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महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध: केस मैनेजमेंट सिस्टम, समय पर न्याय दिलाने की कुंजी - Children Case Management System

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By Justice Madan Lokur

Published : Aug 27, 2024, 6:10 PM IST

Crime Against Women : कोलकाता में हुए रेप और हत्या की घटना ने एक बार फिर महिलाओं की सुरक्षा पर सवाल खड़े कर दिए हैं. ऐसा लगता है कि सालों बाद भी महिलाओं की सिक्योरिटी का मुद्दा ऐसे ही बना हुआ है, जैसे पहले होता था. इसमें अब तक कोई बदलाव नहीं आया है. आज भी महिलाओं के साथ रेप, छेड़छाड़ और हत्या जैसी घटनाएं हो रही हैं और पहले की ही तरह उनके खिलाफ लोगों सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं.

महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध
महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध (ANI)

हैदराबाद: कोलकाता में हुए रेप और हत्या की घटना ने एक बार फिर महिलाओं की सुरक्षा पर सवाल खड़ा कर दिया है. सालों बाद भी महिलाओं की सिक्योरिटी का मुद्दा ऐसे ही बना हुआ है, जैसे पहले होता था. इसमें अब तक कोई बदलाव नहीं आया है. आज भी महिलाओं के साथ रेप, छेड़छाड़ और हत्या जैसी घटनाएं हो रही हैं और पहले की ही तरह उनके खिलाफ लोगों सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं.

ऐसे में हो सकता है कि पब्लिसिटी और शोर-शराबे के बीच कोई योजना शुरू कर दी जाए, कुछ भाषण दे दिए जाएं, लेकिन जमीनी स्तर पर कुछ नहीं बदलेगा और महिलाओं को फिर से छेड़छाड़ करने वालों, पीछा करने वालों और बलात्कारियों से खुद की रक्षा करने के लिए छोड़ दिया जाएगा.

समाज में समाई है घरेलू हिंसा
घरेलू हिंसा हमारे समाज में गहराई से समाई हुई है और यह कभी-कभी सड़कों पर भी फैल जाती है. शहरों में सीसीटीवी कैमरों पर तस्वीरें कैद हो जाती हैं और दूर-दूर तक फैला दी जाती हैं, हम इन क्लिपों देखते है और फिर उसके बाद क्या? हम रोज ऐसे मामलों के बारे में पढ़ते हैं जिसमें एक लड़की किसी पुरुष के प्रपोजल को ठुकरा देती है और वह शख्स महिला पर अपना गुस्सा निकालता और यहां तक कि उसकी हत्या भी कर देता है.

अभी कुछ हफ़्ते पहले ही राजस्थान में एक लड़की को फ्रेंडशिप डे पर प्रपोजल ठुकराने की वजह से चलती ट्रेन के सामने धकेल दिया गया था. वह सिर्फ 15 साल की थी. इसी साल जून में मथुरा में एक किशोरी की हत्या कर दी गई क्योंकि उसने फेसबुक पर दोस्ती का प्रस्ताव ठुकरा दिया था. इनके अलावा ऐसे कई और मामले हैं, लेकिन उनमें से कुछ ही रिपोर्ट किए जाते हैं और कभी-कभार समाज में शोर मच जाता है.

निसंदेह किसी की हत्या करना भयानक है, चाहे पीड़िता कोलकाता मामले की वयस्क हो या राजस्थान और मथुरा की किशोरी. मेरी राय में नाबालिग लड़कियों या बच्चों पर यौन उत्पीड़न भी उतना ही भयानक है. महाराष्ट्र के बदलापुर में एक स्कूल में 3 और 4 साल की उम्र के बच्चों पर यौन उत्पीड़न की हालिया घटना न सिर्फ चौंकाने वाली है, बल्कि बेहद भयावह है. यही वजह है कि हजारों लोग सड़कों पर उतर आए और पुलिस-स्कूल प्रशासन की निष्क्रियता के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर किया और विरोध प्रदर्शन भी किया.

