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तेलंगाना के इस युवा ने ऑर्गेनिक खेती और वृक्षारोपण से बदल दी गांव की तस्वीर - Telangana

Environmental Crusader From Suryapet: तेलंगाना के सूर्यपेट जिले अडागुदुर गांव में सुरेश ने ने खुद को पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्पित कर दिया है. ऑर्गेनिक खेती और प्लास्टिक प्रदूषण से पर्यावरण की रक्षा करना उनके जीवन का मिशन बन गया.

युवा पर्यावरण योद्धा सुरेश
युवा पर्यावरण योद्धा सुरेश (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Aug 13, 2024, 7:39 PM IST

हैदराबाद: तेलंगाना के सूर्यपेट जिले के हरे-भरे लैंडस्केप में बसे अडागुदुर गांव में सुरेश नाम का एक युवक पर्यावरण संरक्षण के लिए आशा की किरण बनकर उभरा है. हरे-भरे खेतों और ग्रामीण इलाकों की ताजी हवा से घिरे हुए, सुरेश हमेशा प्रकृति से गहराई से जुड़े रहे. उनका मानना है कि अगर हम प्रकृति की रक्षा करेंगे, तो बदले में वह हमारी रक्षा करेगी.

इसके चलते ऑर्गेनिक फार्मिंग और प्लास्टिक प्रदूषण से पर्यावरण की रक्षा करना उनके जीवन का मिशन बन गया. छोटी उम्र से ही, सुरेश ने प्राकृतिक आपदाओं के विनाशकारी प्रभावों को देखा, जिनमें बढ़ते तापमान और भूकंप शामिल हैं. इन घटनाओं ने उनके भीतर गहरी चिंता जगाई और उन्हें तत्काल एक्शन आवश्यकता का एहसास हुआ.

सूर्यपेट के युवा पर्यावरण योद्धा ने ऑर्गेनिक खेती और वृक्षारोपण से बदल दी गांव की तस्वीर (ETV Bharat)

अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद सुरेश ने खुद को पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्पित करने का फैसला किया. उन्होंने समझा कि हम जो खाना खाते हैं और जिस हवा में हम सांस लेते हैं, वह रसायनों और विषाक्त पदार्थों से तेजी से प्रदूषित हो रही है. इसके चलते सुरेश ने ऑर्गेनिक खेती का प्रैक्टिस करके शुरुआत की.

माता-पिता का विरोध
अपने माता-पिता के विरोध के बावजूद, जो कृषि में उनके प्रवेश को लेकर झिझक रहे थे, सुरेश दृढ़ निश्चयी थे. उन्होंने अपने माता-पिता को सस्टेनिबल फार्मिंग के महत्व के बारे में समझाया और जैविक तरीकों का उपयोग करके ड्रैगन फ्रूट जैसी लाभदायक व्यावसायिक फसलें उगाने का विकल्प चुना. उनके प्रयास सिर्फ खेती तक ही सीमित नहीं थे. सुरेश ने अपने गांव में हरियाली बहाल करने की चुनौती भी ली.

प्लास्टिक के व्यापक उपयोग से परेशान थे सुरेश
सुरेश प्लास्टिक के व्यापक उपयोग से परेशान थे, जिसे वे पर्यावरण क्षरण में प्रमुख योगदानकर्ता मानते थे. उन्होंने गांव में सुबह-सुबह सैर के दौरान सड़क किनारे फेंकी गई प्लास्टिक की बोतलें और थैलियां इकट्ठी करनी शुरू कर दीं. अपने दोस्तों और स्थानीय बच्चों की मदद से उन्होंने इन प्लास्टिक की वस्तुओं को अस्थायी गमलों में बदल दिया, उनमें लाल मिट्टी और आम, इमली, नींबू और नीम सहित विभिन्न पेड़ों के बीज भर दिए.

