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किस पेड़ का दातून करें इस्तेमाल? बीमारी में कौन सा दातून कारगर जो मुंह के साथ बीमारियां करे साफ - Which Tree Datoon is Best

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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Jun 18, 2024, 6:13 PM IST

Updated : Jun 20, 2024, 9:42 AM IST

दातून से दांत ही नहीं कई बीमारी भी होती हैं साफ. आज के समय में जब कई हाई तकनीक के ब्रश और पेस्ट मार्केट में आ चुके हैं, ऐसे में दातून को लोग कम ही जानते होंगे, लेकिन शहडोल जिले में कई पुराने या कहें बुजुर्ग लोग अभी भी दातून का इस्तेमाल करते हैं. यह दातून एक नहीं बल्कि कई मर्जों की दवा है.

Which Tree Datoon is Best
दातून से दांत ही नहीं कई बीमारी भी होती है साफ (ETV Bharat)

Datoon Medicinal Value as Toothpick: शहडोल जिला आदिवासी बहुल जिला है. यहां आज भी जो पुराने लोग हैं, उनमें से कई ऐसे हैं, जिनकी सुबह दातून करने के साथ ही होती है. बिना दातून के उनके मुख साफ नहीं होते हैं. आज के इस आधुनिक युग में लोग भले ही ब्रश और पेस्ट का इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन कई बुजुर्ग आज भी ऐसे हैं. जो दातून से ही दातों को साफ करते हैं और स्वस्थ रहते हैं. आखिर दातून सेहत के लिए कितना फायदेमंद है. किस पौधे का दातून किस मर्ज के लिए काम आता है. हर दिन दातून करना क्यों जरूरी है, जानते हैं आयुर्वेद डॉक्टर अंकित नामदेव से.

जानिए दातून के फायदे (ETV Bharat)

दांत साफ करने दातून क्यों है जरूरी ?

आयुर्वेद डॉक्टर अंकित नामदेव बताते हैं की मानव दिनचर्या में दातून का जो योगदान है. वो अभिन्न है, एक दौर ऐसा भी था, जब बिना दातून के किसी के दिन की शुरुआत ही नहीं हुआ करती थी. मुख धावन या ओरल हाइजीन के लिए पहले के लोग दातून इस्तेमाल किया करते थे. आम तौर पर ये माना जाता है की दातून सिर्फ और सिर्फ मुख धावन के लिए होता है, लेकिन ऐसा है नहीं, जब हम सुबह उठते हैं तो हमारा शरीर कफ के प्रकोप में होता है. कफ के प्रकोप में होने के कारण जब हम दातून करते हैं तो एक तरह से कफ का बिलियन करते हैं.

प्रकृति के हिसाब से चयन करें दातून

हर व्यक्ति की प्रकृति अलग-अलग होती है. इस तरह से दातून का चयन भी प्रकृति अनुसार देश अनुसार काल अनुसार रितु अनुसार व्यय अनुसार करना चाहिए, कोई भी जो दातुन होती है, कोई ना कोई औषधि की होती है और उस औषधि का शरीर में ऐसा प्रभाव होना चाहिए, जो मुख तो साफ करें ही साथ आपके शरीर को निरोगी भी बनाए. उदाहरण के लिए आयुर्वेद में मुख्यतः तीन तरह की प्रकृति बोली गई है. वैसे प्रकृति द्वंदज होती है. वात, पित्त ,कफ इसमें कोई एक प्रमुख होता है, उसके साथ में वात पित्त हो सकती है.

इस तरह से शरीर की प्रकृति निर्भर करती है, उदाहरण के लिए एक कफ प्रधान प्रकृति के व्यक्ति को ऐसी दातून करनी चाहिए, जो की कड़वी हो या तीखी हो या कसैली हो. एक वात प्रधान प्रकृति के व्यक्ति को एक ऐसा दातून करना चाहिए, जो की या तो मधुर हो या उसका रस अम्ल हो. एक पित्त प्रधान प्रकृति के व्यक्ति को ऐसी दातून करनी चाहिए, जो या तो जो तिक्त हो या तो कसैली हो या मधुर हो. इस तरह से वात पित्त कफ के डिफ्रेंसिएशन से दातून का रस भी निर्धारित होता है. उदाहरण के लिए वात प्रकृति व्यक्ति को महुआ की दातून ज्यादा सूट करेगी. पित्त प्रकृति वाले को करंज का या नीम का दातून सूट करेगा. कफ प्रकृति वाले को बबूल का दातून ज्यादा सूट करेगा.

