ETV Bharat / health

खतरनाक हो सकती है रंग-अंधता, जानिए क्या है इसका इलाज - Eye Care Tips - EYE CARE TIPS

Eye Care Tips : जिसे रंग-अंधता जिसे कलर ब्लाइंडनेस भी कहा जाता है, एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति कुछ रंगों को सही तरीके से पहचानने में सक्षम नहीं होता है. यह समस्या आमतौर पर जन्म से होती है और जीवन भर बनी रहती है.

WHAT IS COLOR BLINDNESS SYMPTOMS AND TREATMENT OF COLOR BLINDNESS
खतरनाक हो सकती है कलर ब्लाइंडनेस रंग-अंधता - कॉन्सेप्ट इमेज (ETV Bharat)
author img

By ETV Bharat Health Team

Published : Aug 19, 2024, 12:32 PM IST

Updated : Aug 20, 2024, 6:10 AM IST

हैदराबाद : हम अपनी आंखों से इस रंग-बिरंगी दुनिया को देखते हैं. जिसमें लाल, हरे, नीले और ना जाने कितने रंग होते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनकी आंखे सभी रंगों को देखने में अक्षम होती है ! यानि वे प्रकृति में मौजूद सभी रंग नहीं बल्कि केवल कुछ ही रंग देख पाते हैं. ऐसा कलर ब्लाइंडनेस के कारण होता है. नेत्र विशेषज्ञ बताते हैं कि कलर ब्लाइंडनेस या रंग-अंधता का कोई निश्चित इलाज नहीं है, लेकिन जागरूकता और सही उपायों से इस समस्या के प्रबंधन में मदद मिल सकती है.

क्या होती है कलर ब्लाइंडनेस? नई दिल्ली कि नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ नूपुर जोशी बताती हैं कि कलर ब्लाइंडनेस एक दृष्टि संबंधी समस्या है जिसमें व्यक्ति सामान्य तरीके से कुछ रंगों को देखने में असमर्थ होते हैं. इस समस्या में आमतौर पर लाल और हरे रंगों को पहचानने में समस्या होती है, लेकिन कुछ मामलों में नीले और पीले रंगों को भी पहचानने में कठिनाई हो सकती है. कलर ब्लाइंडनेस के लिए जिम्मेदार कारक की बात करें तो रेटिना, ऑप्टिक तंत्रिका या मस्तिष्क में चोट लगने या उनमें किसी रोग या समस्या के प्रभाव के कारण तो कई बार बढ़ती उम्र में ऐसा हो सकता है .

कलर ब्लाइंडनेस के लिए जिम्मेदार कारण : डॉ नूपुर जोशी बताती हैं कि कलर ब्लाइंडनेस के लिए आनुवंशिकता या नेत्र रोग सहित कई कारण जिम्मेदार हो सकते हैं. जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं.

  • नेत्र रोग: कुछ नेत्र रोग जैसे ग्लूकोमा, मैक्यूलर डिजनरेशन और कैटरैक्ट कलर ब्लाइंडनेस का कारण बन सकते हैं. इसके अलावा ऑप्टिक तंत्रिका को प्रभावित करने वाले कुछ प्रकार के मस्तिष्क ट्यूमर तथा कुछ अन्य अवस्थाओं में जिनमें ऑप्टिक तंत्रिका या मस्तिष्क को क्षति पहुंचती है या उन पर पर दबाव पड़ता है, यह समस्या हो सकती है.
  • आनुवंशिकता : यह समस्या आमतौर पर जन्मजात होती है और परिवार में पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती है. यदि माता-पिता में से किसी एक को कलर ब्लाइंडनेस है, तो उनके बच्चों में इसका खतरा बढ़ जाता है.
  • दवाइयों का प्रभाव : कुछ दवाइयों का सेवन भी दृष्टि पर असर डाल सकता है, जिससे कलर ब्लाइंडनेस हो सकती है.
  • बुढ़ापा : उम्र बढ़ने के साथ-साथ दृष्टि की क्षमता भी कम हो जाती है, जिससे रंग पहचानने में कठिनाई हो सकती है.

