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एक हार, एक मलाल लेकिन कई सवाल, क्या भारतीय क्रिकेट को सर्जरी की जरूरत है ?

न्यूजीलैंड से होम टेस्ट सीरीज में मिली हार के बाद बीसीसीआई को कड़े फैसले लेने की जरूरत है. ईटीवी भारत के प्रदीप रावत लिखते हैं...

Indian Cricket Team
भारतीय क्रिकेट टीम (AP Photo)
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By ETV Bharat Sports Team

Published : 2 hours ago

नई दिल्ली : रविवार 3 नवंबर 2024, वानखेड़े स्टेडियम में भारत-न्यूजीलैंड के तीसरे टेस्ट में तीखी धूप और फिरकी के बीच ऋषभ पंत किसी हवा के झोंके की तरह राहत पहुंचा रहे थे. 2-0 से पिछड़ रही टीम इंडिया और भारतीय क्रिकेट प्रेमियों को कमेंटेटर कुछ ग्राफिक्स के सहारे जीत का दिलासा दिला रहे थे. पंत ब्रिस्बेन से लेकर बर्मिंघम तक अपनी बल्लेबाजी का जलवा दिखा चुके हैं और ऑस्ट्रेलिया के जबड़े से मैच भी निकाल चुके हैं.

50 रन का आंकड़ा छूते ही पंत के साथ फैन्स और कमेंटरी कर रहे पूर्व खिलाड़ियों का कॉन्फिडेंस भी हाई हो गया. लंच से पहले 92 रन पर 6 विकेट खो चुकी टीम इंडिया 147 रन का पीछा कर रही थी. लेकिन लंच के बाद महज 9 ओवर में ही टीम ढेर हो गई, पंत के बाद उम्मीदों का बोझ ना सुंदर उठा पाए और ना ही अश्विन, साथ ही टीम इंडिया ने इस सदी में घरेलू मैदान पर पहली बार 3-0 का शर्मनाक क्लीन स्वीप झेला.

वैसे इसी वानखेडे़ स्टेडियम में ही ठीक 4 महीने पहले टी20 वर्ल्ड कप 2024 जीतने वाली टीम की भव्य परेड और वेलकम हुआ था. सबसे छोटे फॉर्मेट की विश्व विजेता टीम टेस्ट में अपने घर पर ही बुरी तरह फेल हो गई. इस क्लीन स्वीप का खिलाड़ियों से लेकर टीम मैनेजमेंट और फैन्स को मलाल तो है लेकिन इस मलाल के साथ कई सवाल भी हैं, जो अब बाहें फैलाये टीम इंडिया और टीम मैनेजमेंट के सामने खड़े हैं.

अपनी ही दवा का स्वाद
अपनी ही दवा का स्वाद चखने का मतलब जानना है तो इस दौरे से समझा जा सकता है. जब से भारत ने क्रिकेट खेलना शुरू किया तब से स्पिन गेंदबाजी टीम का प्रमुख हथियार रहा है. घरेलू दौरों पर ये हथियार और भी तेज चलता है. शायद यही वजह है कि भारतीय बल्लेबाज स्पिन खेलने के सबसे माहिर माने जाते हैं. ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका या इंग्लैंड जैसी टीमों को भारतीय मैदानों पर स्पिन गेंदबाजों की कमी और फिरकी खेलने में उन्नीस साबित होने के कारण घुटने टेकते देखा गया है लेकिन इस सीरीज में न्यूज़ीलैंड की टीम ने भारत को उसी की दवा पिलाई है.

बेंगलुरू में खेले गए पहले टेस्ट की पहली इनिंग में टीम इंडिया न्यूज़ीलैंड की पेस बैटरी के सामने महज 46 रन पर ढेर हो गई. उसके बाद न्यूज़ीलैंड के स्पिनर्स ने हर पारी में जो शिकंजा कसना शुरू किया उसने वानखेड़े पहुंचकर क्लीन स्वीप करके ही दम लिया. पहले मैच में न्यूजीलैंड के स्पिनर्स सिर्फ 3 विकेट चटका पाए. लेकिन पुणे में कीवियों की फिरकी पर भारतीय बल्लेबाज नाचते दिखे, आलम ये रहा कि टीम इंडिया के 18 बल्लेबाज स्पिन पर आउट हुए, एक रन आउट और एक विकेट तेज गेंदबाज को मिला. इनमें से 13 विकेट तो अकेले सेंटनर ने झटके. वानखेड़े टेस्ट में सेंटनर नहीं खेले लेकिन उनका काम एजाज ने कर दिया. इस टेस्ट में भी 16 बैट्समैन न्यूजीलैंड के स्पिनर्स का शिकार बने. एजाज ने पहली इनिंग में 5 और दूसरी में 6 विकेट झटक कर मैच में कुल 11 विकेट अपने नाम किए. फिरकी खेलने में बेस्ट माने जाने वाले बल्लेबाज इस सीरीज के बाद सवालों में है.

