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NATO के 75 साल : रूस-यूक्रेन युद्ध संकट से क्या कोई सबक सीखा? - seventy five years of NATO

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Apr 8, 2024, 6:17 AM IST

seventy five years of NATO : नाटो ने अपने 75 साल पूरे कर लिए हैं. ब्रसेल्स में इसकी वर्षगांठ मनाई गई, जिसमें सभी 32 सदस्य देशों के विदेश मंत्री जुटे. ये सम्मेलन ऐसे समय हुआ जब दुनिया रूस-यूक्रेन युद्ध संकट का सामना कर रही है. पढ़िए पूर्व राजदूत जितेंद्र कुमार त्रिपाठी का विश्लेषण.

seventy five years of NATO
NATO के 75 साल

हैदराबाद : उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) ने 4 अप्रैल को अपने मुख्यालय ब्रुसेल्स में अपनी 75वीं वर्षगांठ बहुत धूमधाम से मनाई. कार्यक्रम में इसके 32 सदस्य देशों के विदेश मंत्री इकट्ठा हुए, जो अटलांटिक के दोनों किनारों पर लगभग एक अरब आबादी को कवर करते हैं. नाटो के महासचिव जेन्स स्टोलटेनबर्ग ने तारीफ करते हुए कहा, ' संगठन पहले से कहीं अधिक बड़ा, मजबूत और अधिक एकजुट हो गया है... यह सब इसके गंभीर वादे के कारण है.' इस अवसर पर ब्रुसेल्स में स्मारकों को सजाया गया था, यहां तक ​​कि प्रसिद्ध 'मैनकेन पिस' प्रतिमा को भी उस दिन विशेष नाटो पोशाक पहनाई गई.

नाटो की सदस्यता और उद्देश्य : इसकी स्थापना मूल रूप से बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, फ्रांस, आइसलैंड, इटली, लक्ज़मबर्ग, नीदरलैंड, नॉर्वे, पुर्तगाल, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे बारह देशों द्वारा 4 अप्रैल, 1949 को वाशिंगटन डी.सी. में हस्ताक्षरित एक संधि द्वारा की गई थी.

बाद में संगठन ने 2022 तक अठारह और सदस्यों को जोड़ा. इसमें से ग्रीस, तुर्की (अब तुर्किये), जर्मनी (एफआरजी) और स्पेन पश्चिमी यूरोप से थे, बाकी 14 पूर्वी यूरोप से थे. इस प्रकार इसका तेजी से विस्तार हुआ और रूस द्वारा नियमित रूप से व्यक्त की गई चिंताओं को नजरअंदाज करते हुए पूरे पूर्वी यूरोप को कवर किया गया. फिनलैंड (2023) और स्वीडन (2024) नाटो के नए सदस्य हैं, जिससे इसके सदस्यों की संख्या 32 हो गई है.

नाटो का घोषित मौलिक कार्य, उसके चार्टर के अनुसार, सुरक्षा, परामर्श और निवारण और रक्षा थे. उन्होंने कहा कि यूरो-अटलांटिक क्षेत्र में सुरक्षा और स्थिरता बढ़ाने के लिए संकट प्रबंधन और साझेदारी भी आवश्यक थी. नाटो के घोषित मूल मूल्य लोकतंत्र, स्वतंत्रता और कानून का शासन हैं. इसकी ये चार शाखाएं भी हैं.

  1. नॉर्थ अटलांटिक काउंसिल, ये सदस्य देशों के नाटो राजदूतों द्वारा प्रतिनिधित्व की जाने वाली सर्वोच्च संस्था है जो सर्वसम्मति से निर्णय लेती है.
  2. सैन्य कमान, जो परिचालन उद्देश्य के लिए सहयोगी कमान है.
  3. एकीकृत सैन्य बल जिसमें सदस्य देशों की टुकड़ियां शामिल हैं. इसने 20 प्रमुख सैन्य संघर्षों सहित 200 सैन्य संघर्षों में भाग लिया है.
  4. यूएनओ के एसजी की तरह महासचिव.

इसमें कोई संदेह नहीं है कि शीत युद्ध के चरम के दौरान गठित नाटो, शीत युद्ध की पूरी अवधि के दौरान वारसॉ संधि देशों से अपने सदस्यों के हितों की रक्षा करने में सक्षम था. नाटो की स्थापना अपने सदस्यों को 'अटलांटिक और यूरोपीय देशों पर संभावित सोवियत हमले के खिलाफ' बचाने के लिए की गई थी और नाटो की सामूहिक शक्ति के साथ-साथ परमाणु निवारक ने क्यूबा संकट के बावजूद तनाव को युद्ध तक बढ़ने नहीं दिया. इस प्रकार, नाटो ने सफलतापूर्वक यह सुनिश्चित किया कि पूरे सोवियत काल के दौरान युद्ध नहीं भड़का.

