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भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन में द्विपक्षीय व्यापार होगा प्रमुख मुद्दा, जानें इसका महत्व - India Russia Annual Summit

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By Aroonim Bhuyan

Published : Jul 6, 2024, 4:49 PM IST

India Russia Bilateral Trade: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आठ जुलाई को रूस की यात्रा पर जाएंगे. इस दौरान वह मॉस्को में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ वार्षिक भारत-रूस द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन में शामिल होंगे. पीएम मोदी की मॉस्को यात्रा से पहले विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने बताया कि द्विपक्षीय व्यापार का मुद्दा दोनों देशों के लिए चिंता का विषय क्यों बना हुआ है. द्विपक्षीय व्यापार में असंतुलन रूस के पक्ष में इतना क्यों झुका हुआ है? इसे कैसे सुधारा जा सकता है?

India Russia Bilateral Trade:
भारत-रूस द्विपक्षीय व्यापार (ETV Bharat)

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगले सप्ताह मॉस्को यात्रा के दौरान 22वें भारत-रूस वार्षिक द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन के दौरान चर्चा के मुद्दों में द्विपक्षीय व्यापार भी शामिल होगा. हालांकि, भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय व्यापार पिछले कुछ वर्षों में बढ़ा है, लेकिन यह काफी हद तक असंतुलित रहा है और रूस के पक्ष में झुका हुआ है. शुक्रवार को नई दिल्ली से मॉस्को रवाना होने से पहले मीडिया ब्रीफिंग में विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने कहा कि भारत-रूस द्विपक्षीय व्यापार में 2023-24 में तेज वृद्धि देखी गई है और तब से दोनों देशों के बीच व्यापार 65 बिलियन डॉलर के करीब पहुंच गया है, जिसका मुख्य कारण दोनों पक्षों के बीच मजबूत ऊर्जा सहयोग है.

क्वात्रा ने कहा कि रूस को भारतीय निर्यात 4 बिलियन डॉलर और भारतीय आयात 60 बिलियन डॉलर के करीब है. उन्होंने कहा कि व्यापार असंतुलित बना हुआ है जो हमारी चर्चाओं में प्राथमिकता का विषय है. दोनों देशों के बीच ऊर्जा, बैंकिंग, रेलवे और इस्पात के क्षेत्रों सहित निवेश संबंध बढ़ रहे हैं. ये हमारी निवेश साझेदारी के बढ़ते क्षेत्र हैं. मॉस्को स्थित भारतीय दूतावास के अनुसार, पीएम मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन दोनों की प्राथमिकता व्यापार और आर्थिक संबंधों को प्रगाढ़ करना है. दोनों नेताओं ने पहले 2025 तक द्विपक्षीय निवेश को 50 बिलियन डॉलर और द्विपक्षीय व्यापार को 30 बिलियन डॉलर तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा था.

दूतावास द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि वाणिज्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2023-24 में द्विपक्षीय व्यापार 65.70 बिलियन डॉलर (वित्त वर्ष 2023-24 के लिए कुल द्विपक्षीय व्यापारिक व्यापार: 65.70 बिलियन डॉलर; भारत का निर्यात: 4.26 बिलियन डॉलर; और भारत का आयात: 61.44 बिलियन डॉलर) के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया है. बयान के मुताबिक, भारत से निर्यात की जाने वाली प्रमुख वस्तुओं में फार्मास्यूटिकल्स, ऑर्गेनिक केमिकल्स, इलेक्ट्रिकल मशीनरी और मैकेनिकल उपकरण, लोहा और इस्पात शामिल हैं, जबकि रूस से आयात की जाने वाली प्रमुख वस्तुओं में तेल और पेट्रोलियम उत्पाद, उर्वरक, खनिज संसाधन, कीमती पत्थर और धातु, वनस्पति तेल आदि शामिल हैं.

बयान के अनुसार, पिछले पांच वर्षों के दौरान सेवाओं में द्विपक्षीय व्यापार स्थिर रहा है और व्यापार संतुलन रूस के पक्ष में रहा है. वर्ष 2021 में यह 1.021 बिलियन डॉलर था. बयान में आगे कहा गया है कि दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय निवेश मजबूत बना हुआ है और 2018 में 30 बिलियन डॉलर के पिछले लक्ष्य को पार कर गया है, जिससे 2025 तक संशोधित लक्ष्य 50 बिलियन डॉलर निर्धारित किया गया है. भारत में रूस द्वारा किए जाने वाले प्रमुख द्विपक्षीय निवेश तेल और गैस, पेट्रोकेमिकल्स, बैंकिंग, रेलवे और इस्पात क्षेत्रों में है, जबकि रूस में भारतीय निवेश मुख्य रूप से तेल और गैस तथा फार्मास्यूटिकल्स क्षेत्रों में है.