कीवी स्पिनर्स का जलवा
घरेलू मैदानों पर टीम इंडिया 3 से 4 स्पिनर्स के साथ भी उतर चुकी है जबकि विदेशी टीमें एक या दो स्पिनर्स के सहारे ही होती थीं. लेकिन न्यूजीलैंड की इस टीम ने भारत में खेलने का नया नजरिया पेश किया है. पहले टेस्ट में टीम सिर्फ एक स्पेशलिस्ट स्पिनर एजाज पटेल के साथ उतरी थी. जहां उन्हें पार्ट टाइमर रचिन रविंद्र और ग्लेन फिलिप्स का साथ मिला था. पुणे में हुए दूसरे टेस्ट में सेंटनर की वापसी हुई और स्पिन डिपार्टमेंट को और अधिक मजबूती मिली.

इसका रिजल्ट भी दिखा जब 18 विकेट स्पिनर्स ने झटके. तीसरे टेस्ट में सेंटनर बाहर हुए तो ईश सोढ़ी टीम में आ गए. पार्ट टाइमर को मिला दें न्यूजीलैंड ने दूसरे और तीसरे टेस्ट में करीब 4 फिरकी गेंदबाजों को खिलाया. टीम इंडिया के 3 स्पिनर्स ने पूरी सीरीज में 44 विकेट चटकाए, जबकि न्यूजीलैंड के स्पिनर्स ने 38 विकेट अपनी झोली में डाले. कुल मिलाकर इस सीरीज को जिताने में न्यूज़ीलैंड के स्पिनर्स की अहम भूमिका रही.

पिच का पेंच
घरेलू सीरीज में स्पिनिंग ट्रैक बनाना भारत का हक भी है और टीम को इससे अब तक फायदा भी हुआ है. लेकिन न्यूज़ीलैंड के खिलाफ सीरीज में कीवी स्पिनर्स ने ऐसा नाच नचाया मानो मेजबान भारत नहीं न्यूज़ीलैंड हो. सवाल पिच पर भी उठ रहे हैं कि आखिर कब तक स्पिनर्स के माकूल विकेट्स बनाई जाती रहेंगी ? क्योंकि न्यूजीलैंड को भारत को उसी की दवा का स्वाद चखाया है. जिसके सामने बल्लेबाजी बिखर गई. भारत के स्पिनर्स ने भी खूब विकेट झटके लेकिन कई बार टॉस और फिर चौथी पारी में स्पिनर्स के सामने एक छोटा सा स्कोर भी पहाड़ साबित हो जाता है. जैसा कि वानखेड़े में आखिरी टेस्ट के दौरान हुआ. जब 147 रनों का पीछा टीम इंडिया नहीं कर पाई.

ऐसे में सवाल उन टर्निंग ट्रैक को लेकर भी उठता है जहां भारतीय स्पिनर विदेशी बैटर्स को अपनी उंगली पर नचाते हैं. लेकिन न्यूजीलैंड जैसी सीरीज के उदाहरण भी हैं जब भारतीय टीम अपनी ही दवा का कड़वा घूंट पीती है. भारतीय बल्लेबाज भी इन ट्रैक्स पर विदेशी गेंदबाजों के लिए बुरा सपना साबित होते हैं लेकिन इंग्लैड, ऑस्ट्रेलिया या दक्षिण अफ्रीका के दौरों पर तेज पिचों पर कई बल्लेबाज एक्सपोज हो जाते हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह वही टर्निंग ट्रैक हैं जिसमें एक भारतीय बल्लेबाज U-15, U-19 से लेकर रणजी और फिर नेशनल टीम में पहुंचकर बैटिंग करता है. ऐसे में इन घरेलू क्रिकेट से लेकर पिचों तक की सर्जरी करने की जरूरत है.

बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी से पहले करारी हार
पिच के पेंच का सवाल इसलिये भी वाजिब है क्योंकि टीम इंडिया के लिए ये हार ऑस्ट्रेलिया दौरे से ठीक पहले मिली है. घरेलू स्पिनिंग ट्रैक से टीम इंडिया को सीधे अब मेलबर्न और पर्थ सरीखी दुनिया की सबसे तेज पिचों पर उतरना है. जहां तेज और उछाल भरी पिचों पर बल्लेबाजों का कड़ा इम्तिहान होगा. हालांकि, ऑस्ट्रेलिया में खेली गई पिछली दो टेस्ट सीरीज भारत के नाम रही हैं. इस बार भी हो सकता है कि टीम ऑस्ट्रेलिया पहुंचकर एक नई इबारत लिख दे लेकिन ऑस्ट्रेलिया जैसे दौरे से ठीक पहले घरेलू सीरीज में 3-0 से हारना कॉन्फिडेंस को तार-तार करने के लिए काफी है.

