हैदराबाद : हर साल अप्रैल माह के अंतिम सप्ताह में विश्व टीकाकरण सप्ताह मनाया जाता है. इस साल यह 24-30 अप्रैल को मनाया जायेगा. इसका मुख्य उद्देश्य जानलेवा बीमारियों से सभी उम्र के लोगों की रक्षा करने में टीकाकरण के महत्व के बारे में लोगों को जागरूक कर टीका लेने के लिए सामूहिक रूप से प्रेरित करना है.
टीकाकरण पर विस्तारित कार्यक्रम (ईपीआई) ने 1974 में सभी बच्चों को बचपन 6 की बीमारियों से बचाने पर ध्यान केंद्रित किया था. लेकिन आज, यह संख्या जीवन भर में सार्वभौमिक रूप से अनुशंसित 13 टीकों का है. वहीं खास क्षेत्र व बीमारियों को देखते हुए सिफारिशों के आधार पर 17 अतिरिक्त टीकों तक बढ़ गई है. जीवन भर टीकाकरण कार्यक्रम के विस्तार के साथ अब हम इसे टीकाकरण पर आवश्यक कार्यक्रम कहते हैं.
अपनी संयोजक शक्ति के माध्यम से विश्व स्वास्थ्य संगठन टीकों और टीकाकरण के मूल्य के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए दुनिया भर के देशों के साथ लगातार काम करता है. साथ ही यह सुनिश्चित करता है कि सरकारें उच्च गुणवत्ता वाले टीकाकरण कार्यक्रमों को लागू करने के लिए आवश्यक मार्गदर्शन और तकनीकी सहायता प्राप्त करें.
इस वर्ष विश्व टीकाकरण सप्ताह टीकाकरण पर विस्तारित कार्यक्रम के 50 वर्ष पूरे होने का जश्न मनाएगा. टीके से रोकी जा सकने वाली बीमारियों से अनगिनत जिंदगियों को बचाने और बेहतर बनाने के हमारे सामूहिक प्रयासों को मान्यता देते हुए और देशों से अगली पीढ़ियों की सुरक्षा के लिए टीकाकरण कार्यक्रमों में निवेश बढ़ाने का आह्वान किया जाएगा. केवल 5 दशकों में हम एक ऐसी दुनिया से चले गए जहां एक बच्चे की मृत्यु से कई माता-पिता डरते थे, एक ऐसी दुनिया में जहां हर बच्चे को अगर टीका लगाया जाए तो जीवित रहने और पनपने का मौका मिलता है.
कोविड महामारी के बाद पूरी दुनिया में टीकाकरण अभियान प्रभावित हुआ है. 2021 की तुलना 2022 में 4 मिलियन से ज्यादा बच्चों को टीका लगाया गया था. इसके बाद भी कई मिलियन बच्चे ऐसे थे जो एक या एक से ज्यादा टीकों से चुक गये थे. इस कारण कई बच्चों का जीवन खतरे में आ गये हैं. इसका असर हुआ कि दुनिया भर में डिप्थीरिया व खसरे की बीमारियों का अचानक प्रकोप देखा जा रहा है. वहीं वैश्विक टीका कवरेज बेहतर हुआ है. 5 में से 4 बच्चे पूरी तरह से टीका से कवर किए गये हैं.
भारत में टीकाकरण अभियान
- भारत में 1978 में विस्तारित टीकाकरण कार्यक्रम को प्रारंभ किया गया.
- साल 1985 में कार्यक्रम का नाम बदलकर यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम कर दिया गया.
- इसी दौरान यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम का विस्तार शहरी क्षेत्र से ग्रामीण इलाके तक किया गया.
- 1992 में एक बार बदलाव किया गया. इसे बाल जीवन रक्षा एवं सुरक्षित मातृत्व कार्यक्रम में शामिल कर दिया गया.
- आगे चलकर 1997 में कार्यक्रम को राष्ट्रीय प्रजनन एवं बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के दायरे में लाया गया.
- साल 2005 में केंद्र सरकार की ओर से राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन को लाया गया. टीकाकरण कार्यक्रम को इसमें भी शामिल रखा गया.
- यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम जो, UIP के नाम से भी प्रचलित है. यह सबसे बड़े पब्लिक हेल्थ प्रोग्राम में से एक है.
- UIP का लाभ हर साल 2.67 करोड़ नवजात शिशु व 2.9 करोड़ गर्भवती महिलाओं को मिल रहा है.
- यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम में 12 वैक्सीन से रोकथाम योग्य रोगों के लिए फ्री में टीकाकरण किया जाता है.
- राष्ट्रीय स्तर पर 9 बीमारियों के रोकथाम/उन्मूलन का लक्ष्य होता है. इनमें डिप्थीरिया, टेटनस, पर्टुसिस, पोलियो, रुबेला, खसरा, टीबी, हेपेटाइटिस बी और हेमोफिलस इन्फ्लुएंजा टाइप बी से होने वाला मेनिनाजाइटिस व निमोनिया रोकने में मदद मिलती है.
- इसके अलावा उप राष्ट्रीय स्तर पर 3 बीमारियों के खिलाफ रोटावायरस डायरिया, न्यूमोकोकल कॉन्जुगेट वैक्सीन को कुछ जिलों में उपलब्ध कराया जाता है.
- जन्म के पहले साल में राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम में तय सभी टीके लगाए जाते हैं तो एक बच्चा पूरी तरह से प्रतिरक्षित माना जाता है.
- UIP का लाभ दिख रहा है. इनमें 2014 में पोलियो का उन्मूलन और 2015 में मातृ व नवजात टेटनस उन्मूलन संभव हो पाया.
- 20वीं सदी के उत्तरार्ध का वैश्विक वैक्सीन अभियान मानवता की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है.
- टीकाकरण अभियानों ने हमें चेचक का उन्मूलन करने, पोलियो को लगभग हराने और यह सुनिश्चित करने में सक्षम बनाया है कि पहले से कहीं अधिक बच्चे जीवित रहें और आगे बढ़ें.