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तीन वर्ग किलोमीटर का एरिया और 3700 आबादी, जानें क्यों अहम है सेंट मार्टिन द्वीप, जिसपर है अमेरिका की नजर - St Martins Island - ST MARTINS ISLAND

Importance Of St Martins Island: शेख हसीना ने अपनेइस्तीफे और भारत प्रस्थान के बाद पहली बार अपनी बात रखी है. इस दौरान उन्होंने अपने अप्रत्याशित निष्कासन में अमेरिका की भूमिका होने का संकेत दिया.

सेंट मार्टिन द्वीप
सेंट मार्टिन द्वीप (Getty Images)
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By Aroonim Bhuyan

Published : Aug 11, 2024, 5:35 PM IST

ढाका: बांग्लादेश की प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा देने और भारत भागने से पहले शेख हसीना राष्ट्र को संबोधित करना चाहती थीं, लेकिन सरकार विरोधी प्रदर्शनों के कारण सेना ने उन्हें ऐसा करने की अनुमति नहीं दी. इस बीच शेख हसीना ने एक सप्ताह पहले अपने नाटकीय इस्तीफे और भारत प्रस्थान के बाद पहली बार अपनी बात रखी है. इस दौरान उन्होंने अपने अप्रत्याशित निष्कासन में अमेरिका की भूमिका होने का संकेत दिया.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक हसीना ने कहा, "मैंने हिंसा से बचने के लिए इस्तीफा दे दिया. उनका उद्देश्य छात्रों की लाशों पर सत्ता हथियाना था, लेकिन मैंने इस्तीफा देकर ऐसा होने से रोक दिया." शेख हसीना ने दावा किया कि अगर वह सेंट मार्टिन द्वीप की संप्रभुता और अमेरिका को बंगाल की खाड़ी पर उसका प्रभुत्व अमेरिका को दे देती तो वह सत्ता में बन रह सकती थीं.

हालांकि, सवाल यह है कि हसीना ने अपने खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के बीच इस द्वीप की संप्रभुता का मुद्दा क्यों उठाया और अमेरिका अमेरिका क्यों इस द्वीप पर अपना प्रभुत्व चाहता है और इसमें यूएस का क्या इंटरेस्ट हैं. तो चलिए आपको इसके बारे में विस्तार से बताते हैं.

सेंट मार्टिन कहां है?
सेंट मार्टिन द्वीप बंगाल की खाड़ी के उत्तरपूर्वी भाग में स्थित है. यह म्यांमार के पास बांग्लादेश के सबसे दक्षिणी प्रायद्वीप, कॉक्स बाजार-टेकनाफ के सिरे से लगभग नौ किलोमीटर दक्षिण में एक सोल कोराल द्वीप है. यह बांग्लादेश का एकमात्र कोराल आइसलैंड है.

महज तीन वर्ग किमी क्षेत्रफल
इस द्वीप का क्षेत्रफल केवल तीन वर्ग किलोमीटर है और यहां लगभग 3,700 लोग रहते हैं जो मुख्य रूप से मछली पकड़ने, चावल की खेती, नारियल की खेती और समुद्री शैवाल की कटाई में लगे हुए हैं, जिसे सुखाकर म्यांमार को निर्यात किया जाता है.

अमेरिका को बेचने की योजना
हाल ही में इस द्वीप पर काफी ध्यान आकर्षित किया है. आरोप है कि पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के नेतृत्व वाली बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) ने चुनाव जीतने में मदद के बदले में सैन्य अड्डा बनाने के लिए इसे अमेरिका को बेचने की योजना बनाई थी. हालांकि, इन दावों को अमेरिकी विदेश विभाग ने खारिज कर दिया, जिसने बांग्लादेश की संप्रभुता का सम्मान करने और स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के माध्यम से लोकतंत्र को बढ़ावा देने की अपनी प्रतिबद्धता पर जोर दिया.

