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Explained: त्रिपुरा-बांग्लादेश में बाढ़ से फिर चर्चा में नदी जल समस्या, जानिए क्या है वजह - India Bangladesh River Water Issue

India Bangladesh River Water Issue: भारी मानसूनी बारिश के बीच त्रिपुरा की सीमा से लगे पूर्वी बांग्लादेश के बड़े इलाके बाढ़ के पानी में डूब गए हैं. ऐसे में सीमा पार की नदियों से उत्पन्न होने वाली समस्याएं फिर से चर्चा में आ गई हैं. इसके क्या कारण हैं? आगे क्या रास्ता अपनाया जा सकता है? पढ़ें विशेष रिपोर्ट.

India-Bangladesh river waters issue crops up again amidst heavy rains and floods
त्रिपुरा में बाढ़ से प्रभावित क्षेत्र (ANI)
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By Aroonim Bhuyan

Published : Aug 23, 2024, 8:08 PM IST

नई दिल्ली: पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा और सीमा पार बांग्लादेश में भारी बारिश और बाढ़ के बीच, ढाका में नई अंतरिम सरकार के सत्ता में आने के साथ ही भारत और बांग्लादेश के बीच नदी जल का मुद्दा फिर से उठ खड़ा हुआ है. विदेश मंत्रालय ने गुरुवार को बांग्लादेशी मीडिया में चल रहे उन दावों का खंडन किया था, जिसमें कहा गया था कि बांग्लादेश की पूर्वी सीमा पर बाढ़ की मौजूदा स्थिति त्रिपुरा में गुमटी नदी के ऊपर डंबूर बांध के खुलने के कारण हुई है.

विदेश मंत्रालय के बयान में कहा गया है, "हम यह बताना चाहते हैं कि भारत और बांग्लादेश से होकर बहने वाली गुमटी नदी के जलग्रहण क्षेत्रों में पिछले कुछ दिनों में इस साल की सबसे भारी बारिश हुई है. बांग्लादेश में बाढ़ मुख्य रूप से बांध के नीचे की ओर इन बड़े जलग्रहण क्षेत्रों से आने वाले पानी के कारण है. डंबूर बांध सीमा से काफी दूर स्थित है - बांग्लादेश से 120 किलोमीटर ऊपर की ओर. यह कम ऊंचाई (लगभग 30 मीटर) का बांध है, जो बिजली पैदा करता है और ग्रिड में जाता है और जिससे बांग्लादेश त्रिपुरा से 40 मेगावाट बिजली भी प्राप्त करता है.

मंत्रालय ने कहा कि लगभग 120 किलोमीटर की नदी के मार्ग पर अमरपुर, सोनामुरा और सोनामुरा 2 में तीन जल स्तर निगरानी स्थल हैं. मंत्रालय के बयान में आगे कहा गया है, "पूरे त्रिपुरा और बांग्लादेश के आसपास के जिलों में 21 अगस्त से भारी बारिश जारी है. भारी जलप्रवाह की स्थिति में, स्वतः जल निकासी देखी गई है."

बांग्लादेश में भारतीय उच्चायुक्त प्रणय वर्मा ने गुरुवार को ढाका में अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस से मुलाकात के दौरान यही बात दोहराई. बांग्लादेश में मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्मा ने बैठक के दौरान कहा कि त्रिपुरा में बाढ़ बहुत अभूतपूर्व है, जिससे 50,000 लोग विस्थापित हुए हैं. उन्होंने कहा कि इसने सीमा के दोनों ओर तबाही मचाई है. वहीं, यूनुस ने अपनी ओर से बाढ़ के प्रबंधन के लिए बांग्लादेश और भारत के बीच एक उच्च स्तरीय समिति बनाने का प्रस्ताव रखा. उन्होंने कहा कि अगर बांग्लादेश और भारत के बीच उच्च स्तरीय समिति बनाई जाती है, तो दोनों देश समिति की बैठकें करके गंभीर बाढ़ को संयुक्त रूप से प्रबंधित करने में सक्षम होंगे.

विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा कि सीमा पार 54 नदियों को साझा करने वाले दो देशों के रूप में नदी जल सहयोग हमारे द्विपक्षीय संबंधों का महत्वपूर्ण हिस्सा है. बयान में कहा गया है, "हम द्विपक्षीय परामर्श और तकनीकी चर्चाओं के जरिये जल संसाधनों और नदी जल प्रबंधन के मुद्दों और आपसी चिंताओं को हल करने के लिए प्रतिबद्ध हैं."

