नई दिल्ली: पाकिस्तान और अमेरिका के बीच के संबंध जगजाहिर है. हालांकि, दोनों देशों के बीच दोस्ती में समय-समय पर उतार-चढ़ाव देखे जाते रहे हैं. हाल ही में दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने आर्थिक संकट से जूझ रहे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ को एक पत्र लिखा. उन्होंने वर्तमान समय की सबसे गंभीर वैश्विक और क्षेत्रीय चुनौतियों का जिक्र शहबाज शरीफ से किया. दुनिया जानती है कि इस समय भारत का पड़ोसी देश पाकिस्तान किन हालातों से गुजर रहा है. हालांकि, दोनों देशों (अमेरिका-पाकिस्तान) के शीर्ष नेतृत्व के बीच कोई खास संपर्क नहीं रह गया था, लेकिन राष्ट्रपति बाइडेन के इस ताजा संदेश से पीएम शहबाज को कुछ राहत तो मिली ही होगी. बाइडेन ने अपने संदेश में लिखा कि अमेरिका इन चुनौतियों से निपटने के लिए पाकिस्तान के साथ खड़ा है. वैसे पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने जुलाई 2019 में व्हाइट हाउस में डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात की थी.
बाइडेन के संदेश क्या मायने हो सकते हैं
बाइडेन के संदेश में सबसे दिलचस्प बात देखने को मिली कि उन्होंने शहबाज शरीफ को पीएम की कुर्सी संभालने के लिए बधाई तक नहीं दी. इतना ही नहीं उन्होंने आतंकवाद की गिरफ्त में फंसे पाकिस्तान के लिए सहानुभूति प्रकट करना भी जरूरी नहीं समझा. यहां तक कि आर्थिक संकट से जूझ रहे पाकिस्तान को आर्थिक समर्थन का भी बाइडेन ने अपने संदेश में जिक्र नहीं किया. वैसे बाइडेन ने अपने पत्र में जलवायु परिवर्तन, मानवाधिकार, शिक्षा और स्वास्थ्य पर सहयोग का जिक्र किया. बता दें कि, इस्लामाबाद वर्तमान में आईएमएफ से अतिरिक्त ऋण के लिए बातचीत कर रहा है. जिसके लिए उसे अमेरिकी समर्थन की आवश्यकता है.
बाइडेन ने शहबाज को भेजा संदेश
वहीं बाइडेन के शहबाज को संदेश के बाद अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और पाक विदेश मंत्री इशाक डर के बीच टेलीफोन पर चर्चा हुई. आधिकारिक बयान में यह बताया गया कि दोनों पक्षों के बीच पारस्परिक हित के सभी क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग को मजबूत करने के लिए अमेरिका की प्रतिबद्धता को दोहराया. दोनों देश के विदेश मंत्रियों ने गाजा, लाल सागर की स्थिति और अफगानिस्तान में विकास जैसे क्षेत्रीय महत्व के मामलों पर भी चर्चा की गई. वैसे बता दें कि, जिन हालातों में बाइडेन की तरफ से यह पत्र लिखा गया है इसे काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है. वह इसलिए क्योंकि अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के बाद व्हाइट हाउस के साथ पाकिस्तान के संबंध काफी तनावपूर्ण बने हुए थे. इतना ही नहीं पाकिस्तान पॉलिटिक्स में हुई उठापटक ने पाक-अमेरिका संबंध को बिगाड़ने का काम किया था. उस समय इमरान खान ने अमेरिका पर पाकिस्तान की सेना और तत्कालीन विपक्ष के साथ मिलकर उन्हें पद से हटाने की साजिश रचने का आरोप लगाया था. इसके बाद भी बाइडेन के संदेश ने आग में बर्फ डालने का काम किया है.
