मुंबई: तेलुगु सुपरस्टार पवन कल्याण की आंध्र प्रदेश की राजनीति में एंट्री शानदार रही है. उन्हें प्रदेश का उपराष्ट्रपति चुना गया है. अब वे अपने राज्य के लोगों की सुख-समृद्धि और कल्याण के लिए वाराही विजया दीक्षा ले रहे हैं. यह दीक्षा बुधवार 26 जून से शुरू हुई है और 11 दिनों तक चलेगी. इसमें वे देवी वाराही अम्मावरी की पूजा करेंगे.
वाराही विजया दीक्षा के लिए पवन कल्याण को 11 दिनों तक उपवास करना होगा. जनसेना पार्टी के सूत्रों ने बताया कि वे केवल दूध, फल और पानी का सेवन करेंगे. हालांकि ये पहली बार नहीं है जब वे ये आध्यात्मिक प्रयास कर रहे हैं. इससे पहले भी उन्होंने जून 2023 में देवी वाराही की पूजा की थी, साथ ही उन्होंने वाराही विजया यात्रा शुरू की थी और दीक्षा ली थी.
पवन कल्याण ने ये दीक्षा राज्य और वहां की जनता के कल्याण के लिए लिया है. दीक्षा 26 जून से शुरू है और 11 दिनों तक जारी रहेगी, इस दौरान पवन कल्याण आंध्र प्रदेश की समृद्धि और विकास के लिए प्रार्थना करेंगे.
Deputy CM Sri. @PawanKalyan Started Goddess #Varahi Diksha Today !#PawanKalyan #Varahi #NamoVarahi pic.twitter.com/Jm6FM2Wzy0
— 🚩🥛🎧 (@Itzgirii) June 26, 2024
इससे पहले, प्रमुख तेलुगु फिल्म मेकर ने बीते सोमवार को उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण से मुलाकात की और तेलुगु फिल्म इंडस्ट्री के सामने आने वाली चुनौतियों और आंध्र प्रदेश में फिल्म सेक्टर का विस्तार करने के तरीकों पर चर्चा की. बैठक विजयवाड़ा के कैंप कार्यालय में हुई.
बैठक में अल्लू अरविंद, सी अश्विनी दत्त, ए एम रत्नम, एस राधाकृष्ण (चिनबाबू), दिल राजू, बोगावल्ली प्रसाद, डीवीवी दानय्या, सुप्रिया, एनवी प्रसाद, बनी वासु, नवीन एर्नेनी, नागवंशी, टीजी विश्व प्रसाद और वामसी कृष्णा समेत कई फिल्म मेकर्स शामिल हुए थे.
वाराही विजया दीक्षा क्या है ?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, देवी वाराही हिंदू धर्म में सात मातृदेवियों में से एक हैं. सूअर का सिर धारण करने वाली देवी वाराही भगवान विष्णु के वराह अवतार वराह की शक्ति (स्त्री ऊर्जा) हैं. वाराही का अर्थ- देवी पृथ्वी.
देवी वाराही का उल्लेख मार्कंडेय पुराण में भी पाया है, जिनके बारे में कहा जाता है कि वे भगवान विष्णु के वराह अवतार से उत्पन्न हुई थीं. देवी का उल्लेख ललिता सहस्रनाम में भी किया गया है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी वाराही ने अंधकासुर, शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज सहित कई राक्षसों का वध करके धर्म की रक्षा की थी.