जबलपुर. भारत का संविधान दुनिया की कुछ महान किताबों में से एक है. भारत की पूरी व्यवस्था इसी संविधान के जरिए चलती है. हमारे अधिकार, हमारे कर्तव्य सभी चीजें इसमें लिखी हुई हैं. इसे लिखने में भी बड़ी मेहनत की गई थी, एक संविधान सभा ने इस संविधान को लिखा लेकिन संविधान में सभी के अधिकारों और कर्तव्यों को नियमबद्ध तरीके से लिखने में यह पुस्तक बहुत जटिल हो गई. इसकी जटिलता की वजह से इसे आम आदमी आसानी से पढ़ नहीं पाता और अगर पढ़ भी लेता तो फिर इसे समझने में बहुत कठिनाई होती है. इसी वजह से देश के 142 साहित्यकारों ने इसे सरल बनाने का प्रयास किया है.
142 साहित्यकारों में से 7 जबलपुर से
छत्तीसगढ़ के एक साहित्यकार ओमकार साहू मृदुल के मन में एक विचार आया कि क्यों ना संविधान की इस किताब को गीतों में बदल दिया जाए और इसमें लिखी हुई बातों को छंदों में पिरोया जाए. ओमकार साहू मृदुल ने अपने इस विचार को अपने साथियों के साथ साझा किया और इस तरह लगभग 142 साहित्यकार चुने गए जो ऑनलाइन एक दूसरे से जुड़े हुए थे. इसमें से सात साहित्यकार जबलपुर के भी थे.
![New Constitution of India](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/20-06-2024/mp-jab-02-sambidhaan-7211635_19062024234217_1906f_1718820737_1064.jpg)
संविधान को कुछ इस तरह बदला
इन सभी ने मिलकर संविधान को कुछ इस तरह से बदला कि इसकी भाषा सरल हो जाए. अलग-अलग साहित्यकार को अलग-अलग काम मिला, इसमें जबलपुर के साहित्यकार संजीव वर्मा सलिल ने भी अपना योगदान दिया. उन्होंने संविधान में जनजातियों के अधिकारों से जुड़े हुए नियमों को छंदों में लिखा है. वहीं पूरा संविधान छंद में इस तरह पिरोया गया है कि इसे कविता की तरह भी पढ़ा जा सकता है.
![New Constitution of India](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/20-06-2024/mp-jab-02-sambidhaan-7211635_19062024234217_1906f_1718820737_419.jpg)