कलर ब्लाइंडनेस के प्रकार व प्रभाव : डॉ नूपुर जोशी बताती हैं कि रंगों की पहचान में असमर्थता के आधार पर कलर ब्लाइंडनेस के मुख्य तीन प्रकार माने जाते हैं.

  • प्रोटेनोपिया: इसमें व्यक्ति को लाल रंग पहचानने में कठिनाई होती है.
  • ड्यूटेरानोपिया: इसमें व्यक्ति को हरे रंग पहचानने में कठिनाई होती है.
  • ट्रिटानोपिया: इसमें व्यक्ति को नीले और पीले रंग पहचानने में कठिनाई होती है.

डॉ नूपुर जोशी बताती हैं कि यह स्वाभाविक है कि रंगों की पहचान कर पाने में असमर्थता पीड़ित के कार्य व जीवन को प्रभावित कर सकती है. जैसे बच्चों की बात करें तो इस समस्या में उन्हे चित्रों, ग्राफ और रंगीन सामग्रियों को समझने में कठिनाई हो सकती है जिससे उनका शैक्षणिक प्रदर्शन प्रभावित हो सकता है. वहीं कुछ ऐसे पेशे भी हैं जिनमें कलर ब्लाइंड व्यक्ति का चयन मुश्किल होता है.जैसे पायलट, इलेक्ट्रिशियन, डिजाइनर आदि. क्योंकि कलर ब्लाइंडनेस से ग्रस्त व्यक्ति इन पेशों में कठिनाई का सामना कर सकते हैं.

इसके अलावा दैनिक जीवन में भी कलर ब्लाइंडनेस से ग्रस्त व्यक्ति को विभिन्न कार्यों में कठिनाई हो सकती है. जैसे ट्रैफिक लाइट के रंग पहचानना, कपड़ों का चुनाव करना और रंगों के आधार पर विभिन्न वस्तुओं की पहचान करना आदि.

उपचार और सहायता
वह बताती हैं कि कलर ब्लाइंडनेस का कोई निश्चित उपचार नहीं है, लेकिन कुछ उपायों से इससे निपटने में मदद मिल सकती है. जिनमें कलर फिल्टर ग्लास काफी प्रचलित है. दरअसल यह विशेष प्रकार के चश्मे होते हैं जो रंग पहचानने में मदद कर सकते हैं. इसके अलावा आजकल ऐसे लोगों के लिए कई प्रकार की मोबाइल एप्लिकेशन और सॉफ़्टवेयर भी उपलब्ध हैं जो रंगों को पहचानने में उनकी मदद कर सकते हैं.

वह बताती हैं यदि परिवार में कलर ब्लाइंडनेस का इतिहास हो तो बहुत जरूरी हैं कि बच्चे के नेत्र स्वास्थ्य का ज्यादा ध्यान रखा जाए तथा सचेत रहा जाय. यदि बच्चे में कलर ब्लाइंडनेस की पुष्टि होती है तो नेत्र विशेषज्ञ से तत्काल उसके उपचार, प्रबंधन व सहायता के लिए परामर्श करें. इसके अलावा नियमित नेत्र जांच करवाना तथा किसी नेत्र समस्या की पुष्टि होने पर तत्काल उसका इलाज करवाना, विशेषकर बढ़ती उम्र में नेत्र स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना भी बेहद जरूरी है. इससे ना सिर्फ रोग या बढ़ती उम्र के कारणों से होने वाली कलर ब्लाइंडनेस बल्कि कई अन्य नेत्र समस्याओं में भी राहत मिलने की संभावना बढ़ सकती है.

डिस्क्लेमर : इस वेबसाइट पर आपको दी गई जानकारी और सुझाव वैज्ञानिक अनुसंधान, अध्ययन, चिकित्सा और स्वास्थ्य पेशेवर सलाह के आधार पर प्रदान कर रहे हैं. लेकिन बेहतर होगा कि इन पर अमल करने से पहले आप अपने निजी डॉक्टर की सलाह ले लें.

