नई दिल्ली: भारतीय बीमा क्षेत्र 34 सामान्य बीमा (अक्सर गैर-जीवन बीमा के रूप में जाना जाता है) कंपनियों और 24 जीवन बीमा कंपनियों से बना है. लाइफ इंश्योरेंस कंपनियों में, भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) एकमात्र सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम (PSE) है. सामान्य बीमा क्षेत्र में छह सार्वजनिक एंटरप्राइजेज हैं. इसके अलावा, एक एकमात्र नेशनल रिइंशूरर है, जिसे जनरल इंश्योरेंस कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (जीआईसी) के नाम से जाना जाता है.
अंडरइंशूरर इंडिया
हालांकि, वैश्विक प्रतिस्पर्धियों की तुलना में भारत बेहद कम बीमा वाला देश है. भारत में बीमा पहुंच केवल 4 फीसदी पर (सकल घरेलू उत्पाद-जीडीपी के फीसदी के रूप में प्रीमियम) है, जो वैश्विक औसत 6.8 फीसदी से काफी कम है. इसी तरह, भारत में बीमा डेंसिटी (प्रति व्यक्ति प्रीमियम भुगतान) 92 डॉलर है, जबकि वैश्विक औसत 853 डॉलर है.
साल 2022 में 3 ट्रिलियन डॉलर के कुल प्रीमियम, गैर-जीवन और जीवन के साथ, अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा बीमा बाजार बना रहा, इसके बाद चीन और यूके का स्थान है. तीनों बाजारों का वैश्विक प्रीमियम में 55 फीसदी से अधिक का योगदान है. भारत 131 बिलियन डॉलर के प्रीमियम मूल्य के साथ 10वें स्थान पर है. वहीं, वैश्विक बाजार में केवल 1.9 फीसदी हिस्सेदारी है. भारत के 2032 तक छठा सबसे बड़ा बीमा बाजार बनने का अनुमान है क्योंकि यह दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ते बाजारों में से एक है.
अनएक्सपायर्ड मार्केटिंग अपॉर्चुनिटी
केवल एक छोटे से सुरक्षा एजेंडा के साथ भारत में बेचे जाने वाले अधिकांश जीवन बीमा उत्पाद बचत से जुड़े होते हैं. इसका मतलब है कि प्राथमिक कमाने वाले की असामयिक मृत्यु की स्थिति में परिवारों को महत्वपूर्ण फाइनेंसिंग अंतर का सामना करना पड़ता है. इसके अलावा, भारत में प्राकृतिक आपदाओं के संबंध में 93 फीसदी एक्सपोजर बिना बीमा के है.
नीति आयोग की रिपोर्ट
नीति आयोग ने 2021 में अपनी रिपोर्ट में स्वीकार किया कि भारत में गैर-गरीबों में से भी 40 करोड़ व्यक्तियों के पास स्वास्थ्य वित्तीय सुरक्षा का अभाव है. इसके अलावा, भारत में वर्तमान वर्कफोर्स के 90 फीसदी से अधिक के पास कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं है. इसको "मिसिंग मिडिल" कहा जाता है क्योंकि वे सरकारी सब्सिडी वाले बीमा द्वारा कवर होने के लिए पर्याप्त गरीब नहीं हैं, और साथ ही, वे बीमा खरीदने के लिए पर्याप्त अमीर नहीं हैं.
इसको पूरा करने के लिए उचित मूल्य वाले स्वैच्छिक और कंट्रीब्यूटरी इंश्योरेंस प्रोडक्ट को डिजाइन किया गया है ताकि 2047 तक सभी बीमा लक्ष्य को प्राप्त करने में योगदान दें.
प्रपोज्ड रिफॉर्म्स
इसके खिलाफ, संसद की वित्त संबंधी स्थायी समिति (इसके बाद, समिति) ने संसद के हालिया बजट सत्र में "इंश्योरेंस सेक्टर परफॉर्मेंस रिव्यू एंड रेगुलेशन" टॉपिक से अपनी रिपोर्ट पेश की, जिसने "इंश्योरेंस सेक्टर में हलचल पैदा कर दी है. समिति की सिफारिशें बीमा उद्योग और ग्राहक दृष्टिकोण से प्रशंसनीय हैं.
