नई दिल्ली/गाजियाबाद: डिजिटल दौर में बच्चों में वर्चुअल ऑटिज्म एक बड़ी चिंता बनता जा रहा है. कम उम्र में बच्चों को फोन देने से उनका मानसिक विकास प्रभावित होता है, जिससे वर्चुअल ऑटिज्म का खतरा बढ़ रहा है. चूंकि तकनीक हमारे जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन गया है, इसलिए हमें यह समझना आवश्यक है कि यह हमारे बच्चों के विकास को कैसे प्रभावित करता है. आखिर क्या है वर्चुअल ऑटिज्म और इससे बच्चों को कैसे बचाएं, जानें एक्सपर्ट्स की राय.
गाजियाबाद के एमएमजी अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक और मनोचिकित्सक डॉ. एके विश्वकर्मा के मुताबिक, बीते साल में ओपीडी में वर्चुअल आटिज्म के शिकार बच्चों की संख्या कई गुना अधिक हो गई है. कुछ बच्चों में यह समस्या वंशानुगत होती है, लेकिन कई मामलों में देखा गया है कि मां-बाप कम उम्र में बच्चों को फोन दे देते हैं, जिससे बच्चा घंटों स्क्रीन पर बिजी रहता है. इससे बच्चों का ब्रेन डेवलपमेंट, लैंग्वेज सीखने की क्षमता विकसित होना कम हो जाती है.
डॉ. विश्वकर्मा के मुताबिक, तीन साल से कम उम्र के बच्चों में वर्चुअल ऑटिज्म डाइग्नोज होना मुश्किल होता है. वर्चुअल ऑटिज्म से ग्रसित बच्चों की एफिशिएंसी अन्य बच्चों की तुलना में कम हो जाती है. ऑटिज्म से ग्रसित बच्चों समाज में सामान्य तौर पर घुल मिल नहीं पाते. फैमिली में भी ऐसे बच्चों का इंटरैक्शन काफी कम रहता है.
वर्चुअल ऑटिज्म के कारण: वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. बीपी त्यागी के मुताबिक, दिनभर में छोटे बच्चों के लिए एक घंटे तक का स्क्रीन टाइम सामान्य है, लेकिन जब स्क्रीन टाइम एक घंटे से ज्यादा बढ़ता है तो वर्चुअल ऑटिज्म के विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है. कई मामलों में देखा गया है कि छोटे बच्चे 6 से 8 घंटे मोबाइल या फिर अन्य गैजेट्स की स्क्रीन देखकर बिताते हैं. डिजिटल दुनिया बच्चों को वास्तविक दुनिया से अलग कर देती है, जो बच्चों के विकास में बाधा बनता है.
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वर्चुअल ऑटिज्म के लक्षण: आमतौर पर वर्चुअल ऑटिज्म से ग्रसित बच्चों की कंसंट्रेशन पावर सामान्य नहीं होती. इनकी शारीरिक गतिविधियों से संबंधित खेल आदि में रुचि कम होने के साथ चिड़चिड़ापन भी बढ़ने लगता है. बच्चों के मूड में भी समय-समय पर बदलाव दिखाई देता है. ऐसे बच्चों का स्पीच डेवलपमेंट नहीं हो पाता है. वह दूसरों के सामने या दूसरों से बातचीत करने में सहज नहीं हो पाते हैं.
कैसे करें बचाव: बच्चों में वर्चुअल ऑटिज्म विकसित न हो, इसके लिए बच्चों के स्क्रीन टाइम को कंट्रोल करना बेहद आवश्यक है. बच्चों को विभिन्न प्रकार के खेलों या अन्य फिजिकल एक्टिविटीज में इंवॉल्व रखने से बच्चों का स्क्रीन टाइम कम हो सकता है. बच्चों को घर से बाहर खेलने दें और थोड़ा सोशल होना सिखाएं. उनसे प्यार जताने के साथ उनके अंदर समस्याओं को खुद समाधान करने की आदत विकसित करें. इसके अलावा सोने से पहले बच्चों को मोबाइल न देकर उनसे बातें करें या फिर उन्हें कहानी सुनाएं.
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