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आर्थिक संकट में मालदीव, मदद के लिए सामने आया भारत, चीन छूटा पीछे

मालदीव आर्थिक संकट से जूझ रहा है. ऐसे में उसकी सबसे बड़ी मदद भारत कर रहा है, न कि चीन.

Muizzu, Modi
मालदीव के राष्ट्रपति मो. मुइज्जू, भारत के पीएम नरेंद्र मोदी (PIB)
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By Aroonim Bhuyan

Published : Nov 2, 2024, 2:18 PM IST

मालदीव और भारत के बीच रिश्ते फिर से सुधरने लगे हैं. पिछले साल हिंद महासागर द्वीपसमूह मालदीव के साथ संबंध बिगड़ गए थे. इसके पीछे की वजह थी मोहम्मद मुइज्जू का इंडिया आउट कैंपेन. लेकिन उसी मुइज्जू सरकार का अब अनुमान है कि उसे 2025 में अपने प्रस्तावित बजट के लिए भारत से सबसे बड़ी आर्थिक मदद मिलेगी. उसे उम्मीद है कि भारत 104 मि. डॉलर की सहायता करेगा.

मालदीव के लिए यह राशि काफी मायने रखती है. मालदीव को अपने सभी विदेशी मित्र देशों से जितनी सहायता मिलने की उम्मीद है, उसका 72 फीसदी भारत दे रहा है. मालदीव को कुल 2.5 बि. का विदेशी ग्रांट मिलने की उम्मीद है.

मालदीव की समाचार वेबसाइट एडिशन डॉट एमवी की एक रिपोर्ट के अनुसार, चीन मालदीव के लिए दूसरा सबसे बड़ा विदेशी सहायता दाता बनेगा, इसके बाद जापान का नंबर आता है. जापान 47 मि. डॉलर की मदद करेगा. रिपोर्ट में बताया गया है कि पाकिस्तान, इटली, सऊदी अरब और नीदरलैंड भी मालदीव को सहायता करेगा.

लेकिन सबसे अहम रिश्ता भारत के साथ है. पिछले साल नवबंर में दोनों के बीच रिश्ते गर्त में चले गए थे. मुइज्जू ने राष्ट्रपति के चुनाव में इंडिया आउट का कैंपेन चलाया था. उन्होंने मालदीव में मौजूद भारतीय सैनिकों को हटाने का संकल्प लिया. हालांकि, उनकी संख्या 100 के आसपास ही थी और वो भी मानवीय सहायता के लिए मौजूद थे. राष्ट्रपति बनने के बाद मुइज्जू ने औपचारिक रूप से भारत से इसके लिए अनुरोध भी किया. जवाब में भारत ने अपने सैनिकों को वापस बुला लिया. अब इन सैनिकों की जगह पर भारत ने सिविलियंस को तैनात किया है.

जब से मुइज्जू राष्ट्रपति बने हैं, उनकी विदेश नीति लगातार बदलती रही है. शपथ ग्रहण के बाद सबसे पहले उन्होंने अपनी विदेश यात्रा के लिए तुर्की को चुना. जबकि इसके पहले आम तौर पर वहां के राष्ट्रपति पहली विदेश यात्रा के लिए भारत को चुनते थे.

उनकी सरकार ने इंडियन हाइड्रोग्राफी एग्रीमेंट को भारत के साथ आगे बढ़ाने से इनकार कर दिया. सुरक्षा का हवाला देकर मालदीव ने अपने जलक्षेत्र में चीनी नौसेना को आने की इजाजत प्रदान कर दी. भारत ने इसका विरोध भी किया था. इसके बाद मालदीव के एक मंत्री ने पीएम मोदी पर उस समय टिप्पणी कर दी, जब पीएम पर्यटन को लेकर भारतीय द्वीपों को बढ़ावा देने की बात कर रहे थे. पर, बहुत जल्द मालदीव को अपनी गलती का अहसास हो गया.

मुइज्जू ने इसी साल मार्च महीने में भारत को फिर से अपना सबसे गहरा दोस्त बताया. उन्होंने उम्मीद जताई कि नई दिल्ली उनका कर्ज कम करने में मदद करेगा. मुइज्जू ने एक इंटरव्यू में बताया कि वह कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाएगा, जिससे भारत और मालदीव के बीच रिश्ते खराब हों.