सरकार को उचित नीति ढांचा देने के लिए सभी संबंधित हितधारकों के साथ विचार-विमर्श करना चाहिए. इसमें भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) शामिल है.
समिति के रिपोर्ट की कुछ प्रमुख बातें
सभी बीमा खंडों के लिए ओवरऑल लाइसेंसिंग- समिति ने सिफारिश की कि बीमा कंपनियों को समग्र लाइसेंसिंग की अनुमति दी जानी चाहिए, जो बीमाकर्ता को एक इकाई के तहत जीवन और गैर-जीवन बीमा दोनों उत्पादों की पेशकश करने में सक्षम बनाएगी. अब तक आईआरडीएआई के नियम किसी बीमाकर्ता को एक इकाई के तहत जीवन और गैर-जीवन बीमा उत्पाद लेने के लिए समग्र लाइसेंसिंग की अनुमति नहीं देते हैं. एक समग्र लाइसेंस बीमा कंपनियों के लिए लागत और अनुपालन कठिनाइयों में कटौती कर सकता है, और जैसा कि समिति द्वारा अपेक्षित है. ऐसा सक्रिय सुधार ग्राहकों को अधिक विकल्प और मूल्य प्रदान कर सकता है, जैसे कि एकल पॉलिसी जो जीवन, स्वास्थ्य और बचत को कवर करती है. यदि यह लागू हो जाता है, तो ग्राहक कम प्रीमियम और आसान दावों के साथ एक ही प्रदाता से ऑल-इन-वन बीमा प्राप्त कर सकते हैं.
बीमा एजेंटों के लिए खुली वास्तुकला- समिति ने बीमा एजेंटों के लिए एक खुली वास्तुकला अवधारणा की शुरूआत की सिफारिश की ताकि देश में बीमा उत्पादों की व्यापक पहुंच और एक मजबूत वितरण बुनियादी ढांचे की सुविधा मिल सके. इस तरह के सुधार से बीमा एजेंटों के लिए कई बीमा कंपनियों के साथ जुड़ने का मार्ग प्रशस्त होगा. ताकि ग्राहकों की विशिष्ट जरूरतों को पूरा किया जा सके. वर्तमान में, एक बीमा एजेंट बीमा उत्पादों के वितरण के लिए एक जीवन, एक गैर-जीवन और एक स्वास्थ्य बीमा कंपनी के साथ जुड़ सकता है.
जीएसटी दरों को कम करने का सही समय- बीमा केवल एक कमर्शियल प्रोडक्ट नहीं है. वास्तव में, यह एक सामाजिक सेवा भी है. विशेषज्ञों के साथ-साथ इंश्योरेंस इंडस्ट्री लंबे समय से जीएसटी की ऊंची दरों में कमी की मांग कर रहा है. स्वास्थ्य बीमा के प्रीमियम, टर्म इंश्योरेंस प्लान और यूनिट-लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान सहित वित्तीय सेवाओं पर 18 फीसदी जीएसटी लगता है.
समिति ने पाया कि जीएसटी की उच्च दर के परिणामस्वरूप प्रीमियम का बोझ अधिक होता है. जो भारत में बीमा के प्रवेश में बाधा के रूप में कार्य करता है. बीमा को आम आदमी के लिए एक किफायती उत्पाद बनाने के लिए, समिति ने सभी बीमा उत्पादों, विशेष रूप से वरिष्ठ नागरिकों के लिए स्वास्थ्य बीमा खुदरा पॉलिसियों और प्रधान मंत्री जन आरोग्य योजना, पीएमजेएवाई के तहत निर्धारित सीमा तक सूक्ष्म बीमा पॉलिसियों पर जीएसटी दर में कटौती की सिफारिश की है. वर्तमान में 5 लाख रुपये और टर्म पॉलिसियां है.
