नई दिल्ली: नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी-यूनाइटेड मार्क्सवादी लेनिनवादी (CPN-UML) के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल, जिस गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं, उसमें अपने सबसे बड़े सहयोगी दल का समर्थन खो चुके हैं. अब वे देश के संविधान की आड़ में एक-दूसरे पर हावी होने का राजनीतिक खेल खेल रहे हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, दहल ने पद न छोड़ने और संसद में बहुमत साबित करने का फैसला करने के बाद, अब नेपाली कांग्रेस के एक धड़े के साथ मिलकर काम करना शुरू किया है, जो कभी दहल के गठबंधन का हिस्सा था. इस धड़े की मदद से वे यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि सीपीएन-यूएमएल के नेता केपी शर्मा ओली प्रधानमंत्री पद पर न आ पाएं.
पिछले कुछ हफ़्तों में नेपाल में फिर से राजनीतिक उथल-पुथल देखने को मिल रही है, जिससे पूरे दक्षिण एशियाई क्षेत्र और ख़ास तौर पर भारत में चिंता की स्थिति है. पिछले कुछ दिनों में तेज़ी से हुए राजनीतिक घटनाक्रमों के बाद, पूर्व प्रधानमंत्री और नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा और पूर्व प्रधानमंत्री और सीपीएन-यूएमएल के नेता ओली ने बीते हफ्ते सोमवार और मंगलवार की दरम्यानी रात को काठमांडू में नई गठबंधन सरकार बनाने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे.
समझौते के अनुसार, ओली और फिर देउबा मौजूदा सरकार के बचे हुए साढ़े तीन साल के कार्यकाल के दौरान बारी-बारी से प्रधानमंत्री के तौर पर काम करेंगे. इसके बाद, सीपीएन-यूएमएल ने देश के संविधान के अनुच्छेद 76 (2) के अनुसार बुधवार को दहल को पद से हटने के लिए कहा. अनुच्छेद 76 (2) के अनुसार, राष्ट्रपति सदन के एक सदस्य को प्रधानमंत्री नियुक्त करेगा, जो दो या अधिक दलों के समर्थन से बहुमत हासिल कर सकता है.
हालांकि, सीपीएन-माओवादी सेंटर के पदाधिकारियों की एक बैठक में फैसला किया गया कि दहल पद नहीं छोड़ेंगे और इसके बजाय प्रतिनिधि सभा में विश्वास मत के लिए जाएंगे. संविधान के अनुच्छेद 100 (2) के अनुसार, यदि प्रधानमंत्री जिस राजनीतिक दल का प्रतिनिधित्व करते हैं, वह विभाजित है या गठबंधन में शामिल कोई राजनीतिक दल अपना समर्थन वापस ले लेता है, तो प्रधानमंत्री को 30 दिनों के भीतर प्रतिनिधि सभा में विश्वास मत के लिए प्रस्ताव पेश करना होगा.
इससे दहल को पद पर बने रहने के लिए बस एक महीने का समय और मिल जाता है. हालांकि, दहल ने 30 दिन की समय सीमा से बहुत पहले ही 12 जुलाई को फ्लोर टेस्ट के लिए जाने का विकल्प चुना है. ताजा घटनाक्रम नेपाल के लगातार बदलते राजनीतिक परिदृश्य की परिणति है.
यहां यह उल्लेखनीय है कि नेपाली कांग्रेस पहले केंद्र में दहल के नेतृत्व वाले गठबंधन का हिस्सा थी. हालांकि, इस साल मार्च में सीपीएन-माओवादी केंद्र ने नेपाली कांग्रेस के साथ सभी संबंध तोड़ लिए और सीपीएन-यूएमएल को गठबंधन में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया. इस नए गठबंधन में अन्य शुरुआती साझेदार राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी और जनता समाजवादी पार्टी थे.
हालांकि, जनता समाजवादी पार्टी ने इस साल मई में सीपीएन-माओवादी केंद्र के साथ मतभेदों का हवाला देते हुए गठबंधन से समर्थन वापस ले लिया. इस बीच, दहल और ओली दोनों ही कथित तौर पर नई व्यवस्था से नाखुश थे. दहल ने स्वीकार किया कि देश में मौजूदा तदर्थ राजनीति अस्थिर है और कहा कि वह मंत्रियों को बदलने के अलावा कुछ नहीं कर सकते.
ओली भी इस व्यवस्था से संतुष्ट नहीं थे, यह तब स्पष्ट हो गया जब उन्होंने सरकार द्वारा पेश किए गए वार्षिक बजट को 'माओवादी बजट' बताया. इन सबके कारण सीपीएन-यूएमएल और सीपीएन-माओवादी केंद्र के बीच अविश्वास की स्थिति पैदा हो गई. सीपीएन-यूएमएल के उप महासचिव प्रदीप ग्यावली के अनुसार, दहल पिछले एक महीने से राष्ट्रीय सर्वसम्मति वाली सरकार बनाने के लिए नेपाली कांग्रेस के संपर्क में थे.
