ETV Bharat / health

आयुर्वेद के मुताबिक, सड़क किनारे मिलने वाले इस छोटे से पौधे में है पाइल्स समेत दर्जनभर बीमारियों से लड़ने की क्षमता - Apamarga Plant

आयुर्वेद में अचिरांथेस एस्पेरा (चिरचिरा) पौधे का बहुत महत्व है. इस तीखे, कड़वे पौधे का उपयोग देशी दवा के रूप में किया जाता है. पढ़ें...

author img

By ETV Bharat Health Team

Published : 2 hours ago

apamarga plant is  beneficial in many diseases including piles and stomach disease
इस छोटे से पौधे में है पाइल्स समेत दर्जनभर बीमारियों से लड़ने की क्षमता (CANVA)

अचिरांथेस एस्पेरा, जिसे चिरचिरा, अपामार्ग, अधोघंटा, अध्वाशाल्य, अघमर्गव, अपांग, सफेद अघेडो, अनघादि, अंधेडी, अघेड़ा, उत्तराणी, कदलादि, कतलाटी जैसे कई नामों से जाना जाता है. अपामार्ग वैदिक साहित्य में वर्णित एक महत्वपूर्ण और आसानी से उपलब्ध आयुर्वेदिक जड़ी बूटी है. अपामार्ग को वनस्पति विज्ञान में अचिरांथेस एस्पेरा लिन के रूप में जाना जाता है और अंग्रेजी में इसे प्रिकली चैफ फ्लावर कहते हैं. यह एक सीधा, अनेक शाखाओं वाला, फैलने वाला पौधा है जो कई वर्षों तक जीवित रहता है.

सड़क किनारे खरपतवार की तरह उगता
यह पौधा 6 से 7 फीट तक लंबा हो सकता है, जिसे आमतौर पर चैफ फ्लावर, प्रिकली चैफ फ्लावर, डेविल्स हॉर्सव्हिप के नाम से जाना जाता है. पौधे और इसके सभी भागों जैसे जड़, बीज, पत्ते, फूल और फल का उपयोग औषधीय प्रयोजनों के लिए किया जाता है. यह मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय एशियाई, अफ्रीकी, गर्म क्षेत्रों में पाया जाता है. यह ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका, सीलोन, बलूचिस्तान में भी पाया जाता है. भारत में यह मुख्य रूप से सड़क किनारे खरपतवार की तरह उगता है. आयुर्वेद में अपामार्ग का व्यापक रूप से एक विरोधी भड़काऊ एजेंट के रूप में उपयोग किया जाता है. इसमें महत्वपूर्ण औषधीय गुण हैं और इसका उपयोग भारतीय लोककथाओं में खांसी, ब्रोंकाइटिस और गठिया, मलेरिया बुखार, पेचिश, अस्थमा, उच्च रक्तचाप और मधुमेह के उपचार में किया जाता है.

दर्जनों बीमारियों में रामबाण
अथर्ववेद में, अपामार्ग को पृथ्वी पर उगने वाले सभी पौधों का देवता माना जाता है. यह बांझपन, शारीरिक दुर्बलता को दूर करता है और जीवन देता है. अपामार्ग शरीर से रोगों को मिटाता है.आयुर्वेद के अनुसार, यह शिरो विरेचन के लिए सर्वोत्तम है और कर्ण रोग, कृमि संक्रमण, पांडु और कई अन्य रोगों में भी उपयोगी है. यह कफ और वात दोषों को संतुलित करता है. अपामार्ग का उपयोग चूर्ण, कलका (पेस्ट) और स्वरस (ताजा रस) के रूप में किया जाता है. अपामार्ग दो प्रकार के उपलब्ध हैं; एक सफेद अपामार्ग (अचिरांथेस एस्पेरा) और दूसरा लाल अपामार्ग (पुप्पलिया लैपेसी).

इस आयुर्वेदिक पौधे का है बहुत महत्व
आयुर्वेदिक में अचिरांथेस एस्पेरा (चिरचिरा) पौधे का बहुत महत्व है. यहां तक ​​कि आयुर्वेदिक ग्रंथों में भी इस पौधे के नाम पर एक पूरे अध्याय का नाम "अपामार्ग तंडुलीय" रखा है, जिसमें बताया गया है कि मानव शरीर के उपचार के लिए इसका उपयोग कितने तरीकों से किया जा सकता है. इसे शरीर के आंतरिक और बाहरी दोनों तरह से डिटॉक्सिफिकेशन के लिए एक बहुत ही प्रभावी जड़ी बूटी माना जाता है. अपामार्ग का पौधा और बीज कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और फ्लेवोनोइड्स, टैनिन, सैपोनिन जैसे कुछ घटकों से भरपूर होते हैं जो किसी व्यक्ति के समग्र स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करते हैं.

