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विश्व ग्लूकोमा दिवस: जानें भारत में कितने हैं पीड़ित और क्यों मनाने की वजह - World Glaucoma Day 2024

World Glaucoma Day 2024 : कई कारणों से आंखों से संबंधित बीमारी की चपेट में आने के कारण बड़ी संख्या में लोग अंधेपन का शिकार हो रहे हैं. इनमें ग्लूकोमा एक बड़ा कारण है. पढ़ें पूरी खबर..

World Glaucoma Day
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Mar 9, 2024, 5:07 PM IST

क्या है ग्लूकोमा : आंखों की समस्याओं (बीमारी) का एक समूह, जिसके कारण इंसान अंधेपन का शिकार बन सकता है. ग्लूकोमा कई प्रकार का होता है. सभी प्रकार के ग्लूकोमा में आंख को ब्रेन से जोड़ने वाली तंत्रिका क्षतिग्रस्त/बाधित हो जाता है. इसके पीछे कारण कई कारणों से आंखों पर दबाव बढ़ना माना जाता है. ग्लूकोमा का सबसे आम प्रकार ओपन-एंगल ग्लूकोमा में सामान्यतः धीरे-धीरे आई साइट हानि के अलावा कोई लक्षण नहीं होता है. एंगल क्लोजर ग्लूकोमा काफी दुर्लभ समस्या है. यह आपात चिकित्सीय स्थिति है, जिसमें आंखों में दर्द के साथ अचानक आंखों की रोशनी चली जाती है. इसमें अलग-अलग उपचार विधि से इलाज किया जाता है. कुछ मामलों में आई ड्रॉप, दवा व सर्जरी से इलाज संभव हो पाता है. कुछ मामले में इन मेडिकल थेरेपी का भी बीमार व्यक्ति पर कोई असर नहीं पड़ता है.

ग्लूकोमा व मोतिबिंद में अंतर
ग्लूकोमा आंखों से संबंधि रोगों का एक ग्रुप है. इनमें बिना किसी चेतावनी व लक्षण हुए बिना आंखों की रोशनी चली जाती है. ग्लूकोमा में आंखों व ब्रेन को जोड़ने वाला ऑप्टिक तंत्रिका (Optic Nerve) बाधित हो जाने के कारण आंखों की रोशनी प्रभावित हो जाती है. वहीं मोतिबिंद आंखों की एक स्थिति है, जहां आंखों की दृष्टि धुंधली हो जाती है या लेंस में बाधित हो जाता है और आंखों में रोशनी प्रवेश बाधित होने से दृष्टि बाधित हो जाता है.

द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार भारत में अंधेपन के पांच प्रमुख कारणों में ग्लूकोमा भी शामिल है. यह एक पुरानी और उम्र से संबंधित आंख की बीमारी है जिसका कोई इलाज नहीं है. यह वयस्कों में अपरिवर्तनीय दृष्टि हानि का एक कारण है जिसे गंभीरता से लेने की जरूरत है. समुदायों में इसकी पहचान करना भी काफी मुश्किल है. अनुमान के अनुसार 50 से अधिक उम्र के वयस्कों में भारत में ग्लूकोमा के कारण अंधेपन से पीड़ितों की संख्या 2019 में 230000 से लेकर 11 लाख लोगों तक होने का अनुमान है. दुनिया भर में, ग्लूकोमा 50 वर्ष से अधिक उम्र के वयस्कों या लगभग 3.6 मिलियन (36 लाख) लोगों में अपरिवर्तनीय अंधेपन का दूसरा प्रमुख कारण है. दुनिया भर में लगभग 76 मिलियन (760 लाख) लोग ग्लूकोमा से पीड़ित हैं.

ग्लूकोमा की व्यापकता के बारे में हमारी समझ के साथ एक प्रमुख समस्या यह है कि भारत में इसके मामलों की संख्या कम होने की संभावना है. उच्च आय वाले देशों में ग्लूकोमा से पीड़ित लगभग आधे लोगों का निदान नहीं हो पाता है. विकासशील देशों में 90 फीसदी से अधिक जिन्हें अपने ग्लूकोमा के लिए चिकित्सा देखभाल की आवश्यकता होती है. उनके पास इसकी पहुंच नहीं है. इस स्थिति के कई कारण हैं, जिनमें से प्रत्येक इस आजीवन स्थिति की जांच, निदान और प्रबंधन के लिए प्रभावी रास्ते विकसित करने की जटिलता की ओर इशारा करता है.

ग्लूकोमा को पकड़ना कठिन क्यों है?
ग्लूकोमा स्थितियों का एक समूह है जो ऑप्टिक तंत्रिका को नुकसान पहुंचाता है और परिधीय दृष्टि हानि का कारण बनता है, जिससे अंधापन होता है. एक बार इस तरह से दृष्टि खो जाने के बाद इसे बहाल नहीं किया जा सकता क्योंकि रेटिना नाड़ीग्रन्थि कोशिकाओं की मृत्यु, और ऑप्टिक तंत्रिका में उनके अक्षतंतु की क्षति स्थायी होती है.