हजार से ज्यादा पेड़ लगाए
पिछले पांच साल से सुरेश लगातार खाली पड़ी जमीनों और पहाड़ी इलाकों में पौधे लगा रहे हैं और बंजर जगहों को हरियाली से भर रहे हैं. उनके प्रयासों से एक हजार से ज़्यादा पेड़ लगाए जा चुके हैं और उन्होंने दो हजार से ज्यादा प्लास्टिक की बोतलें और थैलियां इकट्ठी की हैं और उनका इस्तेमाल सैकड़ों पौधों को लगाने में किया है.

YouTube के जरिए लोगों को कर रहे जागरुक
पर्यावरण के प्रति सुरेश की प्रतिबद्धता उनके गांव से आगे तक फैली हुई है. वह अपनी यात्रा को शेयर करने और दूसरों को जैविक खेती और पर्यावरण संरक्षण के महत्व के बारे में शिक्षित करने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, विशेष रूप से YouTube का उपयोग करते हैं. वह अपने चैनल 'सुरेश किसान' के माध्यम से अनगिनत व्यक्तियों को ग्रह को बचाने का काम करने के लिए प्रेरित करते हैं. उनके संदेश ने कई लोगों को प्रभावित किया है. साथ ही उन्हें दर्शकों से सकारात्मक प्रतिक्रिया भी मिली है.

अब माता पिता करने लगे है समर्थन
सुरेश के माता-पिता ने उनकी यात्रा के बारे में बताते हुए कहा कि वे शुरू में उनके पर्यावरण संबंधी प्रयासों को लेकर संशय में थे. हालांकि, अब वे उनके मिशन का पूरा समर्थन करते हैं और मानते हैं कि ग्रह के स्वास्थ्य में योगदान के लिए हर किसी को हर साल कम से कम पांच पेड़ लगाने चाहिए.

सुरेश की कहानी एक शक्तिशाली रिमाइंडर है कि व्यक्तिगत प्रयास महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकते हैं. प्रकृति को संरक्षित करने के प्रति उनके समर्पण, संसाधनों के उनके अभिनव उपयोग और जागरूकता फैलाने की प्रतिबद्धता ने उन्हें एक सच्चा पर्यावरण नायक बना दिया है. सुरेश सभी से पर्यावरण की जिम्मेदारी लेने का आग्रह करते रहते हैं. उनका मानना ​​है कि सामूहिक प्रयास से हम आने वाली पीढ़ियों के लिए पृथ्वी की रक्षा और पोषण कर सकते हैं.

यह भी पढ़ें- भारत में इस साल 30 जून तक एमपॉक्स के 27 मामले सामने आए: WHO

हैदराबाद: तेलंगाना के सूर्यपेट जिले के हरे-भरे लैंडस्केप में बसे अडागुदुर गांव में सुरेश नाम का एक युवक पर्यावरण संरक्षण के लिए आशा की किरण बनकर उभरा है. हरे-भरे खेतों और ग्रामीण इलाकों की ताजी हवा से घिरे हुए, सुरेश हमेशा प्रकृति से गहराई से जुड़े रहे. उनका मानना है कि अगर हम प्रकृति की रक्षा करेंगे, तो बदले में वह हमारी रक्षा करेगी.

इसके चलते ऑर्गेनिक फार्मिंग और प्लास्टिक प्रदूषण से पर्यावरण की रक्षा करना उनके जीवन का मिशन बन गया. छोटी उम्र से ही, सुरेश ने प्राकृतिक आपदाओं के विनाशकारी प्रभावों को देखा, जिनमें बढ़ते तापमान और भूकंप शामिल हैं. इन घटनाओं ने उनके भीतर गहरी चिंता जगाई और उन्हें तत्काल एक्शन आवश्यकता का एहसास हुआ.

सूर्यपेट के युवा पर्यावरण योद्धा ने ऑर्गेनिक खेती और वृक्षारोपण से बदल दी गांव की तस्वीर (ETV Bharat)

अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद सुरेश ने खुद को पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्पित करने का फैसला किया. उन्होंने समझा कि हम जो खाना खाते हैं और जिस हवा में हम सांस लेते हैं, वह रसायनों और विषाक्त पदार्थों से तेजी से प्रदूषित हो रही है. इसके चलते सुरेश ने ऑर्गेनिक खेती का प्रैक्टिस करके शुरुआत की.