बच्चों के खिलाफ अपराध
बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराध बच्चों द्वारा किए गए अपराधों की तरह सुर्खियां नहीं बनते. हम तब चौंक जाते हैं जब उदयपुर में 10वीं कक्षा का एक छात्र पुरानी दुश्मनी के चलते अपने सहपाठी को चाकू मार देता है. क्या हम तब भी उतने ही चौंक जाते हैं, जब कोई वयस्क किसी बच्चे की हत्या करता है या उसका बलात्कार करता है? हां, हम चौंक जाते हैं, लेकिन ऐसे कितने अपराध कभी रिपोर्ट किए जाते हैं या चर्चा में आते हैं? नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के पब्लिकेशन क्राइम इन इंडिया 2022 द्वारा उपलब्ध कराए गए बच्चों के खिलाफ अपराधों के आंकड़े आपको चौंका देंगे.

बच्चों के खिलाफ अपराधों की दो कैटेगरी है. इसमें पहला भारतीय दंड संहिता, स्पेशल और स्थानीय कानूनों के तहत दर्ज किए गए मामले हैं. इसके साल में 1,62,449 मामले सामने आए हैं, जो 2021 की तुलना में 8.7 प्रतिशत ज्यादा है. इसमें हत्या, अपहरण, मानव तस्करी आदि शामिल हैं. वहीं, दूसरी कैटेगरी यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO अधिनियम) के प्रावधानों के तहत आने वाले मामले हैं.

इस साल लड़कियों के साथ यौन उत्पीड़न के 62,000 से ज्यादा मामले दर्ज किए गए. इसका मतलब है कि औसतन हर 10 मिनट में एक लड़की के साथ यौन उत्पीड़न होता है. एक समाज के तौर पर हम इस भयानक घटना के बारे में क्या कर रहे हैं?

हालात क्या हैं?
इन आंकड़ों में किशोरों के भाग जाने के मामले भी शामिल हैं. हालांकि, इस तरह के मामलों की संख्या बहुत बड़ी नहीं है, लेकिन ऐसे मामले कभी-कभार होते रहते हैं और इस पर अलग से चर्चा की जरूरत है.

POCSO एक्ट के तहत अपराधों से निपटने के लिए स्पेशल कोर्ट की स्थापना की गई है, लेकिन चूंकि इन न्यायालयों में हजारों मामले लंबित हैं, इसलिए जस्टिस डिलीवरी सिस्टम उनसे निपटने और उन पर जल्दी से निर्णय लेने में असमर्थ है.

NCRB के आंकड़ों से पता चलता है कि अदालतों में करीब 30 लाख मामले लंबित हैं. इनका फैसला कब होगा? ऐसे में दो बुनियादी सवाल उठते हैं. पहला यह कि इन अपराधों के अपराधियों को कब दोषी ठहराया जाएगा और कब उन्हें उचित सजा दी जाएगी? और दूसरा यह कि बच्चों और उनके परिवारों को कब न्याय मिलेगा? एक तरह से पीड़ितों को कभी न्याय नहीं मिलेगा क्योंकि यह सदमा उनके साथ जीवन भर रहेगा. इसलिए, जब हम महिलाओं की सुरक्षा पर चर्चा करते हैं, तो हमें बच्चों के खिलाफ अपराधों, आईपीसी अपराध (अब भारतीय न्याय संहिता या बीएनएस अपराध) और पोक्सो अधिनियम के तहत अपराधों पर भी ध्यान देना चाहिए. यह बेहद महत्वपूर्ण है.

कुछ संभावित समाधान
बच्चों के खिलाफ अपराधों की सीमा के बारे में जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है. कई लोग ऐसे अपराधों (यौन उत्पीड़न के मामलों के अलावा) को ऐसी घटना मानते हैं जो होती रहती हैं और उन्हें गंभीरता से नहीं लेते. हालांकि, ये आम मामले नहीं हैं, बल्कि जघन्य अपराध होते हैं. किसी बच्चे की हत्या या फिरौती या किसी अन्य चीज के लिए बच्चे का अपहरण करना ऐसा अपराध है, जिसे बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए.

शिशु हत्या, खास तौर पर कन्या भ्रूण हत्या, मर्डर है और यह सबसे जघन्य अपराध है. क्या हम ऐसे हत्यारों पर मुकदमा चलाते हैं? 3 या 4 साल की उम्र के बच्चे का यौन उत्पीड़न, यौन सुख के लिए बच्चों की तस्करी भी जघन्य अपराध हैं. हमें इन मुद्दों को स्वीकार करने और उन पर चर्चा करने की जरूरत है और उन्हें गंभीर सामाजिक समस्याओं के रूप में ध्यान में लाना चाहिए.

