काबुल: तालिबान के अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज हुए तीन साल हो चुके हैं. कट्टरवादी समूह तालिबान विद्रोह के बाद 15 अगस्त 2021 को काबुल की सत्ता पर काबिज हो गया था. इसके बाद उसने देश में इस्लामी कानून लागू किया और महिलाओं को उच्च शिक्षा पर रोक लगाने समेत कई सख्त कदम उठाए. हालांकि, अभी तब तालिबान के शासन को अंतरराष्ट्रीय मान्यता नहीं मिली है. इसके बाद बावजूद, तालिबान चीन और रूस जैसी प्रमुख क्षेत्रीय शक्तियों के साथ उच्च-स्तरीय बैठकों में भाग लेता रहा है. तालिबान के पदाधिकारियों ने संयुक्त राष्ट्र की ओर से आयोजित वार्ता में भी भाग लिया, लेकिन अफगान महिलाओं और नागरिक समाज को बातचीत में शामिल होने नहीं दिया गया. यह तालिबान के लिए एक जीत थी, जो खुद को देश का एकमात्र प्रतिनिधि मानते हैं.
उनके शासन को देश में कोई चुनौती नहीं दे सकता है, और न ही किसी विदेशी को समर्थन देने की इच्छा है. यूक्रेन और गाजा में युद्ध ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकर्षित किया, लेकिन तालिबान इन मुद्दों पर चुप रहा है. माना जा रहा है कि अफगानिस्तान में अब पहले जैसा आतंकी खतरा नहीं है, लेकिन चुनौतियां बनी हुई हैं. अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता को हम पांच प्रमुख बिंदुओं से जानने की कोशिश करेंगे.
संस्कृति युद्ध और इनाम
तालिबान की पिरामिड जैसी शासन व्यवस्था में शीर्ष पर सुप्रीम लीडर है, जिसे आदर्श माना जाता है. मस्जिदों और मौलवी की भी भूमिका होती है. काबुल प्रशासन मौलवियों के फैसलों को लागू करता है और विदेशी अधिकारियों से मिलता है.
मिडिल ईस्ट इंस्टीट्यूट के नॉन-रेजिडेंट स्कॉलर जावीद अहमद ने कहा, "चरमपंथ के विभिन्न स्तर हैं, और तालिबान सत्तारूढ़ कट्टरपंथियों और राजनीतिक व्यवहारवादियों के एक असहज गठबंधन में हैं. इसने उन्हें एक सांस्कृतिक युद्ध में डाल दिया है."
तालिबान के सुप्रीम लीडर हिबतुल्लाह अखुंदजादा के रहते हुए सबसे विवादास्पद नीतियों को पलटने की संभावना नहीं है - और सुप्रीम लीडर रिटायर्ड नहीं होते हैं या इस्तीफा नहीं देते हैं. अंतिम सांस तक वे शीर्ष पद पर बने रहते हैं.
क्राइसिस ग्रुप के साउथ एशिया प्रोग्राम से जुड़े हुए इब्राहिम बाहिस ने कहा कि यह सोचना बेमानी है कि अलग-अलग राय तालिबान को विभाजित करने के लिए पर्याप्त हैं. उन्होंने कहा, "तालिबान एकजुट हैं और कई वर्षों तक राजनीतिक ताकत बने रहेंगे. वे एक समूह के रूप में शासन करते हैं, वे एक समूह के रूप में लड़ते हैं."
सत्ता में सामंजस्य बनाए रखने और अनुशासन सुनिश्चित करने के लिए तालिबान के अनुभवी नेता युद्ध के मैदान से नौकरशाही में चले गए हैं, सरकार और प्रांतों में शीर्ष पद पर हैं. अहमद ने कहा, "विद्रोह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए आपको उन्हें इनाम देना होगा." अन्य सुविधाओं में प्रांत चलाने की पूरी छूट या तीसरी या चौथी पत्नी रखने की अनुमति, एक नया पिकअप ट्रक, सीमा शुल्क में हिस्सा या घर शामिल हो सकती हैं.
