हैदराबाद : सिर्फ बच्चे के जन्म या प्रसव के दौरान ही नहीं बल्कि गर्भावस्था की पुष्टि होने के बाद से ही पहले मां और गर्भस्थ बच्चे की सुरक्षा तथा जच्चा को मानसिक व भावनात्मक रूप से गर्भावस्था व मां बनने के लिए तैयार करने में मिडवाइफ यानी दाई की भूमिका काफी अहम होती है. हमारे देश में कई ग्रामीण क्षेत्रों या छोटे शहरों में आज भी बहुत सी गर्भवती महिलाएं या उनके परिजन चिकित्सक के पास जाने से पहले मिडवाइफ से सलाह लेते हैं. वही विदेशों में भी मिडवाइव्स को काफी सम्मानीय नजर से देखा जाता है.
मिडवाइव्स या दाई की भूमिका को सम्मानित करने, ज्यादा से ज्यादा मिडवाइफ को बेहतर प्रशिक्षण व जरूरी संसाधन उपलब्ध कराने के लिए प्रयास करने तथा नई माताओं व उनके नवजात शिशुओं की सुरक्षा व देखभाल में मिडवाइफ को भूमिका को लेकर ज्यादा जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से हर साल 5 मई को इंटरनेशनल मिडवाइफ डे मनाया जाता है.इस वर्ष यह आयोजन ‘सस्टेनेबल मिडवाइफरी: कल की दुनिया की देखभाल’ थीम पर मनाया जा रहा है.
उद्देश्य व इतिहास
गौरतलब है कि वैसे तो इस आयोजन को काफी दशकों से अलग-अलग स्थान पर अलग-अलग तरह से मनाया जाता रहा है, लेकिन इसे वैश्विक पटल पर आधिकारिक रूप से मनाए जाने की शुरुआत वर्ष 1992 से इंटरनेशनल कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ मिडवाइव्स द्वारा इंटरनेशनल मिडवाइफ डे के औपचारिक रूप से लॉन्च किये जाने के बाद हुई. जिसके बाद से यह आयोजन हर साल 5 मई को दुनिया भर में मनाया जाता है.
इंटरनेशनल मिडवाइफ डे मनाए जाने के उद्देश्यों की बात करें तो स्वस्थ परिवार, नवजात शिशु के स्वास्थ्य, दाइयों और माताओं के बीच साझेदारी और गुणवत्तापूर्ण देखभाल को बढ़ावा देने के साथ प्रसव व गर्भावस्था में महिलाओं की मृत्यु, जन्म से पूर्व गर्भ में होने वाले बच्चों की मृत्यु तथा बच्चे के जन्म के एक माह के भीतर होने वाली नवजातों की मृत्यु दर में प्रशिक्षित दाइयों की मदद से कमी लाने के लिए हर संभव तरह से उन्हे प्रशिक्षण व मौके प्रदान करना इस दिवस को मनाए जाने के मुख्य उद्देश्यों में शामिल हैं.
क्या होती है मिडवाइफ यानी दाई
दुनिया भर में मिडवाइफ यानी दाई का प्रचलन सदियों से रहा है. मिडवाइफ दरअसल वह स्वास्थ्य कर्मी होते है जो किसी भी महिला के गर्भधारण करने के उपरांत , प्रसव से पहले तथा उसके उपरांत भी मां तथा बच्चे की सुरक्षा तथा उसके स्वास्थ्य को बरकरार रखने में मदद करती है. गर्भधारण के उपरांत महिला को किसी भी प्रकार की समस्या होने पर उसे सही सलाह देना, चिकित्सीय मदद उपलब्ध कराना, बच्चे के जन्म के दौरान तथा उस के तत्काल बाद सभी जरूरी जानकारियां तथा सुविधाएं मुहैया कराना भी दाई की जिम्मेदारियों में शामिल होते हैं. वैसे तो सभी अस्पतालों में विशेषकर प्रसूति अस्पतालों में प्रशिक्षित दाई होती है जो कभी स्वतंत्र रूप से तो कभी चिकित्सक के निर्देशन में प्रसव में मदद करवाती हैं. लेकिन देश में कई पिछले इलाकों, गांवों में तथा छोटे शहरों में प्रसव तथा जच्चा की देखभाल का कार्य ज्यादातर दाई की देखरेख में ही होता है.
नवजात और मातृ मृत्यु दर और रुग्णता को कम करने में दाई की भूमिका को महत्वपूर्ण माना जाता है. वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भी दुनिया भर में लगभग 83% गर्भावस्था तथा प्रसव के दौरान होने वाली महिलाओं की मृत्यु, माता के गर्भ में होने वाली शिशु मृत्यु, तथा जन्म के एक माह में होने वाली नवजात मृत्यु दर में प्रशिक्षित दाई की सही भूमिका तथा उसकी मदद से कमी लाई जा सकती है. International Midwife Day , Midwife Day , Sustainable Midwifery .