समान अवसर सुनिश्चित करना- समिति ने आगे कहा कि बीमा क्षेत्र में पीएसई को अनिवार्य रूप से सरकार द्वारा संचालित बीमा योजनाओं में भाग लेना होता है जो उनकी प्रॉबबिलिटी को प्रभावित करता है. समिति ने समान अवसर सुनिश्चित करने की दृष्टि से सिफारिश की कि ऐसे प्रावधान सभी पर समान रूप से लागू किए जाएं. इसके अलावा, समिति ने जीएसटी पर स्रोत पर टैक्स कटौती (टीडीएस) की एक डिस्क्रिपेशि पर ध्यान दिया जो केवल सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनियों पर लागू है. चूंकि ये पीएसई केंद्रीय सामान और सेवा (सीजीएसटी) अधिनियम की धारा 51 में शामिल हैं, इसलिए कर योग्य वस्तुओं या सेवाओं या दोनों के आपूर्तिकर्ता को किए गए या जमा किए गए भुगतान से 2 फीसदी की दर से टीडीएस काटा जाना आवश्यक है, जहां ऐसी आपूर्ति का कुल मूल्य 2.50 लाख रुपये से अधिक है.
आपदा-प्रवण क्षेत्रों के लिए डिजास्टर इंश्योरेंस- भारत में प्राकृतिक आपदाओं के कारण 2018 से 22 के दौरान 32.94 बिलियन डॉलर (2,73,500 करोड़ रुपये) का बिना बीमा वाला आर्थिक नुकसान हुआ, जो देश में कम बीमा पहुंच का संकेत देता है. साल 1900 के बाद से प्राकृतिक आपदाओं की सबसे अधिक संख्या दर्ज करने में भारत अमेरिका और चीन के बाद तीसरे स्थान पर है. भारत ने 2022 के पहले नौ महीनों में लगभग हर दिन प्राकृतिक आपदाएं देखीं है. इसमें गर्मी, ठंडी, लहरों, चक्रवात और बिजली गिरने से लेकर भारी बारिश, बाढ़ और भूस्खलन शामिल है.
प्राकृतिक आपदाओं से कई लोगों की गई जान
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) और डाउन टू अर्थ जर्नल की एक रिपोर्ट के अनुसार, इन आपदाओं ने 2,700 से अधिक लोगों की जान ले ली है. इसके साथ ही 1.8 मिलियन हेक्टेयर फसल क्षेत्र को नुकसान पहुंचाया, 4.16 लाख से अधिक घर नष्ट हो गए और लगभग 70,000 लाइवस्टोक मारे गए.
इसलिए, यह पता लगाने का सही समय है कि घरों और संपत्तियों का बीमा करने के लिए आपदा बीमा को कैसे संभव बनाया जाए. विशेष रूप से आर्थिक रूप से कमजोर समूहों जैसे कृषक समुदाय और माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) में काम करने वाले लोगों के लिए संवेदनशील क्षेत्रों में है.
कैलिफोर्निया भूकंप प्राधिकरण, ऑस्ट्रेलिया के घरेलू लचीलापन कार्यक्रम और तुर्की आपदा बीमा पूल जैसे जोखिम प्रबंधन पूल के सफल वैश्विक उदाहरण गैर-लाभकारी प्रतिष्ठानों को चलाने के बारे में आवश्यक इनपुट देते हैं. जो सरकारी और निजी बीमाकर्ताओं के फाइनेंसिंग के साथ बीमाकृत फर्मों से पैसे इकट्ठा करते हैं. देश भर में सामने आने वाले जोखिमों का समाधान करने के लिए प्रीमियम के साथ पीएसई सामान्य बीमा कंपनियों में से एक द्वारा एक विशेष बीमा व्यवसाय स्थापित किया जा सकता है.
दुनिया में सबसे अधिक सड़क दुर्घटना भारत में
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH), भारत सरकार का इरादा कुछ महीनों में देश भर में सभी घायल सड़क दुर्घटना पीड़ितों के लिए कैशलेस चिकित्सा उपचार शुरू करने का है. भारत में दुनिया में सबसे अधिक सड़क दुर्घटना में होने वाली मौतों का संदिग्ध रिकॉर्ड है. एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में हर घंटे सड़क दुर्घटनाओं में 19 लोगों की जान चली जाती है.
