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राजनीति के दांव-पेंच में फंस गये चंपाई या लगाएंगे मास्टर स्ट्रोक, अब क्या है विकल्प, भाजपा में क्यों नहीं हुई इंट्री! - Jharkhand Political crisis

Champai Soren displeasure. क्या राजनीति के दांव-पेंच में चंपाई सोरेन फंस गये हैं या वे मास्टर स्ट्रोक लगाएंगे. अब उनके पास क्या विकल्प है, साथ ही भाजपा में उनकी इंट्री क्यों नहीं हुई. प्रदेश की सियासी फिजाओं में ऐसे कई सवालों का कोहरा छाया हुआ है. इसको लेकर क्या कहते हैं जानकार, जानें ईटीवी भारत की इस रिपोर्ट से.

why did Champai Soren not join BJP now what are options left for him
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Aug 20, 2024, 4:35 PM IST

रांचीः कोल्हान के टाइगर और झामुमो के वरिष्ठ नेता चंपाई सोरेन पिछले कई दिनों से सुर्खियों में हैं. 18 अगस्त को कोलकाता के रास्ते दिल्ली पहुंचने पर उन्होंने कहा था कि "अभी हम जहां पर हैं, वहीं पर हैं ". लेकिन इस बयान के चंद घंटों के भीतर उन्होंने सोशल मीडिया पर भावनात्मक पोस्ट के जरिए अपने दिल की बात साझा कर दी थी. सीएम रहते अपने साथ हुए अपमान का हवाला देते हुए उन्होंने कहा था कि उनके पास अब सिर्फ तीन विकल्प बचे हैं.

पहला, राजनीति से संन्यास लेना, दूसरा, अपना अलग संगठन खड़ा करना और तीसरा, इस राह में अगर कोई साथी मिले तो उसके साथ आगे का सफर तय करना. एक नेता के तौर पर उनके तीसरे विकल्प को लेकर कयास लगाए जा रहे थे. ये चर्चा थी कि कि वे दिल्ली में भाजपा ज्वाइन कर लेंगे. तीन दिन गुजर गये लेकिन ऐसा नहीं हुआ. अलबत्ता, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने चंपाई सोरेन के प्रति सहानुभूति जताते हुए इतना भर कहा कि जब कोई दुखी होता है तो किसी से भी संपर्क करता है, मिलता है, जुलता है. अगर कहीं ढंग से ठौर-ठिकाना मिल जाता है तो फिर छोड़ देता है.

इस बीच मंगलवार को दिल्ली से निकलते वक्त उन्होंने कह दिया है कि वे कोलकाता होते हुए सीधे सरायकेला जा रहे हैं. उनकी भाजपा के किसी भी नेता से बात नहीं हुई है. वह अपने स्टैंड पर कायम हैं. अब सवाल है कि चंपाई सोरेन के पास क्या विकल्प बचा है. तीसरा विकल्प तो ठंडे बस्ते में चला गया. अब क्या चंपाई सोरेन राजनीति से संन्यास ले लेंगे या फिर अपना संगठन खड़ा करेंगे.

अलग संगठन ही आखिरी विकल्प?

झारखंड की राजनीति को बारीकी से समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार मधुकर के मुताबिक गुंजाईश है कि सरेंडर कर जाएं. बशर्ते, उनके पुत्र बाबूलाल सोरेन को टिकट देने के लिए हेमंत सोरेन राजी हों. इसकी संभावना कम दिख रही है. संन्यास वाला पहला विकल्प अपनाना होता तो सीएम का पद छोड़कर मंत्री बनते ही नहीं. ऐसे में चंपाई सोरेन के पास अलग संगठन खड़ा करने के सिवा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचता है. यह सोच विचार के बाद लिया गया पॉलिटिकल मूव होगा. क्योंकि अलग संगठन बनाकर चंपाई सोरेन आदिवासी समाज को बताएंगे कि हेमंत सोरेन ने उनको अपमानित किया है. भले झामुमो ने कांग्रेस के एक मंत्री के जरिए चंपाई पर आरोप मढ़ने का खेल खेला लेकिन यह भी सही है कि आम लोगों के बीच इस बात की चर्चा है कि चंपाई के साथ अन्याय हुआ है. हालांकि यह भी नहीं भूलना चाहिए कि एक-दो नेताओं (अर्जुन मुंडा, विद्युत वरण महतो) को छोड़ दें तो झामुमो से अलग होकर अपने जमाने का कोई भी बड़ा नेता अलग लकीर नहीं खींच पाया. हेमलाल मुर्मू, स्टीफन मरांडी, लोबिन हेंब्रम का उदाहरण सबसे सामने है.

