नई दिल्ली: अमेरिका स्थित शॉर्ट-सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च ने आरोप लगाया कि बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) की अध्यक्ष माधवी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच ने एक ऑफशोर फंड में हिस्सेदारी रखी है. इसमें गौतम अडाणी के भाई विनोद अडाणी ने बड़ी मात्रा में पैसे निवेश किया गया है. आएये जानते है कौन हैं धवल बुच?
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— Hindenburg Research (@HindenburgRes) August 10, 2024
Whistleblower Documents Reveal SEBI’s Chairperson Had Stake In Obscure Offshore Entities Used In Adani Money Siphoning Scandalhttps://t.co/3ULOLxxhkU
कौन है धवल बुच?
लिंक्डइन प्रोफाइल के अनुसार, धवल बुच वर्तमान में ब्लैकस्टोन और अल्वारेज़ एंड मार्सल में वरिष्ठ सलाहकार हैं. वह गिल्डन के बोर्ड में गैर-कार्यकारी निदेशक के रूप में भी काम करते हैं. हाल ही तक वह ब्रिस्टलकोन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और महिंद्रा समूह के लिए समूह प्रौद्योगिकी के अंतरिम अध्यक्ष थे. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली (IIT-D) के पूर्व छात्र, उन्होंने 1984 में मैकेनिकल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन किया है.
उनकी लिंक्डइन प्रोफाइल में यह भी बताया गया है कि इससे पहले, धवल बुच का यूनिलीवर के साथ तीन दशक लंबा करियर था. यूनिलीवर में उनकी आखिरी भूमिका कंपनी के मुख्य खरीद अधिकारी के रूप में थी. और उससे पहले, उन्होंने एशिया/अफ्रीका क्षेत्र के लिए यूनिलीवर सप्लाई चेन का संचालन किया. ये दोनों भूमिकाएं सिंगापुर से संचालित थीं.
रिपोर्ट के अनुसार, ये संस्थाएं कथित तौर पर विनोद अडाणी के पैसे की हेराफेरी के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले नेटवर्क का हिस्सा थीं. हिंडेनबर्ग ने संभावित हितों के टकराव के कारण सेबी के पक्षपात पर सवाल उठाया है.
हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि 22 मार्च, 2017 को, जब माधबी पुरी बुच को मार्केट रेगुलेटर का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. उससे पहले उनके पति ने मॉरीशस के फंड एडमिनिस्ट्रेटर ट्राइडेंट ट्रस्ट को पत्र लिखा था. यह ईमेल ग्लोबल डायनेमिक ऑपर्च्युनिटीज फंड (GDOF) में उनके और उनकी पत्नी के निवेश के बारे में था.
धवल बुच पर हिंडनबर्ग का आरोप
हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि धवल बुच ने खातों को संचालित करने के लिए अनऑथराइज्ड एकमात्र व्यक्ति होने का अनुरोध किया, जो कि राजनीतिक रूप से संवेदनशील नियुक्ति से पहले अपनी पत्नी के नाम से संपत्ति को ट्रांसफर कर रहा था. इस कदम ने संभावित हितों के टकराव और पारदर्शिता के बारे में सवाल उठाए.