माता-पिता का विरोध
अपने माता-पिता के विरोध के बावजूद, जो कृषि में उनके प्रवेश को लेकर झिझक रहे थे, सुरेश दृढ़ निश्चयी थे. उन्होंने अपने माता-पिता को सस्टेनिबल फार्मिंग के महत्व के बारे में समझाया और जैविक तरीकों का उपयोग करके ड्रैगन फ्रूट जैसी लाभदायक व्यावसायिक फसलें उगाने का विकल्प चुना. उनके प्रयास सिर्फ खेती तक ही सीमित नहीं थे. सुरेश ने अपने गांव में हरियाली बहाल करने की चुनौती भी ली.

प्लास्टिक के व्यापक उपयोग से परेशान थे सुरेश
सुरेश प्लास्टिक के व्यापक उपयोग से परेशान थे, जिसे वे पर्यावरण क्षरण में प्रमुख योगदानकर्ता मानते थे. उन्होंने गांव में सुबह-सुबह सैर के दौरान सड़क किनारे फेंकी गई प्लास्टिक की बोतलें और थैलियां इकट्ठी करनी शुरू कर दीं. अपने दोस्तों और स्थानीय बच्चों की मदद से उन्होंने इन प्लास्टिक की वस्तुओं को अस्थायी गमलों में बदल दिया, उनमें लाल मिट्टी और आम, इमली, नींबू और नीम सहित विभिन्न पेड़ों के बीज भर दिए.

हजार से ज्यादा पेड़ लगाए
पिछले पांच साल से सुरेश लगातार खाली पड़ी जमीनों और पहाड़ी इलाकों में पौधे लगा रहे हैं और बंजर जगहों को हरियाली से भर रहे हैं. उनके प्रयासों से एक हजार से ज़्यादा पेड़ लगाए जा चुके हैं और उन्होंने दो हजार से ज्यादा प्लास्टिक की बोतलें और थैलियां इकट्ठी की हैं और उनका इस्तेमाल सैकड़ों पौधों को लगाने में किया है.

YouTube के जरिए लोगों को कर रहे जागरुक
पर्यावरण के प्रति सुरेश की प्रतिबद्धता उनके गांव से आगे तक फैली हुई है. वह अपनी यात्रा को शेयर करने और दूसरों को जैविक खेती और पर्यावरण संरक्षण के महत्व के बारे में शिक्षित करने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, विशेष रूप से YouTube का उपयोग करते हैं. वह अपने चैनल 'सुरेश किसान' के माध्यम से अनगिनत व्यक्तियों को ग्रह को बचाने का काम करने के लिए प्रेरित करते हैं. उनके संदेश ने कई लोगों को प्रभावित किया है. साथ ही उन्हें दर्शकों से सकारात्मक प्रतिक्रिया भी मिली है.

अब माता पिता करने लगे है समर्थन
सुरेश के माता-पिता ने उनकी यात्रा के बारे में बताते हुए कहा कि वे शुरू में उनके पर्यावरण संबंधी प्रयासों को लेकर संशय में थे. हालांकि, अब वे उनके मिशन का पूरा समर्थन करते हैं और मानते हैं कि ग्रह के स्वास्थ्य में योगदान के लिए हर किसी को हर साल कम से कम पांच पेड़ लगाने चाहिए.

सुरेश की कहानी एक शक्तिशाली रिमाइंडर है कि व्यक्तिगत प्रयास महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकते हैं. प्रकृति को संरक्षित करने के प्रति उनके समर्पण, संसाधनों के उनके अभिनव उपयोग और जागरूकता फैलाने की प्रतिबद्धता ने उन्हें एक सच्चा पर्यावरण नायक बना दिया है. सुरेश सभी से पर्यावरण की जिम्मेदारी लेने का आग्रह करते रहते हैं. उनका मानना ​​है कि सामूहिक प्रयास से हम आने वाली पीढ़ियों के लिए पृथ्वी की रक्षा और पोषण कर सकते हैं.

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