ETV Bharat / spiritual

Ganesh Chaturthi 2024: दाईं सूंड वाले या बाईं सूड वाले, जानिए कौनसे गणेश आपके लिए रहेंगे शुभ - Ganesh Chaturthi 2024

Ganesh Chaturthi 2024: गाजे-बाजे के साथ गणपति बप्पा हमारे द्वार पर दस्तक देने आ रहे हैं. अधिकतर घरों में गणेशजी की प्रतिमा स्थापित कर 10 दिन तक उत्सव की पूरी तैयारी हो चुकी है, लेकिन गणेश प्रतिमा को लेकर कुछ बिंदु ऎसे हैं, जिन्हें लेकर असमंजस की स्थिति रहती है. जैसे भगवान की सूंड किस तरफ होनी चाहिए, प्रतिमा खड़ी हुई होनी चाहिए या बैठी हुई विग्रह की स्थापना की जानी चाहिए. जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर...

GANESH CHATURTHI 2024
गणेश चतुर्थी 2024 (IANS)
author img

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 7, 2024, 10:12 AM IST

हैदराबाद: पूरे देश में आज से 10 दिनों तक चलने वाले गणेश उत्सव की धूम शुरू हो चुकी है. हर कोई अपने घर में विघ्नविनाशक भगवान गणेश की स्थापना करना चाहता है. इसके लिए कुछ खास नियम भी बताए गए हैं. बता दें, गणेश चतुर्थी भाद्रपद महीने की चतुर्थी को मनाई जाती है.

लखनऊ के ज्योतिषाचार्य डॉ. उमाशंकर मिश्र ने बताया कि वैसे तो हर महीने की चतुर्थी को गणेशजी की पूजा का विधान है, लेकिन भाद्रपद माह की चतुर्थी बहुत खास होती है. हिंदू शास्त्र के मुताबिक इस महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी मनाई जाती है. उन्होंने बताया कि सनातन धर्म में ऐसी मान्यता है कि आज ही के दिन विघ्नहर्ता भगवान गणेश का प्राकट्य हुआ था. ज्योतिषाचार्य ने बताया कि आज ही दिन गणेश भगवान पृथ्वी पर आते हैं और भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं. दस दिनों तक चलने वाले इस उत्सव को लेकर गजब का उत्साह देखा जाता है. उन्होंने बताया कि इस महोत्सव की समाप्ति अनंत चतुर्दशी के दिन होती है, जो इस बार 17 सितंबर को पड़ रही है.

गणेश उत्सव को लेकर हर जगह मूर्तियां स्थापित की जाती हैं. कोई घर में करता है तो कोई सार्वजनिक स्थान पर. इन प्रतिमाओं में खास बात मायने रखती है वह है भगवान गणेश की सूंड. लोगों के मन में एक असमंजस रहता है कि भगवान की सूंड किस तरफ होनी चाहिए, प्रतिमा खड़ी हुई होनी चाहिए या बैठी हुई विग्रह की स्थापना की जानी चाहिए. मूषक या रिद्धि-सिद्धि साथ हो या ना हो. इस लेख के माध्यम से सभी शंकाओं को दूर किया जाएगा.

ज्योतिषाचार्य डॉ. उमाशंकर मिश्र ने जानकारी दी कि गणेश जी पर जितनी भी पुस्तकें लिखी गई हैं उसके अनुसार दोनों ही तरफ की सूंड वाले गणेशजी की स्थापना शुभ होती है. दाई और की सूंड वाले सिद्धि विनायक कहलाते हैं तो बाई सूंड वाले वक्रतुंड. हालांकि शास्त्रों में दोनों का पूजा विधान अलग-अलग बताया गया है.

