नई दिल्ली: बांग्लादेश में सरकारी नौकरी कोटा के खिलाफ छात्रों के नेतृत्व में हिसंक विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. इन प्रदर्शनों को रोकने के लिए बांग्लदेश के कई बड़े शहरों में कर्फ्यू लगा दिया गया है. इस बीच शनिवार को बांग्लादेश के सैनिकों ने ढाका की सुनसान सड़कों पर गश्त की. इस हिंसक प्रदर्शन में 100 से अधिक लोगों की मौत हो गई है. इस अराजकता ने बांग्लादेश की शासन व्यवस्था और अर्थव्यवस्था में दरारों को उजागर किया है. इसके साथ ही वहां बेरोजगारी की स्थिति को भी रेखांकित किया है.
देश में गुरुवार से इंटरनेट और टेक्स्ट मैसेज सेवाओं पर रोक लगी हुई है. एक तरह से इन हिंसक प्रदर्शनों ने बांग्लादेश को दुनिया से काट दिया है. पुलिस ने सार्वजनिक समारोहों पर प्रतिबंध के बावजूद जारी विरोध प्रदर्शनों पर कार्रवाई की.
प्रदर्शन पिछले महीने तब शुरू हुए थे, जब उच्च न्यायालय ने कोटा प्रणाली को बहाल किया था. इस कोटा प्रणाली के तहत 1971 के स्वतंत्रता संग्राम के स्वतंत्रता सेनानियों और दिग्गजों के परिवार के सदस्यों के लिए 30 प्रतिशत सरकारी नौकरियां आरक्षित की गई थीं.
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के इस आदेश को फिलहाल निलंबित कर दिया है. इस मामले में अगली सुनवाई 7 अगस्त को सरकार की चुनौती पर सुनवाई करने वाला है. 2018 में, इसी तरह के छात्र-नेतृत्व वाले विरोध प्रदर्शनों के बाद प्रधान मंत्री शेख हसीना की सरकार ने कोटा प्रणाली को खत्म कर दिया था.
बांग्लादेश के प्रदर्शनकारियों की क्या मांग है?: प्रदर्शनकारी सरकार से कोटा प्रणाली को खत्म करने की मांग कर रहे हैं. उनका दावा है कि इससे केवल शेख हसीना के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ अवामी लीग पार्टी को लाभ मिलेगा. प्रदर्शनकारियों का दावा है कि प्रधानमंत्री हसीना अपनी पार्टी के वफादारों को पुरस्कृत करने के लिए कोटा प्रणाली का उपयोग करने का आरोप लगाया गया है. प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि यह प्रणाली अनुचित है और उनके रोजगार के अवसरों को सीमित करती है.
प्रधानमंत्री हसीना ने क्या कहा: हालांकि, प्रधानमंत्री हसीना ने प्रदर्शनकारियों के किसी भी मांग को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है. उन्होंने प्रदर्शनकारियों को 'रजाकार' कहा है. उन्होंने कहा कि ये वही लोग हैं 1971 में पाकिस्तानी सेना का सहयोग कर रहे थे.
क्या रहा है आरक्षण का इतिहास: बांग्लादेश में कोटा प्रणाली 1972 में शुरू की गई थी और तब से इसमें कई बदलाव हुए हैं. 2018 में इसे समाप्त करने से पहले, इस प्रणाली ने विभिन्न समूहों के लिए 56 प्रतिशत सरकारी नौकरियां आरक्षित की थीं, लेकिन इनमें से अधिकांश कोटा स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों को लाभान्वित करते थे.
हाल के वर्षों में लगभग 170 मिलियन लोगों का देश सांप्रदायिक या राजनीतिक हिंसा के छिटपुट दौर से हिलता रहा है. आइये एक नजर डालते हैं बीते कुछ वर्षों में हुये हिसंक विरोध प्रदर्शनों पर...
- 2009 : अपने वेतन और रहने की स्थिति से नाखुश, विद्रोही सीमा रक्षकों ने राजधानी ढाका में 70 से अधिक लोगों की हत्या कर दी, जिनमें से अधिकांश सेना के अधिकारी थे. 'विद्रोह' लगभग एक दर्जन शहरों में फैल गया था. इसे शांत करने में छह दिन लग गये. कई दौर की वर्ता के बाद नाराज रक्षकों ने कई चर्चाओं के बाद आत्मसमर्पण कर दिया.
- 2013: इस साल अवामी लीग पार्टी के शासन में राजनीतिक हिंसा में लगभग 100 लोग मारे गए. प्रधानमंत्री रहमान की बेटी शेख हसीना की नेतृत्व वाली सरकार ने 1971 के युद्ध के दौरान अपराधों के लिए विपक्षी जमात-ए-इस्लामी पार्टी के नेता अब्दुल कादर मुल्ला को फांसी पर लटका दिया गया. जिसके बाद हिंसा भड़क उठी. इस हिंसा में लगभग 100 और लोगों की मौतें हुईं.
- 2016 : इस्लामिक स्टेट आतंकवादी समूह द्वारा किए गए हमले में बीस बंधकों की मौत हो गई, जिनमें से अधिकांश विदेशी थे. आतंकवादियों ने ढाका के राजनयिक क्षेत्र में एक महंगे रेस्तरां पर हमला किया. यह मुठभेड़ करीब 12 घंटे तक चला. अंत में सुरक्षा बलों ने रेस्तरां पर हमला कर के आतंकियों को मार गिराया. इस हमले में मारे जानेवालों में इटली, जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत के नागरिक शामिल थे. यह देश में उदार जीवनशैली की वकालत करने वाले लोगों के खिलाफ एक सीधा हमला था.
- 2021: मुस्लिम बहुल बांग्लादेश में चरमपंथी अल्पसंख्यक हिंदुओं को निशाना बनाते रहे हैं. अक्टूबर में कम से कम छह लोग मारे गए और उनके घर नष्ट कर दिए गए, जो देश में एक दशक से अधिक समय में सांप्रदायिक हिंसा के सबसे बुरे मामलों में से एक था. इस दौरान पहले हिंदू मंदिरों पर हमला किया गया था, क्योंकि हजारों कट्टरपंथी इस्लामी समूह के सदस्यों ने पड़ोसी भारत के हिंदू राष्ट्रवादी प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की बांग्लादेश की राष्ट्रीयता की 50वीं वर्षगांठ के अवसर पर यात्रा का विरोध किया था.
- 2024 : हसीना मुख्य विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की ओर से बहिष्कार किए गए चुनाव में सत्ता में लौटीं, जिसने अवामी लीग पर फर्जी चुनावों को वैध बनाने की कोशिश करने का आरोप लगाया. इस दौरान मतदान केंद्रों पर हमलों और ट्रेन में आगजनी में चार लोग मारे गए. जुलाई में, सरकारी नौकरियों में आरक्षण के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हजारों छात्रों पर सुरक्षा बलों द्वारा की गई कार्रवाई में दो दर्जन से अधिक लोग मारे गए.