हालांकि, सोवियत प्रणाली के पतन के कारण शीत युद्ध के अंत में नाटो के लिए स्थिति (और शायद लक्ष्य-पोस्ट भी) बदल गई. अब, दुनिया एकध्रुवीय हो गई है और अमेरिका के नेतृत्व में कोई भी देश नाटो को चुनौती देने की स्थिति में नहीं है. ऐसे में नाटो को जारी रखने का कोई औचित्य नहीं है, इसलिए इसे खत्म कर दिया जाना चाहिए. लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ!

नाटो चार्टर की प्रस्तावना में कहा गया है कि सदस्य देश 'उत्तरी अटलांटिक क्षेत्र में स्थिरता और कल्याण को बढ़ावा देना चाहते हैं', इस प्रकार नाटो का दायरा केवल उत्तरी अटलांटिक क्षेत्र तक ही सीमित है. हालांकि, पूर्व में रूस के दरवाजे पर उतरने का संगठन का प्रयास प्रस्तावना को ही झुठलाता है.

इसके अलावा, नाटो चार्टर के अनुच्छेद 1 के अनुसार 'पार्टियां किसी भी अंतरराष्ट्रीय विवाद को, जिसमें वे शामिल हो सकते हैं, शांतिपूर्ण तरीकों से निपटाने का वचन देती हैं ताकि अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा और न्याय खतरे में न पड़ें. और अपने अंतरराष्ट्रीय संबंधों में संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों के साथ असंगत किसी भी तरीके से धमकी या बल प्रयोग से बचना चाहिए.'

लेकिन नाटो ने ठीक इसके विपरीत किया! इराक, लीबिया, सीरिया और अफगानिस्तान इसके ज्वलंत उदाहरण हैं जहां, अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर का घोर उल्लंघन करते हुए शांति के नाम पर युद्ध छेड़ दिया था, भले ही इसके किसी भी सदस्य की सुरक्षा को खतरा नहीं था.

लेकिन नाटो का सबसे बड़ा दुस्साहस उसके पूर्व की ओर विस्तार के रूप में सामने आया, जबकि रूस को यह आश्वासन दिया गया था कि नाटो एकीकृत जर्मनी से आगे पूर्व की ओर विस्तार नहीं करेगा.

9 फरवरी, 1990 को तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री जेम्स बेकर और रूसी राष्ट्रपति एडुआर्ड शेवर्नडज़े के बीच हुई बैठक के अवर्गीकृत विदेश विभाग के आधिकारिक लेख के अनुसार, पूर्व ने आश्वासन दिया गया था कि 'अमेरिकियों ने इसे न केवल सोवियत संघ के लिए बल्कि अन्य यूरोपीय देशों के लिए भी समझा. यह गारंटी देना महत्वपूर्ण है कि यदि संयुक्त राज्य अमेरिका नाटो के ढांचे के भीतर जर्मनी में अपनी उपस्थिति बनाए रखता है, तो नाटो के वर्तमान सैन्य अधिकार क्षेत्र का एक इंच भी पूर्वी दिशा में नहीं फैलेगा.' हालांकि बेकर बाद में इससे मुकर गए, लेकिन रूस में तत्कालीन अमेरिकी राजदूत ने आश्वासन की सत्यता की फिर से पुष्टि की.

इसके अलावा, 17 मई 1990 को नाटो के तत्कालीन महासचिव मैनफ़्रेड वोर्नर ने ब्रुसेल्स में कहा था, 'यह तथ्य कि हम जर्मन क्षेत्र के बाहर नाटो सेना तैनात नहीं करने के लिए तैयार हैं, सोवियत संघ को एक दृढ़ सुरक्षा गारंटी देता है.' 2007 में अपने म्यूनिख संबोधन में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने विशेष रूप से वोर्नर के बयान का जिक्र करते हुए पूछा था कि 'गारंटी कहां हैं?.'

इस प्रकार रूस की आपत्तियों के बावजूद नाटो पूर्व की ओर विस्तार करता रहा और जब विस्तार उसके पूर्वी पड़ोसी यूक्रेन तक पहुंचा तो रूस को प्रतिक्रिया देनी पड़ी. अब नाटो अपने सबसे बड़े दुःस्वप्न से पीड़ित है क्योंकि रूस-यूक्रेन संघर्ष का कोई समाधान नजर नहीं आ रहा है.