कोहली और रोहित शर्मा की फॉर्म
टी20 वर्ल्ड कप की जीत के सबसे बड़े हीरो रहे ये दो खिलाड़ी अब कई फैन्स और क्रिकेट पंडितों के निशाने पर हैं. इसकी वजह दोनों खिलाड़ियों का हालिया टेस्ट फॉर्म है. न्यूजीलैंड के खिलाफ सीरीज के तीनों मैचों में दोनों खिलाड़ी कुल 100 रन भी नहीं बना पाए, जबकि दोनों ने सिर्फ 1-1 बार ही 50 रन का आंकड़ा पार किया. इस सीरीज में रोहित शर्मा ने 2, 52, 0, 8, 18, 11 का स्कोर किया. जबकि विराट कोहली तीन टेस्ट की छह इनिंग में 0, 70, 1, 17, 4, 1 रन बना पाए. वैसे पिछली 10 इनिंग पर नजर डालें तो रोहित शर्मा का बैटिंग एवरेज महज 13 और कोहली का औसत 20 रहा है. ये टीम के उन बैटर्स के आंकड़े हैं जिनके इर्द गिर्द पूरी बल्लेबाजी घूमती है.

Virat Kohli and Rohit Sharma
विराट कोहली और रोहित शर्मा (AFP Photo)

वैसे दुनियाभर में टीम इंडिया की धाक बल्लेबाजों की वजह से रही है. गावस्कर, वेंगसरकर के दौर से लेकर सचिन, द्रविड़, लक्ष्मण और मौजूदा वक्त में रोहित शर्मा और विराट कोहली तक, टीम इंडिया के बल्लेबाजों की चमक के आगे दुनियाभर के बल्लेबाज फीके दिखते हैं. लेकिन मौजूदा सीरीज में लगभग हर भारतीय बैटर की चमक फीकी नजर आई. पंत की बैटिंग के अलावा बेंगलुरू के पहले टेस्ट में सरफराज के 150 रनों की पारी को छोड़ दें तो कोई बल्लेबाज सेंचुरी नहीं लगा पाया. जायसवाल से लेकर शुभमन गिल तक कभी जल्दबाजी तो कभी टिकने के बाद अपना विकेट गंवा बैठे. ऐसे में सवाल है कि क्या ये बैटिंग लाइन अप कंगारुओं के सामने उनके घर में टिक पाएगी ? खासकर कमिंस, स्टार्क और हेजलवुड की तिकड़ी के सामने टिकना भारतीय बैटिंग लाइनअप के सामने कड़ी चुनौती होगी.

टीम कॉम्बिनेशन
न्यूजीलैंड के खिलाफ टीम कॉम्बिनेशन को लेकर भी कई सवाल उठे. फैन्स से लेकर क्रिकेट एक्सपर्ट तक ने रहाणे और पुजारा को खिलाने की वकालत की और ऑस्ट्रेलिया दौरे पर अनुभव को तरजीह देने की दलीलें दी गई. लेकिन ऑस्ट्रेलिया दौरे पर जाने वाली टीम में भी इन दोनों का नाम नहीं है वहीं केएल राहुल को लेकर न्यूजीलैंड के खिलाफ कन्फ्यूजन रही और वो सिर्फ पहला मैच खेले. हालांकि ऑस्ट्रेलिया दौरे को लेकर राहुल की बर्थ कंफर्म हो चुकी है.

फैंस गेंदबाजी में भी मोहम्मद शमी और अक्षर पटेल को मिस कर रहे थे, वो भी ऑस्ट्रेलिया दौरे पर जा रही टीम में नहीं है. ऑस्ट्रेलिया टूर के लिए 18 खिलाड़ियों के नाम तय हो चुके हैं. 6 बैटर, 4 ऑल राउंडर, 3 विकेट कीपर और 5 तेज गेंदबाज शामिल हैं. ऑलराउंडर में वॉशिंगटन सुंदर, रविंद्र जडेजा और अश्विन 3 स्पिनर शामिल हैं. इन 18 खिलाड़ियों में से ऑस्ट्रेलिया को धूल चटाने वाली टीम कॉम्बिनेशन तलाशना टेढ़ी खीर साबित होगा.

बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 5 टेस्ट मैच के लिए चुनी गई टीम में रोहित शर्मा (कप्तान), जसप्रीत बुमराह (उपकप्तान), यशस्वी जायसवाल, अभिमन्यु ईश्वरन, शुभमन गिल, विराट कोहली, केएल राहुल, ऋषभ पंत (विकेट कीपर), सरफराज खान, ध्रुव जुरेल (विकेट कीपर), आर अश्विन, आर जडेजा, मोहम्मद सिराज, आकाश दीप, प्रसिद्ध कृष्णा, हर्षित राणा, नितीश कुमार रेड्डी, वाशिंगटन सुंदर शामिल हैं.

कोच के रूप में गौतम गंभीर
कुछ महीने पहले टीम इंडिया के टी20 वर्ल्ड चैंपियन बनने के बाद सबसे ज्यादा सुर्खियां गौतम गंभीर के भारतीय टीम का हेड कोच बनने की ख़बर ने बटोरीं लेकिन पहले श्रीलंका के खिलाफ वनडे सीरीज में हार और अब न्यूजीलैंड के खिलाफ घरेलू सीरीज में 3-0 से हार गंभीर को भी सवालों के कटघरे में खड़ा कर रही है. पूर्व क्रिकेटर सुनील गावस्कर भी इस ओर इशारा कर चुके हैं.

गंभीर के हेड कोच बनने के बाद पिछले 27 सालों में ये पहला मौका था जब किसी एशियाई टीम ने द्विपक्षीय सीरीज में भारतीय टीम को हराया है. वहीं होम ग्राउंड पर न्यूजीलैंड का क्लीन स्वीप इस सदी में पहली बार हुआ है. कुल मिलाकर एक कोच के रूप में गौतम गंभीर पर सबसे ज्यादा दबाव होगा. हालांकि इस दबाव को हटाने के साथ-साथ आलोचकों के मुंह पर ताला जड़ने का गंभीर के पास बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी से अच्छा मौका नहीं हो सकता.

WTC का फाइनल
न्यूजीलैंड से मिली करारी हार के बाद सबसे बड़ा सवाल है कि क्या टीम इंडिया इस बार वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल में पहुंच पाएगी. न्यूजीलैंड से मिली करारी हार के बाद भारतीय टीम प्वाइंट टेबल में दूसरे नंबर पर पहुंच गई है. एक पायदान का नुकसान टीम को इस रेस से बाहर कर देगा. बीती दो बार से टीम इंडिया WTC के फाइनल में पहुंचती रही है हालांकि टीम चैंपियन नहीं बन पाई. लेकिन इस बार न्यूजीलैंड से हार के बाद ऑस्ट्रेलिया दौरा WTC फाइनल को लेकर टीम इंडिया की किस्मत तय कर देगा.

क्या भारतीय क्रिकेट को सर्जरी की जरूरत है ?
मौजूदा वक्त में ये सवाल सबसे अहम है. क्योंकि यहां सर्जरी की बात टीम कॉम्बिनेशन से लेकर टर्निंग पिच और टीम मैनेजमेंट तक पर लागू होती है. दरअसल ये वो मौका है जब टीम के सबसे बड़े सुपरस्टार विराट कोहली और रोहित शर्मा फिलहाल 36 और 37 साल के हो चुके हैं. अगला वनडे विश्वकप 3 बरस दूर है, ऐसे में इनके लिए वो फिलहाल दूर की कौड़ी है. कुछ और खिलाड़ी इस लिस्ट में शामिल हैं. ऐसे में सवाल है कि क्या है सही मौका है.

कुछ वैसे फैसले लेने का जो 2007 विश्वकप में करारी हार के बाद लिए गए ? जब महेंद्र सिंह धोनी के हाथों में एक युवा टीम सौंपी गई और महज 6 महीने में टीम टी20 की वर्ल्ड चैंपियन बन गई. फिर टेस्ट और वनडे में भी बड़े बदलाव किए गए और सीनियर खिलाड़ियों की टीम से विदाई की गई. उन कड़वे घूंटो का बेहतरीन नतीजा अब तक दिख रहा है.

वैसे भारत में क्रिकेट खेल नहीं जुनून और मजहब है, क्रिकेटर भगवान है. शायद यही वजह है कि बड़े नामों की अनदेखी करने का रिस्क टीम चलाने वाला दुनिया का सबसे अमीर बोर्ड भी नहीं ले पाता. लेकिन अच्छे भविष्य के लिए कड़वे घूंट पीने पड़ेंगे. फॉर्म से जूझते बड़े खिलाड़ियों का घरेलू क्रिकेट ना खेलना भी कई बार फैन्स से लेकर एक्सपर्ट्स को नागवार गुजरता है. ऐसे में क्या इस तरह के फैसले लेने का ये सही मौका है, जहां खिलाड़ियों के लिए घरेलू क्रिकेट खेलना जरूरी किया जाए. साथ ही घरेलू क्रिकेट से लेकर इंटरनेशनल मैचों में स्पिन ट्रैक के साथ-साथ तेज पिचों का एक्सपेरिमेंट भी किया जाए ताकि भविष्य की टीम इंडिया बन सके.