भाषणों और योजनाओं का समय बहुत पहले ही खत्म हो चुका है और अब जस्टिस डिलिवरी सिस्टम में सुधार की जरूरत है, खासकर जब यह बच्चों के खिलाफ अपराधों से संबंधित हो. यह प्रणाली बहुत धीमी है और अदालती देरी बदलापुर में प्रदर्शनकारियों द्वारा व्यक्त की गई शिकायतों में से एक है.

स्पेशल कोर्ट और फास्ट ट्रैक कोर्ट ने हमें निराश किया है. अगर हमें अपराध से पीड़ित हजारों महिलाओं और बच्चों को न्याय दिलाना है तो हमें जस्टिस डिलिवरी और मामलों के समयबद्ध निपटान के लिए केस मैनेजमेंट सिस्टम शुरू करने के तरीके और साधन खोजने होंगे. अगर हम समय पर उन्हें न्याय नहीं दे सकते तो महिलाओं को मां, बहन और बेटी कहना बेमानी है. इसी तरह अगर हम बच्चों को न्याय से वंचित करते हैं और उन्हें डर और आघात से मुक्त नहीं करते हैं तो बच्चों को देश का भविष्य बताना बेमानी है.

अंत में इस तरह के मामलों में राजनीति को चर्चा से दूर रखें. एक जघन्य अपराध, जघन्य अपराध होता है और इसका राजनीतिकरण करने से यह कम या ज्यादा जघन्य नहीं हो जाएगा. एक ऐसे बच्चे के खिलाफ अपराध के पीछे राजनीति क्यों होनी चाहिए जो अभी बड़ा नहीं हुआ है? जब कोई जघन्य अपराध होता है तो राजनेताओं को अपनी शान बढ़ाने की कोशिश क्यों करनी चाहिए? समाज के लिए बेहतर होगा कि वे एक-दूसरे की खोखली आलोचना करने के बजाय बच्चों के लिए सुविधाएं और अवसर सुधारने , जांच-पड़ताल के तरीकों और न्याय प्रदान करने में अपनी ऊर्जा खर्च करें.

(अस्वीकरण: इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. यहां व्यक्त तथ्य और राय ईटीवी भारत के विचारों को नहीं दर्शाते हैं)

यह भी पढ़ें- क्या उत्तर रामायण वाल्मीकि रामायण का हिस्सा नहीं था, क्या कहते हैं साक्ष्य, जानें

हैदराबाद: कोलकाता में हुए रेप और हत्या की घटना ने एक बार फिर महिलाओं की सुरक्षा पर सवाल खड़ा कर दिया है. सालों बाद भी महिलाओं की सिक्योरिटी का मुद्दा ऐसे ही बना हुआ है, जैसे पहले होता था. इसमें अब तक कोई बदलाव नहीं आया है. आज भी महिलाओं के साथ रेप, छेड़छाड़ और हत्या जैसी घटनाएं हो रही हैं और पहले की ही तरह उनके खिलाफ लोगों सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं.

ऐसे में हो सकता है कि पब्लिसिटी और शोर-शराबे के बीच कोई योजना शुरू कर दी जाए, कुछ भाषण दे दिए जाएं, लेकिन जमीनी स्तर पर कुछ नहीं बदलेगा और महिलाओं को फिर से छेड़छाड़ करने वालों, पीछा करने वालों और बलात्कारियों से खुद की रक्षा करने के लिए छोड़ दिया जाएगा.

समाज में समाई है घरेलू हिंसा
घरेलू हिंसा हमारे समाज में गहराई से समाई हुई है और यह कभी-कभी सड़कों पर भी फैल जाती है. शहरों में सीसीटीवी कैमरों पर तस्वीरें कैद हो जाती हैं और दूर-दूर तक फैला दी जाती हैं, हम इन क्लिपों देखते है और फिर उसके बाद क्या? हम रोज ऐसे मामलों के बारे में पढ़ते हैं जिसमें एक लड़की किसी पुरुष के प्रपोजल को ठुकरा देती है और वह शख्स महिला पर अपना गुस्सा निकालता और यहां तक कि उसकी हत्या भी कर देता है.

