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BRICS सम्मेलन से भारत को क्या हुआ हासिल?

ब्रिक्स में शामिल होने के लिए लगभग बीस राष्ट्र कतार में हैं, जिनमें तुर्की, मैक्सिको और पाकिस्तान शामिल हैं

कज़ान एक्सपो सेंटर में 16वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक फैमली पिक्चर में.
कज़ान एक्सपो सेंटर में 16वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक फैमली पिक्चर में. (PIB)
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By Major General Harsha Kakar

Published : 2 hours ago

नई दिल्ली: रूस के कजान में 16वें ब्रिक्स+ शिखर सम्मेलन का अंतिम आयोजन आउटरीच कार्यक्रम था. इस सम्मेलन में सिर्फ संगठन के सदस्य ही नहीं, बल्कि इसके साथ अपने संबंधों को बढ़ाने के इच्छुक देश भी शामिल थे. तब तक प्रधानमंत्री मोदी वहां से जा चुके थे. उनके जाने के बाद भारत का प्रतिनिधित्व विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने किया.

इसमें कुल 36 देशों ने भाग लिया. इसमें कुल 22 देशों के राष्ट्राध्यक्षों शामिल हुए, जिनमें तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोआन भी थे, जिनके ब्रिक्स में शामिल होने के प्रयास को भारत ने रोक दिया था. भारत वर्तमान में पाकिस्तान के करीबी किसी भी देश को संगठन में शामिल होने की अनुमति देने के लिए तैयार नहीं है.

रूस में इस तरह की बैठक अपने आप में उल्लेखनीय है, क्योंकि रूस यूक्रेन पर आक्रमण के लिए पश्चिमी प्रतिबंधों का सामना कर रहा है और जिसके नेता के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) की ओर से गिरफ्तारी वारंट जारी है. शिखर सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र महासचिव की मौजूदगी ने रूस की प्रतिष्ठा को बढ़ाया, साथ ही यूक्रेन को भी नाराज किया. इसके बाद यूक्रेन ने महासचिव की कीव यात्रा को अस्वीकार कर दिया.

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कजान में ब्रिक्स नेताओं के लिए आयोजित रात्रिभोज में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वागत किया.
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कजान में ब्रिक्स नेताओं के लिए आयोजित रात्रिभोज में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वागत किया. (PIB)

समूह ने यूक्रेन संघर्ष पर बमुश्किल चर्चा की, लेकिन इजराइल की कार्रवाइयों की आलोचना की. कजान में फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास की मौजूदगी से इसे बढ़ावा मिला. प्रधानमंत्री मोदी शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठकों को नजरअंदाज करते हैं, लेकिन सभी ब्रिक्स शिखर सम्मेलनों में भाग लेते हैं, जिसका अर्थ है कि भारत चीन के प्रभुत्व वाली किसी भी संस्था में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए तैयार नहीं है.

ब्रिक्स सदस्यों की संख्या में इजाफा
ब्रिक्स अपने पहले के पांच राष्ट्रों के समूह से बढ़कर नौ हो गया है. इसमें शामिल होने के लिए लगभग बीस राष्ट्र कतार में हैं, जिनमें तुर्की, मैक्सिको और पाकिस्तान शामिल हैं, जिनमें से कई अमेरिका के करीबी सहयोगी हैं. इसमें वर्तमान में दुनिया की 46 फीसदी आबादी और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 35 प्रतित शामिल है. इसके प्रतिद्वंद्वी, जी7 में वैश्विक आबादी का 8 प्रतिशत और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 30 पर्सेंट हिस्सा है. ब्रिक्स के पास दुनिया के तेल उत्पादन का 40 प्रतिशत भी है. विडंबना यह है कि तेल के दो सबसे बड़े आयातक, भारत और चीन, संगठन के सदस्य हैं.

ब्रिक्स इस मामले में उल्लेखनीय है कि जी7 के विपरीत, जहां सभी देश अमेरिकी नेतृत्व वाली सुरक्षा संस्थाओं के सदस्य हैं और एससीओ, जहां दो को छोड़कर सभी चीनी बीआरआई के सदस्य हैं, इसमें स्वतंत्र विचारों वाले देश हैं. ब्रिक्स ने अपना खुद का बैंक, न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) भी स्थापित किया है, जो आईएमएफ का मुकाबला करता है, जहां इसके गठन के भागीदार समान शेयरधारक हैं.

