हैदराबाद : आचार्यश्री विद्यासागर एक प्रख्यात दिगंबर जैन आचार्य थे. देश-विदेश में बड़ी संख्या में उनका उनके अनुयायी हैं. उनके निधन से दिगंबर जैन संप्रदाय ही नहीं धर्म-अध्यात्म के लिए अपूरणीय क्षति है. उनके निधन से पूर्व आचार्य 130 मुनिराजो ,172 साध्वी, 20 एलक, 14 छुल्लक दीक्षित हो चुके थे. वे हिंदी, अंग्रेजी, कन्नड़ सहित कई भाषाओं के जानकार थे. उनका पूरा परिवार धर्म परायण है. साथ ही सभी लोग दीक्षित हैं. उनकी लोगप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में उनके निधन पर राजकीय शोक की घोषणा राज्य सरकारों की ओर से किया गया था. उनके निधन पर पीएम नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित साह कई हस्तियों ने शोक व्यक्त किया है.
- जैन संत आचार्य विद्यासागर जी महाराज का मूल नाम विद्याधर था. वहीं घर में प्यार से उन्हें पीलू के नाम से पुकारते थे.
- उनका जन्म 10 अक्टूबर 1946 को कर्नाटक राज्य के बेलगाम जिला स्थित सदलगा के चिक्कोड़ी में हुआ था.
- उनके पिता का नाम मुनिश्री मल्लिसागर और माता का नाम आर्यिकाश्री समयमति जी, दोनों ही धर्म परायण थे.
- वे नौ साल की आयु से धर्म-अध्यात्म की ओर उनका झुकाव प्रारंभ हो गया था. उन दिनों वे आचार्यश्री शांतिसागर जी महाराज का प्रवचन नियमित रूप से सुनते थे.
- विद्यासागर जी महाराज जैन संप्रदाय के बड़े आचार्य थे. उन्होंने 9वीं कक्षा तक कन्नड़ माध्यम (भाषा) में पढ़ाई की.
- 22 साल की उम्र में 30 जून 1968 को राजस्थान के अजमेर में आचार्यश्री ज्ञानीसागर महाराज से वे दीक्षित हो गये. दीक्षा के बाद उन्हें नया नाम मिला विद्यासागर.
- 22 नवंबर 1972 को अजमेर में आयोजित एक समारोह में उन्हें संतों ने आचार्य की पदवी मिली.
- 18 फरवरी 2024 को आचार्य विद्यासागर जी महाराज ने समाधि ली.
- 78 साल की आयु में उन्होंने छतीसगढ़ राज्य के डोंगरगढ़ स्थित चंद्रगिरी में अंतिम सांसें ली.
- 18 फरवरी 2024 को चंद्रगिरी तीर्थ क्षेत्र में ही उनका अंतिम संस्कार किया गया.
- आचार्यश्री को देह त्यागने का आभास कई दिन पहले ही हो गया था.
- इसके बाद उन्होंने समाधि लेने से 3 दिन पहले अन्न-जल त्याग कर दिया था, जिसे जैन धर्म में सल्लेखना कहा जाता है.
- इसके साथ ही मौनव्रत का भी पालन कर रहे थे.
- आचार्यश्री द्वारा सल्लेखना अपनाने की जानकारी मिलते ही उनके अनुयायी चंद्रगिरी में जुटने लगे थे.
- आचार्य विद्यासागर जी महाराज का स्थान मुनि समयसागर आचार्य ने लिया. विद्यासागर महाराज, मुनि समयसागर को आचार्य पद सौंप चुके हैं.
- आचार्य श्री विद्यासागर ने 130 मुनिराजो ,172 साध्वी, 20 एलक, 14 छुल्लक को दीक्षित किया.
- बता दें कि आचार्य विद्यासागर के सभी परिजन दीक्षित हैं.
- इनमें उनके माता-पिता, बड़े भाई मुनि उत्कृष्ट सागर, छोटे भाई मुनि योगसागर और मुनि समयसागर शामिल हैं.
- पशुओं की सुरक्षा, गौ माता को राष्ट्रीय प्राणी घोषित करने और मांस निर्यात सहित करने के लिए विद्यासागर जी महाराज लगातार अभियान चला रहे थे.
मुकमाटी पर 4 दर्जन से ज्यादा हो चुके हैं शोध
विद्यासागर जी महाराज दिगम्बर जैन संप्रदाय के बड़े आचार्य थे. उन्होंने 9वीं कक्षा तक कन्नड़ माध्यम (भाषा) में पढ़ाई की. वे विद्वता ओर तप के लिए जाने जाते हैं. भागलपुर स्थित चंपापुर दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र के मंत्री सुनील जैन ने याद करते हुए बताया कि आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज हिंदी, अंग्रेजी सहित 8 भाषाओं के ज्ञाता थे. वे ज्यादातर समय ध्यान में लीन रहते थे. उन्होंने अपने जीवनकाल में काल में दर्जनों ग्रंथों की रचना की. इनमें महाकाव्य मुकमाटी सबसे प्रमुख है. इसे कई जगहों पर पाठ्यक्रम में भी शामिल किया जा चुका है. इस पर 55 से ज्यादा शोधार्थी विभिन्न विश्वविद्यालयों में शोध कर चुके हैं. इसके अलावा विद्यासागर जी महाराज ने 'नर्मदा का नरम कंकर', 'डूबा मत लगाओ डुबकी', 'तोता रोता क्यों?', 'प्रवचन पारिजात', 'प्रवचन प्रमेय', 'समय सार', 'नियम सार', 'प्रवचन सार', 'जैन गीता' सहित कई ग्रंथों का कई भाषाओं में पद्य अनुवाद किया था.