भारत-बांग्लादेश में बहने वाली नदियां
भारत और बांग्लादेश 54 सीमा पार नदियों को साझा करते हैं, जो दोनों देशों में बहती हैं. जिनमें गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदी सबसे महत्वपूर्ण हैं. ये नदियां हिमालय से निकलती हैं, भारत से होकर बहती हैं और बांग्लादेश में प्रवेश करती हैं, जिस कारण बांग्लादेश भारत द्वारा नियंत्रित जल प्रवाह पर अत्यधिक निर्भर देश है. प्रमुख नदियों के अलावा फेनी, मनु, मुहुरी, खोवाई, गुमटी, धरला और दूधकुमार जैसी अन्य साझा नदियां भी जल बंटवारे और प्रबंधन के मुद्दों का सामना करती हैं. ये नदियां छोटी हैं, लेकिन दोनों देशों में स्थानीय कृषि, मत्स्य पालन और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए महत्वपूर्ण हैं. इनमें से कई नदियों के साथ कोई औपचारिक समझौता या संधि नहीं है, जिसके कारण विवाद और असमन्वित प्रबंधन के मुद्दे उत्पन्न होते हैं.

सीमा पार की नदियां बाढ़ का जोखिम कैसे पैदा करती हैं?
भारत और बांग्लादेश के बीच सीमा पार की नदियों के कारण बाढ़ की समस्या बार-बार होने वाली गंभीर समस्या है जो दोनों देशों के लाखों लोगों को प्रभावित करती है. भौगोलिक, जल विज्ञान और मौसम संबंधी कारक के साथ-साथ मानवीय गतिविधियां और बुनियादी ढांचे के विकास के कारण इस क्षेत्र में लगातार और विनाशकारी बाढ़ आती है.

बाढ़ के प्राकृतिक कारण
भारतीय उपमहाद्वीप में भारी मानसूनी बारिश सीमा पार की नदियों में बाढ़ में महत्वपूर्ण योगदान देती है. हिमालय से पिघलती बर्फ का पानी मिलने से नदियों में जल स्तर नाटकीय रूप से बढ़ जाता है, जिससे अक्सर तटबंध टूट जाते हैं और बड़े क्षेत्र में भीषण बाढ़ आती है.

भारत के उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों से बांग्लादेश के मैदानी इलाकों तक ढलाने के कारण नदियां तेजी से और बहुत अधिक प्रवाह के साथ बहती हैं, जिससे कटाव, नदी के किनारों में दरारें और निचले इलाकों में बाढ़ आती है.

बाढ़ के अन्य कारण
भारत में सिंचाई, बाढ़ नियंत्रण या जलविद्युत के लिए बनाए गए बांध, बैराज और तटबंध नदियों के प्राकृतिक प्रवाह को बाधित कर सकते हैं. हालांकि ये संरचनाएं बाढ़ को नियंत्रित करने के लिए हैं, लेकिन ये बांग्लादेश में डाउनस्ट्रीम में भी समस्याएं पैदा कर सकती हैं, खासकर जब चरम मानसून में इनसे पानी छोड़ा जाता है.

बांग्लादेश की सीमा के पास भारत द्वारा बनाया गया फरक्का बैराज का उदाहरण लेते हैं. यह कोलकाता बंदरगाह के नौ-परिवहन को बनाए रखने के लिए गंगा नदी से पानी को हुगली नदी की ओर मोड़ने के लिए बनाया गया था. हालांकि, मानसून के मौसम में बैराज बांग्लादेश में बाढ़ को और बढ़ा सकता है, क्योंकि यह बैकफ्लो का कारण बनता है और बाढ़ के पानी की प्राकृतिक निकासी को बाधित करता है.

हिमालय और पूर्वोत्तर भारत के ऊपरी इलाकों में बड़े पैमाने पर वनों की कटाई से भूमि की वर्षा जल को अवशोषित करने की क्षमता कम हो जाती है, जिससे सतही बहाव बढ़ जाता है और नदियों में उफान आ जाता है.

भारत और बांग्लादेश दोनों में तेजी से बढ़ते शहरीकरण और भूमि उपयोग में बदलाव ने प्राकृतिक बाढ़ के मैदानों को कम कर दिया है, जो पारंपरिक रूप से बाढ़ के दौरान बफर (बाढ़ को कम करने) के रूप में काम करते थे. नदी के किनारों और आर्द्रभूमि पर अतिक्रमण ने बाढ़ की समस्या को और बढ़ा दिया है.