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नई दिल्ली : रविवार 3 नवंबर 2024, वानखेड़े स्टेडियम में भारत-न्यूजीलैंड के तीसरे टेस्ट में तीखी धूप और फिरकी के बीच ऋषभ पंत किसी हवा के झोंके की तरह राहत पहुंचा रहे थे. 2-0 से पिछड़ रही टीम इंडिया और भारतीय क्रिकेट प्रेमियों को कमेंटेटर कुछ ग्राफिक्स के सहारे जीत का दिलासा दिला रहे थे. पंत ब्रिस्बेन से लेकर बर्मिंघम तक अपनी बल्लेबाजी का जलवा दिखा चुके हैं और ऑस्ट्रेलिया के जबड़े से मैच भी निकाल चुके हैं.

50 रन का आंकड़ा छूते ही पंत के साथ फैन्स और कमेंटरी कर रहे पूर्व खिलाड़ियों का कॉन्फिडेंस भी हाई हो गया. लंच से पहले 92 रन पर 6 विकेट खो चुकी टीम इंडिया 147 रन का पीछा कर रही थी. लेकिन लंच के बाद महज 9 ओवर में ही टीम ढेर हो गई, पंत के बाद उम्मीदों का बोझ ना सुंदर उठा पाए और ना ही अश्विन, साथ ही टीम इंडिया ने इस सदी में घरेलू मैदान पर पहली बार 3-0 का शर्मनाक क्लीन स्वीप झेला.

वैसे इसी वानखेडे़ स्टेडियम में ही ठीक 4 महीने पहले टी20 वर्ल्ड कप 2024 जीतने वाली टीम की भव्य परेड और वेलकम हुआ था. सबसे छोटे फॉर्मेट की विश्व विजेता टीम टेस्ट में अपने घर पर ही बुरी तरह फेल हो गई. इस क्लीन स्वीप का खिलाड़ियों से लेकर टीम मैनेजमेंट और फैन्स को मलाल तो है लेकिन इस मलाल के साथ कई सवाल भी हैं, जो अब बाहें फैलाये टीम इंडिया और टीम मैनेजमेंट के सामने खड़े हैं.

अपनी ही दवा का स्वाद
अपनी ही दवा का स्वाद चखने का मतलब जानना है तो इस दौरे से समझा जा सकता है. जब से भारत ने क्रिकेट खेलना शुरू किया तब से स्पिन गेंदबाजी टीम का प्रमुख हथियार रहा है. घरेलू दौरों पर ये हथियार और भी तेज चलता है. शायद यही वजह है कि भारतीय बल्लेबाज स्पिन खेलने के सबसे माहिर माने जाते हैं. ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका या इंग्लैंड जैसी टीमों को भारतीय मैदानों पर स्पिन गेंदबाजों की कमी और फिरकी खेलने में उन्नीस साबित होने के कारण घुटने टेकते देखा गया है लेकिन इस सीरीज में न्यूज़ीलैंड की टीम ने भारत को उसी की दवा पिलाई है.

बेंगलुरू में खेले गए पहले टेस्ट की पहली इनिंग में टीम इंडिया न्यूज़ीलैंड की पेस बैटरी के सामने महज 46 रन पर ढेर हो गई. उसके बाद न्यूज़ीलैंड के स्पिनर्स ने हर पारी में जो शिकंजा कसना शुरू किया उसने वानखेड़े पहुंचकर क्लीन स्वीप करके ही दम लिया. पहले मैच में न्यूजीलैंड के स्पिनर्स सिर्फ 3 विकेट चटका पाए. लेकिन पुणे में कीवियों की फिरकी पर भारतीय बल्लेबाज नाचते दिखे, आलम ये रहा कि टीम इंडिया के 18 बल्लेबाज स्पिन पर आउट हुए, एक रन आउट और एक विकेट तेज गेंदबाज को मिला. इनमें से 13 विकेट तो अकेले सेंटनर ने झटके. वानखेड़े टेस्ट में सेंटनर नहीं खेले लेकिन उनका काम एजाज ने कर दिया. इस टेस्ट में भी 16 बैट्समैन न्यूजीलैंड के स्पिनर्स का शिकार बने. एजाज ने पहली इनिंग में 5 और दूसरी में 6 विकेट झटक कर मैच में कुल 11 विकेट अपने नाम किए. फिरकी खेलने में बेस्ट माने जाने वाले बल्लेबाज इस सीरीज के बाद सवालों में है.

