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इजराइल और हिजबुल्लाह के बीच खून-खराबे का 42 साल का इतिहास, जानें कैसे हुआ आतंकी समूह का उदय - History Of Bloodshed

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : 2 hours ago

Israel-Hezbollah War: हिजबुल्लाह के उदय और इजराइल के साथ उसके खूनी संघर्ष की शुरुआत 1982 में हुई थी. शिया आबादी का प्रतिनिधित्व करना वाला हिजबुल्लाह इस समय क्षेत्र में एक शक्तिशाली मिलिशिया बन गया है. इसके अलावा यह एत राजनीतिक खिलाड़ी बनकर भी उभरा है.

इजराइल और हिजबुल्लाह के बीच खून-खराबे का 42 साल का इतिहास
इजराइल और हिजबुल्लाह के बीच खून-खराबे का 42 साल का इतिहास (AP)

बेरूत: लेबनान में सोमवार को हुए इजराइली हवाई हमलों में 490 से ज्यादा लोग मारे गए, जिनमें 35 बच्चे भी शामिल थे. यह 7 अक्टूबर को हमास द्वारा इजराइल पर किए गए हमले के बाद से हिंसा का सबसे घातक हमला था. इन हमलों के कारण हजारों लेबनानी परिवार विस्थापित हो गए हैं और युद्ध में कमी आने का कोई संकेत नहीं दिख रहा है.

बता दें कि ईरान समर्थित समूह हिजबुल्लाह और इजराइल के बीच संघर्ष कोई नई बात नहीं है. दोनों के बीच चार दशकों से अधिक समय से खूनी खेल चल रहा है. इसकी शुरुआत 1982 में हुई थी.

इजराइल का 1982 का आक्रमण और हिजबुल्लाह का गठ
हिजबुल्लाह के उदय और इजराइल के साथ उसके खूनी संघर्ष की शुरुआत 1982 में उस समय हुई थी, जब इजराइल ने दक्षिण से संचालित फिलिस्तीन मुक्ति संगठन (PLO) के हमलों के जवाब में लेबनान पर आक्रमण किया था. इस दौरान इजराइल का कब्जा बेरूत तक हो गया, जिससे पीएलओ की घेराबंदी हो गई और उसे पीछे हटना पड़ा.

हालांकि, इजराइल की निरंतर उपस्थिति, साथ ही उसके सहयोगियों द्वारा किए गए अत्याचार, विशेष रूप से सबरा और शतीला नरसंहार, जहां 2,000 से 3,500 फिलिस्तीनी शरणार्थी और लेबनानी नागरिक मारे गए, ने प्रतिरोध के बीज बोए.

इजराइल का प्रतिरोध में उभरने वाले समूहों में हिजबुल्लाह भी शामिल था, जिसे शुरू में ईरान के समर्थन से शिया मुस्लिम नेताओं ने बनाया था. हाशिए पर पड़ी शिया आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाला हिजबुल्लाह जल्द ही एक शक्तिशाली मिलिशिया बन गया, जिसने बेरूत के दक्षिणी उपनगरों और बेका घाटी में असंतुष्ट युवाओं की भारी भर्ती की.

रक्तपात और प्रतिरोध
1982 और 1986 के बीच हिजबुल्लाह और उससे जुड़े समूहों को लेबनान में विदेशी सेनाओं पर कई हमलों के लिए दोषी ठहराया गया था. इनमें से सबसे महत्वपूर्ण अक्टूबर 1983 में बेरूत में फ्रांसीसी और अमेरिकी सैन्य बैरकों पर बमबारी थी, जिसमें 300 से अधिक शांति सैनिकों की मौत हो गई थी.

1985 तक हिजबुल्लाह की ताकत इतनी बढ़ गई थी कि उसने इजराइली सेना को दक्षिणी लेबनान के अधिकांश भाग से हटने पर मजबूर कर दिया, हालांकि, इजराइल ने सीमा पर एक सुरक्षा क्षेत्र बनाए रखा, जिसकी निगरानी उसके ईसाई-प्रभुत्व वाली प्रॉक्सी, साउथ लेबनान आर्मी (SLA) द्वारा की जाती थी.

हिजबुल्लाह का राजनीतिक उदय
1992 में लेबनान के गृह युद्ध की समाप्ति के बाद हिजबुल्लाह ने लेबनान की 128 सदस्यीय संसद में आठ सीटें जीतकर एक राजनीतिक खिलाड़ी के रूप में अपना स्थान बनाया. वर्षों से इसका प्रभाव राजनीतिक और सैन्य दोनों ही रूप से बढ़ता ही गया, खासकर तब जब इसने शिया बहुल क्षेत्रों में व्यापक सामाजिक सेवाएं प्रदान कीं.

