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भारत की नई गठबंधन की सरकार के सामने अवसर और चुनौतियां, 2047 तक विकसित भारत का लक्ष्य - New Coalition Govt challenges

New Coalition Govt Challenges: हाल के चुनावों ने हमारे जीवंत लोकतंत्र को प्रदर्शित किया है. आजादी के बाद सबसे बड़ी उपलब्धि लोकतंत्र का कायम रहना है. भारतीय मतदाता के फैसले के बाद केंद्र में गठबंधन सरकार बनी. प्रधानमंत्री और अन्य मंत्रियों का शपथ समारोह संपन्न हो गया और अब नई सरकार ने अपना काम करना शुरू कर दिया है. IGIDR, मुंबई के पूर्व कुलपति एस महेंद्र देव ने भारत की वर्तमान राजनीतिक घटनाक्रम और एनडीए सरकार के लिए अवसर और चुनौतियों के बारे में विस्तार से बताया.

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jun 16, 2024, 6:19 AM IST

लोकसभा चुनाव के नतीजों के साथ देश में नई सरकार का गठन हो गया है. भारत अब 2047 तक एक विकसित राष्ट्र का दर्जा हासिल करने का लक्ष्य रखे हुए है. नई सरकार को न केवल उच्च सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि हासिल करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए बल्कि रोजगार पैदा करने पर भी ध्यान देना चाहिए क्योंकि लोगों ने हाल के चुनावों में खुलासा किया है कि रोजगार एक महत्वपूर्ण मुद्दा है. केंद्र की मोदी सरकार को नीतियों को समावेशी और सतत विकास पर भी ध्यान देना चाहिए. नई गठबंधन सरकार के लिए उच्च विकास, समावेशन और स्थिरता प्राप्त करने के अवसर और चुनौतियां हैं.

नई सरकार के समझ चुनौती और अवसर
आईजीआईडीआर, मुंबई के पूर्व कुलपति एस महेंद्र देव का मानना है कि, विकास के दो चालक निवेश और निर्यात हैं. सी. रंगराजन (पूर्व आरबीआई गवर्नर) का अनुमान है कि 2047 तक विकसित राष्ट्र के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भारत के लिए आवश्यक विकास दर जरूरी है. विकसित देश का दर्जा प्राप्त करने का वर्तमान मानदंड प्रति व्यक्ति आय स्तर 13,205 अमेरिकी डॉलर तक पहुंचना है. यह मानते हुए कि कट-ऑफ बढ़कर 15000 डॉलर हो जाएगी और रुपये के मूल्यह्रास के साथ, आवश्यक वास्तविक विकास दर 7 प्रतिशत प्रति वर्ष है. इसे प्राप्त करने के लिए सकल स्थिर पूंजी निर्माण को सकल घरेलू उत्पाद के 28 फीसदी के वर्तमान स्तर से बढ़ाकर सकल घरेलू उत्पाद के 34 प्रतिशत तक ले जाना होगा. सार्वजनिक निवेश के साथ-साथ निजी निवेश भी बढ़ाना होगा. निजी निवेश का पुनरुद्धार एक चुनौती है, क्योंकि कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती, इन्सॉल्वेंसी बैंकरप्सी कोड (आईबीसी), जीएसटी, उत्पादन से जुड़ी योजना और सरकारी पूंजीगत व्यय में वृद्धि जैसे सुधारों के बावजूद यह आगे नहीं बढ़ पाया है. अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में निजी निवेश बढ़ाने की तत्काल आवश्यकता है.