उन्होंने कहा कि किसी एक के साथ संबंध बरकरार रखने के लिए हम दूसरे की तौहीन नहीं कर सकते हैं. मुइज्जू ने यह भी कहा कि उन्हें उम्मीद है कि भारत कर्ज चुकाने के लिए मालदीव सरकार को बाध्य नहीं करेगा. भारत ने उनके अनुरोध को स्वीकार कर लिया.

गुडविल जेस्चर के तहत मुइज्जू को पीएम मोदी के शपथ ग्रहण कार्यक्रम में आमंत्रित भी किया गया था. रिश्तों में गर्माहट आगे भी जारी रही. मोदी सरकार ने जब अपना बजट पेश किया, तब उन्होंने मालदीव के लिए जो राशि निर्धारित कर रखी थी, उसे यथावत रखा. मालदीव की सहायता के लिए 400 करोड़ की राशि निर्धारित की गई थी.

अगस्त महीने में विदेश मंत्री एस जयशंकर मालदीव गए थे. वहां पर उन्होंने भारत की सहायता से बनाए गए ढांचागत योजनाओं का उद्घाटन भी किया. अक्टूबर महीने में मुइज्जू खुद भारत आए. उन्होंने पीएम मोदी के साथ आमने-सामने बैठकर द्विपक्षीय स्तर की बातचीत की. दोनों देशों ने रक्षा और सुरक्षा को लेकर समझौतों पर हस्ताक्षर किए. दोनों देशों ने व्यापक आर्थिक और समुद्री सुरक्षा साझेदारी के लिए एक साझा दृष्टिकोण तैयार किया.

इस दस्तावेज में बताया गया है कि आपसी सहयोग के लिए मिलकर काम करने का यह सही समय है. हमें आर्थिक और मैरिटाइम सुरक्षा भागीदार के तौर पर आगे बढ़ना है. हमारे केंद्र में दोनों देशों की जनता होगी. इसकी मदद से हिंद महासागर क्षेत्र में शांति लाने में भी मदद मिलेगी.

भारत सितंबर में देय 50 मिलियन डॉलर के रोलओवर पर सहमत हो चुका है. अक्टूबर में मुइज्जू की यात्रा के दौरान 400 मिलियन डॉलर और 30 बिलियन डॉलर के मुद्रा विनिमय समझौते पर भी सहमति बन गई थी.

मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान के प्रो. आनंद कुमार ने ईटीवी भारत से कहा कि मुइज्जू अपने देश की आर्थिक वास्तविकताओं के अनुसार अपनी नीतियों को समायोजित करने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि भारत मालदीव को आर्थिक संकट से उबारने के लिए जो भी संभव कदम है, उसे उठा रहा है, हम पड़ोसी प्रथम की नीति पर आगे बढ़ रहे हैं.

उनके अनुसार इस नीति के तहत कुछ बिंदु इस प्रकार हैं - संघर्षों को हल करके और विवादों को बढ़ने से रोककर क्षेत्र में शांति और स्थिरता सुनिश्चित करना. आपसी वृद्धि और विकास को बढ़ावा देने के लिए पड़ोसी देशों के साथ आर्थिक सहयोग और एकीकरण को बढ़ावा देना. व्यापार और लोगों से लोगों के बीच संपर्क को सुविधाजनक बनाने के लिए सड़क, रेलवे और बंदरगाहों जैसी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के माध्यम से कनेक्टिविटी बढ़ाना. शैक्षिक आदान-प्रदान, पर्यटन और सांस्कृतिक कूटनीति के माध्यम से सांस्कृतिक और लोगों से लोगों के संबंधों को मजबूत करना. आम क्षेत्रीय चुनौतियों से निपटने के लिए दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) और बंगाल की खाड़ी बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग पहल (बिम्सटेक) जैसे क्षेत्रीय मंचों और संगठनों में शामिल होना.

अब तो मालदीव की सेना ने भारतीय सेनाओं के साथ संयुक्त प्रशिक्षण अभ्यास शुरू कर दिया है. मालदीव में भारतीय उच्चायोग ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर घोषणा की कि 'एकथा' अभ्यास का सातवां संस्करण जारी है. उच्चायोग ने इस बात पर प्रकाश डाला कि इस अभ्यास का उद्देश्य साझा समुद्री चुनौतियों से निपटने में दोनों देशों के बीच सहयोग को गहरा करना है.

