हैदराबाद : अभी यूक्रेन और रूस तथा इजराइल और फिलिस्तीन के बीच युद्ध खत्म भी नहीं हुआ कि दो और देश आमने-सामने आ गए हैं. ये हैं ब्रिटेन और अर्जेंटीना. दोनों देशों के बीच फॉकलैंड द्वीप को लेकर विवाद है. विवाद लंबे समय से चला आ रहा है.
अलजजीरा की एक रिपोर्ट के मुताबिक, यूके तट से लगभग 13,000 किलोमीटर (8,000 मील) दूर होने के बावजूद फॉकलैंड्स ब्रिटिश लोगों के लिए काफी महत्वपूर्ण है. यहां की आबादी 3200 है. लगभग 42 वर्षों से यह द्वीप ब्रिटिश और अर्जेंटीना सैनिकों के बीच विवाद का कारण रहा है. ब्रिटिश अपना हक जता रहे हैं.
ब्रिटिश विदेश सचिव लॉर्ड डेविड कैमरन फॉकलैंड द्वीप समूह पर संप्रभुता के अर्जेंटीना के दावों के सामने 'द्वीपवासियों के आत्मनिर्णय के अधिकार को बनाए रखने के लिए ब्रिटेन की प्रतिबद्धता को दोहराने' के लिए फॉकलैंड द्वीप समूह पहुंचे.
डेविड कैमरन, जो 2010 से 2016 तक ब्रिटेन के प्रधान मंत्री थे, ने ब्रेक्सिट जनमत संग्रह के बाद इस्तीफा दे दिया था. डेविड कैमरन 30 वर्षों में दक्षिण अटलांटिक में ब्रिटिश प्रवासी क्षेत्र का दौरा करने वाले पहले ब्रिटेन के विदेश सचिव हैं. वह बुधवार यहां से ब्राजील में जी20 विदेश मंत्रियों की बैठक में भाग लेने के लिए निकल गये. कैमरून ने इस यात्रा के दौरान द्वीप के अन्य हिस्सों के अलावा उस स्थान को भी कवर किया जो 1982 फॉकलैंड युद्ध के रूप में चिह्नित हैं.
क्षेत्र की अपनी यात्रा से पहले, कैमरन ने स्पष्ट किया कि फॉकलैंड्स पर ब्रिटिश अधिकार क्षेत्र पर समझौता नहीं किया जा सकता है. वह खास तौर से दो प्रमुख द्वीप पूर्वी फॉकलैंड और पश्चिमी फॉकलैंड का जिक्र किया था. उन्होंने कहा था कि फॉकलैंड द्वीप ब्रिटिश परिवार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. हम यह स्पष्ट है कि जब तक वे परिवार का हिस्सा बने रहना चाहते हैं, संप्रभुता का कोई सवाल ही नहीं उठता है.
फॉकलैंड ब्रिटिश प्रवासी क्षेत्र कैसे बन गया?
1690 में अंग्रेज कैप्टन जॉन स्ट्रॉन्ग के वहां पहुंचने के बाद से कई शक्तियों ने द्वीपों पर अपना दावा किया है. इस क्षेत्र का नाम अपने संरक्षक, विस्काउंट फॉकलैंड के नाम पर रखा था. तब से सदियों से, यूनाइटेड किंगडम, अर्जेंटीना, फ्रांस और स्पेन ने द्वीपों के इस लगभग वृक्षहीन समूह पर बस्तियां स्थापित की हैं जहां हर गर्मियों में लगभग दस लाख पेंगुइन घोंसला बनाते हैं. ब्रिटेन ने 1833 से यहां शासन किया है. द्वीपों पर उसका दावा अपनी दीर्घकालिक उपस्थिति के साथ-साथ ब्रिटिश समर्थक द्वीपवासियों की राजनीतिक इच्छाशक्ति पर आधारित है.
फॉकलैंड्स पर अर्जेंटीना के दावे का आधार क्या है?
अर्जेंटीना लंबे समय से द्वीपों पर ब्रिटेन की संप्रभुता के अधिकार पर विवाद करता रहा है. दक्षिण अमेरिकी राज्य का कहना है कि उसे ये द्वीप, जिन्हें अर्जेंटीना में लास माल्विनास के नाम से जाना जाता है, 1800 के दशक की शुरुआत में स्पेनिश राजाओं से विरासत में मिले थे. अर्जेंटीना की मुख्य भूमि से उनकी निकटता के कारण उसका दावा और मजबूत हो जाता है.
अल जजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक, रॉयल होलोवे, लंदन विश्वविद्यालय में भू-राजनीति में एसोसिएट प्रोफेसर, अलास्डेयर पिंकर्टन ने बताया कि फॉकलैंड पर संप्रभुता के अर्जेंटीना के दावे अर्जेंटीना की राजनीति और समाज में गहराई से बसे हुए हैं, जो शिक्षा प्रणाली, सड़क संकेत, बैंकनोट और अर्जेंटीना के संविधान के माध्यम से शामिल हैं.