मोदी-शी की मुलाकात
भारत के लिए कजान शिखर सम्मेलन में कई बातें सामने आईं. सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि लद्दाख में चल रहे गतिरोध के समाधान के बाद मोदी-शी की मुलाकात हुई. इस बैठक ने संबंधों को सामान्य बनाने का मार्ग प्रशस्त किया, हालांकि, विश्वास की कमी को दूर करने में समय लगेगा. रिपोर्टों के अनुसार, LAC पर पहले से ही सकारात्मक हलचल है. भारत द्वारा चीन के साथ संबंधों को सामान्य बनाने से चीन विरोधी समूहों, जैसे कि QUAD पर असर पड़ सकता है, जो चीन को चुनौती देने के लिए भारतीय समर्थन पर निर्भर हैं.

पीएम मोदी ने पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ द्विपक्षीय बैठक की
पीएम मोदी ने पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ द्विपक्षीय बैठक की (PIB)

प्रधानमंत्री ने शिखर सम्मेलन के दो सत्रों को संबोधित किया. उन्होंने चुनौतियों से निपटने के लिए ब्रिक्स द्वारा जन-केंद्रित दृष्टिकोण और ‘आतंकवाद के खतरे से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र में अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर एक व्यापक सम्मेलन को जल्द से जल्द अपनाने पर बात की. भारत के लिए आतंकवाद एक बड़ी चिंता का विषय है. प्रधानमंत्री मोदी ने वैश्विक दक्षिण की प्रधानता पर भी जोर दिया. भारत और चीन दोनों ही वैश्विक दक्षिण के नेतृत्व के लिए होड़ कर रहे हैं. कोई भी देश जब वैश्विक दक्षिण का अपना शिखर सम्मेलन आयोजित करता है तो दूसरे को आमंत्रित नहीं करता है.

भारत पर रूस और अमेरिका को भरोसा
रूस-भारत शिखर सम्मेलन की एक और बड़ी उपलब्धि यह थी कि जहां प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति पुतिन ने अन्य विषयों के अलावा यूक्रेन संघर्ष के समाधान पर चर्चा की होगी. निकट भविष्य में भारत इसके समाधान में प्रमुख भूमिका निभा सकता है क्योंकि यह एकमात्र ऐसा देश है जिस पर रूस और अमेरिका दोनों का भरोसा है, जो संघर्ष पर दो मुख्य निर्णयकर्ता हैं. यहां तक​कि यूक्रेन, जो पुतिन के साथ किसी भी बैठक पर नियमित रूप से आपत्ति जताता है, भारत की स्थिति से अवगत है. रूस-भारत की वर्तमान बातचीत पर जेलेंस्की की ओर से कोई टिप्पणी नहीं की गई.

हाल के महीनों में यह दूसरा भारत-रूस शिखर सम्मेलन था, जिसने यह संदेश दिया कि भारत रूस पर पश्चिमी प्रतिबंधों को स्वीकार नहीं करता. प्रधानमंत्री मोदी ने पुतिन को अगले साल अपनी वार्षिक द्विपक्षीय बैठक के लिए भारत आमंत्रित करके पुष्टि की कि आईसीसी द्वारा जारी किए गए सम्मन का भारत के लिए कोई महत्व नहीं है.

प्रधानमंत्री मोदी की दूसरी महत्वपूर्ण द्विपक्षीय वार्ता ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन के साथ हुई. दोनों नेताओं ने मध्य पूर्व पर चर्चा की. भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री के अनुसार पेजेशकियन ने क्षेत्र में शांति और सद्भाव की आवश्यकता पर जोर दिया और कहा कि भारत सभी पक्षों के साथ अपने अच्छे संबंधों के कारण संघर्ष को कम करने में भूमिका निभा सकता है.

वर्तमान में भारत में फिलिस्तीनी, लेबनानी और इजराइली राजदूत इस बात का उल्लेख कर रहे हैं कि भारत को इस क्षेत्र में एक प्रमुख भूमिका निभानी है. भारत ने संघर्ष पर टिप्पणी करने से परहेज किया है. हालांकि, उसने दो मुद्दों पर अपनी चिंताओं का उल्लेख किया है. पहला इजराइल के खिलाफ आतंकवाद और इजराइल द्वारा निर्दोष नागरिकों की हत्या.