निष्कर्ष ये है कि यद्यपि नाटो शीत युद्ध 1.0 के दौरान सफल रहा था, लेकिन उसके बाद संयुक्त राष्ट्र चार्टर के घोर उल्लंघन में सैन्य कार्रवाई करने में वह बुरी तरह विफल रहा. यदि नाटो ने अब यूक्रेन संकट से कोई सबक नहीं सीखा है, तो संयुक्त राज्य अमेरिका की पहले से ही कम होती शक्ति और प्रतिष्ठा को देखते हुए इसे अपनी प्रासंगिकता की कीमत पर इसे और अधिक कठिन तरीके से सीखना होगा.

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हैदराबाद : उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) ने 4 अप्रैल को अपने मुख्यालय ब्रुसेल्स में अपनी 75वीं वर्षगांठ बहुत धूमधाम से मनाई. कार्यक्रम में इसके 32 सदस्य देशों के विदेश मंत्री इकट्ठा हुए, जो अटलांटिक के दोनों किनारों पर लगभग एक अरब आबादी को कवर करते हैं. नाटो के महासचिव जेन्स स्टोलटेनबर्ग ने तारीफ करते हुए कहा, ' संगठन पहले से कहीं अधिक बड़ा, मजबूत और अधिक एकजुट हो गया है... यह सब इसके गंभीर वादे के कारण है.' इस अवसर पर ब्रुसेल्स में स्मारकों को सजाया गया था, यहां तक ​​कि प्रसिद्ध 'मैनकेन पिस' प्रतिमा को भी उस दिन विशेष नाटो पोशाक पहनाई गई.

नाटो की सदस्यता और उद्देश्य : इसकी स्थापना मूल रूप से बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, फ्रांस, आइसलैंड, इटली, लक्ज़मबर्ग, नीदरलैंड, नॉर्वे, पुर्तगाल, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे बारह देशों द्वारा 4 अप्रैल, 1949 को वाशिंगटन डी.सी. में हस्ताक्षरित एक संधि द्वारा की गई थी.

बाद में संगठन ने 2022 तक अठारह और सदस्यों को जोड़ा. इसमें से ग्रीस, तुर्की (अब तुर्किये), जर्मनी (एफआरजी) और स्पेन पश्चिमी यूरोप से थे, बाकी 14 पूर्वी यूरोप से थे. इस प्रकार इसका तेजी से विस्तार हुआ और रूस द्वारा नियमित रूप से व्यक्त की गई चिंताओं को नजरअंदाज करते हुए पूरे पूर्वी यूरोप को कवर किया गया. फिनलैंड (2023) और स्वीडन (2024) नाटो के नए सदस्य हैं, जिससे इसके सदस्यों की संख्या 32 हो गई है.

नाटो का घोषित मौलिक कार्य, उसके चार्टर के अनुसार, सुरक्षा, परामर्श और निवारण और रक्षा थे. उन्होंने कहा कि यूरो-अटलांटिक क्षेत्र में सुरक्षा और स्थिरता बढ़ाने के लिए संकट प्रबंधन और साझेदारी भी आवश्यक थी. नाटो के घोषित मूल मूल्य लोकतंत्र, स्वतंत्रता और कानून का शासन हैं. इसकी ये चार शाखाएं भी हैं.

  1. नॉर्थ अटलांटिक काउंसिल, ये सदस्य देशों के नाटो राजदूतों द्वारा प्रतिनिधित्व की जाने वाली सर्वोच्च संस्था है जो सर्वसम्मति से निर्णय लेती है.
  2. सैन्य कमान, जो परिचालन उद्देश्य के लिए सहयोगी कमान है.
  3. एकीकृत सैन्य बल जिसमें सदस्य देशों की टुकड़ियां शामिल हैं. इसने 20 प्रमुख सैन्य संघर्षों सहित 200 सैन्य संघर्षों में भाग लिया है.
  4. यूएनओ के एसजी की तरह महासचिव.

इसमें कोई संदेह नहीं है कि शीत युद्ध के चरम के दौरान गठित नाटो, शीत युद्ध की पूरी अवधि के दौरान वारसॉ संधि देशों से अपने सदस्यों के हितों की रक्षा करने में सक्षम था. नाटो की स्थापना अपने सदस्यों को 'अटलांटिक और यूरोपीय देशों पर संभावित सोवियत हमले के खिलाफ' बचाने के लिए की गई थी और नाटो की सामूहिक शक्ति के साथ-साथ परमाणु निवारक ने क्यूबा संकट के बावजूद तनाव को युद्ध तक बढ़ने नहीं दिया. इस प्रकार, नाटो ने सफलतापूर्वक यह सुनिश्चित किया कि पूरे सोवियत काल के दौरान युद्ध नहीं भड़का.

हालांकि, सोवियत प्रणाली के पतन के कारण शीत युद्ध के अंत में नाटो के लिए स्थिति (और शायद लक्ष्य-पोस्ट भी) बदल गई. अब, दुनिया एकध्रुवीय हो गई है और अमेरिका के नेतृत्व में कोई भी देश नाटो को चुनौती देने की स्थिति में नहीं है. ऐसे में नाटो को जारी रखने का कोई औचित्य नहीं है, इसलिए इसे खत्म कर दिया जाना चाहिए. लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ!