देश का संचालन
बाहिस कहते हैं कि यह "आधुनिक समय की सबसे मजबूत अफगान सरकार है. वे गांव स्तर तक फरमान जारी कर सकते हैं." सिविल सेवक देश को चलाते हैं और उनके पास औपचारिक या तकनीकी शिक्षा होने की अधिक संभावना होती है. लेकिन तालिबान के नागरिक संस्थानों का नेतृत्व करने वालों को इस बात का उचित ज्ञान नहीं है कि ऐसे संस्थान कैसे चलाए जाते हैं. अहमद ने कहा, "उनकी योग्यताएं ईश्वर से आती हैं."
इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल असिस्टेंस की लीना रिक्किला तमांग कहती हैं कि तालिबान की शासन करने की वैधता अफगानों से नहीं बल्कि धर्म और संस्कृति की उनकी व्याख्या से आती है. उन्होंने कहा कि अगर किसी सरकार को नागरिकों के विश्वास और समर्थन, अंतरराष्ट्रीय शक्तियों द्वारा मान्यता और चुनाव जैसी प्रक्रियाओं के जरिये वैधता के आधार पर परिभाषित किया जाता है, तो तालिबान सरकार के रूप में योग्य नहीं है.
आर्थिक संकट
अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था कमजोर हो गई है. 2023 में, विदेशी सहायता अभी भी देश के सकल घरेलू उत्पाद (डीजीपी) का लगभग 30 प्रतिशत है. पिछले तीन वर्षों के दौरान अंतरराष्ट्रीय सहायता संगठनों को फंड देने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने कम से कम 3.8 बिलियन डॉलर का निवेश किया है. तालिबान के सत्ता में आने के बाद से अमेरिका सबसे बड़ा दानदाता बना हुआ है और 3 बिलियन डॉलर से अधिक की सहायता भेजी है. लेकिन इन पैसों पर नजर रखने के लिए नियुक्त अमेरिकी निगरानी संस्था का कहना है कि बहुत सारा पैसा टैक्स में जाता है या डायवर्ट किया जाता है.
अफगानिस्तान पुनर्निर्माण के लिए विशेष महानिरीक्षक के ऑडिट और निरीक्षण के उप महानिरीक्षक क्रिस बोरगेसन कहते हैं, "नकदी स्रोत से जितनी दूर होती जाती है, पारदर्शिता उतनी ही कम होती जाती है."
तालिबान भी बहुत ज्यादा टैक्स वसूलता है. 2023 में उसने लगभग 2.96 बिलियन डॉलर जुटाए थे. लेकिन यह विशाल और जटिल जरूरतों वाले देश में यह बहुत ज्यादा नहीं है, और तालिबान के पास अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने के साधन नहीं हैं. केंद्रीय बैंक पैसे नहीं छाप सकता. नकदी विदेश में छापी जाती है. ब्याज पर लेन-देन प्रतिबंधित है क्योंकि इस्लाम में ब्याज वर्जित है और बैंक कर्ज नहीं दे रहे हैं. तालिबान पैसे कर्ज के रूप में नहीं ले सकता क्योंकि उसे सरकार के रूप में मान्यता नहीं दी गई है और अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग सिस्टम बंद है.
प्राकृतिक आपदाओं और पाकिस्तान से लौटने को मजबूर अफगानों की भीड़ ने अफगानिस्तान की प्रमुख जरूरतों को पूरा करने के लिए विदेशी सहायता पर निर्भरता को रेखांकित किया है. अगर भविष्य में अंतरराष्ट्रीय समुदाय उस तरह की सहायता नहीं भेज पाता है तो देश में बड़ा संकट पैदा हो सकता है. अफगानिस्तान के लिए विश्व बैंक के वरिष्ठ अर्थशास्त्री मुहम्मद वहीद कहते हैं, "हम जानते हैं कि अफगानिस्तान को अंतरराष्ट्रीय समुदाय से कम पैसे मिलने लगेंगे."