भारत का भू-राजनीतिक वजन बढ़ेगा
चीन के साथ अपने मतभेदों को सुलझाकर भारत एक अप्रिय भू-राजनीतिक स्थिति में है. इसके दोनों समूहों, रूस-चीन और अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिम के साथ संबंध हैं. संभवत, निकट भविष्य में रूस-भारत-चीन (RIC) त्रिपक्षीय को पुनर्जीवित किया जा सकता है, जिससे भारत का भू-राजनीतिक वजन बढ़ेगा. पश्चिम के लिए, भारत एक प्रमुख व्यापारिक साझेदार है, जिसकी अर्थव्यवस्था बढ़ रही है और बाजार भी बहुत बड़ा है, एक ऐसा देश जिसे वे अपने साथ रखना चाहेंगे. कनाडा के अलावा, कोई भी पश्चिमी देश ऐसा नहीं है, जो भारत के साथ अपने संबंधों को बढ़ाना नहीं चाहता हो.

वहीं, कुछ लोगों का मानना है कि ईरान, रूस और चीन के साथ भारत के संबंध अमेरिका के साथ उसके संबंधों में बाधा बन सकते हैं, लेकिन सच यह है कि भारत पश्चिम और यूरोप, मध्य पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया में संघर्षों के बीच एक पुल है. जैसा कि पीएम मोदी ने सही कहा था कि ब्रिक्स पश्चिम विरोधी नहीं बल्कि गैर-पश्चिम है. भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता का लाभ उठाते हुए कभी भी किसी पश्चिम विरोधी गठबंधन में शामिल नहीं होगा, लेकिन पश्चिम से समर्थन पाने के लिए अपने किसी सहयोगी की आलोचना भी नहीं करेगा. यह भारत की ताकत है.

भारत से अमेरिका को मिलने वाला एक और सूक्ष्म संदेश यह है कि नई दिल्ली के कई सहयोगी हैं और उस पर दबाव बनाने की कोशिशें निरर्थक होंगी. भारत ने अपने पश्चिमी संबंधों को प्रदर्शित करते हुए अब तक डी-डॉलराइजेशन का समर्थन नहीं किया है, लेकिन भविष्य में अगर इसे हल्के में लिया जाता है तो वह ऐसा कर सकता है, जबकि ट्रंप ने डॉलर की अनदेखी करने की स्थिति में 100 फीसदी टैरिफ लगाने की धमकी दी है, लेकिन सच यह है कि अगर इसे अधिकांश लोग अपना लेते हैं, तो अमेरिका के लिए यह मुश्किल हो सकता है.

यह भी पढ़ें- NEP-2020: उच्च शिक्षण संस्थानों में मल्टीपल एंट्री मल्टीपल एग्जिट को लागू करना कठिन, जानें बाधाएं

नई दिल्ली: रूस के कजान में 16वें ब्रिक्स+ शिखर सम्मेलन का अंतिम आयोजन आउटरीच कार्यक्रम था. इस सम्मेलन में सिर्फ संगठन के सदस्य ही नहीं, बल्कि इसके साथ अपने संबंधों को बढ़ाने के इच्छुक देश भी शामिल थे. तब तक प्रधानमंत्री मोदी वहां से जा चुके थे. उनके जाने के बाद भारत का प्रतिनिधित्व विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने किया.

इसमें कुल 36 देशों ने भाग लिया. इसमें कुल 22 देशों के राष्ट्राध्यक्षों शामिल हुए, जिनमें तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोआन भी थे, जिनके ब्रिक्स में शामिल होने के प्रयास को भारत ने रोक दिया था. भारत वर्तमान में पाकिस्तान के करीबी किसी भी देश को संगठन में शामिल होने की अनुमति देने के लिए तैयार नहीं है.

रूस में इस तरह की बैठक अपने आप में उल्लेखनीय है, क्योंकि रूस यूक्रेन पर आक्रमण के लिए पश्चिमी प्रतिबंधों का सामना कर रहा है और जिसके नेता के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) की ओर से गिरफ्तारी वारंट जारी है. शिखर सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र महासचिव की मौजूदगी ने रूस की प्रतिष्ठा को बढ़ाया, साथ ही यूक्रेन को भी नाराज किया. इसके बाद यूक्रेन ने महासचिव की कीव यात्रा को अस्वीकार कर दिया.