रोजगार कैसे बढ़ेगा
यह सभी लोगों को मालूम है कि, निर्यात विकास और रोजगार सृजन के मुख्य इंजनों में से एक है. भारत की उच्च जीडीपी वृद्धि दर आम तौर पर उच्च निर्यात वृद्धि के साथ होती है. लेकिन, अब वैश्विक झटकों के कारण भारत के व्यापार वॉल्यूम पर उतार-चढ़ाव देखे जाएंगे. भारत वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं के भीतर कई कारणों से एक प्रमुख केंद्र के रूप में उभर सकता है. हालांकि, एक समस्या यह है कि हाल के वर्षों में भारत की व्यापार नीति अधिक संरक्षणवादी हो गई है. हाल के वर्षों में भारत की आयात शुल्क दरों में वृद्धि हुई है. चीन के खाली की गई जगह पर कब्जा करने के लिए भारत को टैरिफ कम करना होगा. आत्मनिर्भर के नाम पर हमें सुरक्षात्मक नहीं होना चाहिए. मजबूत निर्यात वृद्धि के बिना भारत के आकार का कोई भी उभरता बाजार एक दशक या उससे अधिक समय तक 7 या 8 प्रतिशत की दर से नहीं बढ़ा है.

विश्व की तीसरी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर
भारत अब विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और जल्द ही तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा. हालांकि, प्रति व्यक्ति के मामले में भारत का स्थान अभी भी 180 देशों में 138 वां है. 1990 में चीन और भारत की प्रति व्यक्ति रैंक समान थी. लेकिन अब चीन की रैंक 71 है (12000 डालर के साथ) और भारत की रैंक 138 है और 2600 डालर है. इसलिए, प्रति व्यक्ति आय के मामले में अन्य देशों की बराबरी करने के लिए भारत को अब बहुत तेजी से आगे बढ़ना होगा. भारतीय अर्थव्यवस्था की संरचनात्मक समस्याओं में से एक कृषि से लेकर विनिर्माण और सेवाओं विशेषकर रोजगार तक संरचनात्मक परिवर्तन की कमी है. कृषि क्षेत्र को बुनियादी ढांचे और निवेश पर समर्थन की जरूरत है. भारतीय कृषि की कहानी को अधिक विविध उच्च मूल्य वाले उत्पादन, बेहतर लाभकारी मूल्य और कृषि आय की ओर बदलना होगा. इसी तरह, उच्च जीडीपी वृद्धि और बेहतर नौकरियों के लिए जीडीपी और रोजगार दोनों में विनिर्माण हिस्सेदारी में सुधार करना होगा.

रोजगार संबंधी चुनौतियां
समावेशी विकास पर, मात्रा और गुणवत्ता में रोजगार सृजन नई सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौतियां हैं. 2012 से 2019 के बीच अर्थव्यवस्था 6.7 फीसदी बढ़ी लेकिन नौकरियों की वृद्धि सिर्फ 0.1 फीसदी रही. अनौपचारिक क्षेत्र में रोजगार पर खराब गुणवत्ता वाली नौकरियां हावी हैं. औपचारिक क्षेत्र में ही अनौपचारिक रोजगार में भी वृद्धि देखी जा रही है. अन्य देशों की तुलना में भारत में महिलाओं की कार्य भागीदारी दर कम है. गिग वर्कर्स की समस्या एक और मुद्दा है.

भारत के बेरोजगार युवा
भारत में सबसे बड़ी युवा आबादी (15-29 वर्ष) लगभग 27 फीसदी है. जनसांख्यिकीय लाभ विभिन्न क्षेत्रों, राज्यों में अलग-अलग हैं. केवल पूर्वी, उत्तरी और मध्य क्षेत्रों को ही यह लाभ है. युवाओं में बेरोजगारी आम तौर पर कुल बेरोजगारी से तीन गुना अधिक है. चौंकाने वाली बात तो यह है कि, बेरोजगारों में 83 प्रतिशत युवा हैं. शिक्षित (माध्यमिक और ऊपर) युवाओं में बेरोज़गार दर 18.4 फीसदी, स्नातकों में 29.1फीसदी (महिला 34.5 फीसदी) है. बेरोजगारी युवाओं और शिक्षितों के बीच केंद्रित है. विभिन्न जातियों के बीच आरक्षण की मांग उच्च युवा बेरोजगारी के कारण है.