ये भी पढ़ें-

Roasted Gram Chana : एक से बढ़कर एक फायदे हैं भुने हुए चने के, लेकिन रहता है जोखिम भी

Dysuria : इस 'प्राइवेट' समस्या को महिला-पुरुष अनदेखा ना करें, खासतौर से गर्मियों के मौसम में

हैदराबाद : हम अपनी आंखों से इस रंग-बिरंगी दुनिया को देखते हैं. जिसमें लाल, हरे, नीले और ना जाने कितने रंग होते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनकी आंखे सभी रंगों को देखने में अक्षम होती है ! यानि वे प्रकृति में मौजूद सभी रंग नहीं बल्कि केवल कुछ ही रंग देख पाते हैं. ऐसा कलर ब्लाइंडनेस के कारण होता है. नेत्र विशेषज्ञ बताते हैं कि कलर ब्लाइंडनेस या रंग-अंधता का कोई निश्चित इलाज नहीं है, लेकिन जागरूकता और सही उपायों से इस समस्या के प्रबंधन में मदद मिल सकती है.

क्या होती है कलर ब्लाइंडनेस? नई दिल्ली कि नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ नूपुर जोशी बताती हैं कि कलर ब्लाइंडनेस एक दृष्टि संबंधी समस्या है जिसमें व्यक्ति सामान्य तरीके से कुछ रंगों को देखने में असमर्थ होते हैं. इस समस्या में आमतौर पर लाल और हरे रंगों को पहचानने में समस्या होती है, लेकिन कुछ मामलों में नीले और पीले रंगों को भी पहचानने में कठिनाई हो सकती है. कलर ब्लाइंडनेस के लिए जिम्मेदार कारक की बात करें तो रेटिना, ऑप्टिक तंत्रिका या मस्तिष्क में चोट लगने या उनमें किसी रोग या समस्या के प्रभाव के कारण तो कई बार बढ़ती उम्र में ऐसा हो सकता है .

कलर ब्लाइंडनेस के लिए जिम्मेदार कारण : डॉ नूपुर जोशी बताती हैं कि कलर ब्लाइंडनेस के लिए आनुवंशिकता या नेत्र रोग सहित कई कारण जिम्मेदार हो सकते हैं. जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं.

  • नेत्र रोग: कुछ नेत्र रोग जैसे ग्लूकोमा, मैक्यूलर डिजनरेशन और कैटरैक्ट कलर ब्लाइंडनेस का कारण बन सकते हैं. इसके अलावा ऑप्टिक तंत्रिका को प्रभावित करने वाले कुछ प्रकार के मस्तिष्क ट्यूमर तथा कुछ अन्य अवस्थाओं में जिनमें ऑप्टिक तंत्रिका या मस्तिष्क को क्षति पहुंचती है या उन पर पर दबाव पड़ता है, यह समस्या हो सकती है.
  • आनुवंशिकता : यह समस्या आमतौर पर जन्मजात होती है और परिवार में पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती है. यदि माता-पिता में से किसी एक को कलर ब्लाइंडनेस है, तो उनके बच्चों में इसका खतरा बढ़ जाता है.
  • दवाइयों का प्रभाव : कुछ दवाइयों का सेवन भी दृष्टि पर असर डाल सकता है, जिससे कलर ब्लाइंडनेस हो सकती है.
  • बुढ़ापा : उम्र बढ़ने के साथ-साथ दृष्टि की क्षमता भी कम हो जाती है, जिससे रंग पहचानने में कठिनाई हो सकती है.

कलर ब्लाइंडनेस के प्रकार व प्रभाव : डॉ नूपुर जोशी बताती हैं कि रंगों की पहचान में असमर्थता के आधार पर कलर ब्लाइंडनेस के मुख्य तीन प्रकार माने जाते हैं.