झामुमो के वोटबैंक पर डालेंगे कितना असर!

समय के साथ लोगों की सोच बदली है. संभव है कि चंपाई सोरेन अब सरना आदिवासी की एकजुटता पर काम करें. क्योंकि हिन्दू वोट को पोलराईज करने के लिए असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा और एमपी के पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान जुटे हुए हैं. वरिष्ठ पत्रकार मधुकर के मुताबिक पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान झारखंडी भाषा खतियानी संघर्ष मोर्चा बनाकर जयराम महतो ने राजनीतिक समीकरण को प्रभावित किया है. उनकी इंट्री ने आजसू पर असर डाला है. सुदेश महतो जब अकेले विधायक थे, तब भी मंत्री थे. दो हुए तब भी मंत्री बने. विधायक नहीं रहे, तब भी सरकारी सहूलियत उठाते रहे. वह हमेशा बार्गेन वाली स्थिति में रहे. इसबार के विधानसभा चुनाव में इसका असर भी देखने को मिल सकता है. कुल मिलाकर यही लगता है कि चंपाई सोरेन अगर भाजपा में शामिल कर लिए जाते तो पार्टी को कोई खास फायदा नहीं होता. क्योंकि झामुमो के पास कहने को होता कि सारी साजिश भाजपा ने रची थी. लिहाजा, चंपाई के अलग संगठन बनाने से झामुमो के वोटबैंक पर असर से इनकार नहीं किया जा सकता. इसका लाभ किसको होगा, यह समझना मुश्किल नहीं है.

गौर करने वाली बात है कि चंपाई सोरेन फूंक फूंककर कदम बढ़ा रहे हैं. अभी उन्होंने विक्टिम कार्ड खेला है. असर ऐसा है कि झामुमो का कोई भी नेता उनके खिलाफ खुलकर बोलने से बच रहा है. भाजपा में न जाकर उन्होंने झामुमो के लिए परेशानी खड़ी कर दी है. अब देखना है कि चंपाई सोरेन अब किस तेवर के साथ सामने आते हैं.

इसे भी पढ़ें- चंपाई सोरेन के खुले विकल्पों पर विराम, मझधार या फिर पार! - Champai Soren

इसे भी पढे़ं- चंपाई सोरेन क्यों पड़े झामुमो में अलग-थलग, क्या सीएम रहते पका रहे थे खिचड़ी? क्या कोल्हान पर डाल पाएंगे असर - Jharkhand Political crisis

इसे भी पढ़ें- बीजेपी की सियासी चाल के आगे बेबस जेएमएम, एक बार फिर से दिया बड़ा झटका! - Jharkhand Political Crisis

रांचीः कोल्हान के टाइगर और झामुमो के वरिष्ठ नेता चंपाई सोरेन पिछले कई दिनों से सुर्खियों में हैं. 18 अगस्त को कोलकाता के रास्ते दिल्ली पहुंचने पर उन्होंने कहा था कि "अभी हम जहां पर हैं, वहीं पर हैं ". लेकिन इस बयान के चंद घंटों के भीतर उन्होंने सोशल मीडिया पर भावनात्मक पोस्ट के जरिए अपने दिल की बात साझा कर दी थी. सीएम रहते अपने साथ हुए अपमान का हवाला देते हुए उन्होंने कहा था कि उनके पास अब सिर्फ तीन विकल्प बचे हैं.

पहला, राजनीति से संन्यास लेना, दूसरा, अपना अलग संगठन खड़ा करना और तीसरा, इस राह में अगर कोई साथी मिले तो उसके साथ आगे का सफर तय करना. एक नेता के तौर पर उनके तीसरे विकल्प को लेकर कयास लगाए जा रहे थे. ये चर्चा थी कि कि वे दिल्ली में भाजपा ज्वाइन कर लेंगे. तीन दिन गुजर गये लेकिन ऐसा नहीं हुआ. अलबत्ता, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने चंपाई सोरेन के प्रति सहानुभूति जताते हुए इतना भर कहा कि जब कोई दुखी होता है तो किसी से भी संपर्क करता है, मिलता है, जुलता है. अगर कहीं ढंग से ठौर-ठिकाना मिल जाता है तो फिर छोड़ देता है.