भारत-रूस के बीच व्यापार असंतुलन के कारण
भारत और रूस के बीच व्यापार असंतुलन के लिए आर्थिक, भू-राजनीतिक, संरचनात्मक और बाजार-विशिष्ट तत्वों सहित कई कारकों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. भारत रूस से कच्चा तेल, पेट्रोलियम उत्पाद और कोयला आयात करता है. ऊर्जा आयात रूस से भारत के कुल आयात का बड़ा हिस्सा है, जो व्यापार संतुलन को प्रभावित करता है. भारत की ऊर्जा जरूरतों और एक प्रमुख ऊर्जा आपूर्तिकर्ता के रूप में रूस की भूमिका दोनों देशों के बीच व्यापार असंतुलन का महत्वपूर्ण कारक है. रूस से आयात में अचानक उछाल आया, मुख्य रूप से तेल और उर्वरक में, जो 2022 की शुरुआत में बढ़ना शुरू हुआ. द्विपक्षीय व्यापार में इस वृद्धि के पीछे यही मुख्य कारण था. पेट्रोलियम तेल और अन्य ईंधन वस्तुओं का रूस से भारत के कुल आयात में 84 प्रतिशत हिस्सा था, जबकि उर्वरक दूसरे स्थान पर थे.

रूस को भारतीय निर्यात विविध है, लेकिन इसमें फार्मास्यूटिकल्स, कृषि उत्पाद, मशीनरी और वस्त्र शामिल हैं. हालांकि, इन निर्यातों की मात्रा और मूल्य रूस से ऊर्जा उत्पादों के आयात की भरपाई करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं. रूस पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों ने व्यापार पैटर्न को बदल दिया है, जिससे रूस को भारत सहित अपने निर्यात के लिए वैकल्पिक बाजारों की तलाश करनी पड़ रही है. इन प्रतिबंधों ने रूस की कुछ उच्च-मूल्य वाली वस्तुओं के निर्यात की क्षमता को भी सीमित कर दिया है, जिससे व्यापार संतुलन प्रभावित हुआ है.

भारत और रूस एक विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी साझा करते हैं और रक्षा-संबंधी व्यापार इसके अंतर्गत आता है. हालांकि, रक्षा-संबंधी व्यापार अक्सर नियमित व्यापार आंकड़ों में दिखाई नहीं देता है, क्योंकि यह आमतौर पर सरकार के बीच समझौतों और वित्तपोषण व्यवस्थाओं के अंतर्गत आता है.

लॉजिस्टिक चुनौतियां भी हैं. भौगोलिक दूरी और संबंधित लॉजिस्टिक्स चुनौतियां भारत और रूस के बीच व्यापार की लागत बढ़ा सकती हैं. खराब परिवहन अवसंरचना, लंबा पारगमन समय और उच्च परिवहन लागत रूसी बाजार में भारतीय वस्तुओं की प्रतिस्पर्धात्मकता में बाधा डाल सकती है. भारत और रूस के बीच सीमित शिपिंग मार्ग और हवाई संपर्क हैं, जो व्यापार को और जटिल बना सकते हैं और लागत बढ़ा सकते हैं.

व्यापार असंतुलन कैसे सुधारा जा सकता है?
विदेश सचिव क्वात्रा ने गुरुवार को ब्रीफिंग के दौरान कहा कि जहां तक व्यापार असंतुलन सुधारने का सवाल है, भारत सभी क्षेत्रों में निर्यात बढ़ाने की कोशिश कर रहा है, चाहे वह कृषि हो, तकनीक हो, फार्मास्यूटिकल्स हो या सेवाएं. उन्होंने कहाकि हम यह सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे कि इन सभी क्षेत्रों में भारत से रूस को निर्यात बढ़े. यह जितनी जल्दी होगा, उतनी ही जल्दी व्यापार असंतुलन को ठीक किया जा सकेगा. उन्होंने आगे कहा कि दोनों देशों के बीच वार्ता के दौरान व्यापार असंतुलन का मुद्दा हमेशा अहम मुद्दा रहा है. क्वात्रा ने कहा कि अच्छी बात यह है कि दोनों देशों द्वारा 2025 तक निर्धारित लक्ष्य को भी पार कर लिया गया है. हम आने वाले वर्षों में बड़ा लक्ष्य निर्धारित करेंगे.