भारत में केवल 2.3 फीसदी श्रमिकों के पास औपचारिक कौशल
नीति आयोग के दस्तावेज में उल्लेख किया गया है कि भारत में केवल 2.3 फीसदी श्रमिकों के पास औपचारिक कौशल प्रशिक्षण है, जबकि यूके में 68फीसदी, जर्मनी में 75 फीसदी, जापान में 80 फीसदी, दक्षिण कोरिया में 96 फीसदी है. रोजगार एक समस्या है. 55 फीसदी श्रमिकों की रोजगार योग्यता (सही नौकरी) एक समस्या है. दूसरी ओर, तकनीकी रूप से शिक्षित सहित उच्च शिक्षित युवा पुरुषों और महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा उन नौकरियों के लिए अयोग्य है जो वे धारण कर रहे हैं. एक और मुद्दा है तकनीक और रोजगार. विकसित देशों में पहले से ही एआई और रोबोट के कारण श्रम की मांग में गिरावट देखी जा रही है. भारत को इसके लिए तैयार रहना होगा.

समावेशी विकास का दूसरा मुद्दा स्वास्थ्य और शिक्षा है. स्वास्थ्य और शिक्षा में विरोधाभास को ठीक करना होगा. आईआईटी और आईआईएम जैसे शिक्षण संस्थान में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं, जबकि अधिकांश शैक्षणिक संस्थान की हालत लचर है, जहां से बच्चे कुछ खास सीखकर बाहर नहीं आते हैं. पूर्व शिक्षा सचिव ने कहा कि 'अधिकांश बच्चों को स्कूल भेजने के अलावा, भारत में स्कूली शिक्षा में जो कुछ भी गलत हो सकता था, वह गलत हुआ है'. देश में स्किल की स्थिति क्या है, सबको पता है और जनसांख्यिकीय लाभांश के लिए भारत की उम्मीदें काफी हद तक गलत लगती हैं. हमें सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल की ओर बढ़ने और स्वास्थ्य पर सकल घरेलू उत्पाद का 2.5 से 3 प्रतिशत खर्च करने की आवश्यकता है. गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य में समानता मानव विकास को बढ़ाने और असमानताओं में कमी लाने का एकमात्र विकल्प है. इलाकों, जातियों, ग्रामीण-शहरी, लिंग के आधार पर बनी असमानता एक और समस्या है जिससे नई सरकार को निपटना होगा.

चीनी कहावत से समझे
समावेशी विकास के लिए कल्याण कार्यक्रम महत्वपूर्ण हैं. लेकिन, साथ ही हमें राजस्व में सुधार करना होगा और विकास गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करना होगा. अकेले कल्याणकारी कार्यक्रम गरीबी और असमानता को कम नहीं करेंगे. हाल के चुनावों से पता चला है कि युवा रोजगार चाहते हैं, सिर्फ मुफ्त चीजें नहीं. इसको लेकर चीन की एक कहावत काफी मशहूर है. जिसमें कहा गया है कि, यदि आप किसी भूखे पुरुष या महिला को एक मछली देते हैं, तो आप उसे एक दिन की खुराक ही दे पाएंगे. अगले दिन वह फिर से भूखा ही रहेगा. ऐसे में फिर से आपको को उन भूखे व्यक्ति को दूसरी मछली खिलाना होगा. ऐसे में अगर आप उस भूखे व्यक्ति को मछली पकड़ना सीखा दें तो वह जीवन भर अपने लिए भोजन के लिए भूखा नहीं रहेगा.

क्या बोले आरबीआई के पूर्व गवर्नर
आरबीआई के पूर्व गवर्नर सुब्बाराव ने कहा कि हमारा बजट घाटे का है जिसका मतलब है कि मुफ्त सुविधाओं की पूर्ति उधार से की जा रही है. यदि वे विकास और राजस्व में योगदान नहीं देते हैं तो पुनर्भुगतान का बोझ हमारे बच्चों पर पड़ेगा. कुछ कल्याणकारी कार्यक्रमों के अलावा, सरकार द्वारा बुनियादी ढांचे पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह उच्च विकास और रोजगार सृजन के लिए एक प्रमुख चालक है. दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता को जोड़ने वाली स्वर्णिम चतुर्भुज राजमार्ग सड़क परियोजना पीएम अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान शुरू हुई थी. एक अध्ययन ने विनिर्माण गतिविधि पर इस परियोजना के प्रभाव की जांच की. इसके परिणामस्वरूप औसत जिले के लिए प्रारंभिक स्तर से कुल उत्पादन में 49 प्रतिशत की वृद्धि हुई. उदाहरण के लिए, गुजरात में सूरत या आंध्र प्रदेश में श्रीकाकुलम जैसे मध्यम आबादी वाले जिलों में स्वर्णिम चतुर्भुज के बाद नए उत्पादन और नई स्थापना संख्या में 100 फीसदी से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई.