इस बीच मंगलवार को दिल्ली से निकलते वक्त उन्होंने कह दिया है कि वे कोलकाता होते हुए सीधे सरायकेला जा रहे हैं. उनकी भाजपा के किसी भी नेता से बात नहीं हुई है. वह अपने स्टैंड पर कायम हैं. अब सवाल है कि चंपाई सोरेन के पास क्या विकल्प बचा है. तीसरा विकल्प तो ठंडे बस्ते में चला गया. अब क्या चंपाई सोरेन राजनीति से संन्यास ले लेंगे या फिर अपना संगठन खड़ा करेंगे.

अलग संगठन ही आखिरी विकल्प?

झारखंड की राजनीति को बारीकी से समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार मधुकर के मुताबिक गुंजाईश है कि सरेंडर कर जाएं. बशर्ते, उनके पुत्र बाबूलाल सोरेन को टिकट देने के लिए हेमंत सोरेन राजी हों. इसकी संभावना कम दिख रही है. संन्यास वाला पहला विकल्प अपनाना होता तो सीएम का पद छोड़कर मंत्री बनते ही नहीं. ऐसे में चंपाई सोरेन के पास अलग संगठन खड़ा करने के सिवा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचता है. यह सोच विचार के बाद लिया गया पॉलिटिकल मूव होगा. क्योंकि अलग संगठन बनाकर चंपाई सोरेन आदिवासी समाज को बताएंगे कि हेमंत सोरेन ने उनको अपमानित किया है. भले झामुमो ने कांग्रेस के एक मंत्री के जरिए चंपाई पर आरोप मढ़ने का खेल खेला लेकिन यह भी सही है कि आम लोगों के बीच इस बात की चर्चा है कि चंपाई के साथ अन्याय हुआ है. हालांकि यह भी नहीं भूलना चाहिए कि एक-दो नेताओं (अर्जुन मुंडा, विद्युत वरण महतो) को छोड़ दें तो झामुमो से अलग होकर अपने जमाने का कोई भी बड़ा नेता अलग लकीर नहीं खींच पाया. हेमलाल मुर्मू, स्टीफन मरांडी, लोबिन हेंब्रम का उदाहरण सबसे सामने है.

झामुमो के वोटबैंक पर डालेंगे कितना असर!

समय के साथ लोगों की सोच बदली है. संभव है कि चंपाई सोरेन अब सरना आदिवासी की एकजुटता पर काम करें. क्योंकि हिन्दू वोट को पोलराईज करने के लिए असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा और एमपी के पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान जुटे हुए हैं. वरिष्ठ पत्रकार मधुकर के मुताबिक पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान झारखंडी भाषा खतियानी संघर्ष मोर्चा बनाकर जयराम महतो ने राजनीतिक समीकरण को प्रभावित किया है. उनकी इंट्री ने आजसू पर असर डाला है. सुदेश महतो जब अकेले विधायक थे, तब भी मंत्री थे. दो हुए तब भी मंत्री बने. विधायक नहीं रहे, तब भी सरकारी सहूलियत उठाते रहे. वह हमेशा बार्गेन वाली स्थिति में रहे. इसबार के विधानसभा चुनाव में इसका असर भी देखने को मिल सकता है. कुल मिलाकर यही लगता है कि चंपाई सोरेन अगर भाजपा में शामिल कर लिए जाते तो पार्टी को कोई खास फायदा नहीं होता. क्योंकि झामुमो के पास कहने को होता कि सारी साजिश भाजपा ने रची थी. लिहाजा, चंपाई के अलग संगठन बनाने से झामुमो के वोटबैंक पर असर से इनकार नहीं किया जा सकता. इसका लाभ किसको होगा, यह समझना मुश्किल नहीं है.

गौर करने वाली बात है कि चंपाई सोरेन फूंक फूंककर कदम बढ़ा रहे हैं. अभी उन्होंने विक्टिम कार्ड खेला है. असर ऐसा है कि झामुमो का कोई भी नेता उनके खिलाफ खुलकर बोलने से बच रहा है. भाजपा में न जाकर उन्होंने झामुमो के लिए परेशानी खड़ी कर दी है. अब देखना है कि चंपाई सोरेन अब किस तेवर के साथ सामने आते हैं.

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