कीवी स्पिनर्स का जलवा
घरेलू मैदानों पर टीम इंडिया 3 से 4 स्पिनर्स के साथ भी उतर चुकी है जबकि विदेशी टीमें एक या दो स्पिनर्स के सहारे ही होती थीं. लेकिन न्यूजीलैंड की इस टीम ने भारत में खेलने का नया नजरिया पेश किया है. पहले टेस्ट में टीम सिर्फ एक स्पेशलिस्ट स्पिनर एजाज पटेल के साथ उतरी थी. जहां उन्हें पार्ट टाइमर रचिन रविंद्र और ग्लेन फिलिप्स का साथ मिला था. पुणे में हुए दूसरे टेस्ट में सेंटनर की वापसी हुई और स्पिन डिपार्टमेंट को और अधिक मजबूती मिली.

इसका रिजल्ट भी दिखा जब 18 विकेट स्पिनर्स ने झटके. तीसरे टेस्ट में सेंटनर बाहर हुए तो ईश सोढ़ी टीम में आ गए. पार्ट टाइमर को मिला दें न्यूजीलैंड ने दूसरे और तीसरे टेस्ट में करीब 4 फिरकी गेंदबाजों को खिलाया. टीम इंडिया के 3 स्पिनर्स ने पूरी सीरीज में 44 विकेट चटकाए, जबकि न्यूजीलैंड के स्पिनर्स ने 38 विकेट अपनी झोली में डाले. कुल मिलाकर इस सीरीज को जिताने में न्यूज़ीलैंड के स्पिनर्स की अहम भूमिका रही.

पिच का पेंच
घरेलू सीरीज में स्पिनिंग ट्रैक बनाना भारत का हक भी है और टीम को इससे अब तक फायदा भी हुआ है. लेकिन न्यूज़ीलैंड के खिलाफ सीरीज में कीवी स्पिनर्स ने ऐसा नाच नचाया मानो मेजबान भारत नहीं न्यूज़ीलैंड हो. सवाल पिच पर भी उठ रहे हैं कि आखिर कब तक स्पिनर्स के माकूल विकेट्स बनाई जाती रहेंगी ? क्योंकि न्यूजीलैंड को भारत को उसी की दवा का स्वाद चखाया है. जिसके सामने बल्लेबाजी बिखर गई. भारत के स्पिनर्स ने भी खूब विकेट झटके लेकिन कई बार टॉस और फिर चौथी पारी में स्पिनर्स के सामने एक छोटा सा स्कोर भी पहाड़ साबित हो जाता है. जैसा कि वानखेड़े में आखिरी टेस्ट के दौरान हुआ. जब 147 रनों का पीछा टीम इंडिया नहीं कर पाई.

ऐसे में सवाल उन टर्निंग ट्रैक को लेकर भी उठता है जहां भारतीय स्पिनर विदेशी बैटर्स को अपनी उंगली पर नचाते हैं. लेकिन न्यूजीलैंड जैसी सीरीज के उदाहरण भी हैं जब भारतीय टीम अपनी ही दवा का कड़वा घूंट पीती है. भारतीय बल्लेबाज भी इन ट्रैक्स पर विदेशी गेंदबाजों के लिए बुरा सपना साबित होते हैं लेकिन इंग्लैड, ऑस्ट्रेलिया या दक्षिण अफ्रीका के दौरों पर तेज पिचों पर कई बल्लेबाज एक्सपोज हो जाते हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह वही टर्निंग ट्रैक हैं जिसमें एक भारतीय बल्लेबाज U-15, U-19 से लेकर रणजी और फिर नेशनल टीम में पहुंचकर बैटिंग करता है. ऐसे में इन घरेलू क्रिकेट से लेकर पिचों तक की सर्जरी करने की जरूरत है.

बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी से पहले करारी हार
पिच के पेंच का सवाल इसलिये भी वाजिब है क्योंकि टीम इंडिया के लिए ये हार ऑस्ट्रेलिया दौरे से ठीक पहले मिली है. घरेलू स्पिनिंग ट्रैक से टीम इंडिया को सीधे अब मेलबर्न और पर्थ सरीखी दुनिया की सबसे तेज पिचों पर उतरना है. जहां तेज और उछाल भरी पिचों पर बल्लेबाजों का कड़ा इम्तिहान होगा. हालांकि, ऑस्ट्रेलिया में खेली गई पिछली दो टेस्ट सीरीज भारत के नाम रही हैं. इस बार भी हो सकता है कि टीम ऑस्ट्रेलिया पहुंचकर एक नई इबारत लिख दे लेकिन ऑस्ट्रेलिया जैसे दौरे से ठीक पहले घरेलू सीरीज में 3-0 से हारना कॉन्फिडेंस को तार-तार करने के लिए काफी है.