जलवायु परिवर्तन एक बड़ी चुनौती
इसी तरह, स्थिरता और जलवायु परिवर्तन भी महत्वपूर्ण होते जा रहे हैं. जलवायु परिवर्तन से संबंधित मुद्दों से निपटने के लिए केंद्रीय राज्य और स्थानीय स्तर पर सरकारों को तैयार रहना होगा. समय के साथ भारत में शहरीकरण बढ़ेगा. समावेशी और टिकाऊ शहरीकरण महत्वपूर्ण है. हाल ही में ऑक्सफोर्ड एनालिटिक्स ने ग्लोबल सिटीज इंडेक्स निकाले हैं जो यह दर्शाता है कि कम मानव पूंजी, जीवन की खराब गुणवत्ता और पर्यावरणीय मुद्दे भारतीय शहरों की रैंकिंग में गिरावट लाते हैं. नई राज्य सरकार द्वारा आंध्र प्रदेश में अमरावती शहर के विकास में शहर की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए आर्थिक विकास, मानव पूंजी, जीवन की गुणवत्ता, पर्यावरण और शासन को ध्यान में रखना चाहिए. यहां नियोजित ग्रीन शहरों की आवश्यकता है. भारत राजनीतिक और राजकोषीय रूप से अत्यधिक केंद्रीकृत है, जो स्वतंत्रता के समय संविधान के निर्माताओं के मन में राष्ट्रीय विघटन की आशंकाओं की विरासत है. नई गठबंधन सरकार को सहकारी संघवाद में सुधार करना चाहिए क्योंकि कार्रवाई राज्य स्तर पर अधिक है. यदि भारत को एक विकसित देश बनना है तो यहां राज्यों की भूमिका महत्वपूर्ण होगी.

कैसे होगा विकास और रोजगार का सृजन?
इसी प्रकार, पंचायतों और शहरी स्थानीय परिषदों के प्रति विकेंद्रीकरण भी महत्वपूर्ण है. आरबीआई के हालिया अध्ययन से पता चलता है कि कैसे पंचायतें अपनी आय का केवल 1 प्रतिशत टैक्स के माध्यम से कमाती हैं, बाकी केंद्र और राज्य अनुदान से प्राप्त किया जाता है. पंचायतों की अधिक स्वायत्तता के परिणामस्वरूप कृषि, ग्रामीण विकास, स्वास्थ्य और शिक्षा में बेहतर प्रशासन और बेहतर परिणाम मिलते हैं. एक अध्ययन से पता चलता है कि स्थानीय सरकारों के विवेक पर खर्च, जहां अधिकांश सेवाएं प्रदान की जाती हैं, चीन में 51 प्रतिशत, अमेरिका और ब्राजील में 27 प्रतिशत और भारत में 3 प्रतिशत है. कुल मिलाकर नई सरकार के पास 2047 तक विकसित राष्ट्र के लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए कई अवसर और चुनौतियां हैं. हाल के चुनावों ने विशेष रूप से युवाओं के लिए रोजगार के महत्वपूर्ण मुद्दों को भी सामने लाया है. विकास, रोजगार सृजन, समावेशन और स्थिरता के इस लक्ष्य को प्राप्त करने में राज्यों को अधिक महत्व दिया जाना चाहिए. इस बात का कोई सबूत नहीं है कि गठबंधन सरकारें गैर-गठबंधन सरकारों की तुलना में विकासात्मक लक्ष्यों को प्राप्त करने में कम कुशल हैं.

