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अमेरिकी चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत: भारत पर संभावित असर और विशेषज्ञों की राय

Donald Trump: अमेरिकी राष्ट्रपति पद पर डोनाल्ड ट्रंप की वापसी भारत के लिए कई मायनों में चुनौतियां और अवसर दोनों ला सकती है. जलवायु वित्त में कटौती के बावजूद, भारत को अपने स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को जारी रखना होगा. डॉ सीमा जावेद का लेख.

Donald Trump Victory in US election possible impact on India experts views
डोनाल्ड ट्रंप (AP)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 6, 2024, 6:12 PM IST

डोनाल्ड ट्रंप की अमेरिकी राष्ट्रपति पद पर वापसी से वैश्विक राजनीति और आर्थिक नीतियों में बड़ा बदलाव आने की संभावना है. भारत-अमेरिका संबंधों पर इसका महत्वपूर्ण प्रभाव हो सकता है, विशेषकर जलवायु नीति, व्यापार, और रक्षा सहयोग के क्षेत्रों में. भारतीय विशेषज्ञों ने ट्रंप की नीतियों के संभावित असर पर अपनी राय व्यक्त की है, जिसमें कई अवसरों के साथ-साथ चुनौतियों की भी आशंका जताई जा रही है.

जलवायु नीति पर असर: विशेषज्ञों का मत

ट्रंप के पहले कार्यकाल में अमेरिका पेरिस जलवायु समझौते से बाहर हो गया था, जिससे वैश्विक जलवायु सहयोग को झटका लगा था. इस बार भी उनकी नीतियों में जलवायु वित्त पोषण और स्वच्छ ऊर्जा निवेश को प्राथमिकता मिलने की संभावना कम है.

डॉ. अरुणाभा घोष, सीईईडब्ल्यू के सीईओ, का मानना है कि भारत को अपनी जलवायु और ऊर्जा नीतियों में रणनीतिक लचीलापन बनाए रखने की जरूरत होगी. उनके अनुसार, "अमेरिका में प्रस्तावित व्यापार प्रतिबंधों से भारतीय स्वच्छ तकनीकों पर असर पड़ सकता है. भारत अपने ऊर्जा संक्रमण को तेज करने के लिए स्वच्छ तकनीकों के विकास और हरित व्यापार को गहराई से अपनाने की ओर देख रहा है."

आरती खोसला, क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक, कहती हैं कि ट्रंप की जलवायु नीति, पिछली बार की तरह, सकारात्मक बदलावों में रुकावट डाल सकती है. उन्होंने कहा, "दुनिया जलवायु संकट के प्रभावों को झेल रही है, और इस बार ट्रंप के सत्ता में आने से वैश्विक जलवायु फाइनेंस में कटौती हो सकती है, जिससे विकासशील देशों के लिए अनिश्चितता बढ़ेगी."

व्यापार पर प्रभाव: संरक्षणवादी रुख की चुनौतियां

ट्रंप ने अपने पिछले कार्यकाल में भारत के साथ व्यापार असंतुलन पर नाराजगी जताई थी और कई भारतीय उत्पादों पर टैरिफ भी लगाए थे. उनकी संरक्षणवादी नीतियां एक बार फिर से भारत के निर्यात और आर्थिक हितों के लिए चुनौती साबित हो सकती हैं.

मंजीव पुरी, टेरी में विशिष्ट फेलो, का कहना है कि "भारत और अमेरिका के आर्थिक संबंध मजबूत हैं, लेकिन ट्रंप का व्यापार में संरक्षणवादी रुख भारत के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है. हालांकि, ऊर्जा और तकनीकी सहयोग जैसे क्षेत्रों में अवसर भी हैं, जिनका भारत को लाभ उठाना चाहिए."

रक्षा और इंडो-पैसिफिक रणनीति: विशेषज्ञों की राय

ट्रंप प्रशासन की कड़ी चीन नीति ने भारत को इंडो-पैसिफिक में अपनी स्थिति को मजबूत करने में मदद की है. विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप का दूसरा कार्यकाल इस क्षेत्र में भारत-अमेरिका सहयोग के लिए लाभकारी हो सकता है.

हरजीत सिंह, ग्लोबल एनगेजमेंट डायरेक्टर, Fossil Fuel Non-Proliferation Treaty Initiative, का कहना है कि "भारत और अमेरिका दोनों के लिए चीन का बढ़ता प्रभाव एक महत्वपूर्ण विषय है. ट्रंप के नेतृत्व में इंडो-पैसिफिक में सुरक्षा सहयोग बढ़ सकता है, जिससे भारत को रणनीतिक लाभ मिलेगा."

भारत के लिए आगे का रास्ता

डोनाल्ड ट्रंप की वापसी भारत के लिए कई मायनों में चुनौतियां और अवसर दोनों ला सकती है. जलवायु वित्त और तकनीकी साझेदारी में कटौती के बावजूद, भारत को अपने स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को जारी रखना होगा. वहीं, इंडो-पैसिफिक में चीन को संतुलित करने के लिए रक्षा और सुरक्षा सहयोग में मजबूती भी दोनों देशों के संबंधों को एक नया आयाम दे सकती है.

विशेषज्ञों की राय से स्पष्ट है कि ट्रंप की जीत भारत के लिए रणनीतिक धैर्य और कूटनीतिक संतुलन बनाए रखने की जरूरत को रेखांकित करती है, ताकि वह इन बदलती परिस्थितियों में अपनी प्राथमिकताओं को हासिल कर सके.

