नई दिल्ली: भारतीय शेयर बाजार के बेंचमार्क, सेंसेक्स और निफ्टी 50 आज भारी गिरावट का सामना कर रहे है. शुरुआती कारोबार में 3 फीसदी तक गिरावट दर्ज की जा रही है, जो वैश्विक रुझान को दिखाता है. अमेरिकी मंदी की आशंकाएं बढ़ गई हैं और मध्य पूर्व में बढ़ते तनाव ने निवेशकों को चिंतित कर दिया है, जिससे बाजार गिरावट का सामना कर रहे है. इस बीच, बीएसई पर लिस्ट सभी कंपनियों का बाजार पूंजीकरण 17 लाख करोड़ रुपये घटकर 440.16 लाख करोड़ रुपये रह गया.
सभी जगह बिकवाली ने सेंसेक्स को बुरी तरह प्रभावित किया, जो शुरुआती कारोबार में लगभग 3 फीसदी गिरकर 78,580.46 के स्तर पर आ गया. निफ्टी 50 लगभग 2 फीसदी गिरकर 24,277.60 के स्तर पर आ गया.
भारतीय बाजार में गिरावट का कारण
- अमेरिका में मंदी की आशंका- अमेरिका में मंदी की आशंका ने वैश्विक स्तर पर निवेशकों की जोखिम लेने की क्षमता को गंभीर झटका दिया है. क्योंकि पिछले शुक्रवार को जुलाई के पेरोल डेटा से पता चला है कि जून में 4.1 फीसदी के मुकाबले पिछले महीने अमेरिका में बेरोजगारी दर बढ़कर 4.3 फीसदी के करीब तीन साल के उच्च स्तर पर पहुंच गई. जुलाई में बेरोजगारी दर में लगातार चौथी मासिक वृद्धि दर्ज की गई.
- मध्य पूर्व में तनाव- मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, ईरान ने इजरायल द्वारा हमास के राजनीतिक प्रमुख इस्माइल हनीयाह की हत्या के बाद बदला लेने की कसम खाई है. हनीयेह की हत्या उस समय की गई जब वह नवनिर्वाचित ईरानी राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने के लिए ईरान में थे. दोनों पक्षों की ओर से बढ़ती धमकियों और उत्तेजक कार्रवाइयों ने युद्ध की आशंकाओं को बढ़ा दिया है. दुनिया भर के निवेशक उभरती स्थिति पर बारीकी से नजर रख रहे हैं. अगर युद्ध मौजूदा स्तरों से बढ़ता है, तो इससे बाजार की धारणा पर गहरा असर पड़ेगा.
- अमेरिकी फेड की बैठक- ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार, गोल्डमैन सैक्स के अर्थशास्त्रियों ने अगले 12 महीनों में अमेरिका में मंदी की संभावना को 15 फीसदी से बढ़ाकर 25 फीसदी कर दिया है. मंदी की आशंकाओं के बीच, विशेषज्ञों को इस साल अमेरिकी फेड द्वारा दरों में कटौती की उच्च संभावना दिख रही है. कुछ का कहना है कि फेड इस साल सितंबर, नवंबर और दिसंबर में दरों में संचयी रूप से 100 बीपीएस की कटौती कर सकता है.
जेपी मॉर्गन के विशेषज्ञों को सितंबर में 50 बीपीएस और नवंबर में 50 बीपीएस की कटौती की उम्मीद है. - पहली तिमाही का परिणाम निराशाजनक रहा- भारतीय उद्योग जगत के जून तिमाही (वित्त वर्ष 25 की पहली तिमाही) के परिणाम मिले-जुले रहे और बाजार की धारणा को खुश करने में नाकाम रहे. चूंकि मौजूदा बाजार मूल्यांकन उच्च बना हुआ है, इसलिए विशेषज्ञों को डर है कि आय इसे बनाए रखने में सक्षम नहीं हो सकती है. हाल के दिनों में हुई तेजी को आय वृद्धि से समर्थन मिला है, लेकिन विशेषज्ञों को कई क्षेत्रों की आय में कुछ नरमी दिख रही है, जिससे बाजार में संभावित रूप से कुछ मुनाफावसूली शुरू हो गई है.
- आरबीआई एमपीसी बैठक- भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक 6 से 8 अगस्त को होने वाली है. इसमें खाद्य मुद्रास्फीति बढ़ने के जोखिम के कारण रेपो रेट को 6.5 फीसदी पर अपरिवर्तित रखने की संभावना है. आरबीआई एमपीसी बैठक भी हर बार निवेशकों की धारणा को प्रभावित करते है.
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