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कजान में ब्रिक्स नेताओं के लिए आयोजित रात्रिभोज में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वागत किया.
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कजान में ब्रिक्स नेताओं के लिए आयोजित रात्रिभोज में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वागत किया. (PIB)

समूह ने यूक्रेन संघर्ष पर बमुश्किल चर्चा की, लेकिन इजराइल की कार्रवाइयों की आलोचना की. कजान में फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास की मौजूदगी से इसे बढ़ावा मिला. प्रधानमंत्री मोदी शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठकों को नजरअंदाज करते हैं, लेकिन सभी ब्रिक्स शिखर सम्मेलनों में भाग लेते हैं, जिसका अर्थ है कि भारत चीन के प्रभुत्व वाली किसी भी संस्था में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए तैयार नहीं है.

ब्रिक्स सदस्यों की संख्या में इजाफा
ब्रिक्स अपने पहले के पांच राष्ट्रों के समूह से बढ़कर नौ हो गया है. इसमें शामिल होने के लिए लगभग बीस राष्ट्र कतार में हैं, जिनमें तुर्की, मैक्सिको और पाकिस्तान शामिल हैं, जिनमें से कई अमेरिका के करीबी सहयोगी हैं. इसमें वर्तमान में दुनिया की 46 फीसदी आबादी और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 35 प्रतित शामिल है. इसके प्रतिद्वंद्वी, जी7 में वैश्विक आबादी का 8 प्रतिशत और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 30 पर्सेंट हिस्सा है. ब्रिक्स के पास दुनिया के तेल उत्पादन का 40 प्रतिशत भी है. विडंबना यह है कि तेल के दो सबसे बड़े आयातक, भारत और चीन, संगठन के सदस्य हैं.

ब्रिक्स इस मामले में उल्लेखनीय है कि जी7 के विपरीत, जहां सभी देश अमेरिकी नेतृत्व वाली सुरक्षा संस्थाओं के सदस्य हैं और एससीओ, जहां दो को छोड़कर सभी चीनी बीआरआई के सदस्य हैं, इसमें स्वतंत्र विचारों वाले देश हैं. ब्रिक्स ने अपना खुद का बैंक, न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) भी स्थापित किया है, जो आईएमएफ का मुकाबला करता है, जहां इसके गठन के भागीदार समान शेयरधारक हैं.

मोदी-शी की मुलाकात
भारत के लिए कजान शिखर सम्मेलन में कई बातें सामने आईं. सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि लद्दाख में चल रहे गतिरोध के समाधान के बाद मोदी-शी की मुलाकात हुई. इस बैठक ने संबंधों को सामान्य बनाने का मार्ग प्रशस्त किया, हालांकि, विश्वास की कमी को दूर करने में समय लगेगा. रिपोर्टों के अनुसार, LAC पर पहले से ही सकारात्मक हलचल है. भारत द्वारा चीन के साथ संबंधों को सामान्य बनाने से चीन विरोधी समूहों, जैसे कि QUAD पर असर पड़ सकता है, जो चीन को चुनौती देने के लिए भारतीय समर्थन पर निर्भर हैं.

पीएम मोदी ने पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ द्विपक्षीय बैठक की
पीएम मोदी ने पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ द्विपक्षीय बैठक की (PIB)

प्रधानमंत्री ने शिखर सम्मेलन के दो सत्रों को संबोधित किया. उन्होंने चुनौतियों से निपटने के लिए ब्रिक्स द्वारा जन-केंद्रित दृष्टिकोण और ‘आतंकवाद के खतरे से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र में अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर एक व्यापक सम्मेलन को जल्द से जल्द अपनाने पर बात की. भारत के लिए आतंकवाद एक बड़ी चिंता का विषय है. प्रधानमंत्री मोदी ने वैश्विक दक्षिण की प्रधानता पर भी जोर दिया. भारत और चीन दोनों ही वैश्विक दक्षिण के नेतृत्व के लिए होड़ कर रहे हैं. कोई भी देश जब वैश्विक दक्षिण का अपना शिखर सम्मेलन आयोजित करता है तो दूसरे को आमंत्रित नहीं करता है.

भारत पर रूस और अमेरिका को भरोसा
रूस-भारत शिखर सम्मेलन की एक और बड़ी उपलब्धि यह थी कि जहां प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति पुतिन ने अन्य विषयों के अलावा यूक्रेन संघर्ष के समाधान पर चर्चा की होगी. निकट भविष्य में भारत इसके समाधान में प्रमुख भूमिका निभा सकता है क्योंकि यह एकमात्र ऐसा देश है जिस पर रूस और अमेरिका दोनों का भरोसा है, जो संघर्ष पर दो मुख्य निर्णयकर्ता हैं. यहां तक​कि यूक्रेन, जो पुतिन के साथ किसी भी बैठक पर नियमित रूप से आपत्ति जताता है, भारत की स्थिति से अवगत है. रूस-भारत की वर्तमान बातचीत पर जेलेंस्की की ओर से कोई टिप्पणी नहीं की गई.

