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एक क्लिक में जानिए कैसे होता है अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव? क्या है वोटिंग प्रक्रिया? - US PRESIDENTIAL ELECTIONS 2024

US Presidential elections 2024: अमेरिका का नया राष्ट्रपति 20 जनवरी को शपथ लेता है. इसे उद्घाटन दिवस भी कहते हैं.

US PRESIDENTIAL ELECTIONS 2024
जानिए कैसे होता है अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव? (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 4, 2024, 10:15 AM IST

Updated : Nov 4, 2024, 10:54 AM IST

न्यूयार्क: अमेरिका में मंगलवार 5 नवंबर को नए राष्ट्रपति के चुनाव होने जा रहे हैं. इस चुनाव में पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और उपराष्ट्रपति कमला हैरिस के बीच कड़ा मुकाबला है. इस समय पूरी दुनिया की निगाहें अमेरिका की ओर लगी हैं. जो भी कैंडीडेट राष्ट्रपति पद के लिए चुना जाएगा वह 20 जनवरी को पद की शपथ लेगा. बता दें, अमेरिकी राष्ट्रपति पद का कार्यकाल चार साल का होता है. ताजा जानकारी के मुताबिक पोल में बहुत कम अंतर से जीत मिलने के बाद, दोनों उम्मीदवारों ने अपना ध्यान सन बेल्ट के राज्यों पर केंद्रित कर दिया है.

सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह उठता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति को चुनने की प्रक्रिया क्या है. इलेक्टोरल कॉलेज कैसे बनता है? वोटिंग कैसे होती है और राष्ट्रपति चुनाव कैसे होता है? आइये विस्तार से जानते हैं.

जानिए कैसे होता है अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव? (PTI)

जनसंख्या के आधार पर बांटे जाते हैं इलेक्टर
यहां कुल 538 इलेक्टर हैं. इन्हें जनसंख्या के आधार पर सभी 50 प्रांतों और वाशिंगटन डीसी के बीच बांटा जाता है. हर जगह कम से कम तीन इलेक्टर होते हैं. अब सवाल यह उठता है कि इलेक्टर कैसे चुने जाते हैं? अमूमन पार्टियां या तो प्रांतों के पार्टी सम्मेलन में इलेक्टर चुनती हैं या पार्टी की केंद्रीय समिति वोटिंग के जरिये उनका चुनाव करती हैं. वोटिंग के दिन वोटर बैलट पेपर में अंडाकार निशान भरकर अपनी पसंद बताते हैं. बैलट पेपर में अमूमन राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों के नाम होते हैं.

बैलेट पेपर के जरिए होता है चुनाव
अमेरिका में चुनाव बैलट पेपर के जरिये होता है. ज्यादातर जगहों पर वोटों की गिनती इलेक्ट्रॉनिक तरीके से होती है. वोटों की गिनती के लिए बैलट पेटर को ऑप्टिकल स्कैनर से स्कैन किया जाता है. अंतिम नतीजे के लिए हर प्रांत में गिनती के आंकड़े मेमोरी ड्राइव के जरिये सेंट्रल इलेक्शन मैनेजमेंट सिस्टम या बोर्ड ऑफ इलेक्शंस को भेजे जाते हैं.

बहुत जल्दी अपडेट होते हैं परिणाम
न्यूयॉर्क में बोर्ड ऑफ इलेक्शंस के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर माइकल जे. रयान ने बताया कि हमने सिटी काउंसिल से मांग की और हर पोलिंग साइट पर टैबलेट डिवाइस के लिए पैसे लिए. इसलिए अब, जब मतदान बंद हो जाता है, तो वे मशीन से अनौपचारिक परिणाम स्टिक निकालते हैं और इसे एक टैबलेट में डालते हैं, और वे सीधे हमारे पास अपलोड हो जाते हैं. इसलिए, चुनाव की रात, जब मतदान बंद हो जाता है और हम रिजल्ट रिपोर्ट करना शुरू करते हैं, तो नौ बजे के कुछ समय बाद, उन वोटों के टोटल में, आपके पास सभी शुरुआती वोटों के योग, सभी गैरमौजूद और शुरुआती मेल बैलट के योग होंगे, जिन्हें चुनाव के दिन से पहले शुक्रवार तक प्रॉसिस किया गया था. आपके पास कोई भी मतदान साइट होगी जो अपनी मशीनें बंद करके अपलोड करती है. फिर वे परिणाम अपलोड करना जारी रखेंगे, और परिणाम पांच मिनट के रिफ्रेश पर अपडेट हो जाएंगे.