कोहली और रोहित शर्मा की फॉर्म
टी20 वर्ल्ड कप की जीत के सबसे बड़े हीरो रहे ये दो खिलाड़ी अब कई फैन्स और क्रिकेट पंडितों के निशाने पर हैं. इसकी वजह दोनों खिलाड़ियों का हालिया टेस्ट फॉर्म है. न्यूजीलैंड के खिलाफ सीरीज के तीनों मैचों में दोनों खिलाड़ी कुल 100 रन भी नहीं बना पाए, जबकि दोनों ने सिर्फ 1-1 बार ही 50 रन का आंकड़ा पार किया. इस सीरीज में रोहित शर्मा ने 2, 52, 0, 8, 18, 11 का स्कोर किया. जबकि विराट कोहली तीन टेस्ट की छह इनिंग में 0, 70, 1, 17, 4, 1 रन बना पाए. वैसे पिछली 10 इनिंग पर नजर डालें तो रोहित शर्मा का बैटिंग एवरेज महज 13 और कोहली का औसत 20 रहा है. ये टीम के उन बैटर्स के आंकड़े हैं जिनके इर्द गिर्द पूरी बल्लेबाजी घूमती है.

Virat Kohli and Rohit Sharma
विराट कोहली और रोहित शर्मा (AFP Photo)

वैसे दुनियाभर में टीम इंडिया की धाक बल्लेबाजों की वजह से रही है. गावस्कर, वेंगसरकर के दौर से लेकर सचिन, द्रविड़, लक्ष्मण और मौजूदा वक्त में रोहित शर्मा और विराट कोहली तक, टीम इंडिया के बल्लेबाजों की चमक के आगे दुनियाभर के बल्लेबाज फीके दिखते हैं. लेकिन मौजूदा सीरीज में लगभग हर भारतीय बैटर की चमक फीकी नजर आई. पंत की बैटिंग के अलावा बेंगलुरू के पहले टेस्ट में सरफराज के 150 रनों की पारी को छोड़ दें तो कोई बल्लेबाज सेंचुरी नहीं लगा पाया. जायसवाल से लेकर शुभमन गिल तक कभी जल्दबाजी तो कभी टिकने के बाद अपना विकेट गंवा बैठे. ऐसे में सवाल है कि क्या ये बैटिंग लाइन अप कंगारुओं के सामने उनके घर में टिक पाएगी ? खासकर कमिंस, स्टार्क और हेजलवुड की तिकड़ी के सामने टिकना भारतीय बैटिंग लाइनअप के सामने कड़ी चुनौती होगी.

टीम कॉम्बिनेशन
न्यूजीलैंड के खिलाफ टीम कॉम्बिनेशन को लेकर भी कई सवाल उठे. फैन्स से लेकर क्रिकेट एक्सपर्ट तक ने रहाणे और पुजारा को खिलाने की वकालत की और ऑस्ट्रेलिया दौरे पर अनुभव को तरजीह देने की दलीलें दी गई. लेकिन ऑस्ट्रेलिया दौरे पर जाने वाली टीम में भी इन दोनों का नाम नहीं है वहीं केएल राहुल को लेकर न्यूजीलैंड के खिलाफ कन्फ्यूजन रही और वो सिर्फ पहला मैच खेले. हालांकि ऑस्ट्रेलिया दौरे को लेकर राहुल की बर्थ कंफर्म हो चुकी है.

फैंस गेंदबाजी में भी मोहम्मद शमी और अक्षर पटेल को मिस कर रहे थे, वो भी ऑस्ट्रेलिया दौरे पर जा रही टीम में नहीं है. ऑस्ट्रेलिया टूर के लिए 18 खिलाड़ियों के नाम तय हो चुके हैं. 6 बैटर, 4 ऑल राउंडर, 3 विकेट कीपर और 5 तेज गेंदबाज शामिल हैं. ऑलराउंडर में वॉशिंगटन सुंदर, रविंद्र जडेजा और अश्विन 3 स्पिनर शामिल हैं. इन 18 खिलाड़ियों में से ऑस्ट्रेलिया को धूल चटाने वाली टीम कॉम्बिनेशन तलाशना टेढ़ी खीर साबित होगा.

बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 5 टेस्ट मैच के लिए चुनी गई टीम में रोहित शर्मा (कप्तान), जसप्रीत बुमराह (उपकप्तान), यशस्वी जायसवाल, अभिमन्यु ईश्वरन, शुभमन गिल, विराट कोहली, केएल राहुल, ऋषभ पंत (विकेट कीपर), सरफराज खान, ध्रुव जुरेल (विकेट कीपर), आर अश्विन, आर जडेजा, मोहम्मद सिराज, आकाश दीप, प्रसिद्ध कृष्णा, हर्षित राणा, नितीश कुमार रेड्डी, वाशिंगटन सुंदर शामिल हैं.