क्या अमेरिका अपनी नीतियों में कर रहा है बदलाव
अमेरिका-पाकिस्तान की इस बातचीत का इस्लामाबाद की सियासी गलियारों में नियमित से लेकर संबंधों में सफलता तक का मूल्यांकन किया गया. कुछ लोग इसे पाक के प्रति अमेरिकी नीति में बदलाव मान रहे हैं. बता दें कि 8 फरवरी के पाक चुनाव के बाद, अमेरिकी कांग्रेस के 30 सदस्यों ने राष्ट्रपति जो बाइडेन और विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन को पत्र लिखकर चुनाव में हेरफेर का दावा करने वाली पाकिस्तान की नई सरकार को मान्यता नहीं देने के लिए कहा. यह वजह थी कि राष्ट्रपति बाइडेन पीएम शहबाज शरीफ को उनकी नियुक्ति पर बधाई देने से बचते नजर आए. वहीं पाकिस्तान ने भी अपनी ओर से, बीजिंग और वाशिंगटन के बीच अपने संबंधों को संतुलित करने का पुरजोर काम किया.
हमने आपको बताया कि, अफगानिस्तान से अमेरिका की जल्दीबाजी में वापसी के बाद पाकिस्तान और अमेरिका के संबंधों में खटास आ गई थी. उस समय तालिबान को समर्थन देने के लिए पाकिस्तान कोन दोषी ठहराया गया. पाकिस्तान और अमेरिका के बीच आई खटास के लिए कई कारण थे. उनमें से एक यूक्रेन युद्ध के दौरान इमरान खान गलत समय पर मास्को की यात्रा की. जिसने अमेरिका को पाकिस्तान के खिलाफ कर दिया और स्थिति और ज्यादा खराब हो गई. इमरान खान ने इसी बीच पीएम पद से निष्कासन को लेकर अमेरिका पर बिना सिर पैर के आरोप लगाए. जिसने दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों को और अधिक बिगाड़ कर रख दिया.
अमेरिका ने पाकिस्तान से क्यों बनाई दूरी?
बता दें कि, इमरान खान ने सार्वजनिक तौर पर अमेरिका के दक्षिण और मध्य एशियाई मामलों के सहायक सचिव डोनाल्ड लू पर वाशिंगटन में पाक राजदूत के साथ उन्हें हटाने के बारे में चर्चा करने का आरोप लगाया. वहीं अमेरिका से पंगा लेने के बाद पूर्व पीएम इमरान खान कई मामलों में दोषी ठहराए जाने के बाद जेल में हैं. जबकि पाकिस्तान ने रूस-यूक्रेन संघर्ष मे तटस्थता बनाए रखी. उसने अनौपचारिक रूप से दो अमेरिकी निजी कंपनियों के माध्य से यूक्रेन को गोला-बारूद की सप्लाई की. जिससे 364 मिलियन अमेरिकी डॉलर की कमाई हुई. इन्हें ब्रिटिश सैन्य मालवाहक विमानों द्वारा पाकिस्तान के नूर खान वायु सेना अड्डे से लाया गया था. इससे संबंधों में विश्वास बहाल हुआ और इसके परिणामस्वरूप पाक सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने पिछले साल दिसंबर में अमेरिका का दौरा किया, जहां उन्होंने अमेरिकी विदेश और रक्षा सचिवों सहित अन्य लोगों से मुलाकात की.
यह संभव है कि मुनीर की यात्रा पाकिस्तान में चुनाव में देरी और चुनाव से कुछ दिन पहले इमरान खान को जेल में डाल दिए जाने की पूर्ववर्ती घटना थी. चूंकि इसे अमेरिका द्वारा अनुमोदित किया गया था, इसलिए उनकी ओर से कोई आलोचना नहीं की गई. दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी पर अमेरिका नियमित रूप से बयान जारी कर रहा है जिसे लेकर अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर से एक पत्रकार ने पूछा कि अमेरिका केवल अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी पर ही क्यों आवाज उठा रहा है, पाकिस्तान में विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी पर चुप क्यों है.