ये भी पढ़ें : भारत-मालदीव संबंधों में एक 'नया अध्याय'

मालदीव और भारत के बीच रिश्ते फिर से सुधरने लगे हैं. पिछले साल हिंद महासागर द्वीपसमूह मालदीव के साथ संबंध बिगड़ गए थे. इसके पीछे की वजह थी मोहम्मद मुइज्जू का इंडिया आउट कैंपेन. लेकिन उसी मुइज्जू सरकार का अब अनुमान है कि उसे 2025 में अपने प्रस्तावित बजट के लिए भारत से सबसे बड़ी आर्थिक मदद मिलेगी. उसे उम्मीद है कि भारत 104 मि. डॉलर की सहायता करेगा.

मालदीव के लिए यह राशि काफी मायने रखती है. मालदीव को अपने सभी विदेशी मित्र देशों से जितनी सहायता मिलने की उम्मीद है, उसका 72 फीसदी भारत दे रहा है. मालदीव को कुल 2.5 बि. का विदेशी ग्रांट मिलने की उम्मीद है.

मालदीव की समाचार वेबसाइट एडिशन डॉट एमवी की एक रिपोर्ट के अनुसार, चीन मालदीव के लिए दूसरा सबसे बड़ा विदेशी सहायता दाता बनेगा, इसके बाद जापान का नंबर आता है. जापान 47 मि. डॉलर की मदद करेगा. रिपोर्ट में बताया गया है कि पाकिस्तान, इटली, सऊदी अरब और नीदरलैंड भी मालदीव को सहायता करेगा.

लेकिन सबसे अहम रिश्ता भारत के साथ है. पिछले साल नवबंर में दोनों के बीच रिश्ते गर्त में चले गए थे. मुइज्जू ने राष्ट्रपति के चुनाव में इंडिया आउट का कैंपेन चलाया था. उन्होंने मालदीव में मौजूद भारतीय सैनिकों को हटाने का संकल्प लिया. हालांकि, उनकी संख्या 100 के आसपास ही थी और वो भी मानवीय सहायता के लिए मौजूद थे. राष्ट्रपति बनने के बाद मुइज्जू ने औपचारिक रूप से भारत से इसके लिए अनुरोध भी किया. जवाब में भारत ने अपने सैनिकों को वापस बुला लिया. अब इन सैनिकों की जगह पर भारत ने सिविलियंस को तैनात किया है.

जब से मुइज्जू राष्ट्रपति बने हैं, उनकी विदेश नीति लगातार बदलती रही है. शपथ ग्रहण के बाद सबसे पहले उन्होंने अपनी विदेश यात्रा के लिए तुर्की को चुना. जबकि इसके पहले आम तौर पर वहां के राष्ट्रपति पहली विदेश यात्रा के लिए भारत को चुनते थे.

उनकी सरकार ने इंडियन हाइड्रोग्राफी एग्रीमेंट को भारत के साथ आगे बढ़ाने से इनकार कर दिया. सुरक्षा का हवाला देकर मालदीव ने अपने जलक्षेत्र में चीनी नौसेना को आने की इजाजत प्रदान कर दी. भारत ने इसका विरोध भी किया था. इसके बाद मालदीव के एक मंत्री ने पीएम मोदी पर उस समय टिप्पणी कर दी, जब पीएम पर्यटन को लेकर भारतीय द्वीपों को बढ़ावा देने की बात कर रहे थे. पर, बहुत जल्द मालदीव को अपनी गलती का अहसास हो गया.

मुइज्जू ने इसी साल मार्च महीने में भारत को फिर से अपना सबसे गहरा दोस्त बताया. उन्होंने उम्मीद जताई कि नई दिल्ली उनका कर्ज कम करने में मदद करेगा. मुइज्जू ने एक इंटरव्यू में बताया कि वह कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाएगा, जिससे भारत और मालदीव के बीच रिश्ते खराब हों.

उन्होंने कहा कि किसी एक के साथ संबंध बरकरार रखने के लिए हम दूसरे की तौहीन नहीं कर सकते हैं. मुइज्जू ने यह भी कहा कि उन्हें उम्मीद है कि भारत कर्ज चुकाने के लिए मालदीव सरकार को बाध्य नहीं करेगा. भारत ने उनके अनुरोध को स्वीकार कर लिया.