(लेखक- डॉ. सीमा जावेद - पर्यावरणविद & साइंस, जलवायु परिवर्तन & साफ ऊर्जा की कम्युनिकेशन विशेषज्ञ)

डोनाल्ड ट्रंप की अमेरिकी राष्ट्रपति पद पर वापसी से वैश्विक राजनीति और आर्थिक नीतियों में बड़ा बदलाव आने की संभावना है. भारत-अमेरिका संबंधों पर इसका महत्वपूर्ण प्रभाव हो सकता है, विशेषकर जलवायु नीति, व्यापार, और रक्षा सहयोग के क्षेत्रों में. भारतीय विशेषज्ञों ने ट्रंप की नीतियों के संभावित असर पर अपनी राय व्यक्त की है, जिसमें कई अवसरों के साथ-साथ चुनौतियों की भी आशंका जताई जा रही है.

जलवायु नीति पर असर: विशेषज्ञों का मत

ट्रंप के पहले कार्यकाल में अमेरिका पेरिस जलवायु समझौते से बाहर हो गया था, जिससे वैश्विक जलवायु सहयोग को झटका लगा था. इस बार भी उनकी नीतियों में जलवायु वित्त पोषण और स्वच्छ ऊर्जा निवेश को प्राथमिकता मिलने की संभावना कम है.

डॉ. अरुणाभा घोष, सीईईडब्ल्यू के सीईओ, का मानना है कि भारत को अपनी जलवायु और ऊर्जा नीतियों में रणनीतिक लचीलापन बनाए रखने की जरूरत होगी. उनके अनुसार, "अमेरिका में प्रस्तावित व्यापार प्रतिबंधों से भारतीय स्वच्छ तकनीकों पर असर पड़ सकता है. भारत अपने ऊर्जा संक्रमण को तेज करने के लिए स्वच्छ तकनीकों के विकास और हरित व्यापार को गहराई से अपनाने की ओर देख रहा है."

आरती खोसला, क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक, कहती हैं कि ट्रंप की जलवायु नीति, पिछली बार की तरह, सकारात्मक बदलावों में रुकावट डाल सकती है. उन्होंने कहा, "दुनिया जलवायु संकट के प्रभावों को झेल रही है, और इस बार ट्रंप के सत्ता में आने से वैश्विक जलवायु फाइनेंस में कटौती हो सकती है, जिससे विकासशील देशों के लिए अनिश्चितता बढ़ेगी."

व्यापार पर प्रभाव: संरक्षणवादी रुख की चुनौतियां

ट्रंप ने अपने पिछले कार्यकाल में भारत के साथ व्यापार असंतुलन पर नाराजगी जताई थी और कई भारतीय उत्पादों पर टैरिफ भी लगाए थे. उनकी संरक्षणवादी नीतियां एक बार फिर से भारत के निर्यात और आर्थिक हितों के लिए चुनौती साबित हो सकती हैं.

मंजीव पुरी, टेरी में विशिष्ट फेलो, का कहना है कि "भारत और अमेरिका के आर्थिक संबंध मजबूत हैं, लेकिन ट्रंप का व्यापार में संरक्षणवादी रुख भारत के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है. हालांकि, ऊर्जा और तकनीकी सहयोग जैसे क्षेत्रों में अवसर भी हैं, जिनका भारत को लाभ उठाना चाहिए."

रक्षा और इंडो-पैसिफिक रणनीति: विशेषज्ञों की राय

ट्रंप प्रशासन की कड़ी चीन नीति ने भारत को इंडो-पैसिफिक में अपनी स्थिति को मजबूत करने में मदद की है. विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप का दूसरा कार्यकाल इस क्षेत्र में भारत-अमेरिका सहयोग के लिए लाभकारी हो सकता है.

हरजीत सिंह, ग्लोबल एनगेजमेंट डायरेक्टर, Fossil Fuel Non-Proliferation Treaty Initiative, का कहना है कि "भारत और अमेरिका दोनों के लिए चीन का बढ़ता प्रभाव एक महत्वपूर्ण विषय है. ट्रंप के नेतृत्व में इंडो-पैसिफिक में सुरक्षा सहयोग बढ़ सकता है, जिससे भारत को रणनीतिक लाभ मिलेगा."

भारत के लिए आगे का रास्ता

डोनाल्ड ट्रंप की वापसी भारत के लिए कई मायनों में चुनौतियां और अवसर दोनों ला सकती है. जलवायु वित्त और तकनीकी साझेदारी में कटौती के बावजूद, भारत को अपने स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को जारी रखना होगा. वहीं, इंडो-पैसिफिक में चीन को संतुलित करने के लिए रक्षा और सुरक्षा सहयोग में मजबूती भी दोनों देशों के संबंधों को एक नया आयाम दे सकती है.

विशेषज्ञों की राय से स्पष्ट है कि ट्रंप की जीत भारत के लिए रणनीतिक धैर्य और कूटनीतिक संतुलन बनाए रखने की जरूरत को रेखांकित करती है, ताकि वह इन बदलती परिस्थितियों में अपनी प्राथमिकताओं को हासिल कर सके.

(लेखक- डॉ. सीमा जावेद - पर्यावरणविद & साइंस, जलवायु परिवर्तन & साफ ऊर्जा की कम्युनिकेशन विशेषज्ञ)

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