इसे इस तरह से करें इस्तेमाल
आयुर्वेद के अनुसार, शहद के साथ अचिरंथेस एस्पेरा पाउडर लेने से इसके भूख बढ़ाने वाले और पाचन गुणों के कारण पाचन में सुधार होता है. मुट्ठी भर अपामार्ग के बीजों का नियमित सेवन अतिरिक्त वसा के संचय को कम करके वजन को नियंत्रित करने में मदद करता है जिससे शरीर का वजन कम होता है. अचिरंथेस एस्पेरा के पत्तों का रस सीधे प्रभावित क्षेत्र पर लगाने से इसके कसैले और सूजन-रोधी गुणों के कारण घाव भरने में मदद मिल सकती है. इसके अल्सर-रोधी और गैस्ट्रोप्रोटेक्टिव गतिविधि के कारण इसका उपयोग अल्सर से राहत पाने के लिए भी किया जा सकता है.

अपामार्ग के औषधीय गुण से बवासीर का इलाज
अपामार्ग की 6 पत्तियों और 5 नग काली मिर्च को जल के साथ पीस लें. इसे छानकर सुबह और शाम सेवन करने से बवासीर में लाभ हो जाता है. इससे खून बहना रुक जाता है. अपामार्ग के बीजों को कूट-छानकर महीन चूर्ण बना लें. इसमें बराबर मात्रा में मिश्री मिलाएं. इसे 3-6 ग्राम तक सुबह-शाम जल के साथ सेवन करें. इससे बवासीर में फायदा होता है. 10-20 ग्राम अपामार्ग की जड़ के चूर्ण को चावल के धोवन के साथ पीस-छान लें. इसमें दो चम्मच शहद मिलाकर पिलाने से पित्तज या कफज विकारों के कारण होने वाले खूनी बवासीर की बीमारी में लाभ होता है.

पथरी की बीमारी में फायदेमंद
अपामार्ग (लटजीरा) का सेवन अपामार्ग की 5-10 ग्राम ताजी जड़ को पानी में पीस लें. इसे घोलकर पिलाने से पथरी की बीमारी में बहुत लाभ होता है. यह औषधि किडनी की पथरी को टुकडे-टुकड़े करके शरीर से बाहर निकाल देती है. किडनी में दर्द के लिए यह औषधि बहुत काम करती .

सोर्स-

https://ijpsr.com/bft-article/achyranthes-aspera-a-potent-immunostimulating-plant-for-traditional-medicine/

https://www.scholarsresearchlibrary.com/articles/achyranthes-asperaan-important-medicinal-plant-a-review.pdf

https://www.sciencedirect.com/topics/agricultural-and-biological-sciences/achyranthes-aspera

https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC4655238/

ये भी पढ़ें-

अचिरांथेस एस्पेरा, जिसे चिरचिरा, अपामार्ग, अधोघंटा, अध्वाशाल्य, अघमर्गव, अपांग, सफेद अघेडो, अनघादि, अंधेडी, अघेड़ा, उत्तराणी, कदलादि, कतलाटी जैसे कई नामों से जाना जाता है. अपामार्ग वैदिक साहित्य में वर्णित एक महत्वपूर्ण और आसानी से उपलब्ध आयुर्वेदिक जड़ी बूटी है. अपामार्ग को वनस्पति विज्ञान में अचिरांथेस एस्पेरा लिन के रूप में जाना जाता है और अंग्रेजी में इसे प्रिकली चैफ फ्लावर कहते हैं. यह एक सीधा, अनेक शाखाओं वाला, फैलने वाला पौधा है जो कई वर्षों तक जीवित रहता है.

सड़क किनारे खरपतवार की तरह उगता
यह पौधा 6 से 7 फीट तक लंबा हो सकता है, जिसे आमतौर पर चैफ फ्लावर, प्रिकली चैफ फ्लावर, डेविल्स हॉर्सव्हिप के नाम से जाना जाता है. पौधे और इसके सभी भागों जैसे जड़, बीज, पत्ते, फूल और फल का उपयोग औषधीय प्रयोजनों के लिए किया जाता है. यह मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय एशियाई, अफ्रीकी, गर्म क्षेत्रों में पाया जाता है. यह ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका, सीलोन, बलूचिस्तान में भी पाया जाता है. भारत में यह मुख्य रूप से सड़क किनारे खरपतवार की तरह उगता है. आयुर्वेद में अपामार्ग का व्यापक रूप से एक विरोधी भड़काऊ एजेंट के रूप में उपयोग किया जाता है. इसमें महत्वपूर्ण औषधीय गुण हैं और इसका उपयोग भारतीय लोककथाओं में खांसी, ब्रोंकाइटिस और गठिया, मलेरिया बुखार, पेचिश, अस्थमा, उच्च रक्तचाप और मधुमेह के उपचार में किया जाता है.