विदेश सचिव द्वारा बताए गए कृषि, प्रौद्योगिकी, फार्मास्यूटिकल्स और सेवाओं के अलावा पर्यवेक्षकों का मानना है कि भारत को रूसी बाजार में अपने वस्त्र, रत्न और आभूषणों को भी बढ़ावा देने की जरूरत है. आईटी और सॉफ्टवेयर सेवाओं में सहयोग का विस्तार करना और लक्षित विपणन और आसान वीजा प्रक्रियाओं के जरिये दोनों देशों के बीच पर्यटन को बढ़ाना सेवा व्यापार को बढ़ावा दे सकता है.

भारत और रूस ने मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर भी वार्ता शुरू कर दी है, जिसका उद्देश्य आर्थिक संबंधों को और अधिक मजबूत बनाना है, क्योंकि अधिकांश पश्चिमी देश यूक्रेन युद्ध को लेकर मॉस्को को अलग-थलग करने पर जोर दे रहे हैं. भारत और रूस के बीच एफटीए का अभाव संतुलित व्यापार संबंधों की संभावना को सीमित करता है. एफटीए अधिक बाजार पहुंच की सुविधा प्रदान कर सकता है और व्यापार बाधाओं को कम कर सकता है.

व्यापार असंतुलन को सुधारने में प्रमुख पक्ष व्यापार के लिए स्थानीय मुद्राओं के उपयोग में वृद्धि है, जिससे अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम हो रही है और लेनदेन की लागत कम हो रही है. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा रुपये में वैश्विक व्यापार के लिए नए कदमों की घोषणा के लगभग दो साल बाद, इस साल अप्रैल में रूस के प्रमुख बैंक Sberbank ने कहा था कि भारत से रूस के आयात के लिए रुपया और रूबल में भुगतान की मात्रा में लगातार वृद्धि हो रही है.

लेकिन सबसे बढ़कर यह परिवहन बुनियादी ढांचे में सुधार कर रहा है जो दोनों देशों के बीच व्यापार असंतुलन को सुधारने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है. यहां, अंतरराष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC), ईरान में चाबहार बंदरगाह (जिसमें भारत निवेश कर रहा है) और पूर्वी समुद्री गलियारे (ईएमसी), जो चेन्नई को रूस के सुदूर पूर्व में व्लादिवोस्तोक (Vladivostok) से जोड़ेगा, जिस पर विचार किया जा रहा है, वह काम आ सकता है. प्रेस ब्रीफिंग के दौरान क्वात्रा ने इन परिवहन मार्गों के महत्व पर जोर दिया.

INSTC माल ढुलाई के लिए जहाज, रेल और सड़क मार्गों का 7,200 किलोमीटर लंबा बहु-आयामी नेटवर्क है. भारत, ईरान और रूस ने सितंबर 2000 में ईरान और सेंट पीटर्सबर्ग के माध्यम से हिंद महासागर और फारस की खाड़ी को कैस्पियन सागर से जोड़ने वाला सबसे छोटा बहु-आयामी परिवहन मार्ग प्रदान करने के लिए एक गलियारा बनाने के लिए INSTC समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. सेंट पीटर्सबर्ग से रूस के रास्ते उत्तरी यूरोप तक आसानी से पहुंचा जा सकता है.

INSTC कॉरिडोर की अनुमानित क्षमता प्रति वर्ष 20-30 मिलियन टन माल की है. इस मार्ग पर मुख्य रूप से भारत, ईरान, अजरबैजान और रूस से जहाज, रेल और सड़क के माध्यम से माल की ढुलाई होती है. गलियारे का उद्देश्य मुंबई, मॉस्को, तेहरान, बाकू, बंदर अब्बास, आस्ट्राखान और बंदर-ए-अंज़ाली जैसे प्रमुख शहरों के बीच व्यापार संपर्क बढ़ाना है.

