नई दिल्ली : 17 सितंबर से पितृपक्ष की शुरुआत हो चुकी है. पितृपक्ष के दौरान पूर्वजों का पिंडदान किया जाता है. मृत पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए विशेष रूप से पिंड अर्पित किए जाते हैं. पितृपक्ष हर साल भाद्रपद मास की पूर्णिमा से आरम्भ होता है और आश्विन मास की अमावस्या तक चलता है. इस दौरान हिंदू परिवार अपने पूर्वजों को स्मरण करते हैं और उन्हें श्राद्ध अर्पित करते हैं. यह समय विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण होता है, जिन्होंने अपने परिवार के किसी सदस्य को खोया है.
पितृ पक्ष के दौराव दिवंगत आत्मा का पिंडदान उन्हें मोक्ष की ओर ले जाता है. आमतौर पर पिंडदान पुत्र द्वारा किया जाता है. मान्यताओं के अनुसार, पुत्र ही अपने पिता और पूर्वजों की आत्मा को शांति प्रदान कर सकता है. लेकिन, अब सवाल है कि क्या बहू या बेटी इस कार्य में शामिल हो सकती हैं ?
कई विद्वान मानते हैं कि बहू और बेटी भी पिंडदान कर सकती हैं, विशेषकर जब परिवार में कोई पुत्र न हो. कई परिवारों में बहू या बेटी द्वारा पिंडदान करने की परंपरा भी देखी जा रही है. यह माना जाता है कि वे भी अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा प्रकट कर सकती हैं. धर्म के जानकार बताते हैं कि यदि परिवार में कोई पुत्र नहीं है, तो बहू या बेटी को पिंडदान करने का अधिकार है. लेकिन ध्यान देने वाली बात है कि पिंडदान के दौरान उनके साथ उनके पति का होना जरूरी है. इसलिए, अगर आप बहू या बेटी हैं और अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देना चाहती हैं, तो पितृपक्ष आपके लिए एक उपयुक्त अवसर है.
बता दें कि पितृपक्ष के दौरान मृत परिजनों का पिंडदान करना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, किसी भी इंसान के मृत्यु के बाद प्रेत योनी से बचाने के लिए पितृ तर्पण करना जरूरी है. कहा जाता है कि पितृपक्ष के दौरान पूर्वजों के लिए किए गए तर्पण से उन्हें मुक्ति मिलती है और वह प्रेत योनी से मुक्त हो जाते हैं. कहा जाता है कि अगर पूर्वजों का पिंडदान नहीं किया जाता है, तो पितरों की आत्मा दुखी और असंतुष्ट रहती है.