अर्जेंटीना और ब्रिटेन के बीच विवाद 2 अप्रैल, 1982 को संकट तब चरम पर पहुंच गया जब अर्जेंटीना ने द्वीपसमूह पर नियंत्रण करने के लिए द्वीपों पर आक्रमण किया. क्षेत्र को वापस जीतने के लिए तत्कालीन ब्रिटिश प्रधान मंत्री मार्गरेट थैचर ने यूके सैन्य टास्क फोर्स भेजे जाने के बाद, 74 दिनों तक संघर्ष चला. ब्रिटेन की जीत हुई, लेकिन संघर्ष में अर्जेंटीना के 655 और 255 ब्रिटिश सैनिक मारे गए.
द्वीपवासी क्या चाहते हैं?
क्षेत्र पर बढ़ते अर्जेंटीना के दावों के खिलाफ दबाव डालने के लिए, फॉकलैंडर्स ने 10 और 11 मार्च, 2013 को एक रेफरेंडम पर मतदान किया. इस रेफरेंडम में मूल सवाल था कि क्या आप चाहते हैं कि फॉकलैंड द्वीप समूह यूनाइटेड किंगडम के एक विदेशी क्षेत्र के रूप में अपनी वर्तमान राजनीतिक स्थिति को बरकरार रखे. वोट देने के पात्र लोगों में से 90 प्रतिशत से अधिक ने मतदान किया. डाले गए 1,517 वोटों में से 1,513 ने ब्रिटिश क्षेत्र बने रहने के पक्ष में वोट दिया.
इस घटना के बाद लंदन में तत्कालीन अर्जेंटीना के राजदूत एलिसिया कास्त्रो ने जनमत संग्रह को 'एक चाल जिसका कोई कानूनी मूल्य नहीं है' कहकर खारिज कर दिया. नतीजे के बाद उन्होंने अर्जेंटीना के एक रेडियो स्टेशन से कहा कि बातचीत द्वीपवासियों के सर्वोत्तम हित में है. हम उन्हें उनकी पहचान से वंचित नहीं करना चाहते. वे ब्रिटिश हैं, हम उनकी पहचान और उनके जीवन के तरीके का सम्मान करते हैं और वे ब्रिटिश बने रहना चाहते हैं. लेकिन जिस क्षेत्र पर उनका कब्जा है वह ब्रिटिश नहीं है.
क्या फॉकलैंड पर एक और युद्ध हो सकता है?
पिछले साल एक टीवी चुनावी बहस के दौरान, नवंबर 2023 में चुने गए अर्जेंटीना के राष्ट्रपति जेवियर माइली ने भविष्य के युद्ध की किसी भी धारणा को खारिज कर दिया. उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट है कि युद्ध विकल्प कोई समाधान नहीं है. हमारे बीच एक युद्ध हुआ - जिसे हम हार गए - और अब हमें राजनयिक चैनलों के माध्यम से द्वीपों को पुनः प्राप्त करने के लिए हर संभव प्रयास करना होगा.
हालांकि, रॉयल होलोवे, लंदन विश्वविद्यालय में भू-राजनीति में एसोसिएट प्रोफेसर, अलास्डेयर पिंकर्टन का मानना है कि इस बात में संदेह है कि माइली एक मुद्दे के रूप में फॉकलैंड्स/माल्विनास से बहुत अधिक प्रेरित नहीं हैं. यह उनकी आर्थिक मुक्तिवादी परियोजना से ध्यान भटकाने वाला है. उन्हें लगता है कि सार्वजनिक मांग को पूरा करने के लिए राजनीतिक हित निभाने की ज़रूरत है. इसके साथ ही पिंकर्टन 'निकट भविष्य में किसी भी समय 1982-शैली के एक और संघर्ष की कल्पना नहीं करते हैं. उन्होंने कहा कि उन्होंने यह भी कहा कि किसी तरह के टकराव की संभावना को पूरी तरह से खत्म नहीं कर सकते.
पिंकर्टन ने बताया कि आने वाले दशकों में दक्षिण अटलांटिक में कूटनीति और सुरक्षा के लिए चुनौतियां लाने वाले कई मुद्दें हैं. खासतौर से फॉकलैंड के करीब पानी का एक विवादित क्षेत्र है जहां तथाकथित ब्लू होल में 'अत्यधिक मछली पकड़ने की बढ़ती चुनौती' जैसे मुद्दे पनप रहे हैं. इसके साथ ही अंटार्कटिक संधि के पर्यावरण प्रोटोकॉल का अनिश्चित भविष्य भी इस क्षेत्र की शांति के लिए खतरा उत्पन्न कर सकता है.