इस लेख के लेखक एस महेंद्र देव भारत सरकार के कृषि लागत और मूल्य आयोग के पूर्व अध्यक्ष और आईजीआईडीआर, मुंबई के पूर्व कुलपति के तौर पर सेवाएं दे चुके हैं.

Disclaimer: यह लेख लेखक के निजी विचार हैं.

ये भी पढ़ें: 'ब्रांड मोदी' के सामने कड़ी चुनौती, क्या करेंगे मोदी-शाह ?

लोकसभा चुनाव के नतीजों के साथ देश में नई सरकार का गठन हो गया है. भारत अब 2047 तक एक विकसित राष्ट्र का दर्जा हासिल करने का लक्ष्य रखे हुए है. नई सरकार को न केवल उच्च सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि हासिल करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए बल्कि रोजगार पैदा करने पर भी ध्यान देना चाहिए क्योंकि लोगों ने हाल के चुनावों में खुलासा किया है कि रोजगार एक महत्वपूर्ण मुद्दा है. केंद्र की मोदी सरकार को नीतियों को समावेशी और सतत विकास पर भी ध्यान देना चाहिए. नई गठबंधन सरकार के लिए उच्च विकास, समावेशन और स्थिरता प्राप्त करने के अवसर और चुनौतियां हैं.

नई सरकार के समझ चुनौती और अवसर
आईजीआईडीआर, मुंबई के पूर्व कुलपति एस महेंद्र देव का मानना है कि, विकास के दो चालक निवेश और निर्यात हैं. सी. रंगराजन (पूर्व आरबीआई गवर्नर) का अनुमान है कि 2047 तक विकसित राष्ट्र के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भारत के लिए आवश्यक विकास दर जरूरी है. विकसित देश का दर्जा प्राप्त करने का वर्तमान मानदंड प्रति व्यक्ति आय स्तर 13,205 अमेरिकी डॉलर तक पहुंचना है. यह मानते हुए कि कट-ऑफ बढ़कर 15000 डॉलर हो जाएगी और रुपये के मूल्यह्रास के साथ, आवश्यक वास्तविक विकास दर 7 प्रतिशत प्रति वर्ष है. इसे प्राप्त करने के लिए सकल स्थिर पूंजी निर्माण को सकल घरेलू उत्पाद के 28 फीसदी के वर्तमान स्तर से बढ़ाकर सकल घरेलू उत्पाद के 34 प्रतिशत तक ले जाना होगा. सार्वजनिक निवेश के साथ-साथ निजी निवेश भी बढ़ाना होगा. निजी निवेश का पुनरुद्धार एक चुनौती है, क्योंकि कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती, इन्सॉल्वेंसी बैंकरप्सी कोड (आईबीसी), जीएसटी, उत्पादन से जुड़ी योजना और सरकारी पूंजीगत व्यय में वृद्धि जैसे सुधारों के बावजूद यह आगे नहीं बढ़ पाया है. अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में निजी निवेश बढ़ाने की तत्काल आवश्यकता है.

रोजगार कैसे बढ़ेगा
यह सभी लोगों को मालूम है कि, निर्यात विकास और रोजगार सृजन के मुख्य इंजनों में से एक है. भारत की उच्च जीडीपी वृद्धि दर आम तौर पर उच्च निर्यात वृद्धि के साथ होती है. लेकिन, अब वैश्विक झटकों के कारण भारत के व्यापार वॉल्यूम पर उतार-चढ़ाव देखे जाएंगे. भारत वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं के भीतर कई कारणों से एक प्रमुख केंद्र के रूप में उभर सकता है. हालांकि, एक समस्या यह है कि हाल के वर्षों में भारत की व्यापार नीति अधिक संरक्षणवादी हो गई है. हाल के वर्षों में भारत की आयात शुल्क दरों में वृद्धि हुई है. चीन के खाली की गई जगह पर कब्जा करने के लिए भारत को टैरिफ कम करना होगा. आत्मनिर्भर के नाम पर हमें सुरक्षात्मक नहीं होना चाहिए. मजबूत निर्यात वृद्धि के बिना भारत के आकार का कोई भी उभरता बाजार एक दशक या उससे अधिक समय तक 7 या 8 प्रतिशत की दर से नहीं बढ़ा है.

