नई दिल्ली: सरकार ने देश की धीमी होती आर्थिक वृद्धि पर चिंता जताई है, जो जुलाई-सितंबर में गिरकर 5.4 फीसदी हो गई है. इसका कारण पिछले चार सालों में चार गुना बढ़े कॉरपोरेट मुनाफे और कर्मचारियों के वेतन में स्थिरता के बीच का अंतर है. फिक्की और क्वेस कॉर्प ने सरकार के लिए तैयार की गई एक रिपोर्ट ने कॉरपोरेट और आर्थिक मंत्रालयों में चर्चाओं को उठाया है.
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक 2019 से 2023 तक छह क्षेत्रों में वार्षिक वेतन बढ़ोतरी इंजीनियरिंग, मैन्यूफैक्चुरिंग और बुनियादी ढांचे में 0.8 फीसदी से लेकर FMCG कंपनियों में 5.4 फीसदी तक रही. इनकम में कम या नकारात्मक बढ़ोतरी के कारण औपचारिक क्षेत्रों में भी श्रमिकों के लिए स्थिति खराब हो गई है, क्योंकि वेतन महंगाई के साथ नहीं बढ़ा है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले पांच वर्षों में, 2019 से 2023 तक, खुदरा मुद्रास्फीति 4.8 फीसदी, 6.2 फीसदी, 5.5 फीसदी, 6.7 फीसदी और 5.4 फीसदी बढ़ी है, जिससे श्रमिकों की परचेसिंग पावर कम हुई है.
मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंथा नागेश्वरन ने कॉरपोरेट सभाओं में अपने कई संबोधनों में फिक्की-क्वेस रिपोर्ट का उल्लेख किया, जिसमें सुझाव दिया गया कि भारत इंक को आत्मनिरीक्षण करने और इस मुद्दे पर कार्रवाई करने की आवश्यकता है.
सरकारी स्रोतों का हवाला देते हुए द इंडियन एक्सप्रेस ने यह भी बताया कि कमजोर आय स्तर कम खपत का एक कारण है, खासकर शहरी क्षेत्रों में. रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड के बाद, दबी हुई मांग के साथ खपत बढ़ी, लेकिन धीमी वेतन बढ़ोतरी ने कोविड से पहले के स्तर पर पूर्ण आर्थिक सुधार के बारे में चिंताएं बढ़ा दी हैं.