चुनाव खत्म होते ही शुरू होती है मतगणना
वोटिंग के दिन छह बजे पोलिंग खत्म होने के फौरन बाद वोटों की गिनती शुरू हो जाती है. अमेरिकी चुनाव प्रणाली विकेंद्रीकृत है. हर प्रांत की अलग अलग एजेंसी होती है. अमेरिका में भारत की तरह कोई एक चुनाव एजेंसी नहीं है. समाचार एजेंसियां ​​इलेक्टोरल कॉलेज के अनुमानों के आधार पर प्रांतों को 'कॉल' करती हैं. यहां पर कॉल का मतलब 'चुनाव नतीजों की पहले घोषणा करने से है.' अमेरिका के चुनावी इतिहास में एपी की कॉल अब तक 100 फीसदी सही साबित हुई है. वैसे तो अनुमानित नतीजे वोटिंग वाले दिन की देर रात या अगली सुबह तक आ जाते हैं, लेकिन करीबी मुकाबलों में थोड़ा ज्यादा वक्त लग जाता है. 11 दिसंबर तक सभी प्रांतों को सर्टीफिकेशन की प्रक्रिया पूरी करनी होती है.

जानिए क्या है पॉपुलर वोट
17 दिसंबर को सभी 538 इलेक्टर अपने-अपने प्रांतों में राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति के लिए अलग-अलग वोट डालेंगे. ज्यादातर प्रांतों में विनर-टेक-ऑल सिस्टम का इस्तेमाल होता है. इस सिस्टम में किसी प्रांत में जिस उम्मीदवार को सबसे ज्यादा वोट मिलते हैं, उसे उस प्रांत के सभी चुनावी वोट मिल जाते हैं. इसे 'पॉपुलर वोट' भी कहा जाता है. जब राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को किसी प्रांत के सबसे ज्यादा वोट मिलते हैं, तो उसकी पार्टी के प्रस्तावित इलेक्टर, इलेक्टोरल कॉलेज में शामिल हो जाते हैं. इलेक्टोरल कॉलेज के सदस्य अमेरिकी राष्ट्रपति को चुनने के लिए वोट डालते हैं. हारने वाले उम्मीदवार के प्रस्तावित इलेक्टर को सर्टिफाई नहीं किया जाता.

ये नियम दो प्रांतों में लागू नहीं होता है- मैन और नेब्रास्का में. वहां 'कांग्रेसनल डिस्ट्रिक्ट मेथड' का इस्तेमाल किया जाता है, जो वोटों को बांटता है. इस सिस्टम में कोई भी उम्मीदवार बिना पॉपुलर वोट हासिल किए राष्ट्रपति पद का चुनाव जीत सकता है. 2020 में नेब्रास्का के दूसरे जिले ने बाइडेन को वोट दिया था, जबकि बाकी प्रांतों के वोट रिपब्लिकन उम्मीदवार को मिले थे.

कम से कम 270 वोट चाहिए
सवाल है कि क्या इलेक्टर अपने प्रांत के सबसे ज्यादा वोटों के खिलाफ वोट डाल सकता है? तकनीकी रूप से हां. हालांकि कई प्रांतों में इलेक्टर कानूनन सिर्फ अपनी पार्टी के उम्मीदवार को ही वोट दे सकते हैं. ऐसा नहीं करने वालों को 'फेथलेस इलेक्टर' कहा जाता है. कानून के खिलाफ वोट डालने वाले इलेक्टर पर जुर्माना लग सकता है. 25 दिसंबर तक सारे इलेक्टोरल सर्टिफिकेट सीनेट के प्रेसिडेंट को सौंप दिए जाने हैं. छह जनवरी, 2025 को कांग्रेस के संयुक्त सत्र में सभी चुनावी वोटों की गिनती होगी. बता दें, व्हाइट हाउस की दौड़ जीतने के लिए उम्मीदवार को कम से कम 270 वोट चाहिए. राष्ट्रपति 20 जनवरी को शपथ लेते हैं, जो उद्घाटन दिवस होता है.