चीन से पाक के रिश्तों को लेकर अमेरिका चिंतित
दूसरी तरफ, अमेरिका के लिए, पाक में चीन का बढ़ता प्रभाव साथ ही सीपीईसी और ग्वादर बंदरगाह का पूरा होना भी असहनीय है. ग्वादर बंदरगाह चीनी नौसैनिक अड्डा बन सकता है क्योंकि बंदरगाह को चीन को चालीस साल के पट्टे पर दिया गया है. इससे बीजिंग को अरब सागर और ओमान की खाड़ी पर हावी होने में काफी मदद मिलेगी. जिससे अमेरिका और भारत की सुरक्षा चिंताएं बढ़ जाएंगी. अमेरिका यह भी नहीं चाहता कि बीआरआई (बेल्ट रोड इनिशिएटिव) का विस्तार अफगानिस्तान में हो. इसके अलावा, अमेरिका चाहता है कि पाकिस्तान ईरान विरोधी सुन्नी आतंकवादी समूह जैश अल-अदल को समर्थन देना जारी रखे. वहीं, अफगानिस्तान अब पाकिस्तान के अलावा किसी भी देश के लिए खतरा नहीं है. सीमा पार रावलपिंडी के हमलों से इसके भीतर अस्थिरता बढ़ सकती है जिसके परिणामस्वरूप अवांछित आतंकवादी समूह फिर से पैर जमा सकते हैं. इसलिए, अमेरिका इस बात पर जोर दे रहा है कि पाक अपनी धरती पर टीटीपी (तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान) और बलूच संघर्षरत लोगों के खिलाफ अपनी जवाबी कार्रवाई को सीमित रखे. वहीं, दो अलग-अलग अमेरिकी प्रवक्ताओं ने अफगानिस्तान पर पाक हवाई हमले के बाद कहा कि, अमेरिका चाहता है कि आतंकवाद विरोधी प्रयासों में नागरिकों को नुकसान न पहुंचे.
आईएसकेपी का कौन कर रहा समर्थन?
ऐसा माना जाता है कि पाकिस्तान के भीतर की एक बड़ी ताकत आधिकारिक तौर पर आईएसकेपी (इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रांत) का समर्थन करता है. यह आईएसआईएस की एक शाखा है, जिसका इस्तेमाल वह ताजिकिस्तान के साथ मिलकर अफगान सरकार के खिलाफ करता है. यह राष्ट्रीय प्रतिरोध मोर्चा का समर्थन करता है और काबुल शासन से भी लड़ रहा है. यह काबुल द्वारा टीटीपी को समर्थन देने की होड़ में है. इसकी जानकारी अमेरिका को है. मॉस्को में हाल ही में हुए हमले की जिम्मेदारी आईएसकेपी ने ली थी और गिरफ्तार किए गए लोग मूल रूप से ताजिकिस्तान के थे.
आर्थिक तंगी में फंसा पाकिस्तान, क्या यह है मजबूरी
वहीं, दूसरी यूक्रेन जंग की बात की जाए तो रूस यूक्रेन में चल रहे युद्ध के लिए घरेलू समर्थन हासिल करने के इरादे से कीव पर आरोप लगाता रहा है. हालांकि उसे पता है कि पाकिस्तान अपनी धरती पर आईएसकेपी अड्डे उपलब्ध करा रहा है. पाकिस्तान के लिए, डिफॉल्ट से बचने के लिए आईएमएफ से ऋण आवश्यक है. इसके लिए उसे वाशिंगटन के समर्थन की आवश्यकता है और उसे अपनी बोली लगानी होगी. ऋण शर्तों में यह उल्लेख किया जाएगा कि इन निधियों का उपयोग चीनी ऋणों को चुकाने के लिए नहीं किया जा सकता है, जिससे पाक को मौजूदा ऋणों के पुनर्गठन के लिए बीजिंग से अनुरोध करना पड़ेगा.
भारत इस बात का समर्थन करने के लिए भी काम कर रहा है कि ऋण की शर्तों में विशेष रूप से उल्लेख किया गया है कि इसे रक्षा के लिए नहीं बल्कि विकास के लिए खर्च किया जाना है. हालांकि, पाकिस्तान अपने F 16 बेड़े के लिए अपग्रेडेशन, स्पेयर्स और गोला-बारूद की भी मांग कर सकता है. जिसे वह केवल अमेरिका से ही खरीद सकता है. इसके लिए उसे वाशिंगटन को अपने पक्ष में करने की जरूरत है. भारत पाक की दुविधा और उस पर अमेरिकी प्रभाव से अच्छी तरह वाकिफ है. वह यह भी जानता है कि वाशिंगटन पाकिस्तान के आतंकी हमलों पर नियंत्रण कर सकता है. इसलिए नई दिल्ली वाशिंगटन को अपने पक्ष में कार्य करने के लिए प्रेरित करने की दिशा में काम करेगी.