गुडविल जेस्चर के तहत मुइज्जू को पीएम मोदी के शपथ ग्रहण कार्यक्रम में आमंत्रित भी किया गया था. रिश्तों में गर्माहट आगे भी जारी रही. मोदी सरकार ने जब अपना बजट पेश किया, तब उन्होंने मालदीव के लिए जो राशि निर्धारित कर रखी थी, उसे यथावत रखा. मालदीव की सहायता के लिए 400 करोड़ की राशि निर्धारित की गई थी.

अगस्त महीने में विदेश मंत्री एस जयशंकर मालदीव गए थे. वहां पर उन्होंने भारत की सहायता से बनाए गए ढांचागत योजनाओं का उद्घाटन भी किया. अक्टूबर महीने में मुइज्जू खुद भारत आए. उन्होंने पीएम मोदी के साथ आमने-सामने बैठकर द्विपक्षीय स्तर की बातचीत की. दोनों देशों ने रक्षा और सुरक्षा को लेकर समझौतों पर हस्ताक्षर किए. दोनों देशों ने व्यापक आर्थिक और समुद्री सुरक्षा साझेदारी के लिए एक साझा दृष्टिकोण तैयार किया.

इस दस्तावेज में बताया गया है कि आपसी सहयोग के लिए मिलकर काम करने का यह सही समय है. हमें आर्थिक और मैरिटाइम सुरक्षा भागीदार के तौर पर आगे बढ़ना है. हमारे केंद्र में दोनों देशों की जनता होगी. इसकी मदद से हिंद महासागर क्षेत्र में शांति लाने में भी मदद मिलेगी.

भारत सितंबर में देय 50 मिलियन डॉलर के रोलओवर पर सहमत हो चुका है. अक्टूबर में मुइज्जू की यात्रा के दौरान 400 मिलियन डॉलर और 30 बिलियन डॉलर के मुद्रा विनिमय समझौते पर भी सहमति बन गई थी.

मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान के प्रो. आनंद कुमार ने ईटीवी भारत से कहा कि मुइज्जू अपने देश की आर्थिक वास्तविकताओं के अनुसार अपनी नीतियों को समायोजित करने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि भारत मालदीव को आर्थिक संकट से उबारने के लिए जो भी संभव कदम है, उसे उठा रहा है, हम पड़ोसी प्रथम की नीति पर आगे बढ़ रहे हैं.

उनके अनुसार इस नीति के तहत कुछ बिंदु इस प्रकार हैं - संघर्षों को हल करके और विवादों को बढ़ने से रोककर क्षेत्र में शांति और स्थिरता सुनिश्चित करना. आपसी वृद्धि और विकास को बढ़ावा देने के लिए पड़ोसी देशों के साथ आर्थिक सहयोग और एकीकरण को बढ़ावा देना. व्यापार और लोगों से लोगों के बीच संपर्क को सुविधाजनक बनाने के लिए सड़क, रेलवे और बंदरगाहों जैसी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के माध्यम से कनेक्टिविटी बढ़ाना. शैक्षिक आदान-प्रदान, पर्यटन और सांस्कृतिक कूटनीति के माध्यम से सांस्कृतिक और लोगों से लोगों के संबंधों को मजबूत करना. आम क्षेत्रीय चुनौतियों से निपटने के लिए दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) और बंगाल की खाड़ी बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग पहल (बिम्सटेक) जैसे क्षेत्रीय मंचों और संगठनों में शामिल होना.

अब तो मालदीव की सेना ने भारतीय सेनाओं के साथ संयुक्त प्रशिक्षण अभ्यास शुरू कर दिया है. मालदीव में भारतीय उच्चायोग ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर घोषणा की कि 'एकथा' अभ्यास का सातवां संस्करण जारी है. उच्चायोग ने इस बात पर प्रकाश डाला कि इस अभ्यास का उद्देश्य साझा समुद्री चुनौतियों से निपटने में दोनों देशों के बीच सहयोग को गहरा करना है.

ये भी पढ़ें : भारत-मालदीव संबंधों में एक 'नया अध्याय'

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