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डोनाल्ड ट्रंप को हिलेरी क्लिंटन से कम मिले थे लोकप्रिय वोट, फिर भी हासिल की जीत, जानें कैसे? - US PRESIDENTIAL ELECTION 2024

2016 में हिलेरी क्लिंटन ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में लोकप्रिय वोट जीता था. इसके बावजूद डोनाल्ड ट्रंप फिर भी राष्ट्रपति बनने में सफल रहे थे.

डोनाल्ड ट्रंप
डोनाल्ड ट्रंप (AP)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 1, 2024, 5:11 PM IST

वॉशिंगटन: अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव 2024 का काउंटडाउन शुरू हो गया है. लोग मंगलवार 5 नवंबर को देश के नए राष्ट्रपति को चुनने के लिए वोटिंग करेंगे. चुनाव में पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और वर्तमान उपराष्ट्रपति कमला हैरिस के बीच जोरदार मुकाबला देखने को मिल रहा है. यही वजह है कि राष्ट्रपति पद के दोनों दावेदार जमकर प्रचार कर रहे हैं.

बता दें उपराष्ट्रपति कमला हैरिस पहली बार राष्ट्रपति का चुनाव लड़ रही हैं. वहीं ट्रंप दो बार चुनाव लड़ चुके हैं. उन्हें पिछली बार देश के वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन से हार का सामना करना पड़ा था, जबकि 2016 में उन्होंने हिलेरी क्लिंटन को शिकस्त दी थी.

हिलेरी क्लिंटन ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में लोकप्रिय वोट जीता, लेकिन डोनाल्ड ट्रंप फिर भी राष्ट्रपति बनने में सफल रहे थे. ऐसा इलेक्टोरल कॉलेज की वजह से हुआ था. बता दें कि यह अमेरिकी चुनाव की एक अनूठी प्रणाली है, जहां परिणाम सीधे लोकप्रिय वोट से तय नहीं होता है.

लोकप्रिय वोट क्या है?
लोकप्रिय वोट देश भर के नागरिकों द्वारा डाले गए व्यक्तिगत वोटों की कुल संख्या है. यह लोगों की पसंद को दर्शाता है, जहां हर वोट को समान रूप से गिना जाता है. 2016 में क्लिंटन को देश भर में ट्रंप के मुकाबले ज्यादा वोट मिले थे, लेकिन इससे उन्हें राष्ट्रपति पद की गारंटी नहीं मिली, क्योंकि अमेरिकी चुनाव में इलेक्टोरल कॉलेज सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता है.

इलेक्टोरल कॉलेज क्या है?
इलेक्टोरल कॉलेज 538 इलेक्टर्स से बना होता है. प्रत्येक अमेरिकी राज्य को उसकी जनसंख्या के साइज के आधार पर एक निश्चित संख्या में इलेक्टर्स दिए जाते हैं. उदाहरण के लिए सबसे अधिक आबादी वाले राज्य कैलिफोर्निया में 55 इलेक्टोरल वोट हैं, जबकि व्योमिंग जैसे छोटे राज्यों में केवल 3 हैं. राष्ट्रपति पद जीतने के लिए, किसी उम्मीदवार को 538 में से 270 इलेक्टोरल वोटों का बहुमत प्राप्त करना होता है.

कैसे काम करता है सिस्टम?
जब अमेरिकी वोट देते हैं, तो वे वास्तव में इलेक्टर्स के एक समूह के लिए वोट कर रहे होते हैं, जो उनकी पसंद का प्रतिनिधित्व करेंगे. ये इलेक्टर्स फिर अपने राज्य के भीतर लोकप्रिय वोट के आधार पर राष्ट्रपति के लिए वोट करते हैं.

अगर कोई उम्मीदवार किसी राज्य में लोकप्रिय वोट जीतता है, तो उसे आमतौर पर सभी इलेक्टोरल वोट मिलते हैं, यहां तक कि करीबी मुकाबले में भी. उदाहरण के लिए 2020 में जो बाइडेन ने कैलिफोर्निया जीता, इसलिए कैलिफोर्निया के सभी 55 इलेक्टोरल वोट उनके पास गए.

लोकप्रिय वोट जीतने वाला क्यों हार सकता है?
अगर कोई उम्मीदवार कई छोटे राज्यों में जीतता है तो यह संभव है कि वह राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय वोट जीत जाए, लेकिन वह इलेक्टोरेल कॉलेज में हार सकता है. उदाहरण के लिए विस्कॉन्सिन (10 इलेक्टोरल वोट) और मिशिगन (16 इलेक्टोरल वोट) जैसे राज्यों में डोनाल्ड ट्रंप की मामूली जीत ने उन्हें लोकप्रिय वोट हारने के बावजूद 2016 का चुनाव सुरक्षित करने में मदद की.

यह विवादास्पद क्यों है?
इलेक्टोरल कॉलेज को उच्च और निम्न जनसंख्या वाले राज्यों के बीच शक्ति संतुलन के लिए डिजाइन किया गया था, लेकिन आज इसका मतलब है कि कुछ राज्यों का प्रभाव बहुत अधिक है, जिससे उम्मीदवार 'स्विंग स्टेट्स' पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं, जहां परिणाम अनिश्चित होते हैं..