अभी कुछ हफ़्ते पहले ही राजस्थान में एक लड़की को फ्रेंडशिप डे पर प्रपोजल ठुकराने की वजह से चलती ट्रेन के सामने धकेल दिया गया था. वह सिर्फ 15 साल की थी. इसी साल जून में मथुरा में एक किशोरी की हत्या कर दी गई क्योंकि उसने फेसबुक पर दोस्ती का प्रस्ताव ठुकरा दिया था. इनके अलावा ऐसे कई और मामले हैं, लेकिन उनमें से कुछ ही रिपोर्ट किए जाते हैं और कभी-कभार समाज में शोर मच जाता है.

निसंदेह किसी की हत्या करना भयानक है, चाहे पीड़िता कोलकाता मामले की वयस्क हो या राजस्थान और मथुरा की किशोरी. मेरी राय में नाबालिग लड़कियों या बच्चों पर यौन उत्पीड़न भी उतना ही भयानक है. महाराष्ट्र के बदलापुर में एक स्कूल में 3 और 4 साल की उम्र के बच्चों पर यौन उत्पीड़न की हालिया घटना न सिर्फ चौंकाने वाली है, बल्कि बेहद भयावह है. यही वजह है कि हजारों लोग सड़कों पर उतर आए और पुलिस-स्कूल प्रशासन की निष्क्रियता के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर किया और विरोध प्रदर्शन भी किया.

बच्चों के खिलाफ अपराध
बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराध बच्चों द्वारा किए गए अपराधों की तरह सुर्खियां नहीं बनते. हम तब चौंक जाते हैं जब उदयपुर में 10वीं कक्षा का एक छात्र पुरानी दुश्मनी के चलते अपने सहपाठी को चाकू मार देता है. क्या हम तब भी उतने ही चौंक जाते हैं, जब कोई वयस्क किसी बच्चे की हत्या करता है या उसका बलात्कार करता है? हां, हम चौंक जाते हैं, लेकिन ऐसे कितने अपराध कभी रिपोर्ट किए जाते हैं या चर्चा में आते हैं? नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के पब्लिकेशन क्राइम इन इंडिया 2022 द्वारा उपलब्ध कराए गए बच्चों के खिलाफ अपराधों के आंकड़े आपको चौंका देंगे.

बच्चों के खिलाफ अपराधों की दो कैटेगरी है. इसमें पहला भारतीय दंड संहिता, स्पेशल और स्थानीय कानूनों के तहत दर्ज किए गए मामले हैं. इसके साल में 1,62,449 मामले सामने आए हैं, जो 2021 की तुलना में 8.7 प्रतिशत ज्यादा है. इसमें हत्या, अपहरण, मानव तस्करी आदि शामिल हैं. वहीं, दूसरी कैटेगरी यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO अधिनियम) के प्रावधानों के तहत आने वाले मामले हैं.

इस साल लड़कियों के साथ यौन उत्पीड़न के 62,000 से ज्यादा मामले दर्ज किए गए. इसका मतलब है कि औसतन हर 10 मिनट में एक लड़की के साथ यौन उत्पीड़न होता है. एक समाज के तौर पर हम इस भयानक घटना के बारे में क्या कर रहे हैं?

हालात क्या हैं?
इन आंकड़ों में किशोरों के भाग जाने के मामले भी शामिल हैं. हालांकि, इस तरह के मामलों की संख्या बहुत बड़ी नहीं है, लेकिन ऐसे मामले कभी-कभार होते रहते हैं और इस पर अलग से चर्चा की जरूरत है.

POCSO एक्ट के तहत अपराधों से निपटने के लिए स्पेशल कोर्ट की स्थापना की गई है, लेकिन चूंकि इन न्यायालयों में हजारों मामले लंबित हैं, इसलिए जस्टिस डिलीवरी सिस्टम उनसे निपटने और उन पर जल्दी से निर्णय लेने में असमर्थ है.

