में रहा करते थीं. वो भारत के लिए ओलंपिक और कॉमनवेल्थ गेम्स में भी खेल चुकी हैं.
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6 - हिमा दास: भारत की स्टार रेसर हिमा दास असम के नागौर जिले की रहने वाली हैं. हिमा के परिवार में 17 लोग हैं और उनका परिवार धान की खेती करता है. उनका बचपन काफी गरीबी और संघर्ष में गुजरा है. लेकिन उन्होंने जीतोड़ मेहनत की और सफलता के शिखर पर अपनी जगह बनाई. हिमा भारत की पहली ऐसी महिला एथलीट हैं, जो 19 साल की उम्र में ही 5 गोल्ड मेडल जीत चुकी थीं. वो भारतीय महिलाओं के लिए एक प्रेरणा है.
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7 - अंजू बॉबी जॉर्ज: भारत के लिए केरल के कोट्टायम ज़िले के चीरनचीरा कस्बे की रहने वाली एथलीट अंजू बॉबी जॉर्ज ने लंबी कूद में अपना नाम बनाया है. उनके संघर्ष की कहानी भी काफी प्रेरणादायक रही है. अंजू के पिता उन्हें शुरुआत से ही खेलने के लिए सपोर्ट करते थे. उनके पिता फर्नीचर का काम करते थे. उन्होंने स्कूल के दिनों से ही लंबी कूद में हिस्सा लेना शुरू किया और आज वो वर्ल्ड चैंपियनशिप में पदक जीतने वाली इकलौती भारतीय खिलाड़ी हैं.
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8 - स्वप्ना बर्मन: पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी की भारतीय एथलीट स्वप्ना बर्मन की कहानी काफी ज्यादा संघर्ष से भरी हुई है. स्वप्ना बर्मन एक हेप्टाथलॉन प्लेयर है. उनके पिता रिक्शा चलाते थे और उनकी मां चाय के बागानों में काम करती थीं. उनका परिवार काफी अर्थिक तंगी से गुजरा है. उनके पास दौड़ने के लिए जूते खरीदने तक के पैसे तक नहीं होते थे. उनके दोनों पैरों में 6-6 उंगलियां है जिससे उनके दौड़ने में काफी दिक्कत होती थी. इन सभी संघर्ष को पार कर उन्होंने सफलता का परचम लहराया है.
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9 - वंदना कटारिया: भारतीय महिला हॉकी टीम की स्टार फॉरवर्ड प्लेयर वंदना कटारिया की कहानी काफी ज्यादा संघर्ष से भरी हुई है. उत्तराखंड के हरिद्वार जिले के रौशनबाद की रहने वाली वंदना ने गरीबी, जाति, लिंग और रूढ़ीवादी सोच को पीछे छोड़कर सफलता हासिल की है. उनका बचपन अर्थिक तंगी में बीता. उनके पिता भेल बेचा करते थे. उनके पास इतने पैसे नहीं हुआ करते थे कि वो अपनी बेटी को जूते या खेलने के लिए हॉकी किट दिला पाए. इसके ऊपर से वंदना को आसपास के लोगों की जली-कटी बातें भी सुननी पड़तीं थीं. लेकिन अपने पिता और परिवार का साथ पाकर वंदना देश की स्टार खिलाड़ियों में आज शामिल हैं.
10 - मीराबाई चानू: भारत की स्टार महिला वेटलिफ्टर (भारोत्तोलक) मीराबाई चानू का जन्म मणिपुर के इम्फाल के नोंगपोक काकचिंग में हुआ था. उन्होंने स्टार खिलाड़ी बनने की कहानी काफी दिलचस्प है. चानू की असली ताकत उनके परिवार ने 12 साल की उम्र में ही पहचान ली थी. वो उस उम्र में भी काफी ज्यादा भार उठाकर घर आसानी से आ जाती थीं जो उनके भाई नहीं उठा पाते थे. इसके बाद उनके वेटलिफ्टर बनने की कहानी शुरू हुई और काफी संघर्ष के बाद उन्होंने भारत के लिए कई पदक जीते. अब वो देश की एक स्टार एथलीट हैं और नारी सशक्तिकरण का उम्दा उदाहरण हैं.
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