हाल ही में, रूस ने पहली बार INSTC के माध्यम से भारत को कोयला पहुंचाने वाली दो ट्रेनें भेजी हैं. यह खेप ईरान के बंदर अब्बास बंदरगाह के माध्यम से सेंट पीटर्सबर्ग से मुंबई बंदरगाह तक 7,200 किमी से अधिक की दूरी तय करेगी. ईरान में चाबहार बंदरगाह भारत को मध्य एशिया, अफगानिस्तान और यूरेशिया के बाजारों तक पहुंचने के लिए ईरान की अनूठी भौगोलिक स्थिति का लाभ उठाने में मदद करेगा. यह भारत को इस क्षेत्र में रणनीतिक पैर जमाने में मदद करता है, जिससे पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच मिलती है.

यह बंदरगाह भारतीय माल को अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंचने के लिए एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करता है, जिससे पाकिस्तान के जरिये अधिक महंगे और राजनीतिक रूप से संवेदनशील मार्ग पर निर्भरता कम होती है. इसके अतिरिक्त, चाबहार ईरान के विशाल बाजार तक पहुंच की सुविधा प्रदान करता है और भारतीय व्यवसायों के लिए इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति का विस्तार करने के लिए एक प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है.

पूर्वी समुद्री गलियारा एक नया मार्ग है जिसकी संभावना पर विचार किया जा रहा है. इस वर्ष जनवरी में चेन्नई में एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए केंद्रीय बंदरगाह, नौवहन और जलमार्ग मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने बताया कि कैसे यह मार्ग भारत और पूर्वी रूस के बीच माल के परिवहन में समय और दूरी को काफी कम कर देगा. सोनोवाल ने कहा कि वर्तमान में, स्वेज नहर के माध्यम से पश्चिमी समुद्री मार्ग से मुंबई बंदरगाह और रूस के सेंट पीटर्सबर्ग बंदरगाह के बीच की दूरी 8,675 समुद्री मील या 16,066 किमी है, जबकि पूर्वी समुद्री गलियारे के माध्यम से चेन्नई बंदरगाह और व्लादिवोस्तोक बंदरगाह के बीच की दूरी केवल 5,647 समुद्री मील या 10,458 किमी है. उन्होंने कहा कि इससे 5,608 किमी की दूरी कम होगी जो दोनों देशों के बीच माल के परिवहन में दक्षता को बढ़ाने के अलावा रसद लागत को काफी कम करेगी.

इन सबके मद्देनजर भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय व्यापार दोनों पक्षों के बीच चर्चा के दौरान महत्वपूर्ण मुद्दा है और इसलिए अगले सप्ताह मॉस्को में होने वाले वार्षिक द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन में इस पर चर्चा होगी.

यह भी पढ़ें- भारत-रूस शिखर सम्मेलन: मोदी और पुतिन द्विपक्षीय संबंधों के संपूर्ण आयाम की समीक्षा करेंगे

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगले सप्ताह मॉस्को यात्रा के दौरान 22वें भारत-रूस वार्षिक द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन के दौरान चर्चा के मुद्दों में द्विपक्षीय व्यापार भी शामिल होगा. हालांकि, भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय व्यापार पिछले कुछ वर्षों में बढ़ा है, लेकिन यह काफी हद तक असंतुलित रहा है और रूस के पक्ष में झुका हुआ है. शुक्रवार को नई दिल्ली से मॉस्को रवाना होने से पहले मीडिया ब्रीफिंग में विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने कहा कि भारत-रूस द्विपक्षीय व्यापार में 2023-24 में तेज वृद्धि देखी गई है और तब से दोनों देशों के बीच व्यापार 65 बिलियन डॉलर के करीब पहुंच गया है, जिसका मुख्य कारण दोनों पक्षों के बीच मजबूत ऊर्जा सहयोग है.

क्वात्रा ने कहा कि रूस को भारतीय निर्यात 4 बिलियन डॉलर और भारतीय आयात 60 बिलियन डॉलर के करीब है. उन्होंने कहा कि व्यापार असंतुलित बना हुआ है जो हमारी चर्चाओं में प्राथमिकता का विषय है. दोनों देशों के बीच ऊर्जा, बैंकिंग, रेलवे और इस्पात के क्षेत्रों सहित निवेश संबंध बढ़ रहे हैं. ये हमारी निवेश साझेदारी के बढ़ते क्षेत्र हैं. मॉस्को स्थित भारतीय दूतावास के अनुसार, पीएम मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन दोनों की प्राथमिकता व्यापार और आर्थिक संबंधों को प्रगाढ़ करना है. दोनों नेताओं ने पहले 2025 तक द्विपक्षीय निवेश को 50 बिलियन डॉलर और द्विपक्षीय व्यापार को 30 बिलियन डॉलर तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा था.