ये भी पढ़ें - World Sight Day 2023 : ताउम्र दुनिया देखने की चाहत है तो विश्व दृष्टि दिवस पर इन बातों का रखें ध्यान

क्या है ग्लूकोमा : आंखों की समस्याओं (बीमारी) का एक समूह, जिसके कारण इंसान अंधेपन का शिकार बन सकता है. ग्लूकोमा कई प्रकार का होता है. सभी प्रकार के ग्लूकोमा में आंख को ब्रेन से जोड़ने वाली तंत्रिका क्षतिग्रस्त/बाधित हो जाता है. इसके पीछे कारण कई कारणों से आंखों पर दबाव बढ़ना माना जाता है. ग्लूकोमा का सबसे आम प्रकार ओपन-एंगल ग्लूकोमा में सामान्यतः धीरे-धीरे आई साइट हानि के अलावा कोई लक्षण नहीं होता है. एंगल क्लोजर ग्लूकोमा काफी दुर्लभ समस्या है. यह आपात चिकित्सीय स्थिति है, जिसमें आंखों में दर्द के साथ अचानक आंखों की रोशनी चली जाती है. इसमें अलग-अलग उपचार विधि से इलाज किया जाता है. कुछ मामलों में आई ड्रॉप, दवा व सर्जरी से इलाज संभव हो पाता है. कुछ मामले में इन मेडिकल थेरेपी का भी बीमार व्यक्ति पर कोई असर नहीं पड़ता है.

ग्लूकोमा व मोतिबिंद में अंतर
ग्लूकोमा आंखों से संबंधि रोगों का एक ग्रुप है. इनमें बिना किसी चेतावनी व लक्षण हुए बिना आंखों की रोशनी चली जाती है. ग्लूकोमा में आंखों व ब्रेन को जोड़ने वाला ऑप्टिक तंत्रिका (Optic Nerve) बाधित हो जाने के कारण आंखों की रोशनी प्रभावित हो जाती है. वहीं मोतिबिंद आंखों की एक स्थिति है, जहां आंखों की दृष्टि धुंधली हो जाती है या लेंस में बाधित हो जाता है और आंखों में रोशनी प्रवेश बाधित होने से दृष्टि बाधित हो जाता है.

द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार भारत में अंधेपन के पांच प्रमुख कारणों में ग्लूकोमा भी शामिल है. यह एक पुरानी और उम्र से संबंधित आंख की बीमारी है जिसका कोई इलाज नहीं है. यह वयस्कों में अपरिवर्तनीय दृष्टि हानि का एक कारण है जिसे गंभीरता से लेने की जरूरत है. समुदायों में इसकी पहचान करना भी काफी मुश्किल है. अनुमान के अनुसार 50 से अधिक उम्र के वयस्कों में भारत में ग्लूकोमा के कारण अंधेपन से पीड़ितों की संख्या 2019 में 230000 से लेकर 11 लाख लोगों तक होने का अनुमान है. दुनिया भर में, ग्लूकोमा 50 वर्ष से अधिक उम्र के वयस्कों या लगभग 3.6 मिलियन (36 लाख) लोगों में अपरिवर्तनीय अंधेपन का दूसरा प्रमुख कारण है. दुनिया भर में लगभग 76 मिलियन (760 लाख) लोग ग्लूकोमा से पीड़ित हैं.

ग्लूकोमा की व्यापकता के बारे में हमारी समझ के साथ एक प्रमुख समस्या यह है कि भारत में इसके मामलों की संख्या कम होने की संभावना है. उच्च आय वाले देशों में ग्लूकोमा से पीड़ित लगभग आधे लोगों का निदान नहीं हो पाता है. विकासशील देशों में 90 फीसदी से अधिक जिन्हें अपने ग्लूकोमा के लिए चिकित्सा देखभाल की आवश्यकता होती है. उनके पास इसकी पहुंच नहीं है. इस स्थिति के कई कारण हैं, जिनमें से प्रत्येक इस आजीवन स्थिति की जांच, निदान और प्रबंधन के लिए प्रभावी रास्ते विकसित करने की जटिलता की ओर इशारा करता है.

ग्लूकोमा को पकड़ना कठिन क्यों है?
ग्लूकोमा स्थितियों का एक समूह है जो ऑप्टिक तंत्रिका को नुकसान पहुंचाता है और परिधीय दृष्टि हानि का कारण बनता है, जिससे अंधापन होता है. एक बार इस तरह से दृष्टि खो जाने के बाद इसे बहाल नहीं किया जा सकता क्योंकि रेटिना नाड़ीग्रन्थि कोशिकाओं की मृत्यु, और ऑप्टिक तंत्रिका में उनके अक्षतंतु की क्षति स्थायी होती है.

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