सेंट मार्टिन द्वीप का इतिहास
1937 में म्यांमार के अलग होने के बाद यह द्वीप ब्रिटिश भारत का हिस्सा बना. 1947 के विभाजन तक यह ऐसा ही रहा. इसके बाद यह पाकिस्तान के नियंत्रण में चला गया. बाद में, 1971 के मुक्ति संग्राम के बाद यह कोरल द्वीप बांग्लादेश का हिस्सा बन गया. इसके बाद 1974 में बांग्लादेश और म्यांमार के बीच इसको लेकर एक समझौता हुआ कि कोरल द्वीप बांग्लादेशी क्षेत्र का हिस्सा होगा.

म्यांमार के साथ समुद्री सीमा का मुद्दा
सेंट मार्टिन द्वीप को बांग्लादेशी क्षेत्र के रूप में मान्यता देने वाले 1974 के समझौते के बावजूद, द्वीप की समुद्री सीमा के सीमांकन को लेकर मुद्दे थे. बांग्लादेशी मछुआरे अक्सर अपनी नावों का इस्तेमाल द्वीप पर करते हैं, जो मछली पकड़ने का एक प्रमुख केंद्र है और म्यांमार की नौसेना बलों की ओर से उन्हें हिरासत में लिए जाने और गोलीबारी की चेतावनी का सामना करना पड़ता है.

आज तक इस द्वीप पर बांग्लादेशी स्वामित्व को लेकर कोई सवाल नहीं उठा है, लेकिन यह समुद्री सीमा का सीमांकन ही था जिसने बंगाल की खाड़ी के पास इस रणनीतिक स्थान को देखते हुए इस क्षेत्र में संप्रभुता युद्ध को भड़काने की धमकी दी थी. वर्ष 2012 में, समुद्री कानून के लिए अंतर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरण (ITLOS) ने एक ऐतिहासिक निर्णय में, प्रवाल द्वीप पर बांग्लादेश की संप्रभुता की पुष्टि की थी, जिसके देश के प्रादेशिक जल और विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZ) पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़े.

अराकान आर्मी कर रही दावे की कोशिश
म्यांमार द्वारा की गई हिंसक सैन्य कार्रवाई के कारण 2017 में सात लाख से अधिक रोहिंग्या, जो मुख्य रूप से मुसलमान हैं, पड़ोसी बांग्लादेश में भागने को मजबूर हुए. उनमें से हजारों लोग कॉक्स बाजार में कुटुपलोंग शरणार्थी शिविर में डेरा डाले हुए हैं, जो दुनिया का सबसे बड़ा शरणार्थी शिविर है. कॉक्स बाजार सेंट मार्टिन द्वीप के बहुत नजदीक स्थित है, ऐसी रिपोर्टें हैं कि म्यांमार द्वारा प्रतिबंधित संगठन अराकान आर्मी के सदस्य द्वीप पर दावा करने की कोशिश कर रहे हैं, हालांकि बांग्लादेश ने बार-बार इसका खंडन किया है.

पिछले कुछ वर्षों में म्यांमार के जुंटा और अराकान आर्मी के बीच गोलीबारी की छिटपुट घटनाएं हुई हैं. इसने बांग्लादेशी नौसेना को सेंट मार्टिन द्वीप के आसपास युद्धपोत तैनात करने के लिए प्रेरित किया है.

सेंट मार्टिन का भू-राजनीतिक महत्व
सेंट मार्टिन द्वीप 1971 में देश के अस्तित्व में आने के बाद से बांग्लादेश की राजनीति पर हावी रहा है. बंगाल की खाड़ी से इसकी निकटता और म्यांमार के साथ समुद्री सीमा ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, विशेष रूप से अमेरिका और चीन की रुचि को इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति को मजबूत करने के लिए द्वीप का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया है.