दर्जनों बीमारियों में रामबाण
अथर्ववेद में, अपामार्ग को पृथ्वी पर उगने वाले सभी पौधों का देवता माना जाता है. यह बांझपन, शारीरिक दुर्बलता को दूर करता है और जीवन देता है. अपामार्ग शरीर से रोगों को मिटाता है.आयुर्वेद के अनुसार, यह शिरो विरेचन के लिए सर्वोत्तम है और कर्ण रोग, कृमि संक्रमण, पांडु और कई अन्य रोगों में भी उपयोगी है. यह कफ और वात दोषों को संतुलित करता है. अपामार्ग का उपयोग चूर्ण, कलका (पेस्ट) और स्वरस (ताजा रस) के रूप में किया जाता है. अपामार्ग दो प्रकार के उपलब्ध हैं; एक सफेद अपामार्ग (अचिरांथेस एस्पेरा) और दूसरा लाल अपामार्ग (पुप्पलिया लैपेसी).

इस आयुर्वेदिक पौधे का है बहुत महत्व
आयुर्वेदिक में अचिरांथेस एस्पेरा (चिरचिरा) पौधे का बहुत महत्व है. यहां तक ​​कि आयुर्वेदिक ग्रंथों में भी इस पौधे के नाम पर एक पूरे अध्याय का नाम "अपामार्ग तंडुलीय" रखा है, जिसमें बताया गया है कि मानव शरीर के उपचार के लिए इसका उपयोग कितने तरीकों से किया जा सकता है. इसे शरीर के आंतरिक और बाहरी दोनों तरह से डिटॉक्सिफिकेशन के लिए एक बहुत ही प्रभावी जड़ी बूटी माना जाता है. अपामार्ग का पौधा और बीज कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और फ्लेवोनोइड्स, टैनिन, सैपोनिन जैसे कुछ घटकों से भरपूर होते हैं जो किसी व्यक्ति के समग्र स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करते हैं.

इसे इस तरह से करें इस्तेमाल
आयुर्वेद के अनुसार, शहद के साथ अचिरंथेस एस्पेरा पाउडर लेने से इसके भूख बढ़ाने वाले और पाचन गुणों के कारण पाचन में सुधार होता है. मुट्ठी भर अपामार्ग के बीजों का नियमित सेवन अतिरिक्त वसा के संचय को कम करके वजन को नियंत्रित करने में मदद करता है जिससे शरीर का वजन कम होता है. अचिरंथेस एस्पेरा के पत्तों का रस सीधे प्रभावित क्षेत्र पर लगाने से इसके कसैले और सूजन-रोधी गुणों के कारण घाव भरने में मदद मिल सकती है. इसके अल्सर-रोधी और गैस्ट्रोप्रोटेक्टिव गतिविधि के कारण इसका उपयोग अल्सर से राहत पाने के लिए भी किया जा सकता है.

अपामार्ग के औषधीय गुण से बवासीर का इलाज
अपामार्ग की 6 पत्तियों और 5 नग काली मिर्च को जल के साथ पीस लें. इसे छानकर सुबह और शाम सेवन करने से बवासीर में लाभ हो जाता है. इससे खून बहना रुक जाता है. अपामार्ग के बीजों को कूट-छानकर महीन चूर्ण बना लें. इसमें बराबर मात्रा में मिश्री मिलाएं. इसे 3-6 ग्राम तक सुबह-शाम जल के साथ सेवन करें. इससे बवासीर में फायदा होता है. 10-20 ग्राम अपामार्ग की जड़ के चूर्ण को चावल के धोवन के साथ पीस-छान लें. इसमें दो चम्मच शहद मिलाकर पिलाने से पित्तज या कफज विकारों के कारण होने वाले खूनी बवासीर की बीमारी में लाभ होता है.

पथरी की बीमारी में फायदेमंद
अपामार्ग (लटजीरा) का सेवन अपामार्ग की 5-10 ग्राम ताजी जड़ को पानी में पीस लें. इसे घोलकर पिलाने से पथरी की बीमारी में बहुत लाभ होता है. यह औषधि किडनी की पथरी को टुकडे-टुकड़े करके शरीर से बाहर निकाल देती है. किडनी में दर्द के लिए यह औषधि बहुत काम करती .

सोर्स-

https://ijpsr.com/bft-article/achyranthes-aspera-a-potent-immunostimulating-plant-for-traditional-medicine/

https://www.scholarsresearchlibrary.com/articles/achyranthes-asperaan-important-medicinal-plant-a-review.pdf

https://www.sciencedirect.com/topics/agricultural-and-biological-sciences/achyranthes-aspera

https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC4655238/

ये भी पढ़ें-

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.