विश्व की तीसरी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर
भारत अब विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और जल्द ही तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा. हालांकि, प्रति व्यक्ति के मामले में भारत का स्थान अभी भी 180 देशों में 138 वां है. 1990 में चीन और भारत की प्रति व्यक्ति रैंक समान थी. लेकिन अब चीन की रैंक 71 है (12000 डालर के साथ) और भारत की रैंक 138 है और 2600 डालर है. इसलिए, प्रति व्यक्ति आय के मामले में अन्य देशों की बराबरी करने के लिए भारत को अब बहुत तेजी से आगे बढ़ना होगा. भारतीय अर्थव्यवस्था की संरचनात्मक समस्याओं में से एक कृषि से लेकर विनिर्माण और सेवाओं विशेषकर रोजगार तक संरचनात्मक परिवर्तन की कमी है. कृषि क्षेत्र को बुनियादी ढांचे और निवेश पर समर्थन की जरूरत है. भारतीय कृषि की कहानी को अधिक विविध उच्च मूल्य वाले उत्पादन, बेहतर लाभकारी मूल्य और कृषि आय की ओर बदलना होगा. इसी तरह, उच्च जीडीपी वृद्धि और बेहतर नौकरियों के लिए जीडीपी और रोजगार दोनों में विनिर्माण हिस्सेदारी में सुधार करना होगा.

रोजगार संबंधी चुनौतियां
समावेशी विकास पर, मात्रा और गुणवत्ता में रोजगार सृजन नई सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौतियां हैं. 2012 से 2019 के बीच अर्थव्यवस्था 6.7 फीसदी बढ़ी लेकिन नौकरियों की वृद्धि सिर्फ 0.1 फीसदी रही. अनौपचारिक क्षेत्र में रोजगार पर खराब गुणवत्ता वाली नौकरियां हावी हैं. औपचारिक क्षेत्र में ही अनौपचारिक रोजगार में भी वृद्धि देखी जा रही है. अन्य देशों की तुलना में भारत में महिलाओं की कार्य भागीदारी दर कम है. गिग वर्कर्स की समस्या एक और मुद्दा है.

भारत के बेरोजगार युवा
भारत में सबसे बड़ी युवा आबादी (15-29 वर्ष) लगभग 27 फीसदी है. जनसांख्यिकीय लाभ विभिन्न क्षेत्रों, राज्यों में अलग-अलग हैं. केवल पूर्वी, उत्तरी और मध्य क्षेत्रों को ही यह लाभ है. युवाओं में बेरोजगारी आम तौर पर कुल बेरोजगारी से तीन गुना अधिक है. चौंकाने वाली बात तो यह है कि, बेरोजगारों में 83 प्रतिशत युवा हैं. शिक्षित (माध्यमिक और ऊपर) युवाओं में बेरोज़गार दर 18.4 फीसदी, स्नातकों में 29.1फीसदी (महिला 34.5 फीसदी) है. बेरोजगारी युवाओं और शिक्षितों के बीच केंद्रित है. विभिन्न जातियों के बीच आरक्षण की मांग उच्च युवा बेरोजगारी के कारण है.

भारत में केवल 2.3 फीसदी श्रमिकों के पास औपचारिक कौशल
नीति आयोग के दस्तावेज में उल्लेख किया गया है कि भारत में केवल 2.3 फीसदी श्रमिकों के पास औपचारिक कौशल प्रशिक्षण है, जबकि यूके में 68फीसदी, जर्मनी में 75 फीसदी, जापान में 80 फीसदी, दक्षिण कोरिया में 96 फीसदी है. रोजगार एक समस्या है. 55 फीसदी श्रमिकों की रोजगार योग्यता (सही नौकरी) एक समस्या है. दूसरी ओर, तकनीकी रूप से शिक्षित सहित उच्च शिक्षित युवा पुरुषों और महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा उन नौकरियों के लिए अयोग्य है जो वे धारण कर रहे हैं. एक और मुद्दा है तकनीक और रोजगार. विकसित देशों में पहले से ही एआई और रोबोट के कारण श्रम की मांग में गिरावट देखी जा रही है. भारत को इसके लिए तैयार रहना होगा.