दूतावास द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि वाणिज्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2023-24 में द्विपक्षीय व्यापार 65.70 बिलियन डॉलर (वित्त वर्ष 2023-24 के लिए कुल द्विपक्षीय व्यापारिक व्यापार: 65.70 बिलियन डॉलर; भारत का निर्यात: 4.26 बिलियन डॉलर; और भारत का आयात: 61.44 बिलियन डॉलर) के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया है. बयान के मुताबिक, भारत से निर्यात की जाने वाली प्रमुख वस्तुओं में फार्मास्यूटिकल्स, ऑर्गेनिक केमिकल्स, इलेक्ट्रिकल मशीनरी और मैकेनिकल उपकरण, लोहा और इस्पात शामिल हैं, जबकि रूस से आयात की जाने वाली प्रमुख वस्तुओं में तेल और पेट्रोलियम उत्पाद, उर्वरक, खनिज संसाधन, कीमती पत्थर और धातु, वनस्पति तेल आदि शामिल हैं.

बयान के अनुसार, पिछले पांच वर्षों के दौरान सेवाओं में द्विपक्षीय व्यापार स्थिर रहा है और व्यापार संतुलन रूस के पक्ष में रहा है. वर्ष 2021 में यह 1.021 बिलियन डॉलर था. बयान में आगे कहा गया है कि दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय निवेश मजबूत बना हुआ है और 2018 में 30 बिलियन डॉलर के पिछले लक्ष्य को पार कर गया है, जिससे 2025 तक संशोधित लक्ष्य 50 बिलियन डॉलर निर्धारित किया गया है. भारत में रूस द्वारा किए जाने वाले प्रमुख द्विपक्षीय निवेश तेल और गैस, पेट्रोकेमिकल्स, बैंकिंग, रेलवे और इस्पात क्षेत्रों में है, जबकि रूस में भारतीय निवेश मुख्य रूप से तेल और गैस तथा फार्मास्यूटिकल्स क्षेत्रों में है.

भारत-रूस के बीच व्यापार असंतुलन के कारण
भारत और रूस के बीच व्यापार असंतुलन के लिए आर्थिक, भू-राजनीतिक, संरचनात्मक और बाजार-विशिष्ट तत्वों सहित कई कारकों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. भारत रूस से कच्चा तेल, पेट्रोलियम उत्पाद और कोयला आयात करता है. ऊर्जा आयात रूस से भारत के कुल आयात का बड़ा हिस्सा है, जो व्यापार संतुलन को प्रभावित करता है. भारत की ऊर्जा जरूरतों और एक प्रमुख ऊर्जा आपूर्तिकर्ता के रूप में रूस की भूमिका दोनों देशों के बीच व्यापार असंतुलन का महत्वपूर्ण कारक है. रूस से आयात में अचानक उछाल आया, मुख्य रूप से तेल और उर्वरक में, जो 2022 की शुरुआत में बढ़ना शुरू हुआ. द्विपक्षीय व्यापार में इस वृद्धि के पीछे यही मुख्य कारण था. पेट्रोलियम तेल और अन्य ईंधन वस्तुओं का रूस से भारत के कुल आयात में 84 प्रतिशत हिस्सा था, जबकि उर्वरक दूसरे स्थान पर थे.

रूस को भारतीय निर्यात विविध है, लेकिन इसमें फार्मास्यूटिकल्स, कृषि उत्पाद, मशीनरी और वस्त्र शामिल हैं. हालांकि, इन निर्यातों की मात्रा और मूल्य रूस से ऊर्जा उत्पादों के आयात की भरपाई करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं. रूस पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों ने व्यापार पैटर्न को बदल दिया है, जिससे रूस को भारत सहित अपने निर्यात के लिए वैकल्पिक बाजारों की तलाश करनी पड़ रही है. इन प्रतिबंधों ने रूस की कुछ उच्च-मूल्य वाली वस्तुओं के निर्यात की क्षमता को भी सीमित कर दिया है, जिससे व्यापार संतुलन प्रभावित हुआ है.

भारत और रूस एक विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी साझा करते हैं और रक्षा-संबंधी व्यापार इसके अंतर्गत आता है. हालांकि, रक्षा-संबंधी व्यापार अक्सर नियमित व्यापार आंकड़ों में दिखाई नहीं देता है, क्योंकि यह आमतौर पर सरकार के बीच समझौतों और वित्तपोषण व्यवस्थाओं के अंतर्गत आता है.