बांग्लादेशी शिक्षाविद और कार्यकर्ता शरीन शाजहां नाओमी के अनुसार अमेरिका ने बांग्लादेश को एयरबेस स्थापित करने के लिए सेंट मार्टिन द्वीप को लीज पर लेने का प्रस्ताव लंबे समय से दिया है. नाओमी ने ईटीवी भारत से कहा, "हसीना जो कह रही हैं, उसमें कुछ दम है."

पिछले साल जून में शेख हसीना ने आरोप लगाया था कि अमेरिका ने चुनावों में बीएनपी की जीत के बदले में सेंट मार्टिन द्वीप पर कब्जा करने और एक सैन्य अड्डा बनाने का इरादा किया था. उन्होंने यह भी दावा किया कि अगर बीएनपी सत्ता में आती है, तो वह इस द्वीप को अमेरिका को बेच देगी. उन्होंने जोर देकर कहा कि अगर सेंट मार्टिन द्वीप को पट्टे पर दिया जाता है, तो भी उनकी सरकार सत्ता में रहेगी, लेकिन उन्होंने कहा कि जब तक वह सत्ता में हैं, वह ऐसा कदम कभी नहीं उठाएंगी.

बांग्लादेशी अखबार प्रोथोम एलो ने शेख हसीना के हवाले से कहा, "बीएनपी 2001 में गैस बेचने का वादा करके सत्ता में आई थी. अब वे देश को बेचना चाहते हैं. वे सेंट मार्टिन द्वीप को बेचने का वादा करके सत्ता में आना चाहते हैं. देश की संपत्ति बेचकर सत्ता में आने का मेरा कोई इरादा नहीं है."

अमेरिकी विदेश विभाग का खंडन
हसीना के आरोपों का अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने सीधा खंडन किया, जिन्होंने उन्हें सटीक नहीं बताया और कहा कि शेख हसीना के नेतृत्व वाली सरकार के साथ द्वीप पर कब्जा करने के बारे में कोई चर्चा नहीं की गई. उन्होंने कहा, "हमने सेंट मार्टिन द्वीप पर कब्जा करने के बारे में कभी कोई बातचीत नहीं की. हम बांग्लादेश के साथ अपनी साझेदारी को महत्व देते हैं. हम लोकतंत्र को बढ़ावा देने के लिए मिलकर काम करके अपने संबंधों को मजबूत करने का प्रयास करते हैं, जिसमें स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों का समर्थन करना भी शामिल है."

यह भी पढ़ें- कनाडा में बांग्लादेश के हिंदू समुदाय का विरोध प्रदर्शन,अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की उठाई मांग

ढाका: बांग्लादेश की प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा देने और भारत भागने से पहले शेख हसीना राष्ट्र को संबोधित करना चाहती थीं, लेकिन सरकार विरोधी प्रदर्शनों के कारण सेना ने उन्हें ऐसा करने की अनुमति नहीं दी. इस बीच शेख हसीना ने एक सप्ताह पहले अपने नाटकीय इस्तीफे और भारत प्रस्थान के बाद पहली बार अपनी बात रखी है. इस दौरान उन्होंने अपने अप्रत्याशित निष्कासन में अमेरिका की भूमिका होने का संकेत दिया.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक हसीना ने कहा, "मैंने हिंसा से बचने के लिए इस्तीफा दे दिया. उनका उद्देश्य छात्रों की लाशों पर सत्ता हथियाना था, लेकिन मैंने इस्तीफा देकर ऐसा होने से रोक दिया." शेख हसीना ने दावा किया कि अगर वह सेंट मार्टिन द्वीप की संप्रभुता और अमेरिका को बंगाल की खाड़ी पर उसका प्रभुत्व अमेरिका को दे देती तो वह सत्ता में बन रह सकती थीं.

हालांकि, सवाल यह है कि हसीना ने अपने खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के बीच इस द्वीप की संप्रभुता का मुद्दा क्यों उठाया और अमेरिका अमेरिका क्यों इस द्वीप पर अपना प्रभुत्व चाहता है और इसमें यूएस का क्या इंटरेस्ट हैं. तो चलिए आपको इसके बारे में विस्तार से बताते हैं.