अर्थव्यवस्था को एक और बड़ा झटका तालिबान द्वारा महिला शिक्षा और अधिकांश रोजगार पर प्रतिबंध लगाना है, जिससे अफगानिस्तान की आधी आबादी खर्च और टैक्स भुगतान से दूर हो गई है जो अर्थव्यवस्था को मजबूत कर सकता है. बाहिस कहते हैं कि इसके अलावा, तालिबान की नशीले पदार्थों के खिलाफ नीति ने हजारों किसानों की आजीविका को बर्बाद कर दिया है.
कूटनीति और वैश्विक मंच
बाहिस ने कहा कि अफगानिस्तान, बड़ी शक्तियों के पड़ोस में एक छोटा सा देश है, और इस बात पर क्षेत्रीय सहमति है कि स्थिर अफगानिस्तान होना पूरे क्षेत्र के लिए बेहतर है. लेकिन पश्चिम, खासकर अमेरिका से समर्थन, अरबों डॉलर की फ्रीज की गई संपत्तियों को खोलने और प्रतिबंधों को हटाने के लिए महत्वपूर्ण है. चीन और रूस के साथ तालिबान के संबंध महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य हैं. उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की क्रेडेंशियल कमेटी में भी सीटें हासिल की हैं, जो यह तय करती है कि किसी सरकार को वैधता दी जाए या नहीं.
फिलहाल, खाड़ी देश अपनी बाजी बचाने के लिए तालिबान के साथ जुड़ रहे हैं. इस साल यूएई के एक नेता और एक तालिबान अधिकारी (जिसके सिर पर अमेरिका ने इनाम घोषित किया है) के बीच हुई बैठक ने तालिबान से निपटने के तरीके पर वैश्विक विभाजन को उजागर किया.
ब्रिटेन में यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटर में अंतरराष्ट्रीय संबंधों की लेक्चरर वीडा मेहरान कहती हैं कि तालिबानी इस बात पर जोर देना चाहते हैं कि वे सरकार के रूप में कितने प्रभावी हैं और यह दिखाना चाहते हैं कि देश शांतिपूर्ण है और लोगों को सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं.
हालांकि तालिबान की कार्रवाई के कारण अफगानिस्तान में दर्जनों मीडिया समूह बंद हो गए हैं, लेकिन देश के शासकों ने सोशल मीडिया के प्रभाव को समझ लिया है और वे अरबी भाषा में संदेश पोस्ट करते हैं. उनकी सामग्री का उद्देश्य इस्लामी कानून के प्रति उनके दृष्टिकोण को सामान्य बनाना है. मेहरान ने कहा, "देश में जो कुछ हो रहा है उसका यह एक कमजोर और सफेदपोश विवरण है."
सुदृढ़, लेकिन सुरक्षित नहीं
तालिबान ने चेकपॉइंट, बख्तरबंद वाहनों और हजारों लड़ाकों के जरिए अफगानिस्तान को सुदृढ़ कर लिया है. लेकिन देश सुरक्षित नहीं है, खासकर महिलाओं और अल्पसंख्यकों के लिए, क्योंकि आत्मघाती बम विस्फोटों और अन्य हमलों में नागरिक हताहत होते रहते हैं. इस्लामिक स्टेट समूह ने काबुल में ज्यादातर शिया बहुल दश्त-ए-बारची इलाके को बार-बार निशाना बनाया है. हमलों और हताहतों की संख्या की पुष्टि करने में धीमी गति से काम करने वाली पुलिस मीडिया को बताती है कि जांच चल रही है, लेकिन यह नहीं बताती कि किसी गुनहगार को न्याय के कटघरे में लाया गया है या नहीं.
एक नई घटना अफगान महिलाओं द्वारा अनुभव की जाने वाली चिंता है क्योंकि तालिबान ने कपड़ों, काम और यात्रा को लेकर कड़ी प्रतिबंध लागू किए हैं और महिलाओं के यात्रा करते समय पुरुष अभिभावक होना अनिवार्य है. मेहरान कहती हैं, "मुख्यधारा के मीडिया के लिए संदेश यह है कि यह ठीक है और तालिबान के शासन में अफगानिस्तान में अच्छी सुरक्षा है. मेरा तर्क यह होगा कि, हम किसकी सुरक्षा की बात कर रहे हैं?"
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