लॉजिस्टिक चुनौतियां भी हैं. भौगोलिक दूरी और संबंधित लॉजिस्टिक्स चुनौतियां भारत और रूस के बीच व्यापार की लागत बढ़ा सकती हैं. खराब परिवहन अवसंरचना, लंबा पारगमन समय और उच्च परिवहन लागत रूसी बाजार में भारतीय वस्तुओं की प्रतिस्पर्धात्मकता में बाधा डाल सकती है. भारत और रूस के बीच सीमित शिपिंग मार्ग और हवाई संपर्क हैं, जो व्यापार को और जटिल बना सकते हैं और लागत बढ़ा सकते हैं.

व्यापार असंतुलन कैसे सुधारा जा सकता है?
विदेश सचिव क्वात्रा ने गुरुवार को ब्रीफिंग के दौरान कहा कि जहां तक व्यापार असंतुलन सुधारने का सवाल है, भारत सभी क्षेत्रों में निर्यात बढ़ाने की कोशिश कर रहा है, चाहे वह कृषि हो, तकनीक हो, फार्मास्यूटिकल्स हो या सेवाएं. उन्होंने कहाकि हम यह सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे कि इन सभी क्षेत्रों में भारत से रूस को निर्यात बढ़े. यह जितनी जल्दी होगा, उतनी ही जल्दी व्यापार असंतुलन को ठीक किया जा सकेगा. उन्होंने आगे कहा कि दोनों देशों के बीच वार्ता के दौरान व्यापार असंतुलन का मुद्दा हमेशा अहम मुद्दा रहा है. क्वात्रा ने कहा कि अच्छी बात यह है कि दोनों देशों द्वारा 2025 तक निर्धारित लक्ष्य को भी पार कर लिया गया है. हम आने वाले वर्षों में बड़ा लक्ष्य निर्धारित करेंगे.

विदेश सचिव द्वारा बताए गए कृषि, प्रौद्योगिकी, फार्मास्यूटिकल्स और सेवाओं के अलावा पर्यवेक्षकों का मानना है कि भारत को रूसी बाजार में अपने वस्त्र, रत्न और आभूषणों को भी बढ़ावा देने की जरूरत है. आईटी और सॉफ्टवेयर सेवाओं में सहयोग का विस्तार करना और लक्षित विपणन और आसान वीजा प्रक्रियाओं के जरिये दोनों देशों के बीच पर्यटन को बढ़ाना सेवा व्यापार को बढ़ावा दे सकता है.

भारत और रूस ने मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर भी वार्ता शुरू कर दी है, जिसका उद्देश्य आर्थिक संबंधों को और अधिक मजबूत बनाना है, क्योंकि अधिकांश पश्चिमी देश यूक्रेन युद्ध को लेकर मॉस्को को अलग-थलग करने पर जोर दे रहे हैं. भारत और रूस के बीच एफटीए का अभाव संतुलित व्यापार संबंधों की संभावना को सीमित करता है. एफटीए अधिक बाजार पहुंच की सुविधा प्रदान कर सकता है और व्यापार बाधाओं को कम कर सकता है.

व्यापार असंतुलन को सुधारने में प्रमुख पक्ष व्यापार के लिए स्थानीय मुद्राओं के उपयोग में वृद्धि है, जिससे अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम हो रही है और लेनदेन की लागत कम हो रही है. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा रुपये में वैश्विक व्यापार के लिए नए कदमों की घोषणा के लगभग दो साल बाद, इस साल अप्रैल में रूस के प्रमुख बैंक Sberbank ने कहा था कि भारत से रूस के आयात के लिए रुपया और रूबल में भुगतान की मात्रा में लगातार वृद्धि हो रही है.

लेकिन सबसे बढ़कर यह परिवहन बुनियादी ढांचे में सुधार कर रहा है जो दोनों देशों के बीच व्यापार असंतुलन को सुधारने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है. यहां, अंतरराष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC), ईरान में चाबहार बंदरगाह (जिसमें भारत निवेश कर रहा है) और पूर्वी समुद्री गलियारे (ईएमसी), जो चेन्नई को रूस के सुदूर पूर्व में व्लादिवोस्तोक (Vladivostok) से जोड़ेगा, जिस पर विचार किया जा रहा है, वह काम आ सकता है. प्रेस ब्रीफिंग के दौरान क्वात्रा ने इन परिवहन मार्गों के महत्व पर जोर दिया.