  • प्रोटेनोपिया: इसमें व्यक्ति को लाल रंग पहचानने में कठिनाई होती है.
  • ड्यूटेरानोपिया: इसमें व्यक्ति को हरे रंग पहचानने में कठिनाई होती है.
  • ट्रिटानोपिया: इसमें व्यक्ति को नीले और पीले रंग पहचानने में कठिनाई होती है.

डॉ नूपुर जोशी बताती हैं कि यह स्वाभाविक है कि रंगों की पहचान कर पाने में असमर्थता पीड़ित के कार्य व जीवन को प्रभावित कर सकती है. जैसे बच्चों की बात करें तो इस समस्या में उन्हे चित्रों, ग्राफ और रंगीन सामग्रियों को समझने में कठिनाई हो सकती है जिससे उनका शैक्षणिक प्रदर्शन प्रभावित हो सकता है. वहीं कुछ ऐसे पेशे भी हैं जिनमें कलर ब्लाइंड व्यक्ति का चयन मुश्किल होता है.जैसे पायलट, इलेक्ट्रिशियन, डिजाइनर आदि. क्योंकि कलर ब्लाइंडनेस से ग्रस्त व्यक्ति इन पेशों में कठिनाई का सामना कर सकते हैं.

इसके अलावा दैनिक जीवन में भी कलर ब्लाइंडनेस से ग्रस्त व्यक्ति को विभिन्न कार्यों में कठिनाई हो सकती है. जैसे ट्रैफिक लाइट के रंग पहचानना, कपड़ों का चुनाव करना और रंगों के आधार पर विभिन्न वस्तुओं की पहचान करना आदि.

उपचार और सहायता
वह बताती हैं कि कलर ब्लाइंडनेस का कोई निश्चित उपचार नहीं है, लेकिन कुछ उपायों से इससे निपटने में मदद मिल सकती है. जिनमें कलर फिल्टर ग्लास काफी प्रचलित है. दरअसल यह विशेष प्रकार के चश्मे होते हैं जो रंग पहचानने में मदद कर सकते हैं. इसके अलावा आजकल ऐसे लोगों के लिए कई प्रकार की मोबाइल एप्लिकेशन और सॉफ़्टवेयर भी उपलब्ध हैं जो रंगों को पहचानने में उनकी मदद कर सकते हैं.

वह बताती हैं यदि परिवार में कलर ब्लाइंडनेस का इतिहास हो तो बहुत जरूरी हैं कि बच्चे के नेत्र स्वास्थ्य का ज्यादा ध्यान रखा जाए तथा सचेत रहा जाय. यदि बच्चे में कलर ब्लाइंडनेस की पुष्टि होती है तो नेत्र विशेषज्ञ से तत्काल उसके उपचार, प्रबंधन व सहायता के लिए परामर्श करें. इसके अलावा नियमित नेत्र जांच करवाना तथा किसी नेत्र समस्या की पुष्टि होने पर तत्काल उसका इलाज करवाना, विशेषकर बढ़ती उम्र में नेत्र स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना भी बेहद जरूरी है. इससे ना सिर्फ रोग या बढ़ती उम्र के कारणों से होने वाली कलर ब्लाइंडनेस बल्कि कई अन्य नेत्र समस्याओं में भी राहत मिलने की संभावना बढ़ सकती है.

डिस्क्लेमर : इस वेबसाइट पर आपको दी गई जानकारी और सुझाव वैज्ञानिक अनुसंधान, अध्ययन, चिकित्सा और स्वास्थ्य पेशेवर सलाह के आधार पर प्रदान कर रहे हैं. लेकिन बेहतर होगा कि इन पर अमल करने से पहले आप अपने निजी डॉक्टर की सलाह ले लें.

ये भी पढ़ें-

Roasted Gram Chana : एक से बढ़कर एक फायदे हैं भुने हुए चने के, लेकिन रहता है जोखिम भी

Dysuria : इस 'प्राइवेट' समस्या को महिला-पुरुष अनदेखा ना करें, खासतौर से गर्मियों के मौसम में

Last Updated : Aug 20, 2024, 6:10 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.