हमारे देश में अनगिनत वनस्पतियों को खजाना है. जिनमें कई बेहतरीन औषधीय गुण छिपे होते हैं. इन्हीं से एक गूलर के पेड़ पर लगने वाला फल है. गूलर के फल, पत्ते, छाल और जड़ों को औषधियों को खजाना माना जाता है. कराेना संकट के समय भी लोग इसके तने, पत्ते और फल का जमकर सेवन किए थे. इसके फल, पत्ते और छालों में संक्रमण से लड़ने की काफी ताकत होती है.
बता दें, गूलर का वैज्ञानिक नाम फिकस साइकोमोरस है जो 20 मीटर की ऊंचाई और 6 मीटर की चौड़ाई तक बढ़ता है, इसकी शाखाएं बहुत मोटी होती हैं, इसके पत्ते दिल के आकार के होते हैं और इसकी नोक गोल होती है, पत्तियों की सतह चिकनी नहीं होती और खुरदरी होती है, डंठल की लंबाई 0.5-3 सेमी होती है जो मुलायम बालों से ढकी होती है. फल अपने आकार में बड़ा होता है और 2-3 सेमी व्यास का होता है, पकने के बाद फल हल्के हरे रंग का हो जाता है और बाद में पीला या लाल भी हो जाता है. फूल उत्पादन और फल उत्पादन की प्रक्रिया पूरे वर्ष चलती रहती है, अधिकतम उपज जुलाई और दिसंबर के बीच के महीनों में प्राप्त होती है.
इस पेड़ के बारे में गवर्नमेंट कॉलेज चौरई के वनस्पति शास्त्र विशेषज्ञ डॉक्टर विकास शर्मा ने बताया कि इस पेड़ को ऊमर या गूलर कहते हैं. ये बेहद रहस्यमयी और कमाल का पेड़ होता है. ये अकेला वृक्ष कॉम्बो पैक है जो अपने आपमें एक इकोसिस्टम है, यह पेड़ और इसका फल, पत्ते सभी आयुर्वेद का खजाना है.
गूलर के फल के उपयोग
इसके औषधीय महत्व के बारे में डॉक्टर विकास शर्मा का कहना है कि इसके फलों को खाने से गजब की ताकत मिलती है, और बुढापा थम सा जाता है. मतलब अंजीर की तरह ही इसे भी प्रयोग किया जाता है. इसकी छाल को जलाकर राख को कंजई के तेल के साथ पाइल्स के उपचार में प्रयोग करते हैं. दूध का प्रयोग चर्म रोगों में रामबाण माना जाता है. दाद होने पर उस स्थान पर इसका ताजा दूध लगाने से आराम मिलता है. वहीं कच्चे फल मधुमेह को समाप्त करने की ताकत रखते हैं. पेट खराब हो जाने पर इसके 4 पके फल खा लेना इलाज की गारंटी माना जाता है.
आयुर्वेद के अनुसार, पूरी तरह से विकसित फलों को कच्चा खाया जा सकता है, उबाला जा सकता है, सुखाया जा सकता है और कुछ समय बाद उपयोग के लिए स्टोर भी किया जा सकता है. इसके पत्ते और छाल को काढ़ा के रूप में उपयोग किया जाता है. इसके जड़ को भी कई तरह की बीमारियों के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
गूलर के फल (इसे गूलर के अंजीर) के स्वास्थ्य लाभ
पेड़ की छाल स्क्रोफुला की जटिलताओं को हल करने में सहायता करती है जो टीबी का एक रूप है, गले और छाती से संबंधित समस्याएं भी इसके काढ़े से ठीक हो सकता है. पौधे में पाया जाने वाला दूधिया द्रव पेचिश और छाती से संबंधित कुछ बीमारियों को ठीक करने में सहायता करता है, त्वचा में जलन, त्वचा में दाद भी छाल और पौधे में मौजूद दूधिया द्रव के मिश्रण को लगाने से ठीक हो जाते हैं. पौधे की पत्तियां पीलिया के उपचार में मदद करती हैं और सांप के काटने की समस्या के लिए मारक के रूप में सहायक होती हैं, उनकी जड़ों में रेचक और कृमिनाशक गुण होते हैं, पेड़ के अन्य औषधीय अनुप्रयोग फेफड़ों की बीमारियों, गले में खराश, सूजन और दस्त को ठीक करना है, निम्नलिखित तरीकों का पारंपरिक रूप से अभ्यास किया जाता है.
कैंसर में गूलर के फायदे
गूलर में अच्छे एंटीऑक्सीडेंट और कैंसर रोधी गुण होते हैं. अगर इस पेड़ से निकाले गए जूस का सेवन दवा के तौर पर किया जाए तो इसके गुण कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने में हमारी मदद कर सकते हैं. आप जानते ही होंगे कि इस पेड़ के फलों का सेवन किया जा सकता है.
मधुमेह में गूलर के फायदे
गूलर के पेड़ में ब्लड शुगर को कम करने के गुण होते हैं. इसके लिए आप गूलर के पेड़ की छाल का काढ़ा इस्तेमाल कर सकते हैं. गूलर की छाल ब्लड शुगर को कम करने में फायदेमंद हो सकती है.
अनियमित दिल की धड़कनों को नियंत्रित करने में गूलर फायदेमंद
अनियमित दिल की धड़कनों को नियंत्रित करने के लिए मैग्नीशियम बहुत फायदेमंद होता है। मांसपेशियों में तनाव और ऑक्सीडेटिव तनाव के कारण अनियमित दिल की धड़कन हो सकती है. गूलर के फलों में मैग्नीशियम की अच्छी मात्रा मौजूद होती है. जो इन सभी लक्षणों को दूर करने के साथ-साथ आपके पाचन को भी ठीक रखता है
रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाए
गूलर के पेड़ में कॉपर की अच्छी मात्रा होती है, जो एनीमिया से बचने में हमारी मदद करता है. यह हमारे शरीर में एंजाइमेटिक प्रक्रियाओं के लिए आवश्यक है जो एंडोथेलियल विकास या ऊतक उपचार प्रक्रिया में मदद करता है. कॉपर हमारे शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए आवश्यक है.
डिस्कलेमर:- ये सुझाव सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं. बेहतर होगा कि इन पर अमल करने से पहले आप डॉक्टर की सलाह ले लें.
सोर्स-
http://researchjournal.co.in/online/RKH/RKH-16-1/16_71-72.pdf
https://www.reddit.com/r/foraging/comments/1h09xs/the_edibility_of_sycamore_fruits/?rdt=63367