इस बीच इजराइली सेना के खिलाफ उसका प्रतिरोध जारी रहा. 1993 में, इजराइल ने उत्तरी इजराइल पर हुए हिजबुल्लाह के हमलों के जवाब में 'ऑपरेशन अकाउंटेबिलिटी' शुरू किया, जिसके परिणामस्वरूप एक संक्षिप्त लेकिन तीव्र संघर्ष हुआ. इसमें 118 लेबनानी नागरिक मारे गए. इसके बाद 1996 में हुए 'ऑपरेशन ग्रेप्स ऑफ रैथ' के साथ हिंसा फिर से बढ़ गई, क्योंकि इजराइल ने हिजबुल्लाह को खदेड़ने का प्रयास किया.

इजराइल की वापसी और जुलाई युद्ध
एनडीटीवी के मुताबिक मई 2000 में इजराइल ने लगभग दो दशकों के कब्जे के बाद दक्षिणी लेबनान से वापसी की, इस कदम का क्रेडिट काफी हद तक हिजबुल्लाह के प्रतिरोध को जाता है. इस जीत ने हिजबुल्लाह की स्थिति को लेबनान के भीतर एक दुर्जेय राजनीतिक ताकत और इजराइल के खिलाफ अरब प्रतिरोध के प्रतीक के रूप में मजबूत कर दिया.

2006 में हिजबुल्लाह ने जब दो इजराइली सैनिकों को पकड़ लिया. इसके चलते तनाव और बढ़ गया और जुलाई युद्ध शुरू हो गया. 34 दिनों तक चले इस संघर्ष में भारी संख्या में लोग हताहत हुए. रिपोर्ट के मुताबिक युद्ध में 1,200 लेबनानी और 158 इजराइली मारे गए.

क्षेत्रीय संघर्ष
2009 तक हिजबुल्लाह अब सिर्फ एक मिलिशिया या प्रतिरोध आंदोलन नहीं, बल्कि लेबनान में प्रमुख सैन्य और राजनीतिक ताकत बन गया था. सीरिया के गृहयुद्ध के दौरान इसने शक्ति प्रदर्शन किया और असद शासन की ओर से हस्तक्षेप किया. इसके चलते अरबों के बीच उसका समर्थन कम हो गया, लेकिन ईरान के साथ उसके गठबंधन को मजबूत किया और युद्ध के मैदान में उसके अनुभव को बढ़ाया. 2023 के गाजा युद्ध ने हिजबुल्लाह को फिर से इजराइल के सामने लाकर खड़ा कर दिया.

यह भी पढ़ें- इजराइल ने लेबनान पर किया भीषण हमला, 492 लोगों की मौत

बेरूत: लेबनान में सोमवार को हुए इजराइली हवाई हमलों में 490 से ज्यादा लोग मारे गए, जिनमें 35 बच्चे भी शामिल थे. यह 7 अक्टूबर को हमास द्वारा इजराइल पर किए गए हमले के बाद से हिंसा का सबसे घातक हमला था. इन हमलों के कारण हजारों लेबनानी परिवार विस्थापित हो गए हैं और युद्ध में कमी आने का कोई संकेत नहीं दिख रहा है.

बता दें कि ईरान समर्थित समूह हिजबुल्लाह और इजराइल के बीच संघर्ष कोई नई बात नहीं है. दोनों के बीच चार दशकों से अधिक समय से खूनी खेल चल रहा है. इसकी शुरुआत 1982 में हुई थी.

इजराइल का 1982 का आक्रमण और हिजबुल्लाह का गठ
हिजबुल्लाह के उदय और इजराइल के साथ उसके खूनी संघर्ष की शुरुआत 1982 में उस समय हुई थी, जब इजराइल ने दक्षिण से संचालित फिलिस्तीन मुक्ति संगठन (PLO) के हमलों के जवाब में लेबनान पर आक्रमण किया था. इस दौरान इजराइल का कब्जा बेरूत तक हो गया, जिससे पीएलओ की घेराबंदी हो गई और उसे पीछे हटना पड़ा.

हालांकि, इजराइल की निरंतर उपस्थिति, साथ ही उसके सहयोगियों द्वारा किए गए अत्याचार, विशेष रूप से सबरा और शतीला नरसंहार, जहां 2,000 से 3,500 फिलिस्तीनी शरणार्थी और लेबनानी नागरिक मारे गए, ने प्रतिरोध के बीज बोए.