यह भी पढ़ें- डोनाल्ड ट्रंप ने की पीएम मोदी की 'चायवाला' रणनीति की कॉपी, जनादेश हासिल करने के लिए बने 'कचरे वाला'

वॉशिंगटन: अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव 2024 का काउंटडाउन शुरू हो गया है. लोग मंगलवार 5 नवंबर को देश के नए राष्ट्रपति को चुनने के लिए वोटिंग करेंगे. चुनाव में पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और वर्तमान उपराष्ट्रपति कमला हैरिस के बीच जोरदार मुकाबला देखने को मिल रहा है. यही वजह है कि राष्ट्रपति पद के दोनों दावेदार जमकर प्रचार कर रहे हैं.

बता दें उपराष्ट्रपति कमला हैरिस पहली बार राष्ट्रपति का चुनाव लड़ रही हैं. वहीं ट्रंप दो बार चुनाव लड़ चुके हैं. उन्हें पिछली बार देश के वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन से हार का सामना करना पड़ा था, जबकि 2016 में उन्होंने हिलेरी क्लिंटन को शिकस्त दी थी.

हिलेरी क्लिंटन ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में लोकप्रिय वोट जीता, लेकिन डोनाल्ड ट्रंप फिर भी राष्ट्रपति बनने में सफल रहे थे. ऐसा इलेक्टोरल कॉलेज की वजह से हुआ था. बता दें कि यह अमेरिकी चुनाव की एक अनूठी प्रणाली है, जहां परिणाम सीधे लोकप्रिय वोट से तय नहीं होता है.

लोकप्रिय वोट क्या है?
लोकप्रिय वोट देश भर के नागरिकों द्वारा डाले गए व्यक्तिगत वोटों की कुल संख्या है. यह लोगों की पसंद को दर्शाता है, जहां हर वोट को समान रूप से गिना जाता है. 2016 में क्लिंटन को देश भर में ट्रंप के मुकाबले ज्यादा वोट मिले थे, लेकिन इससे उन्हें राष्ट्रपति पद की गारंटी नहीं मिली, क्योंकि अमेरिकी चुनाव में इलेक्टोरल कॉलेज सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता है.

इलेक्टोरल कॉलेज क्या है?
इलेक्टोरल कॉलेज 538 इलेक्टर्स से बना होता है. प्रत्येक अमेरिकी राज्य को उसकी जनसंख्या के साइज के आधार पर एक निश्चित संख्या में इलेक्टर्स दिए जाते हैं. उदाहरण के लिए सबसे अधिक आबादी वाले राज्य कैलिफोर्निया में 55 इलेक्टोरल वोट हैं, जबकि व्योमिंग जैसे छोटे राज्यों में केवल 3 हैं. राष्ट्रपति पद जीतने के लिए, किसी उम्मीदवार को 538 में से 270 इलेक्टोरल वोटों का बहुमत प्राप्त करना होता है.

कैसे काम करता है सिस्टम?
जब अमेरिकी वोट देते हैं, तो वे वास्तव में इलेक्टर्स के एक समूह के लिए वोट कर रहे होते हैं, जो उनकी पसंद का प्रतिनिधित्व करेंगे. ये इलेक्टर्स फिर अपने राज्य के भीतर लोकप्रिय वोट के आधार पर राष्ट्रपति के लिए वोट करते हैं.

अगर कोई उम्मीदवार किसी राज्य में लोकप्रिय वोट जीतता है, तो उसे आमतौर पर सभी इलेक्टोरल वोट मिलते हैं, यहां तक कि करीबी मुकाबले में भी. उदाहरण के लिए 2020 में जो बाइडेन ने कैलिफोर्निया जीता, इसलिए कैलिफोर्निया के सभी 55 इलेक्टोरल वोट उनके पास गए.

लोकप्रिय वोट जीतने वाला क्यों हार सकता है?
अगर कोई उम्मीदवार कई छोटे राज्यों में जीतता है तो यह संभव है कि वह राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय वोट जीत जाए, लेकिन वह इलेक्टोरेल कॉलेज में हार सकता है. उदाहरण के लिए विस्कॉन्सिन (10 इलेक्टोरल वोट) और मिशिगन (16 इलेक्टोरल वोट) जैसे राज्यों में डोनाल्ड ट्रंप की मामूली जीत ने उन्हें लोकप्रिय वोट हारने के बावजूद 2016 का चुनाव सुरक्षित करने में मदद की.

यह विवादास्पद क्यों है?
इलेक्टोरल कॉलेज को उच्च और निम्न जनसंख्या वाले राज्यों के बीच शक्ति संतुलन के लिए डिजाइन किया गया था, लेकिन आज इसका मतलब है कि कुछ राज्यों का प्रभाव बहुत अधिक है, जिससे उम्मीदवार 'स्विंग स्टेट्स' पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं, जहां परिणाम अनिश्चित होते हैं..

यह भी पढ़ें- डोनाल्ड ट्रंप ने की पीएम मोदी की 'चायवाला' रणनीति की कॉपी, जनादेश हासिल करने के लिए बने 'कचरे वाला'

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