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अमेरिकी संसद ने वेद नंदा की विरासत को सम्मानित किया

US Parliament Honors Ved Nandas Legacy : 2004 में सामुदायिक शांति निर्माण के लिए गांधी-किंग-इकेदा पुरस्कार और 2018 में पद्म भूषण के प्राप्तकर्ता भारतीय-अमेरिकी स्तंभकार वेद नंदा के जीवन का सम्मान करते हुए, अमेरिकी कांग्रेस ने इस सप्ताह उन्हें एक प्रमुख व्यक्ति और एक सेतु के रूप में वर्णित किया.

US Parliament Honors Ved Nandas Legacy
वेद नंदा की फाइल फोटो.
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By PTI

Published : Jan 20, 2024, 10:22 AM IST

वाशिंगटन : भारतीय-अमेरिकी स्तंभकार और 2018 में पद्म भूषण से सम्मानित वेद नंदा की विरासत को सम्मान देते हुए अमेरिकी कांग्रेस ने इस सप्ताह उन्हें एक प्रतिष्ठित शख्सियत और दोनों देशों के बीच एक सेतु बताया. डेनवर पोस्ट के जाने-माने स्तंभकार और डेनवर विश्वविद्यालय में 50 वर्ष तक पढ़ाने वाले प्रोफेसर नंदा का इस महीने 89 वर्ष की उम्र में निधन हो गया था.

उन्हें 2004 में सामुदायिक शांति निर्माण के लिए 'गांधी-किंग-इकेदा' पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. सांसद डायना डीगेट ने इस सप्ताह प्रतिनिधि सभा में कहा कि पांच दशक से अधिक समय तक प्रोफेसर नंदा ने डेनवर विश्वविद्यालय और भारतीय प्रवासी समुदाय के छात्रों का उत्थान किया. वह एक प्रतिष्ठित शख्सियत तथा दोनों देशों के बीच सेतु बने.

उन्होंने कई महत्वपूर्ण पदों पर भी काम किया, जिसमें 'हिंदू यूनिवर्सिटी ऑफ अमेरिका' के 'चेयरमैन ऑफ बोर्ड' तथा 'अमेरिकन सोसायटी ऑफ इंटरनेशनल लॉ' के उपाध्यक्ष का पद शामिल है. डेनवर पोस्ट के अनुसार, नंदा ने न्याय और शांति के लिए अथक प्रयास किया. भारत के विभाजन पर 2017 में डेनवर पोस्ट के लिए उनके लिखे लेख शायद ही कोई भूल पाएगा.

विभाजन के समय नंदा छोटे बच्चे थे जो अपनी मां के साथ अपनी जान बचाने के लिए भाग रहे थे. पंजाब के मुस्लिम बहुल शहर गुजरांवाला (अब पाकिस्तान) में हिंदू परिवार से आने वाले नंदा के मुस्लिम पड़ोसी ने उनके परिवार को भगाने में मदद की. उनके पड़ोसी रातोंरात 'जानवर' बन गए थे और उन्होंने वहां रह गए हिंदुओं की हत्याएं की थीं. उन्होंने पोस्ट में लिखा था पूर्वी पंजाब में यही मुसलमानों के साथ हुआ और हिंसक भीड़ ने उन्हें पाकिस्तान की ओर भागने के लिए मजबूर कर दिया था.

डीगेट ने कहा कि गुजरांवाला में 1934 में जन्मे वेद नंदा ने पंजाब विश्वविद्यालय से शुरुआत कर एक अनुकरणीय करियर बनाया जहां उन्होंने अर्थशास्त्र में एमए की डिग्री ली. उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री ली, नॉर्थवेस्टर्न विश्वविद्यालय से कानून की एक डिग्री ली और उसके बाद येल विश्वविद्यालय से परास्नातक की डिग्री हासिल की. उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर नंदा की स्पष्ट और तर्कसंगत व्याख्याओं ने पाठकों को महत्वपूर्ण दृष्टिकोण प्रदान किया.

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वाशिंगटन : भारतीय-अमेरिकी स्तंभकार और 2018 में पद्म भूषण से सम्मानित वेद नंदा की विरासत को सम्मान देते हुए अमेरिकी कांग्रेस ने इस सप्ताह उन्हें एक प्रतिष्ठित शख्सियत और दोनों देशों के बीच एक सेतु बताया. डेनवर पोस्ट के जाने-माने स्तंभकार और डेनवर विश्वविद्यालय में 50 वर्ष तक पढ़ाने वाले प्रोफेसर नंदा का इस महीने 89 वर्ष की उम्र में निधन हो गया था.

उन्हें 2004 में सामुदायिक शांति निर्माण के लिए 'गांधी-किंग-इकेदा' पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. सांसद डायना डीगेट ने इस सप्ताह प्रतिनिधि सभा में कहा कि पांच दशक से अधिक समय तक प्रोफेसर नंदा ने डेनवर विश्वविद्यालय और भारतीय प्रवासी समुदाय के छात्रों का उत्थान किया. वह एक प्रतिष्ठित शख्सियत तथा दोनों देशों के बीच सेतु बने.

उन्होंने कई महत्वपूर्ण पदों पर भी काम किया, जिसमें 'हिंदू यूनिवर्सिटी ऑफ अमेरिका' के 'चेयरमैन ऑफ बोर्ड' तथा 'अमेरिकन सोसायटी ऑफ इंटरनेशनल लॉ' के उपाध्यक्ष का पद शामिल है. डेनवर पोस्ट के अनुसार, नंदा ने न्याय और शांति के लिए अथक प्रयास किया. भारत के विभाजन पर 2017 में डेनवर पोस्ट के लिए उनके लिखे लेख शायद ही कोई भूल पाएगा.

विभाजन के समय नंदा छोटे बच्चे थे जो अपनी मां के साथ अपनी जान बचाने के लिए भाग रहे थे. पंजाब के मुस्लिम बहुल शहर गुजरांवाला (अब पाकिस्तान) में हिंदू परिवार से आने वाले नंदा के मुस्लिम पड़ोसी ने उनके परिवार को भगाने में मदद की. उनके पड़ोसी रातोंरात 'जानवर' बन गए थे और उन्होंने वहां रह गए हिंदुओं की हत्याएं की थीं. उन्होंने पोस्ट में लिखा था पूर्वी पंजाब में यही मुसलमानों के साथ हुआ और हिंसक भीड़ ने उन्हें पाकिस्तान की ओर भागने के लिए मजबूर कर दिया था.

डीगेट ने कहा कि गुजरांवाला में 1934 में जन्मे वेद नंदा ने पंजाब विश्वविद्यालय से शुरुआत कर एक अनुकरणीय करियर बनाया जहां उन्होंने अर्थशास्त्र में एमए की डिग्री ली. उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री ली, नॉर्थवेस्टर्न विश्वविद्यालय से कानून की एक डिग्री ली और उसके बाद येल विश्वविद्यालय से परास्नातक की डिग्री हासिल की. उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर नंदा की स्पष्ट और तर्कसंगत व्याख्याओं ने पाठकों को महत्वपूर्ण दृष्टिकोण प्रदान किया.

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