इजराइल का प्रतिरोध में उभरने वाले समूहों में हिजबुल्लाह भी शामिल था, जिसे शुरू में ईरान के समर्थन से शिया मुस्लिम नेताओं ने बनाया था. हाशिए पर पड़ी शिया आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाला हिजबुल्लाह जल्द ही एक शक्तिशाली मिलिशिया बन गया, जिसने बेरूत के दक्षिणी उपनगरों और बेका घाटी में असंतुष्ट युवाओं की भारी भर्ती की.

रक्तपात और प्रतिरोध
1982 और 1986 के बीच हिजबुल्लाह और उससे जुड़े समूहों को लेबनान में विदेशी सेनाओं पर कई हमलों के लिए दोषी ठहराया गया था. इनमें से सबसे महत्वपूर्ण अक्टूबर 1983 में बेरूत में फ्रांसीसी और अमेरिकी सैन्य बैरकों पर बमबारी थी, जिसमें 300 से अधिक शांति सैनिकों की मौत हो गई थी.

1985 तक हिजबुल्लाह की ताकत इतनी बढ़ गई थी कि उसने इजराइली सेना को दक्षिणी लेबनान के अधिकांश भाग से हटने पर मजबूर कर दिया, हालांकि, इजराइल ने सीमा पर एक सुरक्षा क्षेत्र बनाए रखा, जिसकी निगरानी उसके ईसाई-प्रभुत्व वाली प्रॉक्सी, साउथ लेबनान आर्मी (SLA) द्वारा की जाती थी.

हिजबुल्लाह का राजनीतिक उदय
1992 में लेबनान के गृह युद्ध की समाप्ति के बाद हिजबुल्लाह ने लेबनान की 128 सदस्यीय संसद में आठ सीटें जीतकर एक राजनीतिक खिलाड़ी के रूप में अपना स्थान बनाया. वर्षों से इसका प्रभाव राजनीतिक और सैन्य दोनों ही रूप से बढ़ता ही गया, खासकर तब जब इसने शिया बहुल क्षेत्रों में व्यापक सामाजिक सेवाएं प्रदान कीं.

इस बीच इजराइली सेना के खिलाफ उसका प्रतिरोध जारी रहा. 1993 में, इजराइल ने उत्तरी इजराइल पर हुए हिजबुल्लाह के हमलों के जवाब में 'ऑपरेशन अकाउंटेबिलिटी' शुरू किया, जिसके परिणामस्वरूप एक संक्षिप्त लेकिन तीव्र संघर्ष हुआ. इसमें 118 लेबनानी नागरिक मारे गए. इसके बाद 1996 में हुए 'ऑपरेशन ग्रेप्स ऑफ रैथ' के साथ हिंसा फिर से बढ़ गई, क्योंकि इजराइल ने हिजबुल्लाह को खदेड़ने का प्रयास किया.

इजराइल की वापसी और जुलाई युद्ध
एनडीटीवी के मुताबिक मई 2000 में इजराइल ने लगभग दो दशकों के कब्जे के बाद दक्षिणी लेबनान से वापसी की, इस कदम का क्रेडिट काफी हद तक हिजबुल्लाह के प्रतिरोध को जाता है. इस जीत ने हिजबुल्लाह की स्थिति को लेबनान के भीतर एक दुर्जेय राजनीतिक ताकत और इजराइल के खिलाफ अरब प्रतिरोध के प्रतीक के रूप में मजबूत कर दिया.

2006 में हिजबुल्लाह ने जब दो इजराइली सैनिकों को पकड़ लिया. इसके चलते तनाव और बढ़ गया और जुलाई युद्ध शुरू हो गया. 34 दिनों तक चले इस संघर्ष में भारी संख्या में लोग हताहत हुए. रिपोर्ट के मुताबिक युद्ध में 1,200 लेबनानी और 158 इजराइली मारे गए.

क्षेत्रीय संघर्ष
2009 तक हिजबुल्लाह अब सिर्फ एक मिलिशिया या प्रतिरोध आंदोलन नहीं, बल्कि लेबनान में प्रमुख सैन्य और राजनीतिक ताकत बन गया था. सीरिया के गृहयुद्ध के दौरान इसने शक्ति प्रदर्शन किया और असद शासन की ओर से हस्तक्षेप किया. इसके चलते अरबों के बीच उसका समर्थन कम हो गया, लेकिन ईरान के साथ उसके गठबंधन को मजबूत किया और युद्ध के मैदान में उसके अनुभव को बढ़ाया. 2023 के गाजा युद्ध ने हिजबुल्लाह को फिर से इजराइल के सामने लाकर खड़ा कर दिया.

यह भी पढ़ें- इजराइल ने लेबनान पर किया भीषण हमला, 492 लोगों की मौत

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