समावेशी विकास का दूसरा मुद्दा स्वास्थ्य और शिक्षा है. स्वास्थ्य और शिक्षा में विरोधाभास को ठीक करना होगा. आईआईटी और आईआईएम जैसे शिक्षण संस्थान में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं, जबकि अधिकांश शैक्षणिक संस्थान की हालत लचर है, जहां से बच्चे कुछ खास सीखकर बाहर नहीं आते हैं. पूर्व शिक्षा सचिव ने कहा कि 'अधिकांश बच्चों को स्कूल भेजने के अलावा, भारत में स्कूली शिक्षा में जो कुछ भी गलत हो सकता था, वह गलत हुआ है'. देश में स्किल की स्थिति क्या है, सबको पता है और जनसांख्यिकीय लाभांश के लिए भारत की उम्मीदें काफी हद तक गलत लगती हैं. हमें सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल की ओर बढ़ने और स्वास्थ्य पर सकल घरेलू उत्पाद का 2.5 से 3 प्रतिशत खर्च करने की आवश्यकता है. गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य में समानता मानव विकास को बढ़ाने और असमानताओं में कमी लाने का एकमात्र विकल्प है. इलाकों, जातियों, ग्रामीण-शहरी, लिंग के आधार पर बनी असमानता एक और समस्या है जिससे नई सरकार को निपटना होगा.

चीनी कहावत से समझे
समावेशी विकास के लिए कल्याण कार्यक्रम महत्वपूर्ण हैं. लेकिन, साथ ही हमें राजस्व में सुधार करना होगा और विकास गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करना होगा. अकेले कल्याणकारी कार्यक्रम गरीबी और असमानता को कम नहीं करेंगे. हाल के चुनावों से पता चला है कि युवा रोजगार चाहते हैं, सिर्फ मुफ्त चीजें नहीं. इसको लेकर चीन की एक कहावत काफी मशहूर है. जिसमें कहा गया है कि, यदि आप किसी भूखे पुरुष या महिला को एक मछली देते हैं, तो आप उसे एक दिन की खुराक ही दे पाएंगे. अगले दिन वह फिर से भूखा ही रहेगा. ऐसे में फिर से आपको को उन भूखे व्यक्ति को दूसरी मछली खिलाना होगा. ऐसे में अगर आप उस भूखे व्यक्ति को मछली पकड़ना सीखा दें तो वह जीवन भर अपने लिए भोजन के लिए भूखा नहीं रहेगा.

क्या बोले आरबीआई के पूर्व गवर्नर
आरबीआई के पूर्व गवर्नर सुब्बाराव ने कहा कि हमारा बजट घाटे का है जिसका मतलब है कि मुफ्त सुविधाओं की पूर्ति उधार से की जा रही है. यदि वे विकास और राजस्व में योगदान नहीं देते हैं तो पुनर्भुगतान का बोझ हमारे बच्चों पर पड़ेगा. कुछ कल्याणकारी कार्यक्रमों के अलावा, सरकार द्वारा बुनियादी ढांचे पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह उच्च विकास और रोजगार सृजन के लिए एक प्रमुख चालक है. दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता को जोड़ने वाली स्वर्णिम चतुर्भुज राजमार्ग सड़क परियोजना पीएम अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान शुरू हुई थी. एक अध्ययन ने विनिर्माण गतिविधि पर इस परियोजना के प्रभाव की जांच की. इसके परिणामस्वरूप औसत जिले के लिए प्रारंभिक स्तर से कुल उत्पादन में 49 प्रतिशत की वृद्धि हुई. उदाहरण के लिए, गुजरात में सूरत या आंध्र प्रदेश में श्रीकाकुलम जैसे मध्यम आबादी वाले जिलों में स्वर्णिम चतुर्भुज के बाद नए उत्पादन और नई स्थापना संख्या में 100 फीसदी से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई.