सीमा पार नदियों के कारण बाढ़ के प्रभाव
सीमा पार नदियों के कारण बाढ़ फसलों को नष्ट कर देती है, खासकर बांग्लादेश में, जहां कृषि अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा है. फसलों का नुकसान न केवल खाद्य सुरक्षा को प्रभावित करता है, बल्कि इसके किसानों और अर्थव्यवस्था के लिए दीर्घकालिक आर्थिक प्रभाव भी हैं.

बाढ़ के दौरान सड़कें, पुल, भवन और अन्य बुनियादी ढांचे अक्सर क्षतिग्रस्त या नष्ट हो जाते हैं. इस बुनियादी ढांचे के पुनर्निर्माण और मरम्मत की लागत से भारत और बांग्लादेश दोनों पर आर्थिक बोझ बढ़ता है.

पर्यावरण पर भी प्रभाव पड़ता है. बाढ़ के कारण बड़े स्तर पर मिट्टी का कटाव होता है, खासकर भारत में नदियों के ऊपरी इलाकों में. कटाव के कारण मिट्टी और अन्य वस्तुएं बहकर नीचे की ओर जमा हो जाती हैं, जिससे नदी के तल में तलछट जम जाती है और बाढ़ का खतरा और बढ़ जाता है.

आगे क्या उपाय किए जा सकते हैं?
मोहम्मद यूनुस ने भारत और बांग्लादेश के बीच एक उच्च स्तरीय समिति के गठन का प्रस्ताव रखा है, लेकिन दोनों देशों के जल संसाधन मंत्रियों की अध्यक्षता में संयुक्त नदी आयोग (जेआरसी) पहले से ही मौजूद है, जो 1972 से ही अस्तित्व में है. यह दोनों देशों के साझा जल संसाधन के मुद्दों पर चर्चा और प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण मंच है. जेआरसी बाढ़ के पूर्वानुमान, जानकारी साझा करने और बाढ़ के जोखिम को कम करने के लिए नदी प्रणालियों के प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करता है.

दरअसल, गुरुवार को अपने बयान में विदेश मंत्रालय ने कहा कि 21 अगस्त को दोपहर 3 बजे तक गुमटी नदी के जलस्तर में वृद्धि के रुझान की जानकारी बांग्लादेश को दी गई थी. उसी दिन शाम 6 बजे बाढ़ के कारण बिजली गुल हो गई थी, जिससे संचार में समस्याएं पैदा हुईं. मंत्रालय ने कहा, "फिर भी हमने जानकारी के तत्काल प्रसारण के लिए बनाए गए अन्य माध्यमों के जरिये संचार बनाए रखने की कोशिश की है."

यह भी पढ़ें- बांग्लादेश में बाढ़ के लिए भारत जिम्मेदार नहीं: विदेश मंत्रालय

नई दिल्ली: पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा और सीमा पार बांग्लादेश में भारी बारिश और बाढ़ के बीच, ढाका में नई अंतरिम सरकार के सत्ता में आने के साथ ही भारत और बांग्लादेश के बीच नदी जल का मुद्दा फिर से उठ खड़ा हुआ है. विदेश मंत्रालय ने गुरुवार को बांग्लादेशी मीडिया में चल रहे उन दावों का खंडन किया था, जिसमें कहा गया था कि बांग्लादेश की पूर्वी सीमा पर बाढ़ की मौजूदा स्थिति त्रिपुरा में गुमटी नदी के ऊपर डंबूर बांध के खुलने के कारण हुई है.

विदेश मंत्रालय के बयान में कहा गया है, "हम यह बताना चाहते हैं कि भारत और बांग्लादेश से होकर बहने वाली गुमटी नदी के जलग्रहण क्षेत्रों में पिछले कुछ दिनों में इस साल की सबसे भारी बारिश हुई है. बांग्लादेश में बाढ़ मुख्य रूप से बांध के नीचे की ओर इन बड़े जलग्रहण क्षेत्रों से आने वाले पानी के कारण है. डंबूर बांध सीमा से काफी दूर स्थित है - बांग्लादेश से 120 किलोमीटर ऊपर की ओर. यह कम ऊंचाई (लगभग 30 मीटर) का बांध है, जो बिजली पैदा करता है और ग्रिड में जाता है और जिससे बांग्लादेश त्रिपुरा से 40 मेगावाट बिजली भी प्राप्त करता है.