हाल के महीनों में यह दूसरा भारत-रूस शिखर सम्मेलन था, जिसने यह संदेश दिया कि भारत रूस पर पश्चिमी प्रतिबंधों को स्वीकार नहीं करता. प्रधानमंत्री मोदी ने पुतिन को अगले साल अपनी वार्षिक द्विपक्षीय बैठक के लिए भारत आमंत्रित करके पुष्टि की कि आईसीसी द्वारा जारी किए गए सम्मन का भारत के लिए कोई महत्व नहीं है.

प्रधानमंत्री मोदी की दूसरी महत्वपूर्ण द्विपक्षीय वार्ता ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन के साथ हुई. दोनों नेताओं ने मध्य पूर्व पर चर्चा की. भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री के अनुसार पेजेशकियन ने क्षेत्र में शांति और सद्भाव की आवश्यकता पर जोर दिया और कहा कि भारत सभी पक्षों के साथ अपने अच्छे संबंधों के कारण संघर्ष को कम करने में भूमिका निभा सकता है.

वर्तमान में भारत में फिलिस्तीनी, लेबनानी और इजराइली राजदूत इस बात का उल्लेख कर रहे हैं कि भारत को इस क्षेत्र में एक प्रमुख भूमिका निभानी है. भारत ने संघर्ष पर टिप्पणी करने से परहेज किया है. हालांकि, उसने दो मुद्दों पर अपनी चिंताओं का उल्लेख किया है. पहला इजराइल के खिलाफ आतंकवाद और इजराइल द्वारा निर्दोष नागरिकों की हत्या.

भारत का भू-राजनीतिक वजन बढ़ेगा
चीन के साथ अपने मतभेदों को सुलझाकर भारत एक अप्रिय भू-राजनीतिक स्थिति में है. इसके दोनों समूहों, रूस-चीन और अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिम के साथ संबंध हैं. संभवत, निकट भविष्य में रूस-भारत-चीन (RIC) त्रिपक्षीय को पुनर्जीवित किया जा सकता है, जिससे भारत का भू-राजनीतिक वजन बढ़ेगा. पश्चिम के लिए, भारत एक प्रमुख व्यापारिक साझेदार है, जिसकी अर्थव्यवस्था बढ़ रही है और बाजार भी बहुत बड़ा है, एक ऐसा देश जिसे वे अपने साथ रखना चाहेंगे. कनाडा के अलावा, कोई भी पश्चिमी देश ऐसा नहीं है, जो भारत के साथ अपने संबंधों को बढ़ाना नहीं चाहता हो.

वहीं, कुछ लोगों का मानना है कि ईरान, रूस और चीन के साथ भारत के संबंध अमेरिका के साथ उसके संबंधों में बाधा बन सकते हैं, लेकिन सच यह है कि भारत पश्चिम और यूरोप, मध्य पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया में संघर्षों के बीच एक पुल है. जैसा कि पीएम मोदी ने सही कहा था कि ब्रिक्स पश्चिम विरोधी नहीं बल्कि गैर-पश्चिम है. भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता का लाभ उठाते हुए कभी भी किसी पश्चिम विरोधी गठबंधन में शामिल नहीं होगा, लेकिन पश्चिम से समर्थन पाने के लिए अपने किसी सहयोगी की आलोचना भी नहीं करेगा. यह भारत की ताकत है.

भारत से अमेरिका को मिलने वाला एक और सूक्ष्म संदेश यह है कि नई दिल्ली के कई सहयोगी हैं और उस पर दबाव बनाने की कोशिशें निरर्थक होंगी. भारत ने अपने पश्चिमी संबंधों को प्रदर्शित करते हुए अब तक डी-डॉलराइजेशन का समर्थन नहीं किया है, लेकिन भविष्य में अगर इसे हल्के में लिया जाता है तो वह ऐसा कर सकता है, जबकि ट्रंप ने डॉलर की अनदेखी करने की स्थिति में 100 फीसदी टैरिफ लगाने की धमकी दी है, लेकिन सच यह है कि अगर इसे अधिकांश लोग अपना लेते हैं, तो अमेरिका के लिए यह मुश्किल हो सकता है.

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