बस्तर: विश्व प्रसिद्ध ऐतेहासिक बस्तर दशहरे की शुरुआत आज हरियाली अमावस्या के दिन पाठजात्रा रस्म के साथ शुरू हो चुकी है. इस साल बस्तर दशहरा 77 दिनों तक मनाया जाएगा. 600 सालों से पहले से यह परंपरा लगातार चलती आ रही है. इस परंपरा को जगदलपुर के दंतेश्वरी मंदिर के सामने पारंपरिक पूजा-विधान करके सम्पन्न किया गया. इस दौरान मांझी, चालकी, बस्तर सांसद, जिला प्रशासन की टीम सहित अन्य स्थानीय नागरिक मौजूद रहे.
इस तरह निभाई जाती है रस्म: बस्तर में पाठजात्रा रस्म के लिए 20 बुजुर्ग ग्रामीण विशेष ग्राम बिल्लोरी गांव के जंगल में ऐसे साल वृक्ष का चयन करते हैं, जो बांह की गोलाई में समा जाए. उसके तने की गोलाई को निकालकर पूजा के लिए बस्तर की आराध्य देवी दंतेश्वरी मंदिर के परिसर में लाया जाता है, जिसके बाद पूजा-विधान करके इस रस्म की अदायगी की जाती है. पूजा-विधान में बकरे और मोंगरी मछली की बलि दी जाती है. साथ ही फूल-माला, चावल, लाली और पान के पत्ते को चढ़ाया जाता है. साल का तना, जिसे ठुरलु खोटला कहा जाता है. उसकी गोलाई करीब 3 फीट और लंबाई 4 फीट होती है. इस लकड़ी का इस्तेमाल रथ बनाने के लिए किया जाता है. इसके अलावा इस्तेमाल किए जाने वाले औजार के लिए इस लकड़ी का उपयोग होता है.
" बस्तर दशहरे का प्रमुख और शरुआती रस्म आज निभाया गया. मांझी चालकी सहित अन्य प्रमुख शामिल रहे. बस्तर के लिए दशहरा पर्व और उसके रस्म काफी महत्वपूर्ण होते हैं. सभी को इसकी बधाई और शुभकामनाएं." -विजय दयाराम, कलेक्टर, बस्तर
जानिए क्या कहते हैं बस्तरवासी: बस्तर दशहरे के बारे में बस्तर के मांझी अर्जुन कर्मा ने बताया कि, "यह पूजा सबसे खास होता है. रथ चक्कों में लगने वाले लकड़ी को हथौड़े के रूप में ठोका जाता है. सरई का पेड़ काफी शुभ होता है. साल पेड़ की भूमिका बस्तर दशहरे में सबसे महत्वपूर्ण मानी गई है." दशहरा समिति के अध्यक्ष और बस्तर सांसद महेश कश्यप ने बताया, "विधि-विधान के साथ रस्म निभाई गई है. इस रस्म के लिए रथ निर्माण कारीगर बेड़ा उमरगांव और झाड़ उमरगांव के प्रमुख पहुंचे हुए थे. उनकी उपस्थित में पाठजात्रा रस्म निभाया गया है. आने वाले दिनों में विभिन्न रस्मों की अदायगी की जाएगी."
बता दें कि बस्तर का दशहरा पर्व काफी धूमधाम से मनाया जाता है. ये विश्वप्रसिद्ध पर्व है और इस पर्व को देखने के लिए कई राज्यों से ही नहीं बल्कि विदेश से भी लोग आते हैं. इस पर्व में निभाई जाने वाली हर रस्म खास होती है. आज का रस्म भी बेहद खास तरीके से निभाया गया.