मेप्पाडी: वायनाड लैंडस्लाइड में लगातार मौत का आंकड़ा बढ़ रहा है. इस प्राकृतिक आपदा में जो लोग बच गए हैं वे अब उन लोगों से कभी नहीं मिल पाएंगे, जिनके साथ उन्होंने अपना ज्यादा समय बिताया था. पुन्नापुझा के तट पर चाय बागानों से घिरा एक सरकारी व्यावसायिक उच्चतर माध्यमिक विद्यालय भूस्खलन में तबाह हो गया. यह विद्यालय वेल्लारमाला गांव का दिल और आत्मा था, जो पीढ़ियों को साहित्य की दुनिया में ले जाता था. यह आपदाओं के दौरान एक आश्रय के रूप में काम करता था, लेकिन 30 जुलाई को, तीन दिनों की लगातार बारिश ने इसे बर्बाद कर दिया.
वेल्लारमाला गांव तबाह हो गया. अब यहां न तो कोई स्कूल है और न ही बच्चों की हंसी. दिख रहे हैं तो सिर्फ मिट्टी और पत्थरों के ढेर और कभी ना खत्म होने वाली एक खामोशी. वायनाड भूस्खलन के बाद जिन लोगों ने अपनों को खोया है, उन पर क्या गुजर रही है, यह कोई नहीं जान सकता. इस क्षति पर शोक व्यक्त करने वालों में रिटायर्ड शिक्षक विल्सन भी हैं. जिन्होंने अपने जीवन के 25 साल इस विद्यालय को समर्पित किए. उन्होंने विद्यालय को उच्च प्राथमिक से उच्चतर माध्यमिक संस्थान में अपग्रेड करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे उन्हें ग्रामीणों का प्यार और सम्मान मिला. आज, जब वे आपदाग्रस्त क्षेत्र से गुज़रते हैं, तो उनका दिल विद्यालय और उस समुदाय के लिए दुखी होता है जिसे वे कभी संजोते थे.
विल्सन का दुख काफी गहरा है. वेल्लारमाला में भूस्खलन ने न केवल स्कूल को तबाह किया बल्कि उनके कई पूर्व छात्रों और उनके परिवारों की जान भी ली. उनमें से अधिकांश का अभी भी पता नहीं चल पाया है, जिससे एक ऐसा खालीपन पैदा हो गया है जिसे शब्दों में नहीं भरा जा सकता. भारी मन से विल्सन याद करते हैं, 'इस त्रासदी में जान गंवाने वालों में से अधिकांश मेरे पूर्व छात्र थे... मिट्टी ने मेरे प्रियजनों को मुझसे छीन लिया है.'
विल्सन ने 1979 में एक शिक्षक के रूप में 400 रुपये के मामूली वेतन के साथ शुरुआत की. उस समय, यह सिर्फ अपर प्राइमेरी का एक स्कूल था. जब हाई स्कूल की मांग उठी, तो उन्होंने इस मुद्दे की वकालत की. सबसे नज़दीकी हाई स्कूल मेप्पाडी में 13 किलोमीटर दूर था, जो बच्चों के लिए एक लंबी और कठिन यात्रा थी. उनके प्रयासों की बदौलत हाई स्कूल की स्थापना हुई और बाद में, एक खेल का मैदान बनाया गया, जहां अब नदी के किनारे केवल झाड़ियां बची हैं.
इस त्रासदी ने विल्सन को तोड़कर रख दिया है. वे कहते हैं, 'मैंने टूटने से बचने की कोशिश की...दिन में मैं गांव वालों को सांत्वना देता था, लेकिन हर रात मैं अपने पूर्व छात्रों और मेरे साथ खड़े समुदाय के लिए चुपचाप रोता था.ययय अब, दिन के उजाले में भी, उसे अपने आंसू रोकना मुश्किल लगता है, क्योंकि वह जगह जिसे वह अच्छी तरह से जानते थे, अब वह एक आपदाग्रस्त क्षेत्र में तब्दिल हो चुका है.
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