पटनाः फिल्म एक्ट्रेस सीमा पाहवा इन दिनों पटना में हैं. सीमा पटना में कुछ पन्ने नाटक का मंचन करेंगी. उनका पूरा परिवार रंगमंच से जुड़ा हुआ है. उनके पति मनोज पाहवा भी अच्छे एक्टर और आर्टिस्ट हैं. ईटीवी भारत ने एक्ट्रेस सीमा पाहवा से खास बातचीत की. सीमा का कहना है कि हर कलाकार के लिए ये जरूरी होता है कि वो अपने करेक्टर के साथ इंसाफ करे.
पटना में सीमा पाहवा का कार्यक्रमः सीमा पाहवा से जब पूछा गया कि जब भी वो मंच पर होती हैं या फिल्म करती हैं, तो कैरेक्टर कैसे अपने अंदर उतारती हैं, तो उन्होंने कहा कि यही कला है. जिसे हम लोग पेश करते हैं. हर कलाकार के लिए ये जरूरी होता है कि वो अपने करेक्टर के साथ इंसाफ करें और बिना उस करेक्टर में गए उसके साथ न्याय नहीं हो सकता. ये एक ट्रेनिग होती है. इस पर काफी स्टडी होती है. सबका कंट्रीब्यूशन होता है.
'राम प्रसाद की तेरहवीं' पर कही ये बातः जब उनसे यह पूछा गया कि आपकी एक फिल्म आई थी, 'राम प्रसाद की तेरहवीं' यह कॉन्सेप्ट कहां से आया था. उन्होंने बताया कि भगवान ना करे कि यह किसी के साथ हो, लेकिन यह एक बहुत ही उम्दा फिल्म है. सब लोग जॉइंट फैमिली में रहते हैं. मैं भी दिल्ली में जॉइंट फैमिली में रहती थी. मैंने रिश्तेदारों का वह माहौल बहुत पास से देखा है. जब किसी एक के साथ ऐसी यह दुख की घड़ी आती है.
"रिशतेदारों की फॉर्मेलिटी होती है, जिसे वह निभा कर चले जाते हैं. दुख तो सिर्फ किसी एक के साथ होता है, बाकी लोग सिर्फ फॉर्मेलिटी ही निभाते हैं. सराउंडिंग लोग क्या करते हैं वह मेरी एक स्टडी थी. मुझे बहुत दिनों से यह लगा था कि मुझे इसके बारे में कुछ लिखना चाहिए और कुछ स्क्रिप्ट बन गई और यह फिल्म बन गई"- सीमा पाहवा, एक्ट्रेस
'प्रेमचंद हमारे बिल्कुल करीब हैं': आप बिहार पहुंची हैं, प्रेमचंद के नाटक का प्ले कर रही हैं. प्रेमचंद की कहानियों को कितना करीब पाती हैं. इस पर सीमा पाहवा कहती है कि प्रेमचंद हमारे बिल्कुल करीब हैं. मेरे अकेले के नहीं, प्रेमचंद जैसी कहानी लिखना बहुत मुश्किल काम है. वह इतने सरल और सहज हैं, वह इमोशन बेस्ट कहानी लिखते हैं. वह हालत या ऐसा कुछ नहीं लिखते थे. वह इमोशंस को पड़कर कहानियां लिखते थे. हम शहर में रहें या देहात में रहें, इमोशन इंसान का एक जैसे ही होता है.
3 दिन पटना में प्ले करेगीं सीमाः प्रेमचंद की कहानियों को मैं बहुत रिलेट करती हूं और उनकी कहानी आस-पास की कहानी होती है और उनकी कहानियों को पढ़ कर लगता है कि हां यह तो मेरे पास की कहानी है. यह मैं भी सोच सकती थी. आज जो हम लोग प्ले पेश कर रहे हैं गुल्ली डंडा, उसे देखेंगे तो आपको लगेगा कि हां यह कहानी तो हमारे साथ न जाने कितनी बार हुई है. हम लोग 3 दिन यहां हैं. यहां प्ले करेंगे. मेरे इस प्ले में आप सभी को साहित्य देखने को मिलेगा.
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