सेंट मार्टिन कहां है?
सेंट मार्टिन द्वीप बंगाल की खाड़ी के उत्तरपूर्वी भाग में स्थित है. यह म्यांमार के पास बांग्लादेश के सबसे दक्षिणी प्रायद्वीप, कॉक्स बाजार-टेकनाफ के सिरे से लगभग नौ किलोमीटर दक्षिण में एक सोल कोराल द्वीप है. यह बांग्लादेश का एकमात्र कोराल आइसलैंड है.

महज तीन वर्ग किमी क्षेत्रफल
इस द्वीप का क्षेत्रफल केवल तीन वर्ग किलोमीटर है और यहां लगभग 3,700 लोग रहते हैं जो मुख्य रूप से मछली पकड़ने, चावल की खेती, नारियल की खेती और समुद्री शैवाल की कटाई में लगे हुए हैं, जिसे सुखाकर म्यांमार को निर्यात किया जाता है.

अमेरिका को बेचने की योजना
हाल ही में इस द्वीप पर काफी ध्यान आकर्षित किया है. आरोप है कि पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के नेतृत्व वाली बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) ने चुनाव जीतने में मदद के बदले में सैन्य अड्डा बनाने के लिए इसे अमेरिका को बेचने की योजना बनाई थी. हालांकि, इन दावों को अमेरिकी विदेश विभाग ने खारिज कर दिया, जिसने बांग्लादेश की संप्रभुता का सम्मान करने और स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के माध्यम से लोकतंत्र को बढ़ावा देने की अपनी प्रतिबद्धता पर जोर दिया.

सेंट मार्टिन द्वीप का इतिहास
1937 में म्यांमार के अलग होने के बाद यह द्वीप ब्रिटिश भारत का हिस्सा बना. 1947 के विभाजन तक यह ऐसा ही रहा. इसके बाद यह पाकिस्तान के नियंत्रण में चला गया. बाद में, 1971 के मुक्ति संग्राम के बाद यह कोरल द्वीप बांग्लादेश का हिस्सा बन गया. इसके बाद 1974 में बांग्लादेश और म्यांमार के बीच इसको लेकर एक समझौता हुआ कि कोरल द्वीप बांग्लादेशी क्षेत्र का हिस्सा होगा.

म्यांमार के साथ समुद्री सीमा का मुद्दा
सेंट मार्टिन द्वीप को बांग्लादेशी क्षेत्र के रूप में मान्यता देने वाले 1974 के समझौते के बावजूद, द्वीप की समुद्री सीमा के सीमांकन को लेकर मुद्दे थे. बांग्लादेशी मछुआरे अक्सर अपनी नावों का इस्तेमाल द्वीप पर करते हैं, जो मछली पकड़ने का एक प्रमुख केंद्र है और म्यांमार की नौसेना बलों की ओर से उन्हें हिरासत में लिए जाने और गोलीबारी की चेतावनी का सामना करना पड़ता है.

आज तक इस द्वीप पर बांग्लादेशी स्वामित्व को लेकर कोई सवाल नहीं उठा है, लेकिन यह समुद्री सीमा का सीमांकन ही था जिसने बंगाल की खाड़ी के पास इस रणनीतिक स्थान को देखते हुए इस क्षेत्र में संप्रभुता युद्ध को भड़काने की धमकी दी थी. वर्ष 2012 में, समुद्री कानून के लिए अंतर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरण (ITLOS) ने एक ऐतिहासिक निर्णय में, प्रवाल द्वीप पर बांग्लादेश की संप्रभुता की पुष्टि की थी, जिसके देश के प्रादेशिक जल और विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZ) पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़े.