ऐसे करें स्थापना
सबसे पहले स्थापना स्थल को गंगाजल से पवित्र करें और गोबर से लीपकर चौकी लगाएं, उस पर नवीन वस्त्र बिछाएं, वस्त्र पर स्वस्ति लेखन कर अक्षत पूंज रखें, गणेशजी की प्रतिमा रखें. ओम गं गणपतये नम: मंत्र का उच्चारण करते हुए गणेशजी का आव्हान कर प्रतिमा स्थापित करें. अर्घ्य, आचमन एवं स्नान कराकर भगवान गणेश को वस्त्र, उपवस्त्र और जनेऊ चढ़ाएं. पुन: आचमन कर चंदन अथवा सिंदूर का तिलक प्रतिमा को लगाएं. अक्षत चढ़ाकर कनेर के पुष्प, पुष्पमाला, अर्पित करें, दूर्वा चढ़ाकर अबीर, गुलाल, सिंदूर अर्पित करें. धूप, दीप का दर्शन कराकर भगवान को लड्डू अथवा मोदक का भोग लगाएं. ऋतुफल अर्पित करें, आरती करें, इसके बाद पुष्पांजलि कर प्रदक्षिणा करें और गणेश स्त्रोत का पाठ करें.

दाई सूंड वाले गणेशजी
सिद्धि विनायक का पूजन करते समय भक्त को रेशमी वस्त्र धारण कर नियम से सुबह-शाम पूजा करनी पड़ती है. सूती वस्त्र पहन कर पूजन नहीं कर सकते. पुजारी या पुरोहित से पूजा कराना शास्त्र सम्मत माना जाता है. भक्त को जनेऊ धारण कर उपवास रखना होता है. स्थापना करने वाले को इस दौरान किसी के यहां भोजन करने नहीं जाना चाहिए. यदि सूंड प्रतिमा के दाईं ओर हो तो ऐसे विग्रह को सिद्धि विनायक कहा जाता है. इनकी पूजा-पाठ के कुछ खास मायने होते हैं.

बाई सूंड वाले गणेशजी
यदि सूंड प्रतिमा के बाएं हाथ की ओर घूमी हुर्ई हो तो ऎसे विग्रह को वक्रतुंड कहा जाता है. इनकी पूजा-आराधना में बहुत ज्यादा नियम नहीं रहते हैं. सामान्य तरीके से हार-फूल, आरती, प्रसाद चढ़ाकर भगवान की आराधना की जा सकती है. पंडित या पुरोहित का मार्गदर्शन न भी हो तो कोई अड़चन नहीं रहती.

गणेशजी की बैठी या खड़ी मुद्रा
शास्त्रों के अनुसार गणेश जी की मूर्ति बैठी हुई मुद्रा में ही स्थापित करना चाहिए. मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा बैठकर ही होती है. खड़ी मूर्ति की पूजा भी खड़े होकर करनी पड़ती है, जो शास्त्र सम्मत नहीं है. गणेश जी की पूजा भी बैठकर ही करनी चाहिए, जिससे व्यक्ति की बुद्धि स्थिर बनी रहती है.

मूषक और रिद्धि-सिद्धि
मूषक का स्वभाव है वस्तु को काट देने का, वह यह नहीं देखता है कि वस्तु पुरानी है या नई. कुतर्की जन भी यह नहीं सोचते कि प्रसंग कितना सुंदर और हितकर है. वे स्वभाववश चूहे की भांति उसे काट डालने की चेष्टा करते ही हैं. प्रबल बुद्धि का साम्राज्य आते ही कुतर्क दब जाता है. गणपति बुद्धिप्रद हैं अत: उन्होंने कुतर्क रूपी मूषक को वाहन के रूप में अपने नीचे दबा रखा है. गणेश प्रतिमा में मूषक भगवान के नीचे होना श्रेयस्कर है. मूर्ति के साथ रिद्धि-सिद्धि का होना शुभ माना जाता है.

बैठी मुद्रा में लें प्रतिमा
बाएं सूंड की प्रतिमा लेना ही शास्त्र सम्मत माना गया है. दाएं सूंड की प्रतिमा में नियम-कायदों का पालन करना होता है. प्रतिमा हमेशी बैठी हुई मुद्रा में ही लेनी चाहिए, क्योंकि खड़े हुए गणेश को चलायमान माना जाता है.