नाटो चार्टर की प्रस्तावना में कहा गया है कि सदस्य देश 'उत्तरी अटलांटिक क्षेत्र में स्थिरता और कल्याण को बढ़ावा देना चाहते हैं', इस प्रकार नाटो का दायरा केवल उत्तरी अटलांटिक क्षेत्र तक ही सीमित है. हालांकि, पूर्व में रूस के दरवाजे पर उतरने का संगठन का प्रयास प्रस्तावना को ही झुठलाता है.

इसके अलावा, नाटो चार्टर के अनुच्छेद 1 के अनुसार 'पार्टियां किसी भी अंतरराष्ट्रीय विवाद को, जिसमें वे शामिल हो सकते हैं, शांतिपूर्ण तरीकों से निपटाने का वचन देती हैं ताकि अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा और न्याय खतरे में न पड़ें. और अपने अंतरराष्ट्रीय संबंधों में संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों के साथ असंगत किसी भी तरीके से धमकी या बल प्रयोग से बचना चाहिए.'

लेकिन नाटो ने ठीक इसके विपरीत किया! इराक, लीबिया, सीरिया और अफगानिस्तान इसके ज्वलंत उदाहरण हैं जहां, अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर का घोर उल्लंघन करते हुए शांति के नाम पर युद्ध छेड़ दिया था, भले ही इसके किसी भी सदस्य की सुरक्षा को खतरा नहीं था.

लेकिन नाटो का सबसे बड़ा दुस्साहस उसके पूर्व की ओर विस्तार के रूप में सामने आया, जबकि रूस को यह आश्वासन दिया गया था कि नाटो एकीकृत जर्मनी से आगे पूर्व की ओर विस्तार नहीं करेगा.

9 फरवरी, 1990 को तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री जेम्स बेकर और रूसी राष्ट्रपति एडुआर्ड शेवर्नडज़े के बीच हुई बैठक के अवर्गीकृत विदेश विभाग के आधिकारिक लेख के अनुसार, पूर्व ने आश्वासन दिया गया था कि 'अमेरिकियों ने इसे न केवल सोवियत संघ के लिए बल्कि अन्य यूरोपीय देशों के लिए भी समझा. यह गारंटी देना महत्वपूर्ण है कि यदि संयुक्त राज्य अमेरिका नाटो के ढांचे के भीतर जर्मनी में अपनी उपस्थिति बनाए रखता है, तो नाटो के वर्तमान सैन्य अधिकार क्षेत्र का एक इंच भी पूर्वी दिशा में नहीं फैलेगा.' हालांकि बेकर बाद में इससे मुकर गए, लेकिन रूस में तत्कालीन अमेरिकी राजदूत ने आश्वासन की सत्यता की फिर से पुष्टि की.

इसके अलावा, 17 मई 1990 को नाटो के तत्कालीन महासचिव मैनफ़्रेड वोर्नर ने ब्रुसेल्स में कहा था, 'यह तथ्य कि हम जर्मन क्षेत्र के बाहर नाटो सेना तैनात नहीं करने के लिए तैयार हैं, सोवियत संघ को एक दृढ़ सुरक्षा गारंटी देता है.' 2007 में अपने म्यूनिख संबोधन में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने विशेष रूप से वोर्नर के बयान का जिक्र करते हुए पूछा था कि 'गारंटी कहां हैं?.'

इस प्रकार रूस की आपत्तियों के बावजूद नाटो पूर्व की ओर विस्तार करता रहा और जब विस्तार उसके पूर्वी पड़ोसी यूक्रेन तक पहुंचा तो रूस को प्रतिक्रिया देनी पड़ी. अब नाटो अपने सबसे बड़े दुःस्वप्न से पीड़ित है क्योंकि रूस-यूक्रेन संघर्ष का कोई समाधान नजर नहीं आ रहा है.

निष्कर्ष ये है कि यद्यपि नाटो शीत युद्ध 1.0 के दौरान सफल रहा था, लेकिन उसके बाद संयुक्त राष्ट्र चार्टर के घोर उल्लंघन में सैन्य कार्रवाई करने में वह बुरी तरह विफल रहा. यदि नाटो ने अब यूक्रेन संकट से कोई सबक नहीं सीखा है, तो संयुक्त राज्य अमेरिका की पहले से ही कम होती शक्ति और प्रतिष्ठा को देखते हुए इसे अपनी प्रासंगिकता की कीमत पर इसे और अधिक कठिन तरीके से सीखना होगा.

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