INSTC माल ढुलाई के लिए जहाज, रेल और सड़क मार्गों का 7,200 किलोमीटर लंबा बहु-आयामी नेटवर्क है. भारत, ईरान और रूस ने सितंबर 2000 में ईरान और सेंट पीटर्सबर्ग के माध्यम से हिंद महासागर और फारस की खाड़ी को कैस्पियन सागर से जोड़ने वाला सबसे छोटा बहु-आयामी परिवहन मार्ग प्रदान करने के लिए एक गलियारा बनाने के लिए INSTC समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. सेंट पीटर्सबर्ग से रूस के रास्ते उत्तरी यूरोप तक आसानी से पहुंचा जा सकता है.

INSTC कॉरिडोर की अनुमानित क्षमता प्रति वर्ष 20-30 मिलियन टन माल की है. इस मार्ग पर मुख्य रूप से भारत, ईरान, अजरबैजान और रूस से जहाज, रेल और सड़क के माध्यम से माल की ढुलाई होती है. गलियारे का उद्देश्य मुंबई, मॉस्को, तेहरान, बाकू, बंदर अब्बास, आस्ट्राखान और बंदर-ए-अंज़ाली जैसे प्रमुख शहरों के बीच व्यापार संपर्क बढ़ाना है.

हाल ही में, रूस ने पहली बार INSTC के माध्यम से भारत को कोयला पहुंचाने वाली दो ट्रेनें भेजी हैं. यह खेप ईरान के बंदर अब्बास बंदरगाह के माध्यम से सेंट पीटर्सबर्ग से मुंबई बंदरगाह तक 7,200 किमी से अधिक की दूरी तय करेगी. ईरान में चाबहार बंदरगाह भारत को मध्य एशिया, अफगानिस्तान और यूरेशिया के बाजारों तक पहुंचने के लिए ईरान की अनूठी भौगोलिक स्थिति का लाभ उठाने में मदद करेगा. यह भारत को इस क्षेत्र में रणनीतिक पैर जमाने में मदद करता है, जिससे पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच मिलती है.

यह बंदरगाह भारतीय माल को अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंचने के लिए एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करता है, जिससे पाकिस्तान के जरिये अधिक महंगे और राजनीतिक रूप से संवेदनशील मार्ग पर निर्भरता कम होती है. इसके अतिरिक्त, चाबहार ईरान के विशाल बाजार तक पहुंच की सुविधा प्रदान करता है और भारतीय व्यवसायों के लिए इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति का विस्तार करने के लिए एक प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है.

पूर्वी समुद्री गलियारा एक नया मार्ग है जिसकी संभावना पर विचार किया जा रहा है. इस वर्ष जनवरी में चेन्नई में एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए केंद्रीय बंदरगाह, नौवहन और जलमार्ग मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने बताया कि कैसे यह मार्ग भारत और पूर्वी रूस के बीच माल के परिवहन में समय और दूरी को काफी कम कर देगा. सोनोवाल ने कहा कि वर्तमान में, स्वेज नहर के माध्यम से पश्चिमी समुद्री मार्ग से मुंबई बंदरगाह और रूस के सेंट पीटर्सबर्ग बंदरगाह के बीच की दूरी 8,675 समुद्री मील या 16,066 किमी है, जबकि पूर्वी समुद्री गलियारे के माध्यम से चेन्नई बंदरगाह और व्लादिवोस्तोक बंदरगाह के बीच की दूरी केवल 5,647 समुद्री मील या 10,458 किमी है. उन्होंने कहा कि इससे 5,608 किमी की दूरी कम होगी जो दोनों देशों के बीच माल के परिवहन में दक्षता को बढ़ाने के अलावा रसद लागत को काफी कम करेगी.

इन सबके मद्देनजर भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय व्यापार दोनों पक्षों के बीच चर्चा के दौरान महत्वपूर्ण मुद्दा है और इसलिए अगले सप्ताह मॉस्को में होने वाले वार्षिक द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन में इस पर चर्चा होगी.

यह भी पढ़ें- भारत-रूस शिखर सम्मेलन: मोदी और पुतिन द्विपक्षीय संबंधों के संपूर्ण आयाम की समीक्षा करेंगे

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