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डॉक्टरों और मेडिकल छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य का NMC करा रहा सर्वेक्षण, जानें क्यों - NMC survey for mental health - NMC SURVEY FOR MENTAL HEALTH

NMC survey for mental Health: राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग की तरफ से डॉक्टरों एवं फैकल्टी की मेंटल हेल्थ को लेकर एक सर्वे कराया जा रहा है. क्या है इस सर्वे के पीछे की वजह, आइए जानते हैं..

NMC survey for mental health
NMC survey for mental health
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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Apr 29, 2024, 4:04 PM IST

डॉ. रोहन कृष्णन

नई दिल्ली: मेडिकल के छात्रों व फैकल्टी पर पढ़ने-पढ़ाने के अलावा मरीजों के दबाव बढ़ने का असर उनके मानसिक स्वास्थ पर दिख रहा है. इसी मानसिक दबाव में आकर कुछ डॉक्टर कई बार आत्महत्या जैसे कदम भी उठा लेते हैं. इस समस्या को देखते हुए नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) डॉक्टरों एवं फैकल्टी के मानसिक स्वास्थ को लेकर एक सर्वेक्षण करा रहा है. इस सर्वेक्षण में भाग लेने के लिए डॉक्टरों से अनाम भागीदारी की अपील की गई है. आवेदन में कहा गया है कि इस सर्वेक्षण में आपकी प्रतिक्रियाएं अनाम रहेंगी.

कमीशन की तरफ से कहा गया है कि हम किसी की व्यक्तिगत पहचान एकत्र नहीं करते हैं, जब तक स्पष्ट रूप कहा गया हो. साथ ही गोपनीयता का भी पूरा ध्यान रखा जा रहा है. इससे प्राप्त आंकड़ों का उपयोग केवल इस सर्वेक्षण के प्रयोजनों के लिए एवं अनुसंधान और विश्लेषण के लिए किया जाएगा. सर्वेक्षण में भागीदारी करने वालों की व्यक्तिगत प्रतिक्रियाएं सार्वजनिक रूप से साझा नहीं की जाएगी. इसके अलावा इस सर्वेक्षण में एकत्र किए गए डेटा की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उचित उपाय किए हैं. हालांकि, इंटरनेट या इलेक्ट्रॉनिक स्टोरेज पर ट्रांसमिशन का कोई भी तरीका 100 प्रतिशत सुरक्षित नहीं है.

दरअसल, मेडिकल छात्रों का मानसिक स्वास्थ्य हाल के दिनों में चिंता का कारण रहा है. इसके चलते मेडिकल छात्र अवसाद और आत्महत्या के लिए प्रेरित हुए हैं. इस समस्या के समाधान के लिए राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग की एंटी-रैगिंग समिति द्वारा एक राष्ट्रीय टास्क फोर्स का गठन किया गया है. इसके लिए एक गूगल फॉर्म तैयार किया गया है, जिसे एक लिंक द्वारा खोल कर जरूरी आंकड़ें भरे जा सकते हैं. मेडिकल कॉलेज के सभी मेडिकल छात्रों और फैकल्टी से 3 मई तक अपनी प्रतिक्रिया देने की अपील की गई है. प्रतिभागियों की पहचान गोपनीय रखी जाएगी और किसी के साथ साझा नहीं की जाएगी.

यह भी पढ़ें-एम्स में मुफ्त जेनरिक दवा मिलने का संकट गहराया, हर दिन इलाज के लिए आते है 20 हजार मरीज

फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन (फेमा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. रोहन कृष्णन ने इसे एक अच्छा कदम बताते हुए कहा कि कई अध्ययनों से पता चला है कि डॉक्टरों में आत्महत्या के 85 प्रतिशत से अधिक मामले 35 वर्ष से कम उम्र के हैं. इसलिए इसमें स्नातक और स्नातकोत्तर छात्र शामिल होंगे. छात्रों का मानसिक स्वास्थ्य बहुत महत्वपूर्ण है.

यह भी पढ़ें-सर्वाइकल कैंसर को डिटेक्ट करने के लिए जल्द मिलेगा स्वदेशी टेस्टिंग किट, Delhi AIIMS में चल रहा परीक्षण

डॉ. रोहन कृष्णन

नई दिल्ली: मेडिकल के छात्रों व फैकल्टी पर पढ़ने-पढ़ाने के अलावा मरीजों के दबाव बढ़ने का असर उनके मानसिक स्वास्थ पर दिख रहा है. इसी मानसिक दबाव में आकर कुछ डॉक्टर कई बार आत्महत्या जैसे कदम भी उठा लेते हैं. इस समस्या को देखते हुए नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) डॉक्टरों एवं फैकल्टी के मानसिक स्वास्थ को लेकर एक सर्वेक्षण करा रहा है. इस सर्वेक्षण में भाग लेने के लिए डॉक्टरों से अनाम भागीदारी की अपील की गई है. आवेदन में कहा गया है कि इस सर्वेक्षण में आपकी प्रतिक्रियाएं अनाम रहेंगी.

कमीशन की तरफ से कहा गया है कि हम किसी की व्यक्तिगत पहचान एकत्र नहीं करते हैं, जब तक स्पष्ट रूप कहा गया हो. साथ ही गोपनीयता का भी पूरा ध्यान रखा जा रहा है. इससे प्राप्त आंकड़ों का उपयोग केवल इस सर्वेक्षण के प्रयोजनों के लिए एवं अनुसंधान और विश्लेषण के लिए किया जाएगा. सर्वेक्षण में भागीदारी करने वालों की व्यक्तिगत प्रतिक्रियाएं सार्वजनिक रूप से साझा नहीं की जाएगी. इसके अलावा इस सर्वेक्षण में एकत्र किए गए डेटा की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उचित उपाय किए हैं. हालांकि, इंटरनेट या इलेक्ट्रॉनिक स्टोरेज पर ट्रांसमिशन का कोई भी तरीका 100 प्रतिशत सुरक्षित नहीं है.

दरअसल, मेडिकल छात्रों का मानसिक स्वास्थ्य हाल के दिनों में चिंता का कारण रहा है. इसके चलते मेडिकल छात्र अवसाद और आत्महत्या के लिए प्रेरित हुए हैं. इस समस्या के समाधान के लिए राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग की एंटी-रैगिंग समिति द्वारा एक राष्ट्रीय टास्क फोर्स का गठन किया गया है. इसके लिए एक गूगल फॉर्म तैयार किया गया है, जिसे एक लिंक द्वारा खोल कर जरूरी आंकड़ें भरे जा सकते हैं. मेडिकल कॉलेज के सभी मेडिकल छात्रों और फैकल्टी से 3 मई तक अपनी प्रतिक्रिया देने की अपील की गई है. प्रतिभागियों की पहचान गोपनीय रखी जाएगी और किसी के साथ साझा नहीं की जाएगी.

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फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन (फेमा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. रोहन कृष्णन ने इसे एक अच्छा कदम बताते हुए कहा कि कई अध्ययनों से पता चला है कि डॉक्टरों में आत्महत्या के 85 प्रतिशत से अधिक मामले 35 वर्ष से कम उम्र के हैं. इसलिए इसमें स्नातक और स्नातकोत्तर छात्र शामिल होंगे. छात्रों का मानसिक स्वास्थ्य बहुत महत्वपूर्ण है.

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