मंत्रालय ने कहा कि लगभग 120 किलोमीटर की नदी के मार्ग पर अमरपुर, सोनामुरा और सोनामुरा 2 में तीन जल स्तर निगरानी स्थल हैं. मंत्रालय के बयान में आगे कहा गया है, "पूरे त्रिपुरा और बांग्लादेश के आसपास के जिलों में 21 अगस्त से भारी बारिश जारी है. भारी जलप्रवाह की स्थिति में, स्वतः जल निकासी देखी गई है."

बांग्लादेश में भारतीय उच्चायुक्त प्रणय वर्मा ने गुरुवार को ढाका में अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस से मुलाकात के दौरान यही बात दोहराई. बांग्लादेश में मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्मा ने बैठक के दौरान कहा कि त्रिपुरा में बाढ़ बहुत अभूतपूर्व है, जिससे 50,000 लोग विस्थापित हुए हैं. उन्होंने कहा कि इसने सीमा के दोनों ओर तबाही मचाई है. वहीं, यूनुस ने अपनी ओर से बाढ़ के प्रबंधन के लिए बांग्लादेश और भारत के बीच एक उच्च स्तरीय समिति बनाने का प्रस्ताव रखा. उन्होंने कहा कि अगर बांग्लादेश और भारत के बीच उच्च स्तरीय समिति बनाई जाती है, तो दोनों देश समिति की बैठकें करके गंभीर बाढ़ को संयुक्त रूप से प्रबंधित करने में सक्षम होंगे.

विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा कि सीमा पार 54 नदियों को साझा करने वाले दो देशों के रूप में नदी जल सहयोग हमारे द्विपक्षीय संबंधों का महत्वपूर्ण हिस्सा है. बयान में कहा गया है, "हम द्विपक्षीय परामर्श और तकनीकी चर्चाओं के जरिये जल संसाधनों और नदी जल प्रबंधन के मुद्दों और आपसी चिंताओं को हल करने के लिए प्रतिबद्ध हैं."

भारत-बांग्लादेश में बहने वाली नदियां
भारत और बांग्लादेश 54 सीमा पार नदियों को साझा करते हैं, जो दोनों देशों में बहती हैं. जिनमें गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदी सबसे महत्वपूर्ण हैं. ये नदियां हिमालय से निकलती हैं, भारत से होकर बहती हैं और बांग्लादेश में प्रवेश करती हैं, जिस कारण बांग्लादेश भारत द्वारा नियंत्रित जल प्रवाह पर अत्यधिक निर्भर देश है. प्रमुख नदियों के अलावा फेनी, मनु, मुहुरी, खोवाई, गुमटी, धरला और दूधकुमार जैसी अन्य साझा नदियां भी जल बंटवारे और प्रबंधन के मुद्दों का सामना करती हैं. ये नदियां छोटी हैं, लेकिन दोनों देशों में स्थानीय कृषि, मत्स्य पालन और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए महत्वपूर्ण हैं. इनमें से कई नदियों के साथ कोई औपचारिक समझौता या संधि नहीं है, जिसके कारण विवाद और असमन्वित प्रबंधन के मुद्दे उत्पन्न होते हैं.

सीमा पार की नदियां बाढ़ का जोखिम कैसे पैदा करती हैं?
भारत और बांग्लादेश के बीच सीमा पार की नदियों के कारण बाढ़ की समस्या बार-बार होने वाली गंभीर समस्या है जो दोनों देशों के लाखों लोगों को प्रभावित करती है. भौगोलिक, जल विज्ञान और मौसम संबंधी कारक के साथ-साथ मानवीय गतिविधियां और बुनियादी ढांचे के विकास के कारण इस क्षेत्र में लगातार और विनाशकारी बाढ़ आती है.

बाढ़ के प्राकृतिक कारण
भारतीय उपमहाद्वीप में भारी मानसूनी बारिश सीमा पार की नदियों में बाढ़ में महत्वपूर्ण योगदान देती है. हिमालय से पिघलती बर्फ का पानी मिलने से नदियों में जल स्तर नाटकीय रूप से बढ़ जाता है, जिससे अक्सर तटबंध टूट जाते हैं और बड़े क्षेत्र में भीषण बाढ़ आती है.

भारत के उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों से बांग्लादेश के मैदानी इलाकों तक ढलाने के कारण नदियां तेजी से और बहुत अधिक प्रवाह के साथ बहती हैं, जिससे कटाव, नदी के किनारों में दरारें और निचले इलाकों में बाढ़ आती है.