यह सीपीएन-यूएमएल और सीपीएन-माओवादी केंद्र के बीच अविश्वास का एक बड़ा कारण बन गया. हालांकि, जब नेपाली कांग्रेस ने दहल के प्रस्ताव को खारिज कर दिया, तो सीपीएन-यूएमएल ने मामले को अपने हाथों में लेने का फैसला किया. काठमांडू पोस्ट की रिपोर्ट में ग्यावली के हवाले से कहा गया है कि 'यूएमएल और कांग्रेस ने बातचीत शुरू की और राजनीतिक स्थिरता और लोकतांत्रिक अभ्यास के लिए एक साथ आगे बढ़ने का फैसला किया.' 29 जून को ओली और देउबा ने बंद कमरे में बैठक की.
1 जुलाई को ओली ने दहल के साथ एक अलग बैठक की. इसके बाद ओली और देउबा ने समझौते पर मुहर लगाई. हालांकि दहल ने फ्लोर टेस्ट कराने का फैसला किया है, लेकिन संख्याबल उनके पक्ष में नहीं है. 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा में नेपाली कांग्रेस 88 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी है. सीपीएन-यूएमएल के पास 79 सीटें हैं, जबकि दहल की सीपीएन-माओवादी सेंटर 32 सीटों के साथ तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है.
राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी और जनता समाजवादी पार्टी के पास क्रमशः 21 और पांच सीटें हैं. अब, नवीनतम रिपोर्टों से पता चलता है कि दहल ने शेखर कोइराला से संपर्क किया है, जो नेपाली कांग्रेस के भीतर एक गुट का नेतृत्व करते हैं जो देउबा का विरोध करता है, संविधान के अनुच्छेद 76 (3) के तहत सरकार बनाने के लिए. संविधान के अनुच्छेद 76 (3) के अनुसार, प्रतिनिधि सभा में सबसे बड़ी पार्टी के संसदीय दल के नेता को प्रधान मंत्री नियुक्त किया जाएगा.
इससे निचले सदन में सबसे बड़ी पार्टी के संसदीय दल के नेता होने के कारण देउबा के प्रधान मंत्री बनने का रास्ता साफ हो जाएगा. पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, दहल अब कोइराला पर नेपाली कांग्रेस की सरकार बनाने के लिए दबाव डाल रहे हैं, लेकिन कांग्रेस ने कहा है कि ऐसा परिदृश्य बनने में अब बहुत देर हो चुकी है.
नेपाल की राजनीति से परिचित एक सूत्र ने नाम न बताने की शर्त पर ईटीवी भारत को बताया कि 'दहल को पता है कि अगर ओली प्रधानमंत्री बनते हैं तो उन्हें युद्ध अपराध के आरोप में जेल जाना पड़ेगा, इसलिए वह यह सुनिश्चित करने के लिए कुछ भी करेंगे कि ओली प्रधानमंत्री न बनें.' दहल यह भी चाहते हैं कि मई में उनकी सरकार द्वारा पेश किया गया वार्षिक बजट संसद द्वारा पारित किया जाए.
सूत्र ने बताया कि ओली ने पहले भी कई बार यह स्पष्ट किया है कि अगर उन्हें मौका मिला तो वे नेपाल की राजनीति से माओवादियों को पूरी तरह से खत्म कर देंगे. सूत्र ने बताया कि दहल (जिन्हें प्रचंड के नाम से भी जाना जाता है) के नेतृत्व वाली सीपीएन-माओवादी सेंटर 2008 में राजशाही खत्म होने के बाद से और खासकर 2015 में नए संविधान को अपनाने के बाद से नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने में अहम भूमिका निभा रही है.
सूत्र ने आगे कहा कि 'दहल जो कर रहे हैं, वह दूसरी पार्टियों में एक गुट को दूसरे के खिलाफ खड़ा करना है. पूर्व राष्ट्रपति विद्यादेवी भंडारी भी सीपीएन-यूएमएल के भीतर एक गुट का नेतृत्व करती हैं, जो सत्ता में चीन समर्थक वामपंथी एकता गठबंधन सरकार चाहती है. यह भारत के हितों के खिलाफ होगा.' इसलिए यह भारत के हित में होगा कि नेपाली कांग्रेस और सीपीएन-यूएमएल की गठबंधन सरकार बने और ओली और देउबा बारी-बारी से प्रधानमंत्री पद पर बने रहें, जैसा कि सहमति बनी थी.