मिट्टी की प्रतिमा सर्वश्रेष्ठ
श्रीजी की प्रतिमा मिट्टी की ही होनी चाहिए क्योंकि शास्त्रों के अनुसार, समय-समय पर सभी कार्यो मे मिट्टी का ही पूजन किया जाता है.

पढ़ें: आज है गणेश चतुर्थी, जानें कब है शुभ मुहूर्त - Aaj Ka Panchang 7 September

बप्पा को करना है प्रसन्न तो करें गणेश चतुर्थी पर ये उपाय, बरसेगी कृपा - Ganesh Chaturthi

हैदराबाद: पूरे देश में आज से 10 दिनों तक चलने वाले गणेश उत्सव की धूम शुरू हो चुकी है. हर कोई अपने घर में विघ्नविनाशक भगवान गणेश की स्थापना करना चाहता है. इसके लिए कुछ खास नियम भी बताए गए हैं. बता दें, गणेश चतुर्थी भाद्रपद महीने की चतुर्थी को मनाई जाती है.

लखनऊ के ज्योतिषाचार्य डॉ. उमाशंकर मिश्र ने बताया कि वैसे तो हर महीने की चतुर्थी को गणेशजी की पूजा का विधान है, लेकिन भाद्रपद माह की चतुर्थी बहुत खास होती है. हिंदू शास्त्र के मुताबिक इस महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी मनाई जाती है. उन्होंने बताया कि सनातन धर्म में ऐसी मान्यता है कि आज ही के दिन विघ्नहर्ता भगवान गणेश का प्राकट्य हुआ था. ज्योतिषाचार्य ने बताया कि आज ही दिन गणेश भगवान पृथ्वी पर आते हैं और भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं. दस दिनों तक चलने वाले इस उत्सव को लेकर गजब का उत्साह देखा जाता है. उन्होंने बताया कि इस महोत्सव की समाप्ति अनंत चतुर्दशी के दिन होती है, जो इस बार 17 सितंबर को पड़ रही है.

गणेश उत्सव को लेकर हर जगह मूर्तियां स्थापित की जाती हैं. कोई घर में करता है तो कोई सार्वजनिक स्थान पर. इन प्रतिमाओं में खास बात मायने रखती है वह है भगवान गणेश की सूंड. लोगों के मन में एक असमंजस रहता है कि भगवान की सूंड किस तरफ होनी चाहिए, प्रतिमा खड़ी हुई होनी चाहिए या बैठी हुई विग्रह की स्थापना की जानी चाहिए. मूषक या रिद्धि-सिद्धि साथ हो या ना हो. इस लेख के माध्यम से सभी शंकाओं को दूर किया जाएगा.

ज्योतिषाचार्य डॉ. उमाशंकर मिश्र ने जानकारी दी कि गणेश जी पर जितनी भी पुस्तकें लिखी गई हैं उसके अनुसार दोनों ही तरफ की सूंड वाले गणेशजी की स्थापना शुभ होती है. दाई और की सूंड वाले सिद्धि विनायक कहलाते हैं तो बाई सूंड वाले वक्रतुंड. हालांकि शास्त्रों में दोनों का पूजा विधान अलग-अलग बताया गया है.

ऐसे करें स्थापना
सबसे पहले स्थापना स्थल को गंगाजल से पवित्र करें और गोबर से लीपकर चौकी लगाएं, उस पर नवीन वस्त्र बिछाएं, वस्त्र पर स्वस्ति लेखन कर अक्षत पूंज रखें, गणेशजी की प्रतिमा रखें. ओम गं गणपतये नम: मंत्र का उच्चारण करते हुए गणेशजी का आव्हान कर प्रतिमा स्थापित करें. अर्घ्य, आचमन एवं स्नान कराकर भगवान गणेश को वस्त्र, उपवस्त्र और जनेऊ चढ़ाएं. पुन: आचमन कर चंदन अथवा सिंदूर का तिलक प्रतिमा को लगाएं. अक्षत चढ़ाकर कनेर के पुष्प, पुष्पमाला, अर्पित करें, दूर्वा चढ़ाकर अबीर, गुलाल, सिंदूर अर्पित करें. धूप, दीप का दर्शन कराकर भगवान को लड्डू अथवा मोदक का भोग लगाएं. ऋतुफल अर्पित करें, आरती करें, इसके बाद पुष्पांजलि कर प्रदक्षिणा करें और गणेश स्त्रोत का पाठ करें.