दातून कई मर्ज़ों से बचाता है

शहडोल के आयुर्वेद डॉक्टर अंकित नामदेव बताते हैं की केवल दातून करने से कई रोगों से बचा जा सकता है. मुख्य तौर पर मुख के रोग और कई मेटाबॉलिक डिसीज, उदाहरण के लिए मान लीजिए किसी को थायराइड की प्रॉब्लम है, हाइपोथायरायडिज्म है तो उसकी दातून जो होनी चाहिए कड़वी तीखी या कसैली होनी चाहिए, क्योंकि एक तो उसको कफ प्रधान रोग है. कफ वाला व्यक्ति समय पर जब वह दातून करेगा तो इससे उसको फायदा होगा. इसी तरह से शरीर में अगर किसी के अत्यधिक गर्मी रहती है. पित्त प्रकृति का व्यक्ति है, शरीर में गर्मी रहती है, शरीर में जलन रहती है, तो ऐसी कंडीशन में उसको तिक्त रस की औषधि से जैसे आपका नीम की दातून करनी चाहिए. जिससे उसको फायदा होगा.

इसी तरह से अगर शरीर में छय बहुत ज्यादा बढ़ा हुआ है. डिजनरेशन बहुत ज्यादा बढ़ा हुआ है, ऐसी कंडीशन में महुआ का दातुन या मुलेठी के दातून से फायदा होता है, तो दातून सिर्फ मुख धावन के लिए नहीं होती है. इसका औषधीय महत्व भी होता है. इसका डिजीज ट्रीटमेंट में भी काफी महत्व होता है.

यहां पढ़ें...

शीशे के बाउल में टॉयलेट के दो कोने में रखें सेंधा नमक, नेगेटिव एनर्जी और वास्तु दोष होगा खत्म

बार बार मीठा खाने का जुनून और शुगर का खतरा, योग का ये आसन करें और स्वीट क्रेविंग को जड़ से भगाएं

उसके पाउडर भी गुणकारी

आज के शहरी वातावरण में इस तरह के अगर दातुन की उपलब्धता नहीं होती है. ऐसे टाइम में आप इन पौधों के लकड़ियों के चूर्ण से भी दंत धावन कर सकते हैं. या आयुर्वेद में वर्णित कई ऐसे मंजन हैं, जैसे दशन कंटकी चूर्ण मंजन, दशन संस्कार चूर्ण मंजन, जिससे आप मुख जो है धावन कर सकते हैं. ब्रश की सहायता से, इसके अलावा आयुर्वेद में कई तेल का वर्णन भी है. जिसका गंडूश या कवल धारण करने से मुख रोग से बचा जा सकता है. आयुर्वेद में कई ऐसे तेल भी आते हैं जिनसे मुख धुला जा सकता है.

Datoon Medicinal Value as Toothpick: शहडोल जिला आदिवासी बहुल जिला है. यहां आज भी जो पुराने लोग हैं, उनमें से कई ऐसे हैं, जिनकी सुबह दातून करने के साथ ही होती है. बिना दातून के उनके मुख साफ नहीं होते हैं. आज के इस आधुनिक युग में लोग भले ही ब्रश और पेस्ट का इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन कई बुजुर्ग आज भी ऐसे हैं. जो दातून से ही दातों को साफ करते हैं और स्वस्थ रहते हैं. आखिर दातून सेहत के लिए कितना फायदेमंद है. किस पौधे का दातून किस मर्ज के लिए काम आता है. हर दिन दातून करना क्यों जरूरी है, जानते हैं आयुर्वेद डॉक्टर अंकित नामदेव से.

जानिए दातून के फायदे (ETV Bharat)

दांत साफ करने दातून क्यों है जरूरी ?

