Mental Health : आज के इस भागदौड़ भरे जीवन में न सिर्फ बुजुर्ग मानसिक संबंधित बीमारियों का शिकार हो रहे हैं बल्कि युवा भी डिप्रेशन के शिकार होते जा रहे हैं. देशभर में ऐसे मामले देखे जा रहे हैं जिसमें पेरेंट्स की ओर से बच्चों को समय न दिया जाना, युवाओ में नशे की लत, स्क्रीन एडिक्शन तमाम वजह बन रहे हैं जिसके चलते आज के युवा मानसिक बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं. डिप्रेशन की वजह से युवा हिंसक होते जा रहे हैं, यहां तक की कई बार अपनी जान भी ले लेते हैं. समाज में बढ़ रहे हैं इन मामलों के पीछे की असल वजह क्या है, क्या वर्तमान समय की परिस्थितियां युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर असर डाल रही हैं या फिर उनकी दैनिक दिनचर्या मानसिक स्वास्थ्य को खराब करने में बड़ी भूमिका निभा रही है, आखिर क्या कहते हैं जानकार? देखिए इस रिपोर्ट में.
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस : आज के इस दौर में मानसिक स्वास्थ्य संबंधित समस्याएं वैश्विक स्तर की एक गंभीर समस्या बनी हुई है. यही वजह है कि हर साल 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है ताकि लोगों को मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने के साथ ही सामाजिक कलंक की भावना को दूर किया जा सके. इस साल 2024 में मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाने के लिए "इट्स टाइम टू प्रयोरिटाइज मेंटल हेल्थ एट वर्कप्लेस" थीम रखी गई है. विश्व स्वास्थ्य संगठन- WHO के अनुसार साल 2019 के दौरान 97 लाख से अधिक लोग मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित थे. जिसमें किसी चीज को लेकर चिंता और डिप्रेशन जैसी समस्याएं काफी अधिक देखी जा रही है. इसके साथ ही 6 में से एक व्यक्ति में किसी न किसी तरह की मेंटल हेल्थ संबंधित समस्या हो सकती है. Mental Health Day theme is "It's time to prioritize mental health at workplace"
युवाओ में मेंटल हेल्थ का मुख्य कारण : देश दुनिया में लगातार बढ़ रहे मेंटल हेल्थ संबंधित समस्याएं एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है खासकर वर्तमान समय में 15 साल से 30 साल उम्र के युवा इसकी चपेट में तेजी से आ रहे हैं इसके कई बड़े कारण है लेकिन मुख्य कारण यह है कि उनके पैरेंट्स की ओर से बच्चों को समय नहीं दिया जा रहा है जिसके चलते बच्चे डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं. इसके अलावा नशे की लत, मोबाइल लैपटॉप या उन इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स का अधिक इस्तेमाल बच्चों को मानसिक रूप से बीमार कर रहा है. जिसके चलते न सिर्फ बच्चों की प्रवृत्ति बदल रही है बल्कि बच्चे हिंसक भी होते जा रहे हैं. कई बार ऐसा भी देखा जाता है जब बच्चे खुद को भी नुकसान पहुंचने लगते हैं.
देहरादून के जाने-माने मनोवैज्ञानिक डॉ मुकुल शर्मा ने बताया कि 15 से 30 साल के युवाओं के साथ काफी अधिक समस्याएं देखी जा रही हैं. 15 से 30 साल के युवाओं में से करीब 22 फ़ीसदी युवा डिप्रेशन, स्ट्रेस, फोबिया समेत तमाम दिक्कतों से जूझ रहे हैं. इसके अलावा करीब 5 फीसदी युवा ऐसे हैं जो मेंटल डिसऑर्डर के शिकार हुए जिसके चलते यह युवा घर छोड़कर भाग रहे हैं या खुद को नुकसान पहुंचा रहे हैं या फिर आत्महत्या जैसे कदम उठा रहे हैं.
Psychologist Dr Mukul Sharma ने बताया कि उनके पास इस साल करीब 20 से 25 मामले ऐसे सामने आए हैं जिसमें युवाओं ने खुद को नुकसान पहुंचा है. लेकिन उनकी बात कोई सुन नहीं रहा है. लिहाजा, ये तमाम मामले सामने आ रहे हैं इसकी एक मुख्य वजह यही है कि लोग अपनी बात दूसरे से शेयर नहीं कर पा रहे हैं. Dr Mukul Sharma ने बताया कि मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है कि अपने रोजाना 24 घंटे के समय को प्लान किया जाए. साथ ही योग और मेडिटेशन पर ध्यान देकर अपने मेंटल हेल्थ को ठीक कर सकते हैं.
टीनएजर और प्री मैरिज स्टेज वाले युवाओं के मामले अधिक : वहीं, मनोचिकित्सक डॉ ईशा ने बताया कि सबसे अधिक मानसिक रूप से अस्वस्थ पुरुष से संबंधित मामले सामने आ रहे हैं. पुरुषो में भी सबसे अधिक टीनएजर युवाओं और प्री मैरिज स्टेज वाले युवाओं के मामले सामने आ रहे हैं. Psychiatrist Dr Isha ने बताया कि ब्रेकअप से जुड़े मामले भी काफी अधिक सामने आ रहे हैं. Dr Isha ने बताया कि लड़कियों से संबंधित कई तरह के मामले सामने आ रहे हैं. जिसमें माता-पिता के लड़ाई-झगड़ों की वजह से, या फिर सिंगल मदर होने की वजह से बच्चे काफी अधिक जूझ रहे हैं जिसके चलते खासकर लड़कियां डिप्रेशन का शिकार हो रही है या फिर नशे की लत में पड़ती जा रही हैं.
मरीज का ठीक होना बीमारी के लेवल पर निर्भर करता है : वहीं, मानसिक रूप से अस्वस्थ मरीजों की काउंसलिंग कर रही नैंसी ने बताया कि मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित व्यक्ति से संबंधित सभी व्यक्ति की हिस्ट्री ली जाती है. लिहाजा पीड़ित व्यक्ति के साथ ही उनके माता-पिता, दोस्त, पीड़ित की पत्नी से बातचीत की जाती है. साथ ही सभी को किस तरह से मानसिक स्वास्थ्य से जूझ रहे व्यक्ति से बातचीत करनी है उसका तरीका बताया जाता है. Counselor Nancy ने बताया कि किसी भी मरीज के ठीक होने में उसके बीमारी के लेवल पर काफी निर्भर करता है. क्योंकि अगर कोई व्यक्ति गंभीर रूप से डिप्रेशन का शिकार है तो उसको ठीक होने में काफी समय लगता है. लेकिन अगर किसी व्यक्ति को स्ट्रेस या वह दूसरों से बातचीत कर अपनी समस्याओं को शेयर नहीं कर पता है तो उसको ठीक होने में ज्यादा वक्त नहीं लगता है.
डिस्कलेमर :-- यहां आपको दी गई जानकारी केवल सामान्य ज्ञान के लिए लिखी गई है. यहां उल्लिखित किसी भी सलाह का पालन करने से पहले, विशेषज्ञ डॉक्टर से परामर्श लें.
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