पढ़ें: अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव: कमला हैरिस के बड़े वादे, गाजा युद्ध खत्म कराएंगी और बदलेंगी गर्भपात नियम

न्यूयार्क: अमेरिका में मंगलवार 5 नवंबर को नए राष्ट्रपति के चुनाव होने जा रहे हैं. इस चुनाव में पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और उपराष्ट्रपति कमला हैरिस के बीच कड़ा मुकाबला है. इस समय पूरी दुनिया की निगाहें अमेरिका की ओर लगी हैं. जो भी कैंडीडेट राष्ट्रपति पद के लिए चुना जाएगा वह 20 जनवरी को पद की शपथ लेगा. बता दें, अमेरिकी राष्ट्रपति पद का कार्यकाल चार साल का होता है. ताजा जानकारी के मुताबिक पोल में बहुत कम अंतर से जीत मिलने के बाद, दोनों उम्मीदवारों ने अपना ध्यान सन बेल्ट के राज्यों पर केंद्रित कर दिया है.

सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह उठता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति को चुनने की प्रक्रिया क्या है. इलेक्टोरल कॉलेज कैसे बनता है? वोटिंग कैसे होती है और राष्ट्रपति चुनाव कैसे होता है? आइये विस्तार से जानते हैं.

जानिए कैसे होता है अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव? (PTI)

जनसंख्या के आधार पर बांटे जाते हैं इलेक्टर
यहां कुल 538 इलेक्टर हैं. इन्हें जनसंख्या के आधार पर सभी 50 प्रांतों और वाशिंगटन डीसी के बीच बांटा जाता है. हर जगह कम से कम तीन इलेक्टर होते हैं. अब सवाल यह उठता है कि इलेक्टर कैसे चुने जाते हैं? अमूमन पार्टियां या तो प्रांतों के पार्टी सम्मेलन में इलेक्टर चुनती हैं या पार्टी की केंद्रीय समिति वोटिंग के जरिये उनका चुनाव करती हैं. वोटिंग के दिन वोटर बैलट पेपर में अंडाकार निशान भरकर अपनी पसंद बताते हैं. बैलट पेपर में अमूमन राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों के नाम होते हैं.

बैलेट पेपर के जरिए होता है चुनाव
अमेरिका में चुनाव बैलट पेपर के जरिये होता है. ज्यादातर जगहों पर वोटों की गिनती इलेक्ट्रॉनिक तरीके से होती है. वोटों की गिनती के लिए बैलट पेटर को ऑप्टिकल स्कैनर से स्कैन किया जाता है. अंतिम नतीजे के लिए हर प्रांत में गिनती के आंकड़े मेमोरी ड्राइव के जरिये सेंट्रल इलेक्शन मैनेजमेंट सिस्टम या बोर्ड ऑफ इलेक्शंस को भेजे जाते हैं.

बहुत जल्दी अपडेट होते हैं परिणाम
न्यूयॉर्क में बोर्ड ऑफ इलेक्शंस के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर माइकल जे. रयान ने बताया कि हमने सिटी काउंसिल से मांग की और हर पोलिंग साइट पर टैबलेट डिवाइस के लिए पैसे लिए. इसलिए अब, जब मतदान बंद हो जाता है, तो वे मशीन से अनौपचारिक परिणाम स्टिक निकालते हैं और इसे एक टैबलेट में डालते हैं, और वे सीधे हमारे पास अपलोड हो जाते हैं. इसलिए, चुनाव की रात, जब मतदान बंद हो जाता है और हम रिजल्ट रिपोर्ट करना शुरू करते हैं, तो नौ बजे के कुछ समय बाद, उन वोटों के टोटल में, आपके पास सभी शुरुआती वोटों के योग, सभी गैरमौजूद और शुरुआती मेल बैलट के योग होंगे, जिन्हें चुनाव के दिन से पहले शुक्रवार तक प्रॉसिस किया गया था. आपके पास कोई भी मतदान साइट होगी जो अपनी मशीनें बंद करके अपलोड करती है. फिर वे परिणाम अपलोड करना जारी रखेंगे, और परिणाम पांच मिनट के रिफ्रेश पर अपडेट हो जाएंगे.