बाढ़ के अन्य कारण
भारत में सिंचाई, बाढ़ नियंत्रण या जलविद्युत के लिए बनाए गए बांध, बैराज और तटबंध नदियों के प्राकृतिक प्रवाह को बाधित कर सकते हैं. हालांकि ये संरचनाएं बाढ़ को नियंत्रित करने के लिए हैं, लेकिन ये बांग्लादेश में डाउनस्ट्रीम में भी समस्याएं पैदा कर सकती हैं, खासकर जब चरम मानसून में इनसे पानी छोड़ा जाता है.

बांग्लादेश की सीमा के पास भारत द्वारा बनाया गया फरक्का बैराज का उदाहरण लेते हैं. यह कोलकाता बंदरगाह के नौ-परिवहन को बनाए रखने के लिए गंगा नदी से पानी को हुगली नदी की ओर मोड़ने के लिए बनाया गया था. हालांकि, मानसून के मौसम में बैराज बांग्लादेश में बाढ़ को और बढ़ा सकता है, क्योंकि यह बैकफ्लो का कारण बनता है और बाढ़ के पानी की प्राकृतिक निकासी को बाधित करता है.

हिमालय और पूर्वोत्तर भारत के ऊपरी इलाकों में बड़े पैमाने पर वनों की कटाई से भूमि की वर्षा जल को अवशोषित करने की क्षमता कम हो जाती है, जिससे सतही बहाव बढ़ जाता है और नदियों में उफान आ जाता है.

भारत और बांग्लादेश दोनों में तेजी से बढ़ते शहरीकरण और भूमि उपयोग में बदलाव ने प्राकृतिक बाढ़ के मैदानों को कम कर दिया है, जो पारंपरिक रूप से बाढ़ के दौरान बफर (बाढ़ को कम करने) के रूप में काम करते थे. नदी के किनारों और आर्द्रभूमि पर अतिक्रमण ने बाढ़ की समस्या को और बढ़ा दिया है.

सीमा पार नदियों के कारण बाढ़ के प्रभाव
सीमा पार नदियों के कारण बाढ़ फसलों को नष्ट कर देती है, खासकर बांग्लादेश में, जहां कृषि अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा है. फसलों का नुकसान न केवल खाद्य सुरक्षा को प्रभावित करता है, बल्कि इसके किसानों और अर्थव्यवस्था के लिए दीर्घकालिक आर्थिक प्रभाव भी हैं.

बाढ़ के दौरान सड़कें, पुल, भवन और अन्य बुनियादी ढांचे अक्सर क्षतिग्रस्त या नष्ट हो जाते हैं. इस बुनियादी ढांचे के पुनर्निर्माण और मरम्मत की लागत से भारत और बांग्लादेश दोनों पर आर्थिक बोझ बढ़ता है.

पर्यावरण पर भी प्रभाव पड़ता है. बाढ़ के कारण बड़े स्तर पर मिट्टी का कटाव होता है, खासकर भारत में नदियों के ऊपरी इलाकों में. कटाव के कारण मिट्टी और अन्य वस्तुएं बहकर नीचे की ओर जमा हो जाती हैं, जिससे नदी के तल में तलछट जम जाती है और बाढ़ का खतरा और बढ़ जाता है.

आगे क्या उपाय किए जा सकते हैं?
मोहम्मद यूनुस ने भारत और बांग्लादेश के बीच एक उच्च स्तरीय समिति के गठन का प्रस्ताव रखा है, लेकिन दोनों देशों के जल संसाधन मंत्रियों की अध्यक्षता में संयुक्त नदी आयोग (जेआरसी) पहले से ही मौजूद है, जो 1972 से ही अस्तित्व में है. यह दोनों देशों के साझा जल संसाधन के मुद्दों पर चर्चा और प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण मंच है. जेआरसी बाढ़ के पूर्वानुमान, जानकारी साझा करने और बाढ़ के जोखिम को कम करने के लिए नदी प्रणालियों के प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करता है.

दरअसल, गुरुवार को अपने बयान में विदेश मंत्रालय ने कहा कि 21 अगस्त को दोपहर 3 बजे तक गुमटी नदी के जलस्तर में वृद्धि के रुझान की जानकारी बांग्लादेश को दी गई थी. उसी दिन शाम 6 बजे बाढ़ के कारण बिजली गुल हो गई थी, जिससे संचार में समस्याएं पैदा हुईं. मंत्रालय ने कहा, "फिर भी हमने जानकारी के तत्काल प्रसारण के लिए बनाए गए अन्य माध्यमों के जरिये संचार बनाए रखने की कोशिश की है."

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