साल 2022 में देशभर में 4.61 लाख सड़क दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें से 1.68 लाख लोगों की मौत हो गई. इस संदर्भ में समिति ने पाया कि बड़ी संख्या में वाहन, विशेष रूप से कमर्शियल व्हीकल बिना किसी बीमा कवर के भारतीय सड़कों पर चल रहे हैं, जो सड़क दुर्घटनाओं और क्षति के मामले में मालिकों और तीसरे पक्षों के लिए जोखिम पैदा करता है.
बिना बीमा वाले वाहन 56 फीसदी- IIB
भारतीय बीमा सूचना ब्यूरो (IIB) की मोटर वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, मार्च 2020 तक भारतीय सड़कों पर 25.33 करोड़ से अधिक वाहनों में, बिना बीमा वाले वाहनों का अनुपात लगभग 56 फीसदी था. व्यावसायिक वाहनों से होने वाली दुर्घटनाओं के कारण कई निर्दोष पीड़ित होते हैं. कोई उचित बीमा कवरेज नहीं है जिसे दुर्घटना के बाद पहचाना जा सके.
समिति ने आईआईबी, एमपरिवहन और राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (एनआईसी) डेटा द्वारा डेटा एकीकरण का लाभ उठाकर राज्यों में ई-चालान प्रवर्तन के कार्यान्वयन की सिफारिश की है.
चार सामान्य बीमा को मजबूत करने की आवश्यकता- PSEs
समिति ने वकालत की कि सरकार की ओर से भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) बीमा उद्योग की 40,000 से 50,000 करोड़ रुपये की पूंजी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विभिन्न मैट्यूरिटी के "ऑन-टैप" बांड जारी कर सकता है. इन सार्वजनिक उपक्रमों के प्रबंधन में प्रतिस्पर्धात्मकता और दक्षता, प्रभावशीलता और नवाचार की संस्कृति में सुधार करने और उन्हें पर्याप्त पूंजी और प्रतिभा को आकर्षित करने में सक्षम बनाने के लिए उचित रणनीतिक रोडमैप समय की आवश्यकता है.
स्वास्थ्य पर अपनी जेब से खर्च (ओओपीई)- विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा 2022 में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि स्वास्थ्य पर उच्च ओओपीई सालाना 55 मिलियन भारतीयों को वंचित करता है. सरकार के अनुमान से स्थिति और भी खराब हो गई है, और इसके अनुसार, अकेले स्वास्थ्य लागत के कारण हर साल 63 मिलियन से अधिक भारतीयों को गरीबी का सामना करना पड़ता है.
बता दें कि ओओपीई में रोगी द्वारा सीधे वहन किया जाने वाला खर्च शामिल होता है जब बीमा स्वास्थ्य वस्तु या सेवा की पूरी लागत को कवर नहीं करता है. भारत में, स्वास्थ्य पर ओओपीई (48.2 फीसदी) स्वास्थ्य पर सरकार के खर्च (40.6 फीसदी) से अधिक है. जैसा कि सरकार ने अपने आर्थिक सर्वेक्षण 2022 में स्वीकार किया है. जबकि भारत में ओओपीई आम तौर पर अधिक है, आर्थिक रूप से कमजोर राज्यों में यह अधिक है.
उदाहरण के लिए, यूपी में, मरीजों का ओओपीई 71 फीसदी था, उसके बाद बंगाल और केरल (68 फीसदी प्रत्येक) का स्थान है, जिसका अर्थ है कि लोगों की किफायती स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं तक पहुंच में राज्यों में व्यापक असमानताएं है. जबकि पांच राज्यों महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, गुजरात और दिल्ली ने 2022-23 में कुल स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम का लगभग दो-तिहाई योगदान दिया. बाकी राज्यों ने केवल एक-तिहाई योगदान दिया. भारत इस रेलीवेंट मुद्दे को संबोधित किए बिना, राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 की विचार के अनुसार यूनिवर्सल स्वास्थ्य कवरेज और प्रत्येक भारतीय के लिए सस्ती कीमत पर गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के अपने प्रशंसनीय लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता है.