कोच के रूप में गौतम गंभीर
कुछ महीने पहले टीम इंडिया के टी20 वर्ल्ड चैंपियन बनने के बाद सबसे ज्यादा सुर्खियां गौतम गंभीर के भारतीय टीम का हेड कोच बनने की ख़बर ने बटोरीं लेकिन पहले श्रीलंका के खिलाफ वनडे सीरीज में हार और अब न्यूजीलैंड के खिलाफ घरेलू सीरीज में 3-0 से हार गंभीर को भी सवालों के कटघरे में खड़ा कर रही है. पूर्व क्रिकेटर सुनील गावस्कर भी इस ओर इशारा कर चुके हैं.

गंभीर के हेड कोच बनने के बाद पिछले 27 सालों में ये पहला मौका था जब किसी एशियाई टीम ने द्विपक्षीय सीरीज में भारतीय टीम को हराया है. वहीं होम ग्राउंड पर न्यूजीलैंड का क्लीन स्वीप इस सदी में पहली बार हुआ है. कुल मिलाकर एक कोच के रूप में गौतम गंभीर पर सबसे ज्यादा दबाव होगा. हालांकि इस दबाव को हटाने के साथ-साथ आलोचकों के मुंह पर ताला जड़ने का गंभीर के पास बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी से अच्छा मौका नहीं हो सकता.

WTC का फाइनल
न्यूजीलैंड से मिली करारी हार के बाद सबसे बड़ा सवाल है कि क्या टीम इंडिया इस बार वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल में पहुंच पाएगी. न्यूजीलैंड से मिली करारी हार के बाद भारतीय टीम प्वाइंट टेबल में दूसरे नंबर पर पहुंच गई है. एक पायदान का नुकसान टीम को इस रेस से बाहर कर देगा. बीती दो बार से टीम इंडिया WTC के फाइनल में पहुंचती रही है हालांकि टीम चैंपियन नहीं बन पाई. लेकिन इस बार न्यूजीलैंड से हार के बाद ऑस्ट्रेलिया दौरा WTC फाइनल को लेकर टीम इंडिया की किस्मत तय कर देगा.

क्या भारतीय क्रिकेट को सर्जरी की जरूरत है ?
मौजूदा वक्त में ये सवाल सबसे अहम है. क्योंकि यहां सर्जरी की बात टीम कॉम्बिनेशन से लेकर टर्निंग पिच और टीम मैनेजमेंट तक पर लागू होती है. दरअसल ये वो मौका है जब टीम के सबसे बड़े सुपरस्टार विराट कोहली और रोहित शर्मा फिलहाल 36 और 37 साल के हो चुके हैं. अगला वनडे विश्वकप 3 बरस दूर है, ऐसे में इनके लिए वो फिलहाल दूर की कौड़ी है. कुछ और खिलाड़ी इस लिस्ट में शामिल हैं. ऐसे में सवाल है कि क्या है सही मौका है.

कुछ वैसे फैसले लेने का जो 2007 विश्वकप में करारी हार के बाद लिए गए ? जब महेंद्र सिंह धोनी के हाथों में एक युवा टीम सौंपी गई और महज 6 महीने में टीम टी20 की वर्ल्ड चैंपियन बन गई. फिर टेस्ट और वनडे में भी बड़े बदलाव किए गए और सीनियर खिलाड़ियों की टीम से विदाई की गई. उन कड़वे घूंटो का बेहतरीन नतीजा अब तक दिख रहा है.

वैसे भारत में क्रिकेट खेल नहीं जुनून और मजहब है, क्रिकेटर भगवान है. शायद यही वजह है कि बड़े नामों की अनदेखी करने का रिस्क टीम चलाने वाला दुनिया का सबसे अमीर बोर्ड भी नहीं ले पाता. लेकिन अच्छे भविष्य के लिए कड़वे घूंट पीने पड़ेंगे. फॉर्म से जूझते बड़े खिलाड़ियों का घरेलू क्रिकेट ना खेलना भी कई बार फैन्स से लेकर एक्सपर्ट्स को नागवार गुजरता है. ऐसे में क्या इस तरह के फैसले लेने का ये सही मौका है, जहां खिलाड़ियों के लिए घरेलू क्रिकेट खेलना जरूरी किया जाए. साथ ही घरेलू क्रिकेट से लेकर इंटरनेशनल मैचों में स्पिन ट्रैक के साथ-साथ तेज पिचों का एक्सपेरिमेंट भी किया जाए ताकि भविष्य की टीम इंडिया बन सके.

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