अराकान आर्मी कर रही दावे की कोशिश
म्यांमार द्वारा की गई हिंसक सैन्य कार्रवाई के कारण 2017 में सात लाख से अधिक रोहिंग्या, जो मुख्य रूप से मुसलमान हैं, पड़ोसी बांग्लादेश में भागने को मजबूर हुए. उनमें से हजारों लोग कॉक्स बाजार में कुटुपलोंग शरणार्थी शिविर में डेरा डाले हुए हैं, जो दुनिया का सबसे बड़ा शरणार्थी शिविर है. कॉक्स बाजार सेंट मार्टिन द्वीप के बहुत नजदीक स्थित है, ऐसी रिपोर्टें हैं कि म्यांमार द्वारा प्रतिबंधित संगठन अराकान आर्मी के सदस्य द्वीप पर दावा करने की कोशिश कर रहे हैं, हालांकि बांग्लादेश ने बार-बार इसका खंडन किया है.

पिछले कुछ वर्षों में म्यांमार के जुंटा और अराकान आर्मी के बीच गोलीबारी की छिटपुट घटनाएं हुई हैं. इसने बांग्लादेशी नौसेना को सेंट मार्टिन द्वीप के आसपास युद्धपोत तैनात करने के लिए प्रेरित किया है.

सेंट मार्टिन का भू-राजनीतिक महत्व
सेंट मार्टिन द्वीप 1971 में देश के अस्तित्व में आने के बाद से बांग्लादेश की राजनीति पर हावी रहा है. बंगाल की खाड़ी से इसकी निकटता और म्यांमार के साथ समुद्री सीमा ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, विशेष रूप से अमेरिका और चीन की रुचि को इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति को मजबूत करने के लिए द्वीप का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया है.

बांग्लादेशी शिक्षाविद और कार्यकर्ता शरीन शाजहां नाओमी के अनुसार अमेरिका ने बांग्लादेश को एयरबेस स्थापित करने के लिए सेंट मार्टिन द्वीप को लीज पर लेने का प्रस्ताव लंबे समय से दिया है. नाओमी ने ईटीवी भारत से कहा, "हसीना जो कह रही हैं, उसमें कुछ दम है."

पिछले साल जून में शेख हसीना ने आरोप लगाया था कि अमेरिका ने चुनावों में बीएनपी की जीत के बदले में सेंट मार्टिन द्वीप पर कब्जा करने और एक सैन्य अड्डा बनाने का इरादा किया था. उन्होंने यह भी दावा किया कि अगर बीएनपी सत्ता में आती है, तो वह इस द्वीप को अमेरिका को बेच देगी. उन्होंने जोर देकर कहा कि अगर सेंट मार्टिन द्वीप को पट्टे पर दिया जाता है, तो भी उनकी सरकार सत्ता में रहेगी, लेकिन उन्होंने कहा कि जब तक वह सत्ता में हैं, वह ऐसा कदम कभी नहीं उठाएंगी.

बांग्लादेशी अखबार प्रोथोम एलो ने शेख हसीना के हवाले से कहा, "बीएनपी 2001 में गैस बेचने का वादा करके सत्ता में आई थी. अब वे देश को बेचना चाहते हैं. वे सेंट मार्टिन द्वीप को बेचने का वादा करके सत्ता में आना चाहते हैं. देश की संपत्ति बेचकर सत्ता में आने का मेरा कोई इरादा नहीं है."

अमेरिकी विदेश विभाग का खंडन
हसीना के आरोपों का अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने सीधा खंडन किया, जिन्होंने उन्हें सटीक नहीं बताया और कहा कि शेख हसीना के नेतृत्व वाली सरकार के साथ द्वीप पर कब्जा करने के बारे में कोई चर्चा नहीं की गई. उन्होंने कहा, "हमने सेंट मार्टिन द्वीप पर कब्जा करने के बारे में कभी कोई बातचीत नहीं की. हम बांग्लादेश के साथ अपनी साझेदारी को महत्व देते हैं. हम लोकतंत्र को बढ़ावा देने के लिए मिलकर काम करके अपने संबंधों को मजबूत करने का प्रयास करते हैं, जिसमें स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों का समर्थन करना भी शामिल है."

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