NCRB के आंकड़ों से पता चलता है कि अदालतों में करीब 30 लाख मामले लंबित हैं. इनका फैसला कब होगा? ऐसे में दो बुनियादी सवाल उठते हैं. पहला यह कि इन अपराधों के अपराधियों को कब दोषी ठहराया जाएगा और कब उन्हें उचित सजा दी जाएगी? और दूसरा यह कि बच्चों और उनके परिवारों को कब न्याय मिलेगा? एक तरह से पीड़ितों को कभी न्याय नहीं मिलेगा क्योंकि यह सदमा उनके साथ जीवन भर रहेगा. इसलिए, जब हम महिलाओं की सुरक्षा पर चर्चा करते हैं, तो हमें बच्चों के खिलाफ अपराधों, आईपीसी अपराध (अब भारतीय न्याय संहिता या बीएनएस अपराध) और पोक्सो अधिनियम के तहत अपराधों पर भी ध्यान देना चाहिए. यह बेहद महत्वपूर्ण है.

कुछ संभावित समाधान
बच्चों के खिलाफ अपराधों की सीमा के बारे में जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है. कई लोग ऐसे अपराधों (यौन उत्पीड़न के मामलों के अलावा) को ऐसी घटना मानते हैं जो होती रहती हैं और उन्हें गंभीरता से नहीं लेते. हालांकि, ये आम मामले नहीं हैं, बल्कि जघन्य अपराध होते हैं. किसी बच्चे की हत्या या फिरौती या किसी अन्य चीज के लिए बच्चे का अपहरण करना ऐसा अपराध है, जिसे बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए.

शिशु हत्या, खास तौर पर कन्या भ्रूण हत्या, मर्डर है और यह सबसे जघन्य अपराध है. क्या हम ऐसे हत्यारों पर मुकदमा चलाते हैं? 3 या 4 साल की उम्र के बच्चे का यौन उत्पीड़न, यौन सुख के लिए बच्चों की तस्करी भी जघन्य अपराध हैं. हमें इन मुद्दों को स्वीकार करने और उन पर चर्चा करने की जरूरत है और उन्हें गंभीर सामाजिक समस्याओं के रूप में ध्यान में लाना चाहिए.

भाषणों और योजनाओं का समय बहुत पहले ही खत्म हो चुका है और अब जस्टिस डिलिवरी सिस्टम में सुधार की जरूरत है, खासकर जब यह बच्चों के खिलाफ अपराधों से संबंधित हो. यह प्रणाली बहुत धीमी है और अदालती देरी बदलापुर में प्रदर्शनकारियों द्वारा व्यक्त की गई शिकायतों में से एक है.

स्पेशल कोर्ट और फास्ट ट्रैक कोर्ट ने हमें निराश किया है. अगर हमें अपराध से पीड़ित हजारों महिलाओं और बच्चों को न्याय दिलाना है तो हमें जस्टिस डिलिवरी और मामलों के समयबद्ध निपटान के लिए केस मैनेजमेंट सिस्टम शुरू करने के तरीके और साधन खोजने होंगे. अगर हम समय पर उन्हें न्याय नहीं दे सकते तो महिलाओं को मां, बहन और बेटी कहना बेमानी है. इसी तरह अगर हम बच्चों को न्याय से वंचित करते हैं और उन्हें डर और आघात से मुक्त नहीं करते हैं तो बच्चों को देश का भविष्य बताना बेमानी है.

अंत में इस तरह के मामलों में राजनीति को चर्चा से दूर रखें. एक जघन्य अपराध, जघन्य अपराध होता है और इसका राजनीतिकरण करने से यह कम या ज्यादा जघन्य नहीं हो जाएगा. एक ऐसे बच्चे के खिलाफ अपराध के पीछे राजनीति क्यों होनी चाहिए जो अभी बड़ा नहीं हुआ है? जब कोई जघन्य अपराध होता है तो राजनेताओं को अपनी शान बढ़ाने की कोशिश क्यों करनी चाहिए? समाज के लिए बेहतर होगा कि वे एक-दूसरे की खोखली आलोचना करने के बजाय बच्चों के लिए सुविधाएं और अवसर सुधारने , जांच-पड़ताल के तरीकों और न्याय प्रदान करने में अपनी ऊर्जा खर्च करें.

(अस्वीकरण: इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. यहां व्यक्त तथ्य और राय ईटीवी भारत के विचारों को नहीं दर्शाते हैं)

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