चुनाव खत्म होते ही शुरू होती है मतगणना
वोटिंग के दिन छह बजे पोलिंग खत्म होने के फौरन बाद वोटों की गिनती शुरू हो जाती है. अमेरिकी चुनाव प्रणाली विकेंद्रीकृत है. हर प्रांत की अलग अलग एजेंसी होती है. अमेरिका में भारत की तरह कोई एक चुनाव एजेंसी नहीं है. समाचार एजेंसियां ​​इलेक्टोरल कॉलेज के अनुमानों के आधार पर प्रांतों को 'कॉल' करती हैं. यहां पर कॉल का मतलब 'चुनाव नतीजों की पहले घोषणा करने से है.' अमेरिका के चुनावी इतिहास में एपी की कॉल अब तक 100 फीसदी सही साबित हुई है. वैसे तो अनुमानित नतीजे वोटिंग वाले दिन की देर रात या अगली सुबह तक आ जाते हैं, लेकिन करीबी मुकाबलों में थोड़ा ज्यादा वक्त लग जाता है. 11 दिसंबर तक सभी प्रांतों को सर्टीफिकेशन की प्रक्रिया पूरी करनी होती है.

जानिए क्या है पॉपुलर वोट
17 दिसंबर को सभी 538 इलेक्टर अपने-अपने प्रांतों में राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति के लिए अलग-अलग वोट डालेंगे. ज्यादातर प्रांतों में विनर-टेक-ऑल सिस्टम का इस्तेमाल होता है. इस सिस्टम में किसी प्रांत में जिस उम्मीदवार को सबसे ज्यादा वोट मिलते हैं, उसे उस प्रांत के सभी चुनावी वोट मिल जाते हैं. इसे 'पॉपुलर वोट' भी कहा जाता है. जब राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को किसी प्रांत के सबसे ज्यादा वोट मिलते हैं, तो उसकी पार्टी के प्रस्तावित इलेक्टर, इलेक्टोरल कॉलेज में शामिल हो जाते हैं. इलेक्टोरल कॉलेज के सदस्य अमेरिकी राष्ट्रपति को चुनने के लिए वोट डालते हैं. हारने वाले उम्मीदवार के प्रस्तावित इलेक्टर को सर्टिफाई नहीं किया जाता.

ये नियम दो प्रांतों में लागू नहीं होता है- मैन और नेब्रास्का में. वहां 'कांग्रेसनल डिस्ट्रिक्ट मेथड' का इस्तेमाल किया जाता है, जो वोटों को बांटता है. इस सिस्टम में कोई भी उम्मीदवार बिना पॉपुलर वोट हासिल किए राष्ट्रपति पद का चुनाव जीत सकता है. 2020 में नेब्रास्का के दूसरे जिले ने बाइडेन को वोट दिया था, जबकि बाकी प्रांतों के वोट रिपब्लिकन उम्मीदवार को मिले थे.

कम से कम 270 वोट चाहिए
सवाल है कि क्या इलेक्टर अपने प्रांत के सबसे ज्यादा वोटों के खिलाफ वोट डाल सकता है? तकनीकी रूप से हां. हालांकि कई प्रांतों में इलेक्टर कानूनन सिर्फ अपनी पार्टी के उम्मीदवार को ही वोट दे सकते हैं. ऐसा नहीं करने वालों को 'फेथलेस इलेक्टर' कहा जाता है. कानून के खिलाफ वोट डालने वाले इलेक्टर पर जुर्माना लग सकता है. 25 दिसंबर तक सारे इलेक्टोरल सर्टिफिकेट सीनेट के प्रेसिडेंट को सौंप दिए जाने हैं. छह जनवरी, 2025 को कांग्रेस के संयुक्त सत्र में सभी चुनावी वोटों की गिनती होगी. बता दें, व्हाइट हाउस की दौड़ जीतने के लिए उम्मीदवार को कम से कम 270 वोट चाहिए. राष्ट्रपति 20 जनवरी को शपथ लेते हैं, जो उद्घाटन दिवस होता है.

पढ़ें: अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव: कमला हैरिस के बड़े वादे, गाजा युद्ध खत्म कराएंगी और बदलेंगी गर्भपात नियम

Last Updated : Nov 4, 2024, 10:54 AM IST
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