जलवायु परिवर्तन एक बड़ी चुनौती
इसी तरह, स्थिरता और जलवायु परिवर्तन भी महत्वपूर्ण होते जा रहे हैं. जलवायु परिवर्तन से संबंधित मुद्दों से निपटने के लिए केंद्रीय राज्य और स्थानीय स्तर पर सरकारों को तैयार रहना होगा. समय के साथ भारत में शहरीकरण बढ़ेगा. समावेशी और टिकाऊ शहरीकरण महत्वपूर्ण है. हाल ही में ऑक्सफोर्ड एनालिटिक्स ने ग्लोबल सिटीज इंडेक्स निकाले हैं जो यह दर्शाता है कि कम मानव पूंजी, जीवन की खराब गुणवत्ता और पर्यावरणीय मुद्दे भारतीय शहरों की रैंकिंग में गिरावट लाते हैं. नई राज्य सरकार द्वारा आंध्र प्रदेश में अमरावती शहर के विकास में शहर की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए आर्थिक विकास, मानव पूंजी, जीवन की गुणवत्ता, पर्यावरण और शासन को ध्यान में रखना चाहिए. यहां नियोजित ग्रीन शहरों की आवश्यकता है. भारत राजनीतिक और राजकोषीय रूप से अत्यधिक केंद्रीकृत है, जो स्वतंत्रता के समय संविधान के निर्माताओं के मन में राष्ट्रीय विघटन की आशंकाओं की विरासत है. नई गठबंधन सरकार को सहकारी संघवाद में सुधार करना चाहिए क्योंकि कार्रवाई राज्य स्तर पर अधिक है. यदि भारत को एक विकसित देश बनना है तो यहां राज्यों की भूमिका महत्वपूर्ण होगी.

कैसे होगा विकास और रोजगार का सृजन?
इसी प्रकार, पंचायतों और शहरी स्थानीय परिषदों के प्रति विकेंद्रीकरण भी महत्वपूर्ण है. आरबीआई के हालिया अध्ययन से पता चलता है कि कैसे पंचायतें अपनी आय का केवल 1 प्रतिशत टैक्स के माध्यम से कमाती हैं, बाकी केंद्र और राज्य अनुदान से प्राप्त किया जाता है. पंचायतों की अधिक स्वायत्तता के परिणामस्वरूप कृषि, ग्रामीण विकास, स्वास्थ्य और शिक्षा में बेहतर प्रशासन और बेहतर परिणाम मिलते हैं. एक अध्ययन से पता चलता है कि स्थानीय सरकारों के विवेक पर खर्च, जहां अधिकांश सेवाएं प्रदान की जाती हैं, चीन में 51 प्रतिशत, अमेरिका और ब्राजील में 27 प्रतिशत और भारत में 3 प्रतिशत है. कुल मिलाकर नई सरकार के पास 2047 तक विकसित राष्ट्र के लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए कई अवसर और चुनौतियां हैं. हाल के चुनावों ने विशेष रूप से युवाओं के लिए रोजगार के महत्वपूर्ण मुद्दों को भी सामने लाया है. विकास, रोजगार सृजन, समावेशन और स्थिरता के इस लक्ष्य को प्राप्त करने में राज्यों को अधिक महत्व दिया जाना चाहिए. इस बात का कोई सबूत नहीं है कि गठबंधन सरकारें गैर-गठबंधन सरकारों की तुलना में विकासात्मक लक्ष्यों को प्राप्त करने में कम कुशल हैं.

इस लेख के लेखक एस महेंद्र देव भारत सरकार के कृषि लागत और मूल्य आयोग के पूर्व अध्यक्ष और आईजीआईडीआर, मुंबई के पूर्व कुलपति के तौर पर सेवाएं दे चुके हैं.

Disclaimer: यह लेख लेखक के निजी विचार हैं.

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