दाई सूंड वाले गणेशजी
सिद्धि विनायक का पूजन करते समय भक्त को रेशमी वस्त्र धारण कर नियम से सुबह-शाम पूजा करनी पड़ती है. सूती वस्त्र पहन कर पूजन नहीं कर सकते. पुजारी या पुरोहित से पूजा कराना शास्त्र सम्मत माना जाता है. भक्त को जनेऊ धारण कर उपवास रखना होता है. स्थापना करने वाले को इस दौरान किसी के यहां भोजन करने नहीं जाना चाहिए. यदि सूंड प्रतिमा के दाईं ओर हो तो ऐसे विग्रह को सिद्धि विनायक कहा जाता है. इनकी पूजा-पाठ के कुछ खास मायने होते हैं.

बाई सूंड वाले गणेशजी
यदि सूंड प्रतिमा के बाएं हाथ की ओर घूमी हुर्ई हो तो ऎसे विग्रह को वक्रतुंड कहा जाता है. इनकी पूजा-आराधना में बहुत ज्यादा नियम नहीं रहते हैं. सामान्य तरीके से हार-फूल, आरती, प्रसाद चढ़ाकर भगवान की आराधना की जा सकती है. पंडित या पुरोहित का मार्गदर्शन न भी हो तो कोई अड़चन नहीं रहती.

गणेशजी की बैठी या खड़ी मुद्रा
शास्त्रों के अनुसार गणेश जी की मूर्ति बैठी हुई मुद्रा में ही स्थापित करना चाहिए. मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा बैठकर ही होती है. खड़ी मूर्ति की पूजा भी खड़े होकर करनी पड़ती है, जो शास्त्र सम्मत नहीं है. गणेश जी की पूजा भी बैठकर ही करनी चाहिए, जिससे व्यक्ति की बुद्धि स्थिर बनी रहती है.

मूषक और रिद्धि-सिद्धि
मूषक का स्वभाव है वस्तु को काट देने का, वह यह नहीं देखता है कि वस्तु पुरानी है या नई. कुतर्की जन भी यह नहीं सोचते कि प्रसंग कितना सुंदर और हितकर है. वे स्वभाववश चूहे की भांति उसे काट डालने की चेष्टा करते ही हैं. प्रबल बुद्धि का साम्राज्य आते ही कुतर्क दब जाता है. गणपति बुद्धिप्रद हैं अत: उन्होंने कुतर्क रूपी मूषक को वाहन के रूप में अपने नीचे दबा रखा है. गणेश प्रतिमा में मूषक भगवान के नीचे होना श्रेयस्कर है. मूर्ति के साथ रिद्धि-सिद्धि का होना शुभ माना जाता है.

बैठी मुद्रा में लें प्रतिमा
बाएं सूंड की प्रतिमा लेना ही शास्त्र सम्मत माना गया है. दाएं सूंड की प्रतिमा में नियम-कायदों का पालन करना होता है. प्रतिमा हमेशी बैठी हुई मुद्रा में ही लेनी चाहिए, क्योंकि खड़े हुए गणेश को चलायमान माना जाता है.

मिट्टी की प्रतिमा सर्वश्रेष्ठ
श्रीजी की प्रतिमा मिट्टी की ही होनी चाहिए क्योंकि शास्त्रों के अनुसार, समय-समय पर सभी कार्यो मे मिट्टी का ही पूजन किया जाता है.

पढ़ें: आज है गणेश चतुर्थी, जानें कब है शुभ मुहूर्त - Aaj Ka Panchang 7 September

बप्पा को करना है प्रसन्न तो करें गणेश चतुर्थी पर ये उपाय, बरसेगी कृपा - Ganesh Chaturthi

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.