आयुर्वेद डॉक्टर अंकित नामदेव बताते हैं की मानव दिनचर्या में दातून का जो योगदान है. वो अभिन्न है, एक दौर ऐसा भी था, जब बिना दातून के किसी के दिन की शुरुआत ही नहीं हुआ करती थी. मुख धावन या ओरल हाइजीन के लिए पहले के लोग दातून इस्तेमाल किया करते थे. आम तौर पर ये माना जाता है की दातून सिर्फ और सिर्फ मुख धावन के लिए होता है, लेकिन ऐसा है नहीं, जब हम सुबह उठते हैं तो हमारा शरीर कफ के प्रकोप में होता है. कफ के प्रकोप में होने के कारण जब हम दातून करते हैं तो एक तरह से कफ का बिलियन करते हैं.

प्रकृति के हिसाब से चयन करें दातून

हर व्यक्ति की प्रकृति अलग-अलग होती है. इस तरह से दातून का चयन भी प्रकृति अनुसार देश अनुसार काल अनुसार रितु अनुसार व्यय अनुसार करना चाहिए, कोई भी जो दातुन होती है, कोई ना कोई औषधि की होती है और उस औषधि का शरीर में ऐसा प्रभाव होना चाहिए, जो मुख तो साफ करें ही साथ आपके शरीर को निरोगी भी बनाए. उदाहरण के लिए आयुर्वेद में मुख्यतः तीन तरह की प्रकृति बोली गई है. वैसे प्रकृति द्वंदज होती है. वात, पित्त ,कफ इसमें कोई एक प्रमुख होता है, उसके साथ में वात पित्त हो सकती है.

इस तरह से शरीर की प्रकृति निर्भर करती है, उदाहरण के लिए एक कफ प्रधान प्रकृति के व्यक्ति को ऐसी दातून करनी चाहिए, जो की कड़वी हो या तीखी हो या कसैली हो. एक वात प्रधान प्रकृति के व्यक्ति को एक ऐसा दातून करना चाहिए, जो की या तो मधुर हो या उसका रस अम्ल हो. एक पित्त प्रधान प्रकृति के व्यक्ति को ऐसी दातून करनी चाहिए, जो या तो जो तिक्त हो या तो कसैली हो या मधुर हो. इस तरह से वात पित्त कफ के डिफ्रेंसिएशन से दातून का रस भी निर्धारित होता है. उदाहरण के लिए वात प्रकृति व्यक्ति को महुआ की दातून ज्यादा सूट करेगी. पित्त प्रकृति वाले को करंज का या नीम का दातून सूट करेगा. कफ प्रकृति वाले को बबूल का दातून ज्यादा सूट करेगा.

दातून कई मर्ज़ों से बचाता है

शहडोल के आयुर्वेद डॉक्टर अंकित नामदेव बताते हैं की केवल दातून करने से कई रोगों से बचा जा सकता है. मुख्य तौर पर मुख के रोग और कई मेटाबॉलिक डिसीज, उदाहरण के लिए मान लीजिए किसी को थायराइड की प्रॉब्लम है, हाइपोथायरायडिज्म है तो उसकी दातून जो होनी चाहिए कड़वी तीखी या कसैली होनी चाहिए, क्योंकि एक तो उसको कफ प्रधान रोग है. कफ वाला व्यक्ति समय पर जब वह दातून करेगा तो इससे उसको फायदा होगा. इसी तरह से शरीर में अगर किसी के अत्यधिक गर्मी रहती है. पित्त प्रकृति का व्यक्ति है, शरीर में गर्मी रहती है, शरीर में जलन रहती है, तो ऐसी कंडीशन में उसको तिक्त रस की औषधि से जैसे आपका नीम की दातून करनी चाहिए. जिससे उसको फायदा होगा.

इसी तरह से अगर शरीर में छय बहुत ज्यादा बढ़ा हुआ है. डिजनरेशन बहुत ज्यादा बढ़ा हुआ है, ऐसी कंडीशन में महुआ का दातुन या मुलेठी के दातून से फायदा होता है, तो दातून सिर्फ मुख धावन के लिए नहीं होती है. इसका औषधीय महत्व भी होता है. इसका डिजीज ट्रीटमेंट में भी काफी महत्व होता है.

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Last Updated : Jun 20, 2024, 9:42 AM IST
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